Wednesday, 5 August 2015

उच्च शिक्षा को WTO-GATS के सुपुर्द करने के खिलाफ़ - अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच



अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच
उच्च शिक्षा को WTO-GATS के सुपुर्द करने के खिलाफ़ आवाज़ उठाओ!
WTO भगाओ!! शिक्षा बचाओ!!!

विश्व व्यापार संगठन (WTO) के मातहत उच्च शिक्षा क्षेत्र को वैश्विक व्यापार के लिये खोलने के लिये भारत सरकार ने WTO के पटल पर इस सम्बन्ध में ‘प्रस्ताव’ रख कर इसकी पूरी तैयारी कर ली है। इसके तहत WTO के 160 सदस्य देशों में शिक्षा का व्यवसाय करने वाली फर्मों को हमारे देश में कालेज, विश्वविद्यालय एवं अन्य तकनीकी अथवा पेशेवर (प्रोफेशनल) संस्थाएँ स्थापित कर उन्हें व्यावसायिक मुनाफे के लिये चलाने की पूरी छूट होगी। उक्त ‘प्रस्ताव’ के मन्ज़ूर होते ही WTO के व्यापार सम्बन्धी नियम उच्च शिक्षा क्षेत्र में लागू हो जायेंगे। ऐसा होते ही जनता का शिक्षा का अधिकार, जिसे सुनिश्चित करना सरकार की लोकतान्त्रिक जिम्मेदारी है, पूरी तरह खत्म हो जायेगा। WTO की शर्तो के तहत बेलगाम निजीकरण एवं बाज़ारीकरण से शिक्षा न केवल गरीबों के हाथ से निकल जायेगी, बल्कि जो इसका खर्च उठा सकते हैं उन्हें भी केवल नाममात्र की शिक्षा ही मिलेगी। ऐसा इसलिये क्योंकि बाज़ारीकरण के चलते शिक्षा अपने मूल उद्देश्य से भटक जायेगी और साथ ही पाठ्यक्रम व शिक्षापद्धति में भी गिरावट होगी। इसके साथ ही हमारे शैक्षणिक संस्थाओं की अकादमिक स्वायत्तता, शोध की स्वतन्त्रता और लोकतान्त्रिक परिपाटियों में ह्रास होगा। अगर एक बार शिक्षा वैश्विक बाजार के हवाले हो गयी तो इतना निश्चित है कि भारत सरकार शिक्षा का व्यापार करने वाले देशी-विदेशी कार्पोरेट के हितों का संरक्षण करने के लिये बाध्य होगी, भले ही इससे देश के अध्यापकों और विद्यार्थियों का अहित हो। अगर भारत के हम सब लोग और खासतौर से शिक्षक व विद्यार्थी समुदाय, उच्च शिक्षा में WTO को दिये गये भारत सरकार के ‘प्रस्ताव’ को वापस कराने में सफल नहीं होते हैं तो हमारा शिक्षा-तन्त्र हमेशा के लिये विश्व व्यापार संगठन के चंगुल में फँस जायेगा और इसका भविष्य अन्धकारमय हो जायेगा।

व्यापार-वार्ताओं में तेजी का दौर : विश्व व्यापार संगठन की सामान्य परिषद की विशेष बैठक नवम्बर 2014 में जिनेवा में आयोजित हुई जिसमें दोहा दौर की वार्ताओं के बढ़ते कार्यक्षेत्र को सीमित करने के लिये संघर्षरत अल्प-विकसित एवं विकासशील देशों के दस वर्ष लम्बे प्रतिरोध को व्यवस्थित रूप से दबाने की प्रक्रिया अपने चरम पर पहुँच गयी। यहाँ तय किया गया कि जुलाई 2015 तक व्यापार वार्ताओं के ‘कार्यक्रम’ को अन्तिम रूप दिया जाये और दिसम्बर 2015 में विश्व व्यापार संगठन के मन्त्री-स्तरीय सम्मेलन का आयोजन किया जाये, जो इसका शीर्ष निकाय है। यह सम्मेलन अल्प-विकसित तथा विकासशील देशों तथा पूरी दुनिया के मेहनतकश आवाम के लिये अत्यन्त घातक होगा। दसवीं मन्त्री-स्तरीय बैठक में लिये गये निर्णय के बाद कृषि के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी सेवाएँ एवं जनता के सभी हक व्यापार के दायरे में आ जायेंगे। लूट की इस योजना से देशों की संप्रभुता खत्म होगी। खतरे को भाँपते हुए पूरी दुनिया के अनेक संगठनों ने दसवें मन्त्री-स्तरीय सम्मेलन के विरोध का संकल्प लिया है। संकट के इस दौर में शिक्षा प्रेमी चुप नहीं बैठ सकते।

