Girijesh Tiwari
___ जो जैसा होता है, वह वैसा ही क्यों रह जाता है ! ___
Amit Pathak जी के बाद एक और 'समझदार' क्रान्तिकारी का मुझ पर प्रहार....
प्रिय Alam Khan जी, आपके स्नेह और सहयोग के लिये आभार
और आपके प्रहार का ससम्मान स्वागत !
आपने कल सुबह (Alam Khan Yesterday at 10:25am ) यह पोस्ट किया और कल ही शाम और दस बजे रात तक मुझसे ही सीखने का अभिनय करते और जिज्ञासा दिखाते रहे !
हर वह बात जो विगत पाँच वर्षों से कल रात ही नहीं, बल्कि आज की दोपहर तक प्रतिदिन घण्टों-घण्टों सुबह से देर रात तक मैंने आपको सिखाने की कोशिश की, हर वह पोस्ट जो मैंने आपसे शेयर की, आपको टैग किया - सब केवल मेरी मूर्खता का साक्ष्य है.
कल मेरी चूक केवल इतनी हो गयी कि आपको सिखाने के चक्कर में मैं अपने सिस्टम को शाम को आपके हवाले कर के अपनी बारी की धैर्य के साथ प्रतीक्षा करता रहा और आपकी यह पोस्ट समय से नहीं देख सका था. इसीलिये मैं आप की कल की मुस्कान और आपकी बातों का मतलब और उसकी गहराई नहीं समझ सका था. विलम्ब के लिये खेद व्यक्त कर रहा हूँ.
अभी और भी बहुत कुछ कहने को शेष है.
उसे भी लगे हाथ कह डालिए,
वरना मौका चूक जाने की यन्त्रणा झेलते रहना होगा आने वाले दिनों में.
आप के बारे में मेरी समझ बढ़ाने और मुझे आज संतोषजनक निर्णय तक पहुँचा देने के लिये भी मैं आपका आभार व्यक्त कर रहा हूँ.
तुलसी दास ने मीरा बाई को सलाह दी थी -
"तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही..."
आप जैसे हर एक इन्सान को बदल सकने की रंच-मात्र उम्मीद के चलते एक और अवसर देने के चक्कर में उनकी यह सलाह लागू करने में मैं हर बार विलम्ब करता रहा हूँ.
मगर तुलसीदास की यह महत्वपूर्ण सलाह तत्काल लागू कर देने की आप को भी सलाह देने की ज़ुर्रत कर रहा हूँ.
मैं अपने अन्य सभी साथी-दोस्तों को भी अपने "व्यवस्थावादी, समझौतापरस्त, संशोधनवादी और देश-विदेश से धोखा देकर केवल पैसा पैदा करने वाले दोहरे चरित्र" के बारे में आगाह करने के मकसद से आपकी इस पोस्ट को शेयर कर रहा हूँ.
ताकि अगला प्रहार करने वालों को भी प्रोत्साहन और सहायता मिल सके.
- ढेर सारे प्यार के साथ आपका गिरिजेश (23.5.15)
______________________________
Alam Khan - "साथियों किसी लक्ष्य में साथ कार्यरत साथी को comrade कहते हैं इसका किसी हिंसक लक्ष्य से कोई संबंध नही ! दुख इस बात का हैं की जिस साथी के साथ और सम्वेद्ना के साथ इंकलाब करने का सपना बुना था वो साथी व्यवस्था के साथ समझौता कर लिया और system के साथ क्रांति के स्वर को मंद करने में सतत: प्रयासरत हैं क्रांति का कमीज़ पहने system के अधीन system का लक्ष्य पूर्ति कर रहा हैं अपने साथि को दिग्भ्रमिक कर रहा हैं की आज की परीस्तिकी यह हैं! वो सर्वहरा की सेवा से दुर हैं मध्यम वर्ग का हितेशी हैं ताकि मध्यम वर्गिय लाभ मिल सके इस तरिके से वो सन्शोधनवाद का समर्थक और गुप्त रूप से प्रशन्सक हैं NGO तो नही चलाता लेकिन NGO के लोगो से सहयोग जरुर लेता हैं इतिहास में आहुति दिय साथि केश्रेय को कलंकित करता हैं गरिब बच्चों को शिक्षा इसलिय देता की देश के कुछ छोटे उध्योगपती को उनकि सेवा म्यस्सर करा सके ! देश-विदेश से इनक्लाब का झंडा दिखा कर पैसा पैदा करने का आमानवीय कार्य करने में कार्यरत हैं खुद इनक्लाब के व्यवहार से परे हैं और दिनभर क्रांति का झूठा डोल पिटता हैं . आज के क्रांति का स्वरुप कैसा होगा ये हमारे सामने एक गंभीर प्रश्न हैं!"
