Tuesday 7 January 2014

एक 'समझदार' दोस्त से एक बार फिर अकेले में मुलाकात - गिरिजेश



प्रिय मित्र, आज शाम अपने एक 'समझदार' दोस्त से एक बार फिर अकेले में मुलाकात करने का मौका मिला. इस मुलाकात के लिये अनेक बार की कोशिशों के नाकाम होने पर भी नाउम्मीद हुए बिना मैंने एक बार और आज सुबह समय लेने की कोशिश की. यह मुलाकात लगभग एक वर्ष के लम्बे अन्तराल तक पूरे धैर्य के साथ चुपचाप की गयी प्रतीक्षा के बाद आज जाकर हो सकी. तब हो सकी, जब परिस्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. 

मुलाकात की इज़ाज़त मिल पाने पर सही वक्त पर शाम को मैं उनके घर गया. और फिर जब साथ बैठे, तो लगभग तीन घन्टे लगातार दिल खोल कर हर तरह की अन्तरंग बातें होती रहीं. दोनों ही की नज़रें एक दूसरे को तौलती रहीं, एक दूसरे से मिलती रहीं, कई बार टकराती रहीं और कई बार बचने की भी कोशिश करती रहीं. दोनों ही एक दूसरे को पूरा जान रहे थे. दोनों ही अच्छी तरह समझ रहे थे कि अब तो साफ़-साफ़ बात हो ही जानी चाहिए. वरना शायद देर हो जाये. और दो-टूक बातें हुईं भी.

इस दोस्ती के शुरू होने के वक्त से ही मुझ पर पूरा भरोसा न करने और फिर पूरी तरह से मुझ पर से भरोसा टूट जाने से नुकसान तो बहुत हुआ. इस नुकसान को रोकने और अपने दूसरे सभी रिश्तों की ही तरह इस रिश्ते को भी बचाने के लिये मैं जो कुछ भी कर सकता था, वर्षों तक लगातार मैंने किया. मगर केवल कोशिश ही करना तो हमारे बस में है. पूरी शिद्दत से कोशिश करने पर भी नतीज़ा हमारे हाथ में नहीं भी हुआ करता ही है. सब की तरह ही मेरे भी पास तो एक ही ज़िन्दगी रही. और उसे मैंने अभी तक तो पूरी आन-बान-शान के साथ अपने इन्कलाब के लाल झण्डे के नीचे सच और इन्साफ़ के लिये जूझते हुए ही गुज़ारा है. अव्यावहारिकता और अनमनीयता मेरा सबसे बड़ा दुर्गुण है. दो दूना पाँच पढ़ाने वाले मुझे कभी बर्दाश्त नहीं हुए.

अभी भी दौर तो सिक्के की हुकूमत का ही है. सिक्का इन्सान ने अपनी ख़िदमत के लिये विनिमय में सहूलियत के लिये गढ़ा था. मगर सिक्के ने भी इन्सान से अपनी गणेश-परिक्रमा करवा कर उसे उसकी औकात बता ही दी. वह लगातार इन्सान का अमानुषीकरण करता गया. आज सिक्का भी बखूबी समझ चुका है कि अब वह इन्सान को और गफ़लत में नहीं रख सकता. अब हुक्काम और अपने रूप नहीं बदल सकते. अब की बार तो आर-पार ही होना है. मेरे बाद भी निन्यानबे बनाम एक प्रतिशत की जंग जारी ही रहेगी. और हुक्काम भी जानते ही हैं कि अब की बार सिक्का हारेगा ही और इन्सान जीतेगा ही. 

सिक्के की हुकूमत के इस शातिर दौर में शरीफ़ लोग सीढ़ी चढ़ने के चक्कर में चकराते ही रहे हैं. हर एक पर शक करना समझदार होने की पहली शर्त है. शक रिश्ते को दरकाता चला जाता है. शक रिश्ते को तोड़ देता है. हमेशा से ही जोड़ता तो भरोसा ही रहा है. शक ने मेरे भी रचना-संघर्ष को बेतहाशा तोड़ा ही है. भरोसे ने ही मुझे अपने सभी दोस्तों की तरह ही इस दोस्त से भी जोड़ा था. भरोसा करना मासूमियत भले ही हो. कम से कम चालाकी तो नहीं ही हो सकती. ऐसे में आज एक बार फिर मैंने पूरी शिद्दत से इस बेतहाशा दरक चुके भरोसे के बीच पैदा हुई दरार को पाटने की कोशिश की है. और मैं अपनी इस कोशिश से पूरी तरह से संतुष्ट भी हूँ.

सत्य कल्पना से भी अधिक विचित्र होता है. यह तथ्य मुझे मेरे एक युवा मित्र ने गत जुलाई में पढ़ाया था. संभावनाएँ अगणित होती हैं. इसलिये ऐसे में अभी भी यह मुमकिन हो सकता है कि कम से कम एक ही इन्सान सही अभी भी मेरी ईमानदारी का यकीन कर ले. कहा तो उसने यही है कि मेरी विश्वसनीयता असंदिग्ध है. मगर जब तक कहानी अगले मोड़ तक न पहुँच जाये, तब तक कम से कम मुझे कथनी और करनी में इतने तरह के फ़र्क इतनी बार जीने पड़े हैं कि अभी भी मन पूरी तरह यकीन करने को तैयार नहीं है. 

और तो और यह भी सम्भावना प्रबल ही है कि कहानी पूरी होने के पहले ही वह ख़ूबसूरत मोड़ आ जाये, जब महा-प्रयाण के लिये रवाना होने का वक्त आ जाये. मेरे ऊपर मेरे एक-एक दोस्त के असंख्य एहसानात का क़र्ज़ है. और केवल शुक्रिया कह कर उस क़र्ज़ से बच निकलना मेरे लिये तो नामुमकिन ही है. फिर भी आज मैं तह-ए-दिल से अपने सभी दोस्तों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ. अपनी ज़िन्दगी की टेढ़ी-मेढ़ी विकास-यात्रा के दौरान मुझसे होने वाली अपनी सारी गलतियों के लिये मैं शर्मिन्दा हूँ. मैं पूरी विनम्रता के साथ अपनी एक से बढ़ कर एक की गयी बेवकूफियों के चलते अपने सभी दोस्तों और उनके भी सभी दोस्तों को हुई तकलीफ़ के लिये ईमानदारी से आप सब से माफ़ी माँगता हूँ. 

आपको अलविदा कहने से पहले केवल एक निवेदन करना चाहता हूँ कि बाद मेरी आँख बन्द होने के मेरे शरीर को चिकित्सा-विज्ञानं के छात्रों को सीखने के लिये दे दिया जाये और किसी भी तरीके का कोई भी परम्परागत 'तमाशा' न किया जाये. इसके लिये जिन भी ज़रूरी कागजों पर मेरे हस्ताक्षर करवाने हों, वक्त रहते करवा लिया जाये.
मेरी इस कहानी का नाम है - 
"ब्रूटस यू टू !" 
क्षमा-याचना के साथ - आपका अपना गिरिजेश 
24.12.13. (1.34 A.M.)

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