साम्राज्यवाद के बढ़ते कदम : WTO ने दुनिया को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है - 1. विकसित, 2. विकासशील, और 3. अल्प-विकसित। विकसित एवं विकासशील व अल्प-विकसित देशों के बीच की असमानता वस्तुतः साम्राज्यवादी लूट का नतीजा है। WTO का गठन विकसित देशों के हितों के संरक्षण के लिये हुआ है और यह विकासशील देशों के हितों के खिलाफ़ है। भारत जैसे विकासशील देशों ने WTO की सदस्यता देश के कार्पोरेट घरानों हितों के लिये ग्रहण की और जनता को आश्वस्त किया है कि विकास से निकले ‘रिसाव’ (ट्रिकल डाउन) से उसे भी लाभ मिलेगा। विगत दो दशकों में विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत किये गये विभिन्न समझौतों की वजह से सभी देशों में वर्गीय और सामाजिक असमानताओं (यथा जाति, नस्ल, लिंग, भाषा एवं विकलांगता सम्बन्धी) तथा राष्ट्रों के बीच गैर-बराबरी की स्थिति गम्भीर हुई है और दसवीं मन्त्री-स्तरीय बैठक में विश्व व्यापार संगठन के क्रियाकलाप में प्रस्तावित विस्तार से इसकी प्रक्रिया और तेज होगी। विडम्बना यह है कि ‘दोहा चक्र व्यापार वार्ता’ को ‘दोहा विकास एजेंडा’ भी कहा जाता है, क्योंकि गरीब देशों को लुभाने के लिये इसमें कुछ ‘राहत उपाय’ भी किये गये हैं। 

गैट्स और शिक्षा : विश्व व्यापार संगठन मुख्य रूप से तीन एकीकृत बहुपक्षीय समझौतों पर आधारित है – 
1.‘जनरल एग्रीमेन्ट ऑन ट्रेड एंड टैरिफ़’, 1994 (गैट/GATT; व्यापार एवं शुल्क सम्बन्धी सामान्य समझौता), 
इसमें कृषि सम्बन्धी समझौता ‘एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर’ भी शामिल है; 
2. ट्रेड रिलेटेड इन्टेलेक्चुअल प्रापर्टी राइट्स (ट्रिप्स/TRIPS, व्यापार सम्बन्धी बौद्धिक सम्पदा अधिकार), एवं 
3. ‘जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज़’ (गैट्स/GATS, ‘जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज़” या सेवा क्षेत्र में व्यापार के लिये आम समझौता)। इसी तीसरे समझौते के तहत शिक्षा के अर्थ का अवमूल्यन करते हुए उसे ‘व्यापारिक सेवा’ के अन्तर्गत रखा गया। समझौते के अनुसार शिक्षा का व्यापार गैट्स परिषद (सेवा व्यापार परिषद) द्वारा प्रशासित होगा। विडम्बना यह है कि यह परिषद इन्हीं नियमों से मनोरंजन के क्लब और मदिरालयों जैसी ‘सेवाओं’ का भी नियमन करेगी। यदि विदेशी विश्वविद्यालय देश में ज्ञान के प्रसार एवं विनिमय के लिये आते और इनका उद्देश्य परस्पर शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धों का विकास होता तो इनके विरोध की आवश्यकता नहीं थी। भारत के इतिहास में इस तरह का परस्पर लेन-देन होता रहा है और स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी एवं रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी इसे प्रोत्साहित किया। 

लेकिन विश्व व्यापार संगठन के दौर में ऐसी बात नहीं है। इसके अन्तर्गत तो विदेशी विश्वविद्यालय केवल मुनाफा कमाने आ रहे हैं। यही नहीं, अनेक दोयम दर्जे के विश्वविद्यालय भी यहाँ अपनी शाखा खोलकर मुनाफा कमायेंगे। सन 2000 में हुए विश्व बैंक के एक सर्वेक्षण रपट से यह प्रमाणित है कि विकसित देशों के जाने-माने विश्वविद्यालयों ने पिछड़े देशों में घटिया दर्जे की शाखाओं की स्थापना की। इसमें एक और खतरनाक बात यह है कि भारत सरकार ने अपने ‘प्रस्ताव’ में विदेशी सेवा-प्रदाताओं को पूर्ण राष्ट्रीय व्यवहार का वायदा किया है जिससे विदेशी संस्थानों को देश के संस्थानों के समकक्ष सुविधाएँ मिलेंगी और यह जनता के धन को विदेशी संस्थानों को सौपने का मात्र एक बहाना होगा ।