_____________________________
Amit Azamgarh shared Girijesh Tiwari's photo.
जो जैसा होता है, अगर वो वैसा ही रह जाता है तो जरूरी नहीं है कि इसके पीछे उसी की गलती हो. अक्सर वो खुद को बदलने की कोशिश करता है, लेकिन व्यक्तित्त्व निर्माण की साधना में रत, कटिया लगा कर चुपचाप 'धैर्य के साथ' बैठे लोगों के मकड़जाल में फंस जाता है, और वो अपनी कुंठाएं, कुत्सायें, अवसाद, रुग्णतायें आदि उसके अन्दर भी डाल देता है क्योंकि उसके पास इसके अतिरिक्त और कुछ होता नहीं है. इसके नमूने तुम्हारे मठ में भी देखे जा सकते हैं. कई बार उनमे से कुछ तुम्हारी इस चालाकी को भांपकर तुमसे पिंड छुड़ाकर बच निकलते हैं, तो तुम अपनी शेर की खाल उतार फेंकते हो, और रामनामी चादर ओढ़कर रेंकना शुरू कर देते हो. खैर अब मुद्दे की बात कर लेते हैं. आलम की इस पोस्ट को पढ़ कर तुमको स्वाभाविक ही मेरी याद आ गयी और तुमने एक बार फिर वही चालाकी करने की कोशिश की जो तुमने मेरी पोस्ट आने पर की थी. इस बार भी तुमने सवालों के जवाब न देकर, विधवा विलाप शुरू कर दिया. अंतर बस ये था कि अबकी तुम्हारे सुर में सुर मिलाकर रेंकने वाले गधे, न जाने किस मजबूरी में या शायद इसलिए कि इस बार मामला तुमने खुद ही सम्हाल लिया और इनबॉक्स में जाकर उनको हांक लगाने की जरूरत नहीं समझी, इस पोस्ट पर रेंकने नहीं आये. आलम की पोस्ट में उठाये गए एक भी सवाल का तुमने जवाब नहीं दिया. हां, नेपाल में सेवाभाव से जुटे एक चैरिटी फाउंडेशन, जो वास्तव में एनजीओ की सुधारपंथी राजनीति का ही एक नमूना है, का लिंक जरूर अपनी वाल पर शेयर कर लिया. वैसे संघ के मुखपत्र पांचजन्य में भी इस तरह के 'सेवाभाव' की खूब चर्चा होती है. अहो! कितना विराट है आपका व्यक्तित्व! किन-किन चीज़ों को समाहित कर रखा है आपने खुद में!
इसके बाद तुमने तुरंत छाती पीटना शुरू किया और आलम पर सारा आरोप डालकर यह बताने में जुट गए कि मैंने पिछले पांच सालों में आलम के ऊपर कितने एहसान किये और हाय! इसने इसका यह सिला दिया. कमरे में बैठकर अपना खलिहरपन काटने और नौजवानों को जुटाकर उनको रुग्णता, कुंठा का शिकार बना देने को तुम क्रांति की सेवा का नाम देते हो.
