अग्निजेता
अल्हड है, अक्खड़ है, मस्त है, फक्कड़ है,
ठहाके लगाता है, हँसता-हँसाता है;
पाँवों में छाले हैं, हाथों में घट्ठे हैं,
यही एक मानुस, सभी उल्लू के पट्ठे हैं.
है विनम्र बहुत, मगर छेड़ कर तो देख लो खुद ही ज़रा-सा;
दे देता प्रतिभट को मुँहतोड़ टक्कर है.
काम जब भी करता है,
देख कर इसे क्योंकर आलसी जमातों को जीना अखरता है?
रोता है, अकेले में अहकता है,
किन्तु सबके सामने यह चहकता है;
बहक जाते हैं सभी, पर नहीं यह तो बहकता है.
सीखने की ललक से अकुला रहा है, समस्याओं से निरन्तर उलझता है.
ज्ञान का आगार है, पर नहीं विज्ञापन किया करता;
बाँटता है स्वयं को, पर नहीं यह ज्ञापन दिया करता.
तुम मुसीबत में फँसो, तो देख लेना,
साथ में यह भी तुम्हारे डटा होगा;
गीत वैभव के बजाने जब लगोगे,
धीरता से चुप लगा तब हटा होगा.
घर में बूढ़ी माँ पड़ी बीमार सोती,
खाँसती रहती, कलपती, सतत रोती.
है चिकित्सा-गुफा गहरी, पाटना इसके लिये मुमकिन नहीं है.
डाक्टरों की फीस महँगी, कम्पनी की दवा महँगी;
और पैथोलोजिकल हैं टेस्ट जितने, खून पीने के तरीके बने उतने.
यह गलाता है सुबह से शाम तक तो हड्डियों को,
पर कहाँ से ला सकेगा रोज नोटों की अनेकोँ गड्डियों को?
आह भर कर मातृ-ऋण को याद करता,
पर नहीं फिर भी कभी फरियाद करता;
बस यही एक कामना करता -
"मरे माँ, नरक की पीड़ा न झेले, मत कराहे, तोड़ बन्धन मुक्त हो ले."
भूख, बेकारी, व्यथा सब झेलता है,
हर कदम पर जिन्दगी से खेलता है,
मृत्यु का पन्जा जकड़ता, ठेलता है,
शत्रु से प्रतिक्षण घिरा है, धारदार प्रहार करता;
शान से हर पल जिया है, आन पर है सदा मरता.
दम्भ का, पाखण्ड का उपहास करता,
जनविरोधी मान्यता पर व्यंग्य भरता;
नाचता है, झूमता है जन-दिशा पर,
गर्व करता है स्वयं पर नहीं पूरब की प्रभा पर.
शस्त्रधारी पुलिस के सम्मुख यही नारे लगाता आ रहा है,
लाठियों के, गोलियों के, अश्रुगैसों के बवण्डर में सदा अगुवा रहा है;
जेल जाता रहा है छाती फुला कर,
फाँसियों पर झूलता है गीत गा कर;
बीज बोता चल रहा है शान्ति का यह,
उच्च स्वर में मन्त्र पढ़ता क्रान्ति का यह.
मचलता है, उछलता है नोच लेने को ध्वजा श्वेताम्बरी शोषक दलों से,
छीन लेना चाहता है अग्नि का आतप सुरेशों के बलों से,
सूर्य के रथ को लगा कर बाजुओं की शक्ति यह आगे बढ़ाता,
अग्निजेता है!
अटल अभिशाप स्वयं प्रमथ्यु बन माथे चढ़ाता.
रात-रात जाग-जाग भैरवी सुनाता है,
मायावी निद्रा से जन को जगाता है,
बार-बार छापामार युद्धगीत गा-गा कर,
काल को अकाल ही ललकारता, बुलाता है,
तमाचे लगाता है, तमाचे लगाता है.
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