आन्तरिक विनियमन : विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत विधिमान्य एजेंसी है - व्यापार नीति समीक्षा तन्त्र (ट्रेड पॉलिसी रिव्यु मेकेनिज़्म या TPRM)। इसी के तहत निर्मित अधिकृत निकाय विभिन्न देशों की व्यापार नीतियों की वार्षिक समीक्षा करेगा और देशों को सम्बन्धित नीतियों में बदलाव के लिये सुझाव देगा। WTO के निकायों द्वारा इस तरह के कार्य देश के आन्तरिक मामलें में दखल एवं उसकी संप्रभुता का हनन है। इस बात की पूरी सम्भावना है कि WTO सदस्य देशों के नीति दृष्टिकोण को अपने अनुकूल प्रभावित करेगा। विकासशील एवं अल्प-विकसित देश इस प्रावधान के शिकन्जे में फँस जायेंगे। व्यापार नीति समीक्षा तन्त्र के अधिकारियों के पास मानव संसाधन मन्त्री एवं मन्त्रालय के सचिवों से मिलने का पूरा अधिकार होगा और वे शिक्षा के कथित सुधार के अपने एजेंडा को लागू कराने के लिये वार्षिक समीक्षा व पूछताछ करेंगे। मानव संसाधन मन्त्री भारत की जनता से ज्यादा इस संस्था के प्रति जवाबदेह होंगे। सं.प्र.ग. शासन में विश्व व्यापार संगठन की माँग के अनुसार आन्तरिक विनियमन को परिवर्तित करने के लिए उच्च शिक्षा सम्बन्धित छः विधेयक संसद में रखे गये लेकिन कोई विधेयक पारित नहीं हुआ। इस बात की पूरी सम्भावना है कि मौजूदा सरकार इसी तरह का विधेयक लाये और उसे पारित कराने का प्रयास करे। इस दिशा में इस सरकार ने दिल्ली विवि व अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में ‘च्वॉएस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम’ थोप दिया है और समान विश्वविद्यालय कानून बनाने का प्रस्ताव रखा गया है। 

स्वतन्त्र विनियामक प्राधिकरण : हाल में ही अनेक सेवा क्षेत्रों जैसे कि ऊर्जा, जल, बीमा, दूरसंचार इत्यादि के लिए स्वतन्त्र विनियामक प्राधिकरणों (इंडिपेन्डेन्ट रेग्युलेटरी अथॉरिटी, IRA) की स्थापना की गयी है। इस तरह के प्राधिकरणों का स्पष्ट उद्देश्य यही है कि उच्च शिक्षा संस्थानों के वर्तमान सांविधिक निकायों एवं उनकी स्वायत्तता को खत्म कर दिया जाये और इसी के साथ केन्द्र एवं राज्य सरकार का कानूनी उत्तरदायित्व एवं जवाबदेही भी खत्म हो जाये। इस तरह के प्राधिकरणों की स्थापना गैट्स के प्रावधानों के प्रति वचनबद्धता को पूरा करने के लिये ही की जा रही है। अन्य सेवा क्षेत्रों के लिये स्थापित किये गये प्राधिकरणों की ही तरह शिक्षा सेवा क्षेत्र के लिये स्थापित होने वाला प्राधिकरण भी जन ‘दबाव’ से मुक्त होगा एवं आन्तरिक तथा विदेशी पूँजी के पक्ष में इस क्षेत्र का विनियमन करेगा। यू.पी.ए. सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान आयोग’ के गठन का प्रयास शिक्षा सम्बन्धी अन्य विधेयकों के साथ ही विफल हो गया, लेकिन भाजपा ने भी अपने चुनाव घोषणापत्र (2014) में इसी तरह का निकाय बनाने की घोषणा की थी। और मानव संसाधन विकास मन्त्रालय द्वारा गठित एक कमेटी की रपट में ‘यूजीसी’ को भंग कर उसकी जगह ‘राष्ट्रीय उच्च शिक्षा प्राधिकरण’ बनाने की सिफारिश की गयी है। यह WTO के प्रावधानों के अनुपालन की दिशा में उठाया गया कदम ही है।