और रही बात सिखाने की तो एक बात बताइए माट साब! वैसे पढ़ाते तो तुम अंग्रेजी हो, लेकिन अंग्रेजी की किसी भी किताब के दो पाठ भी ऐसे नहीं हैं जो तुमने किसी को पूरा पढाया हो.. एक्सीलेंट की गाइड खोलकर बच्चों के सामने रखकर खुद बिस्तर में लेटे रहने की तुम्हारी आदत से कौन है, जो तुम्हारे मठ में आया हो और परिचित न हो. क्रांति का ढोल.... माफ़ कीजियेगा घंटा बजा-बजाकर लोगों की नींद हराम करने और जिनके अन्दर कुछ कर सकने की सम्भावना भी हो, उन्हें भी क्रांतिविरोधी बना देने की तुम्हारी पुरानी आदत है. विस्तार से फिर कभी, अभी तो बस अपनी उपाधियों "व्यवस्थावादी, समझौतापरस्त, संशोधनवादी और देश-विदेश से धोखा देकर केवल पैसा पैदा करने वाले दोहरे चरित्र" में एक और जोड़ लीजिये - गिजियावन
#गिजियावन
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10204420123170956&set=a.2043969386669.2098291.1467398103&type=1&theater
______________________________
Shivam Aniket with Girijesh Tiwari
नमस्ते तिवारी जी!
(क्षद्म क्रांतिकारी),
क्या समाचार हैं आपका? ....खैर आपका समाचार सुनना मेरा मकसद नहीं हैं, वो क्या हैं न? बड़ा दिन हो गया था आपने इधर फेसबुक पर वो ‘टिली-लीली...टिली-लीली....टिल-पो’ वाली फ़ोटो नहीं ज़ारी किया हैं। मैं उसी फ़ोटो को देखने के लिए तरस रहा हूँ। खैर फ़ोटो बाद में ज़ारी कर दीजिएगा, अभी काम के बारे में ही चर्चा करते हैं......
तिवारी जी! आपको ज्ञात तो होगा ही कि - नौजवानी में अयोग्य होना तो किसी हद तक बर्दास्त किया जा सकता है; पर बुजुर्गावस्था में असमर्थ हो जाना बहुतै दु:खदायी होता हैं। सबसे बुरी स्थिति तो तब होती हैं, जब आदमी यह भी महसूस नहीं कर पाता कि- उसकी शक्तियाँ क्षीण हो गई है। अब चूँकि शक्तियाँ क्षीण हो गई है, तो आदमी को अपनी सेवा करवाने के लिए नौजवानों पर निर्भर होना ही पड़ता हैं (ऐज ए अस्सिस्टेंट), नौजवानों से “स्नेह” तो करना ही पड़ता हैं। और आप? ...आप तो “स्नेह करने” के मामले में बहुतै माहिर हैं।
तिवारी जी! वैसे “स्नेह करने” की बात में न बहुतै दम होता हैं। व्यक्तिगत संबंध बना कर, “स्नेह करने” पर आदमी सदैव सब परिस्थियों में अपने दायित्व को निभाता हैं, आपके लिए तो “स्नेह करना”, मानों- जैसे दूध-बताशा हों – फलानी मेरी “बेटी” है, तो फलाना मेरे “मानस-पुत्र” हैं। खैर हम तो ठहरें ‘कामरेड’।
वैसे आप के इस सोच में भी बहुतै दम हैं कि – ‘एक बार क्रन्तिकारी बन गया- तो बना ही रहूँगा, चाहें- ब्लडप्रेशर, रक्त में शर्करा, ह्र्दचाप - सब हो जायें, नकली दांत लिए हुए, लटकती खाल लिए हुए, ऊपर से मार्क्सवाद चोला ओढ़ा ही रहूँगा और जब-तक बौद्धभिक्षु हूँ, तब-तक घंटा हिलाता ही रहूँगा’।
तिवारी जी! वैसे आप हो- बहुतै महान! - आपोंआप कहते-फिरते रहते हैं कि “मैं एक पेशेवर क्रान्तिकारी हूँ और यह सब स्वयंसेवी भाव से कर रहा हूँ.”
पर, पर.... एक पल ज़रा ठहरिये! ...तिवारी जी! हम आपको “मार्क्सवादी या पेशेवर क्रांतिकारी” क्यों मानें? या सिर्फ इसलिए मान लें? – क्योंकि – आप मार्क्सवाद को भुनभुनाते रहते हैं या क्रांति, कम्युनिज्म आदि शब्दों की जुगाली करते रहते है और अपने जुबान से क्रांति में शिरकत करते रहते हैं, और आधा-अधूरा-दो-चार अध्ययन-चक्र चला दिया करतें हैं? या इसलिए कि - आप नियतन इंकलाबी हैं या आप समाजवाद लाना चाहते हैं? या इसलिए कि - आप युवाओं के लिए कुछ करना चाहते हैं? अगली पीढ़ी के लिए उपयोगी होना चाहते हैं?
