Monday 27 April 2015

भारतीय किसान - चुनौतियाँ और समाधान



राहुल सांकृत्यायन के जन्मदिवस के अवसर पर 
'' भारतीय किसान - चुनौतियाँ और समाधान'' विषय पर महापण्डित राहुल सांकृत्यायन बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, चक्रपानपुर में आयोजित विचार-गोष्ठी की अध्यक्षता करने का अवसर मुझे मिला. उक्त गोष्ठी में मेरा अध्यक्षीय वक्तव्य -

"किसान कभी खुश नहीं रहा. वह पुरातन काल से ही पीढ़ी दर पीढ़ी त्रस्त, शोषित और उत्पीड़ित रहा है. आज़ादी के पहले किसान अत्याचारी ज़मींदार, पाखण्डी पुरोहित और सूदखोर महाजन के फन्दे में जकड़ा था. अब वह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, बैंकों और शासन की जनविरोधी नीतियों का शिकार हो रहा है. पूँजी अपने विस्तार के लिये लगातार प्राक्पूँजी उत्पादन प्रणाली को ध्वस्त करती रहती है.

छोटी किसानी को नेस्तनाबूत करना ही मोदी की फ़ासिस्ट सरकार का मकसद है. '90 में देश के तत्कालीन प्रधानमन्त्री द्वारा डंकल प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के बाद से किसानों के विरुद्ध लगातार साज़िश जारी है. वैश्विक पूँजी समूची धरती पर किसानों की ज़मीन पर कब्ज़ा करने के मकसद से लगातार आक्रामक है.

अपने देश में लगातार हो रही किसानों की आत्महत्या वस्तुतः उनकी हत्या है. जिसके लिये देश और दुनिया में सत्ता पर काबिज़ पूँजीवादी व्यवस्था ज़िम्मेदार है. बड़ी पूँजी के हमले के सामने छोटे किसानों को बर्बाद होने से बचने और जिन्दा रहने का केवल एक रास्ता है और वह है सामूहिक खेती. अगर छोटे-बड़े किसान अपने झगड़ों से ऊपर उठ कर अपने बीच सहमति बना कर अपने खेतों की मेड़ों को तोड़ दें और मिलजुल कर सामूहिक खेती शुरू करें, तो वे अपनी अलग-अलग व्यक्तिगत मालिकाने की खस्ता हालत से उबर सकते हैं.

किसानों को एक दूसरे के विरुद्ध लड़ाने वाले छोटे-मोटे मनमुटाव और उनको आपस में बाँटने वाली जातिवाद की सोच से मुक्त होकर ही किसानों की वास्तविक एकजुटता मुमकिन है. राहुल बाबा की पुस्तक 'बाइसवीं सदी' एक ऐसे ही समाज की कल्पना है, जिसमें हर तरह के भेदभाव से मुक्त होकर गाँव का आदमी खुशहाल ज़िन्दगी जीता है."

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