आ रे नौजवान, तेरी बेड़ियाँ रही हैं टूट;
क्रान्ति का नया कदम बढ़ा तू....
क्रान्ति का नया कदम बढ़ा !
बढ़ रहा है आज तेरा कारवाँ,
सर झुका रहा जमीन को आसमाँ;
राह की सफों को तूने कर लिया है पार,
सामने की मंजिलें रहीं तुझे पुकार....
उठ गुला....म ! उठ गुलाम !
उठ गुलाम ! ज़िन्दगी के बन्धनों को तोड़ दे;
चल सुबह की रौशनी में डगमगाना छोड़ दे !
आ रे नौजवान…
अब सुना न जुल्म की कहानियाँ,
दाँव पर लगा दे नौजवानियाँ;
ख़त्म हो चली हैं ऐश-ओ-हुक्मरानियाँ,
ख़त्म हो चली हैं ये वीरानियाँ....
उठ गुला....म ! उठ गुलाम !
उठ गुलाम ! ज़िन्दगी के बन्धनों को तोड़ दे;
चल सुबह की रौशनी में डगमगाना छोड़ दे !
आ रे नौजवान…
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