ये बात मैं नहीं कह रहा हूँ, यह बात भी आप, आपोंआप कहते-फिरते रहते हैं कि- “मैं केवल अगली पीढ़ी के लिए उपयोगी होना चाहता हूँ. मैं आजमगढ़ के युवाओं के लिए कुछ करना चाहता हूँ. यह मेरा जिला है.”
वैसे तिवारी जी! चाहने से कुछ नही होता हैं ......करने से होता हैं, और आप करेंगे कैसे? अपने चौहद्दी के अंदर कैद होकर ...बिलकुल मनमौज तरीके से, जो मन मैं आया, उसी पर अमल करेंगे - वाली निति से?
हमें तो लगता हैं कि- आप मार्क्सवाद के ‘सिध्दांत एवं नियम’ से भी सुपरचित नहीं हैं। हाँ अगर कुछ वक्त के लिए हम मान भी लें कि- आप ‘सिध्दांत एवं नियम’ से सुपरचित हैं। तो भी लगता हैं कि- आप या तो उसे नज़रअंदाज करते हैं या पूरी तरह से नकार देते हैं, क्योंकि- आप कहीं पर भी ‘सिध्दांत एवं नियम’ के अनुरूप कार्य ही नही करते हैं। ‘सिध्दांत’ को अपने व्यवहार में लागू ही नहीं करते हैं तिवारी जी!, आप अपने ‘व्यवहार में ही असफल’ हैं। आप असफल इसलिए भी हैं- क्योंकि आप अपने असफलताओं से सबक तक नहीं लेते हैं। ( अभी हम आपके ‘व्यक्तित्त्व हीनता, चारित्रिक दोष एवं तमाम तरह की कुंठाओं’ की बात नही कर रहें हैं। )
और तिवारी जी! सबसे महत्वपूर्ण बात ये हैं कि – ये स्वंय ‘सिध्दांत एवं नियम’ भी कोई पत्थर की लीक नहीं हैं, यह तो जन-कार्यवाहीयों, जन-आन्दोलनों एवं क्रांतिकारी संघर्षों के व्यावहारिक कार्य के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित होने से ही अंतिम रूप ग्रहण करता हैं। पर श्री मान आप? .....आप तो अपने ही चौहद्दी के अन्दर कैद हैं और आप न केवल ‘जन-आन्दोलनों एवं क्रांतिकारी संघर्षों’ से उचित दूरी बनाये हुए हैं बल्कि आपका तो जनगण से भी कोई संबंध नहीं, न तो कोई सांगठनिक ढांचा है और न तो कोई जनाधार। फिर? .....फिर तो स्वंय ‘सिध्दांत’ भी भला कैसे अंतिम रूप ग्रहण करें?*
(*नोट : यह पोस्ट सिर्फ़ तिवारी जी के बारे में ही नहीं हैं बल्कि यह पाण्डेय जी, मिश्रा जी, या कोई और फ़लाने जी भी हो सकते हैं। )
तिवारी जी! फिलहाल हम न तो आपकी आलोचना कर रहें हैं, न तो आप पर व्यक्तिगत प्रहार, बल्कि हम आपको सख्त हिदायत दें रहें है कि – मौज़ूदा समय में आज़मगढ़ के तरुणों के “क्रांतिकारी व्यक्तित्त्व गढ़ने” के नाम पर चल रहें असफल प्रयोग- “व्यक्तित्त्व विकास परियोजना” को आप फ़ौरन ध्वस्त करें, “क्रांतिकारी व्यक्तित्त्व गढ़ना” बंद करें। आपोंआप “मार्क्सवादी या क्रांतिकारी” कहना या साबित करना बंद करें। “क्रांतिकारी काम” में जुटें रहने का ढोंग करना बंद करें। ( वैसे आलसी आदमी हमेशा काम में जुटे रहने का ढोंग करता रहता हैं। )
वैसे हम कैसें मान लें कि- ‘आप तरुणों के क्रांतिकारी व्यक्तित्त्व गढ़ने जैसा क्रांतिकारी काम कर रहें हैं?’
