हमारे पुरखे भी क्या खूब थे....एक से बढ़ कर एक कहावतें कह गये...पीढ़ियों से हम सब के लिये मौके-ब-मौके दोहराने के काम आती रही हैं... आज एक ऐसी ही कहावत दिमाग में शाम से नाच रही है... मन बेचैन है... किसी का बयान देखा... हँसी भी नहीं आयी... तरस भी नहीं आया... इतने दोहरे चेहरे वाले लोग.... काफ़िर हूँ... सो, यह भी नहीं कह सकता.... "या ख़ुदा, इन्हें माफ़ कर दे, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं".... ये तो 180 डिग्री पर पलटा खाने वाले निकले.... ये अच्छी तरह जानते हैं कि क्या कह चुके हैं और क्या कह रहे हैं.... मेरा तो कोई ख़ुदा भी नहीं है.... जो इनको मेरे दुआ करने के बाद भी माफ़ कर सके... अरे मैं आप को वह कहावत बताना तो भूल ही गया... वह कहावत है....
"सूप हँसे तो हँसे, चलनियो हँसे जिसमें बहत्तर छेद" !
अभी तक तो सुना भर था... मगर आज तो मैंने भी ख़ुद अपनी आँखों से एक चलनी को भी हँसते देखा... वाह, क्या बात है.... बात के धनी अपने सभी 'दोस्तों' से तो मैं फिर भी माफ़ी भी माँग सकता हूँ... मगर 'द्विजिह्वाधारियों' से तो निभाना नामुमकिन ही है मेरे लिये... तौबा, तौबा.... इसमें भी अगर मेरा ही कुसूर है, तो मेरी बला से होता रहे.... मेरी बात अगर मेरे किसी 'शुभचिन्तक' को चुभ गयी हो, तो वह ख़ुशी से मेरा 'अशुभ' करने का प्रयास शुरू कर सकता है... मगर बात है, तो है... बात तो बात ही है, अगर निकलेगी, तो फिर दूर तलक जायेगी ही....
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नाना रूपधर का नूतन अवतार - गिरिजेश
"अन्तः शाक्ताः, बहिः शैवाः, सभा मध्ये च वैष्णवाः ;
नाना रूप धराः कौलाः, विचरन्ति मही तले |"
धन्य हैं ! धन्य हैं !!
आज फ़ेसबुक ने ऐसा फ़ेस दिखा दिया कि मुझे किसी पुरखे का लिखा यह श्लोक याद आ गया.
क्या कहा.... संस्कृत नहीं समझते.
चलिए, कोई बात नहीं. हिन्दी तो समझ लेते हैं न...
हिन्दी ही समझिए....
अर्थात्
"अन्दर से शक्ति के उपासक, बाहर से शिव के पुजारी, लोगों के सामने 'शुद्ध शाकाहारी' वैष्णव जैसे दिखाई देने वाले, काली की पूजा करने वाले लोग धरती पर तरह-तरह के रूप बदल-बदल कर टहलते रहते हैं."
ये आत्म-रूपान्तरण में समर्थ बहुरूपधारी हैं.
जहाँ जैसा मौका देखा, वैसा ही दिखाई दे सकते हैं.
इन बहुरुपियों के रूप बदलने की कला कमाल की है.
इनके नूतन अवतार के दर्शन से मैं तो कृतार्थ हो चुका.
अगर आप भी हो सके, तो इहलोक और परलोक दोनों सुधर जायेगा.
सुना नहीं है क्या आपने अभी तक....
आस्था में ही शक्ति है और वही असली भक्ति है.
भक्ति से ही बहुतों को मिल रही मुक्ति है.
तर्क नर्क का द्वार है.
मुँह फाड़ कर बकर-बकर क्या देख रहे हैं जी...
बेहतर होगा कि अपना अदना-सा मुँह बन्द ही रखिए.
केवल यकीन कीजिए और हाँ...
ख़बरदार, किसी से भी कोई भी सवाल पूछिएगा मत....
वरना आपका भी अन्जाम....
समझ गये न !
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