Sunday, 24 June 2012

संघर्ष-सृजन करना होगा - डॉ. मयंक त्रिपाठी


डॉ. मयंक त्रिपाठी की कविता पढ़िये. 

मुट्ठी-भर लोगों के आगे, यदि अपना शीश झुकाना हो;
रोटी के नीचे दब कर के, अपना अधिकार गँवाना हो;
दो काट, फेंक दो ऐसा सिर, 
जो उठ न सके सच की खातिर.

कर-बद्ध खड़े घिघियाने से, अपमानित होते जाने से;
अपना सम्मान गँवाने से, बातों के बाण चलाने से;
बेहतर है पल में जल जाना, 
सौ साल धुवाँ फ़ैलाने से.

अधिकार हमें बढ़ने का है, अधिकार हेतु लड़ना होगा;
बलिदान भले ही हो जायें, सपना सच का गढना होगा;
बलिदान दिलाता न्याय सदा, 
सूली पर भी चढ़ना होगा.

अधिकार नहीं माँगा करते, अपने हक को छीना करते;
पूँजी की चालों-जालों को, समझा करते, तोड़ा करते;
अन्याय-शमन करना है तो,
 संघर्ष-सृजन करना होगा.

दुनिया को सिखलाना होगा, सच क्या है - दिखलाना होगा;
मिल-जुल आगे बढ़ना होगा, हथियार उठा लड़ना होगा;
अधिकार-प्यार के सपनों को, 
साकार हमें करना होगा.

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