और आप, स्वंय ही फेसबुक पर एक जगह कह रहें हैं कि- “मैं विभिन्न व्यावसायिक संस्थानों के लिये तैयारी करने वाले युवाओं के व्यक्तित्व विकास के लिये एक परियोजना पर काम कर रहा हूँ.
-: व्यक्तित्व विकास परियोजना :-
आज़मगढ़ के तरुणों को विभिन्न व्यावसायिक संस्थानों की प्रवेश परीक्षाओं तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली तैयारी में सहयोग देने के लिये यह परियोजना चलायी जा रही है.”
हक़ीकत भी यही है।- तरुणों को इस सिस्टम का एक पुर्जा बनाने के लिए सहयोग करना आपका प्रधान कार्य हो गया और क्रांतिकारी व्यक्तित्त्व गढ़ना गौण। - आइये आपके एक पोस्ट पर नज़र डालते हैं। - ‘प्रिय मित्र, “फलाने” ने अपनी “.....” की परीक्षा में अपने बैच में सर्वोच्च अंक प्राप्त करके मेरे जैसे सड़क के अदना-से आदमी के लिये जो गौरव और सम्मान प्रदान किया है, वह मुझे अपने विद्रोही तेवर के चलते जीवन भर मिलती चली आ रही यंत्रणा की वेदना से राहत पहुँचाने वाली अद्वितीय क्षतिपूर्ति है. आज इस समाचार को सुन कर निस्सन्देह मैं अत्यन्त ही प्रसन्न हूँ. मेरा शुरू से ही मूल्यांकन रहा है कि “फलाने” का व्यक्तित्व अद्वितीय है. इस सफलता ने एक बार फिर उस मूल्यांकन को सही सिद्ध किया है. आगे अभी और भी विकसित होते हुए जब वह अपने उत्कर्ष के चरम पर पहुँचेंगे, तभी जाकर मुझे अपनी जीवन भर की चुपचाप जारी साधना की सार्थकता का सच्चा सन्तोष पूरी तरह से मयस्सर होगा. मैं अन्तर्मन से कामना करता हूँ कि हर आने वाला कल “फलाने” को ऐसी ही अगणित सफलताएँ देता रहे. - आपका #गिजियावन ’ ( मैं उस शख्स के भावनाओं का लिहाज करते हुए, शख्स का नाम व परीक्षा के नाम में छेड़खानी कर दिया हूँ, और इस कृत्य के लिए मैं माफ़ी का हक़दार हूँ। )
और फेसबुक पर दूसरी जगह? ......दूसरी जगह, ठीक इस बात के विपरीत- आप दूसरी बात - आपोंआप कह रहें हैं कि- “मैं फेसबुक पर केवल उन विचारों का प्रसार करने के लिये काम कर रहा हूँ, जिनके बारे में मुझे लगता है कि वे दुनिया को मजदूरी की गुलामी के असहनीय शोषण, अपमान और उत्पीड़न वाले नरक से हमारे बच्चों के लिए आत्म-सम्मान और गरिमा के साथ रहने के लिये एक असली स्वर्ग में बदलने में मददगार होंगे.”
