“जातिवाद का नारा है, अपना नेता प्यारा है;
दुर्गा हो या रमाकान्त हो, गुण्डा है हत्यारा है!
उसे वोट दे आना है, या हत्या करवाना है?
नेता का घर कोठी है, चमड़ी उसकी मोटी है।
बन्दूकों की छाया है, सब चुनाव की माया है;
लूट रहे हैं, लूटेंगे, जो बोलेगा पीटेंगे”!
क्या जनता का फ़र्ज़ महज़ वोट डाल कर आना है?
और लूटते जाने का हरदम, वोट बहाना है!
महँगी शिक्षा-महँगा तेल, देख रहे नेता का खेल!
नहीं हाथ को मिलता काम, कैसे लें हम वोट का नाम?
घूस, दलाली, गुणडागर्दी, चोरबाजा़री जारी है।
अरबों जनता क्यों हल्की है? कैसे नेता भारी है?
कौन पार्टी जनता के दुःख दर्दों को दूर करे?
सारे नेता चोर हुए, सब अपनी ही जेब भरें।
नेता जी कितने चाईं हैं, बात बड़ी-बड़ी करते हैं।
जनता की सेवा करने को, मुहँ से ही जीते-मरते हैं।
दब्बू देते वोट हैं, गुण्डे करते राज।
दुर्गति जनता झेलती, देश बिक रहा आज।
कैसे दें हम वोट? हमारी सड़क खराब बनायी क्यों?
किसको दें हम वोट? भला अब चिन्ता किसे हमारी है?
वोट माँगने आता नेता, तनिक नहीं शरमाता नेता।
पाँच साल तक लूट चुका है, फिर भी लूट मचाता नेता।
सच्ची बात सुनो सभी, डंकल छाया आज।
ऐसे में गद्दार को, कैसे दें फिर ताज?
देश बेच कर खाने वाले, तनिक नहीं शरमाते हैं।
डंकल-ज़िन्दाबाद बोल कर वोट माँगने आते हैं।
क्या इनको ही चुनना हैं? खुद ही फन्दा बुनना है?
इन्कलाब ज़िन्दाबाद !! – गिरिजेश
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