शुक्रिया ज़िन्दगी ! जो तूने मुझे सेवा का संकल्प करने को प्रेरित किया.
मगर लानत है ज़िन्दगी तुझ पर, जो तूने सेवा करने के चक्कर में मुझे भिखमंगा बना दिया.
इन्सानियत को प्यार करने और दरिद्रनारायण की सेवा करने के चक्कर में तूने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया.
हर पल दिल को कचोटने और कसकने वाली तड़प को अकेले-अकेले चुपचाप झेलने को मुझे मजबूर कर दिया.
मेरा ज़ुर्म केवल झूठ और झपसटई से नफ़रत है.
और सच के लिये सम्मान और झूठ के लिये नफ़रत भी तूने ही मुझ में बोया.
सच के साथ खड़े होने और मानवता की सेवा करने के पुरस्कार और दण्ड दोनों ही मुझे भरपूर मयस्सर हुए.
जाने कब तक भिखमंगे की यह भूमिका निभानी पड़ेगी मुझे,
जाने कब इस फन्दे की जकड़ से आज़ाद हो सकूँगा...
कुछ भी तो पता नहीं !
लोगों की सीमाएँ हैं. उनसे मुझे कोई शिकायत भी नहीं है.
फख्र है कि मैं वह नहीं करने को बज़िद रहा, जो लोग चाहते थे करवाना मुझ से...
और नतीज़ा वही, जो हर विद्रोही का पुरस्कार है ! क़दम-क़दम पर ज़लालत !
लानत है ज़िन्दगी, तुझ पर जो ऐसे अनुपम काम के लिये मुझे चुना !
मेरा काम मुझे तृप्ति और प्रशंसा के साथ हर क़दम पर अधिकतम अपमान, उपहास, अवहेलना और अवसाद ही दे सका.
सम्मान की भूख तो रही नहीं. पर अपमान अभी भी कसकता तो है ही.
इसीलिये लानत है तुझ पर ज़िन्दगी !
हालाँकि आज भी मेरा आत्म-संघर्ष जारी है.
आज भी मैं इन्सान की ज़िल्लत के मुखालिफ़ जारी ज़द्दोजहद में पूरी शिद्दत से जूझ रहा हूँ. आज भी शानदार इन्सान गढ़ने का मेरा काम लगातार जारी है.
आज भी मैं अपने काम से संतुष्ट भी हूँ और मुझे अपनी सफलता पर गर्व भी है.
विश्वास की हत्या करने वाले मुट्ठी भर लोगों को शुक्रिया !
एक से बढ़ कर एक सारे बहादुर दोस्तों को ढेर सारा प्यार !
मगर फिर भी
लानत है ज़िन्दगी तुझ पर !
— तुम्हारा गिरिजेश (31.8.15.)
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