तिवारी जी! - आपने जीवन भर कोई व्यावहारिक कार्य किया ही नहीं, सिवाय कभी-कभी सुन्दर शब्दों में अपील करने के। – और आप सोचते है कि- आप क्रांतिकारी विचारों का प्रसार करने के लिये काम कर रहें है। वैसे यह एक भ्रांत-धारणा हैं।
तिवारी जी! - आप क्रांतिकारी विचारों का प्रसार - ‘पुरुषार्थ वश नही, बल्कि स्वार्थ वश’- इसलिए कर रहे ताकि आपका इनकम हो सके। खैर .....हम इतने तुच्छ या शातिर-दिमाग वाले भी नहीं हैं कि – आपके इनकम, आपके व्यवसाय, आपके रोजीरोटी पर हमला करें! - जिसे आप मार्क्सवाद के नाम पर चलाते हैं और “क्रांतिकारी व्यक्तित्त्व गढ़ने” वाले प्रयोग “व्यक्तित्त्व विकास परियोजना” के नाम पर सदैव ‘सरप्लस’ जुटाने की कोशिश करते रहते हैं। आप .....बिलकुल- बेशक- बेखौफ़- ‘सरप्लस’ जुटाइये, आप इनकम जुटाइये, अपना व्यवसाय चलाइये, अपनी रोजीरोटी चलाइये. पर मार्क्सवाद के नाम पर और “क्रांतिकारी व्यक्तित्त्व गढ़ने” के नाम पर - ये सब कतई नहीं चलेगा।
पक्का बुरा लग रहा हैं न? तिवारी जी! वैसे एक कहावत हैं कि – ‘पुत्र-शोक तो सहा जा सकता हैं, पर धन-शोक नहीं।’ और आप? ......आप हा पुत्र! हा पुत्र! ( O my daughters, my sons, my dream, my future! ) करते हुए- पुत्र-शोक तो सहते आ रहें, पर धन-शोक कतई नहीं सह सकते हैं और इस बुजुर्गावस्था में तो पक्का ......कतई नहीं।
खैर हम ...ये सब क्या कहें जा रहें? हम तो सिर्फ ये कहना चाहते हैं कि- ‘आप मार्क्सवाद का चोला ओढ़ते रहिये और हम आपका चोला उतारते रहेंगें। आप अपने को “मार्क्सवादी या पेशेवर क्रांतिकारी” समझते रहिये। हम आपको फ़र्जी मार्क्सवादी या क्षद्म क्रांतिकारी साबित करते रहेंगें।’
-आपका शातिर दिमाग
Ayushman Srivastava क्या यार
15 mins · Like · 1
Vedu Tiwari Superb
Shivam Aniket आप क्यों हैरान हैं? श्री मान!
Ayushman Srivastava कुछ नहीँ !
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteGirijesh Tiwari thanks a lot comrade Amit !
ReplyDeleteShivam Aniket ohhhhhhhhhhhhhoooooooooo
Digamber Digamber यानी तुम्हारी वकत बस इतनी है कि तुम गिरिजेश के द्वारा मानसिक रूप से बीमार कर दिए जाने के बाद एक एसाइलम ज्वाइन कर लिए..... उस एसाइलम से निकले लाइलाज रोगियों की सूची बहुत लम्बी है.... तुम्हारा हर पोस्ट सिकनेस का इज़हार क्यों करता है, कुछ सकारात्मक करो.... अब तुमको गिरिजेश से मुक्त हो कुछ सार्थक करना चाहिए....
मैं जानता हूँ कि अब तुम मुझे गाली दोगे....
थक जाना तो अच्छे काम में लग जाना......
Shivam Aniket क्यों ये काम आपको पसंद नहीं आया? लगता है तिवारी जी! ने आपका भी व्यक्तित्व उभार ही दिया। खैर....
Digamber Digamber बहुत पसंद आया... आप भी ज्वाईन कर लिए कि नहीं, एसाइलेम? ये गिरिजेश पागल बना कर उनको काडर सप्लाई करता है..... गज़ब है कि अब पागलखाने में क्रन्तिकारी पैदा हो रहे हैं.... और उनका दिमाग ठिकाने करके भर्ती करनेवाले मज़ा मार रहे हैं...
Shivam Aniket जब लोग अपनी सफाई में कुछ भी नहीं कह पाते और सवालों का जवाब नहीं दें पाते, तो इस तरह की बातें ही बहुत उपयोगी सिद्ध होती है।
Girijesh Tiwari इनको इनके हाल पर छोड़िए साथी Digamber !
इनके बेहतर भविष्य की शुभकामना के साथ !
हमारे पास करने को और काम कम नहीं हैं...
जितना इनके हिस्से का था, उसे कर चुका और करके संतुष्ट भी हूँ.
ईसा मसीह ने कहा था -
"ख़ुदा-बाप, इनको माफ़ करना, क्योंकि ये नहीं जानते हैं कि क्या कर रहे हैं..."
और जगतगुरु माओ कहते हैं -
"तुम्हारे बारे में चर्चा होना और तुम पर प्रहार होना अच्छी बात है. इसका मतलब है कि तुम अपने काम में कुछ दूर तक आगे जा सके हो."
