Sunday, 7 July 2013

आओ कि एक ख़्वाब बुनें कल के वास्ते.... - गिरिजेश


दौलत की हुकूमत प' खड़ा दौर आज का,
है नफ़रत-ओ-ज़िल्लत प' अड़ा दौर आज का;
य' आज हमें अब नहीं बर्दाश्त हो रहा,
आओ कि एक ख़्वाब बुनें कल के वास्ते....


कल जैसा भी था, आज से बदतर तो नहीं था,
कल आज से बेहतर बने व' ख़्वाब बुनें हम;


इन्सानियत के हक़ को जो आबाद करेगा,
जो ज़ालिमों के ज़ुल्म को बर्बाद करेगा;
इन्साफ़ की पुकार बार-बार करेगा,
जब दौर-ए-मुहब्बत न इन्तेज़ार करेगा।


बुनियाद के पत्थर बनें उस पल के वास्ते,
इन्सानियत, इन्साफ़, मुहब्बत के वास्ते;
आओ कि एक ख़्वाब बुनें कल के वास्ते....


(विद्रोह के प्रबल स्वर साहिर लुधियानवी की प्रेरक स्मृति में एक प्रस्तुति)

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