दुनिया में ख़ुशी बाँटिए, खुद ज़हर पीजिए;
हर एक ज़िन्दगी को ज़हर मत बनाइए।
गुर्राना-बड़बड़ाना छोड़ सम्भलिए जनाब;
ख़ुद अपने ही दिल-ओ-दिमाग को बचाइए।
लोगों की चूक देखिए, तो मुस्कुराइए,
आहिस्ता से अपनी सलाह देते जाइए।
अपनी नफ़ीस आदतों पे फ़ख्र कीजिए,
सबके हुनर समेट, बगीचे सजाइए।
वरना किसी के काम नहीं आ सकेंगे आप,
ग़ैरों को छोड़ ख़ुद पे ज़रा तरस खाइए।
(एक आत्म-कथ्य)
(चित्र साभार साथी Faqir Jay)
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