इस बार आपको हुई तकलीफ़ के लिये आपसे विनम्रता के साथ क्षमा-याचना करने और आपसे भी इनको अवॉयड करने का अनुरोध करने के लिये लिख रहा हूँ.
आगे मैं इनकी किसी भी पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं करूँगा.
हाँ, अगली कतारों को दिखाने-सिखाने के लिये सहेज कर रखता जाऊँगा.
इसे भी ससम्मान रख लिया है.
लिंक है -
http://young-azamgarh.blogspot.in/2015/05/blog-post_26.html
YOUNG AZAMGARH: #गिजियावन - अमित पाठक
Shivam Aniket आप टिपण्णी करने के हालात में होँगेँ? तो न टिपण्णी करेगें तिवारी जी! खैर अभी कम से कम उपरोक्त टिपण्णी तो पढ़ ही लीजिए। बाद में फिर मिलेंगे किसी रोज नए पोस्ट के साथ।
Amit Azamgarh लगता है दिगंबर को गाली सुने बिना नींद नहीं आती, तभी तो आमंत्रित कर रहे हैं. वैसे जितना दिमागी तौर पर बीमार गिजियावन है, उतना ही दो बार दिगंबर भी है. लक्षण साफ़ दिख रहे हैं. बस फर्क यह है कि व्यक्तित्त्व विकास परियोजना के नाम पर गिजियावन के पास एक मठ है, और इसका तो मठ भी उजड़ गया.
Amit Azamgarh वैसे एक बात छूट रही थी दो बार दिगंबर, कि गिजियावन तिवारी काडर तैयार तो करते नहीं वो सिस्टम के कल पुर्जे तैयार करने के नाम पर धंधा करते हैं | हां ये जरूर है कि जो लोग पुर्जा बनने के लिए तैयार नहीं होते उनको 'उजड़े मठ' में सप्लाई करने का प्रयास करते हैं | लेकिन जो पागल नहीं होते वो अपनी राह पा ही जाते हैं और जो पागल और बीमार होते हैं वो गिजियावन को डिफेंड करते बदहवास रहते हैं | वैसे गिजियावन द्वारा उजड़े मठ के कुछ ग्रन्थ अभी भी मेरे पास हैं. उनको पढ़ कर लगता है कि वो मूर्खता के बड़े पक्के नमूने हैं |
Abhishek Pandit ye bhai humko unblock kr diye ka unka comment humko dikhaee de raha hai,pichli ghatna k baad tou hum dekhe nahi pa rahe thhe,ki ka kuch halchal ho raha hai?pr ab tou unka profile bhi dekh sakta hoon.koi batayega ki yah chamatkar kaise sambhaw hua?dusro k ghar ka bhavishay bigadne wale baba,karntidal me lanth luhede (loundiyabaz) pal kr rakhne wale baba.(un batuko k liye chara bhi dal kr rakhte hai, ki musivat k ghadi yahi gunde kaam aayege) k darshan kis aloukik kriya se sambhav huwa hai?
http://young-azamgarh.blogspot.in/2014/03/kavita-krishnapallavi.html?showComment=1432700939691#c1448694151552211546
ReplyDeleteShivam Aniket तिवारी जी! - सवालों का जवाब तो दें नहीं पाये पर, अंततः खिसियाँ कर हमें ब्लॉक ज़रूर कर दिए।
ReplyDeleteAbhishek Pandit jawab unke pass hai nahi,iasa nahi hai ki jo aap kah rahe hai,wah unki antaraatama asiwikar karti hogi,wo khud ko bhali bhati jante hai apni kchamta bhi,ha shatir dimag or samjhdar me antar hota hai,mai aapko samjhdar or unko shatir dimag manta hoon,jb tk hum dur dur thhe,tou bhi unke vicharo pr mujhe shaq thha, aksar mai unse kahta bhi thha,pr jb se nazdik (padosi) huye hai,sab saaf saaf dikhne laga hai,khair ghuh me haat dalne se haat hi ganda hota hai rahi baat baat baat pr block krne ki tou yah unke kamzor ikchashakti ko hi darsata hai,chhodo bhi ab inko,aapne aapne kaam pr focus kre aap logo.
Shivam Aniket ये हमें फेसबुक पर तो ब्लॉक कर सकते है, पर ज़मीन पर? ..... ये ज़मीन पर हमें कैसे ब्लॉक करेगें? शायद ये नहीं जानते कि- आज़मगढ़ मेरा भी जिला है।
Shivam Aniket
प्रिय मित्र,
अरे! मैं #गिजियावन यानी तिवारी जी,
मित्र! मै बहूते बीमार चल रहा हूँ, हालत एकदम पतली हो चली है।
किसी भी सवाल का जवाब नहीं सुझ रहा है तो B.P. बढ़ा जा रहा है।
फिर डॉक्टरों से सलाह लिया।
डॉ॰ ने सलाह दिया है कि- जवाब देने से परहेज करो और अगर हालत एकदम पतली और बेकाबू हो जाए तो फिर सवालकर्ता को ब्लॉक कर दो।
Shivam Aniket
तिवारी जी! - सवालों का जवाब तो दें नहीं पाये पर, अंततः खिसियाँ कर हमें ब्लॉक ज़रूर कर दिए।
Abhishek Pandit achha fir kuch hua kya?mujhe bhi kr diya block,aapko bhi?jo bhi iss aadmi k sawalo ya bahso me mazbut tark le kr aayega usse ye block kr denge,achhe yodha hai,maidan bhi yahi tay karenge,dusman bhi, ladaee k niyam kaanoon bhi,pr jab koi inse behter ladne lagega tou usse rull out kr denge,ha ha ha ha ha bahadur kartikari hai bhai ye tou?
Shivam Aniket ब्लॉक करने के अलावा ये कर ही क्या सकते है? इनके पास जवाब है ही नहीं, ये किसी के भी प्रति जवाबदेह है ही नहीं? अरे! ये ही तो असली माने में क्रांतिकारी है! अब क्रांतिकारी हर लोगों जवाब देते फिरेगा तो भला क्रांति कैसे करेगा? ऐसे लोगों का किया ही क्या जा सकता है ? ये वो चुहे है जो भूकंप आने पर अपने बिल में दुबक लेते है, पर हौवा तो देखिए.... शेर है शेर!
आलोक अनिकेत ये वही व्यक्तित्व विकास परियोजना है क्या जिसके संयोजक #गिरिजेश_तिवारी सर हैं?
ReplyDeleteLike · Reply · 1 · Yesterday at 4:24pm
Alam Khan Yes
Like · Reply · 1 · Yesterday at 7:29pm
पंकज कुमार तो आप भी शुरू हो गए ? मुझे टैग ना किया करें ।
Like · Reply · Yesterday at 7:40pm
Alam Khan मनुष्य मनुष्य से इतना नफ़रत होता हैं पता होता तो tag नही करता ठिक हैं tag वापस ले लेता हुँ!
Like · 23 hours ago · Edited
Amit Azamgarh आलम खान, इस व्यक्तित्त्व विनाश परियोजना उर्फ़ गिजियावन कुण्ठा तुष्टि प्रतिष्ठान से मेरा कोई वास्ता नहीं है और यह बात आप भी भलीभांति जानते हैं. ऐसे में व्यक्तित्त्व विकास के नाम पर गिजियावन द्वारा अपने ऐश-ओ-आराम और बुढ़ापा काटने केलिए चलाये जा रहे इस धंधे के साथ आइन्दा मुझे न जोड़ें.
Like · Reply · 1 · 5 hours ago
Alam Khan मुझे आपको नही जोड़ना हैं इस कलेक्शन में आपकी फोटो लगाना मजबुरी हैं जिसमे आपकी फोटो हैं.
Like · 3 hours ago
Amit Azamgarh नहीं तो वो कलेक्शन मत लगाइए | इतना मजबूर क्यों हो ?
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1475019359455859&set=a.1418580788433050.1073741831.100008434267505&type=1&comment_id=1475662999391495&ref=notif¬if_t=photo_comment_tagged
Abhishek Pandit
ReplyDeleteYesterday at 6:03pm ·
girijesh tiwari jawab do,
Abhishek Pandit
GIRIJESH TIWARI aapne mujhe iske pahle block kyu kiya thha?or ab unblock kyu kiya hai?