समय की पुकार : WTO-GATS शिक्षा को उपभोग के माल और विद्यार्थी को उपभोक्ता में बदल देता है। इससे शिक्षा से गरीब तो वंचित होंगे ही, साथ ही वे भी जो पैसा खर्च कर सकते हैं क्योंकि सारी शिक्षा का कार्पोरेट हित में अवमूल्यन कर दिया जायेगा। इसी के साथ शिक्षा की प्रबोधनकारी, परिवर्तनकामी और सशक्तीकरण की भूमिका भी समाप्त हो जायेगी जो व्यक्ति को एक सक्षम नागरिक बनाती है। एक ऐसा नागरिक जिसके मन में समाज की बहुलता के प्रति, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद के प्रति सम्मान हो, जो संवैधानिक व लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति जागरूक हो और राष्ट्र की संप्रभुता एवं स्वतन्त्रता की रक्षा करने में समर्थ हो। बाजारीकरण के इस ‘प्रस्ताव’ को वापस लेने के लिये मजबूत आन्दोलन की शुरुआत अभी करनी होगी क्योंकि आगे सारे रास्ते बन्द हो जायेंगे। अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच के माध्यम से हम सभी जनहितैषी संगठनों, कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, अध्यापकों, छात्रों एवं संघर्षशील जनसमूह से एक साथ संकल्पबद्ध होकर संघर्ष करने की अपील करते हैं, ताकि देश की शिक्षा व्यवस्था पर इस नवउदारवादी हमले को रोका जा सके, उच्च शिक्षा में WTO-GATS को दिये गये ‘प्रस्ताव’ को वापस कराया जा सके और अपने देश को व लोगों को बँधुआ होने से बचाया जा सके।

निवेदक -
अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच | www.aifrte.in
अभाशिअम अध्यक्ष-मंडलः डॉ. मेहर इंजीनियर, प्रो. वसी अहमद, श्री प्रभाकर अराडे, प्रो. जी. हरगोपाल, 
प्रो. मधु प्रसाद, प्रो. अनिल सद्गोपाल, प्रो. के. चक्रधर राव, प्रो. के.एम. श्रीमाली और डॉ. आनंद तेलटुंबडे
संपर्क:- संगठन सचिव- श्री रमेश पटनायक, हैदराबाद; मो. 09440980396, 040-23305266, ईमेल: aifrte.secretariat@gmail.com
अभियान सचिव- सुश्री गुड्डी एस.एल. 09869059860; कार्यालय सचिव- श्री लोकेश मालती प्रकाश, भोपाल 09407549240
स्थानीय सम्पर्क : ___ व्यक्तित्व विकास केन्द्र ___
निःशुल्क शिक्षण-प्रशिक्षण
(कक्षा नौ से बारह तक सभी विषयों का)
लाइफ़-लाइन अस्पताल की गली के सामने, 
371, झारखण्डी निवास, 
मड़या, रैदोपुर, आज़मगढ़
गिरिजेश तिवारी {फोन : 09450735496}

1 comment:

  1. उच्च-शिक्षा को WTO (GATS) को बेच देने के सवाल पर वाराणसी में हुई गोष्ठी के बारे में एक पुराने साथी की प्रतिक्रिया....
    Aflatoon Afloo - उच्च शिक्षा को अब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल देने के प्रयास के विरुद्ध महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में एक बहुत सार्थक गोष्ठी हुई । एक संवेदनशील श्रोता के नाते मित्र संतोष कुमार अपना अभिप्राय दे रहे हैं। बहुत शुक्रिया , साथी । @Santosh Kumar (July 28) — with Awadhesh Alex and 2 others.

    Santosh Kumar
    शिक्षा के मन्दिर को पहले बाजार और अब बाजार को चकलाघर बनाने की साजिश से सहमे सुधीजनो से हाल भरा हुआ था । अपने-अपने खन्दकों से निकल कर जुटे सिपाहियो, छात्रों, नौजवानांे के बीच डबलू0टी0ओ0- गैट्स के सुपुर्द हो रही उच्च शिक्षा पर स्थापित संचार माध्यमो एवं दलो की चुप्पी की ब्याख्या करते हुए अफलातून ने उचित ही कहा कि गुलाम को आभास ही न हो कि वह गुलाम है, यह गुलामी की सबसे निकृष्ट स्थिति है। माल (शिक्षा) और उपभोक्ता (विद्यार्थी) के रिश्ते विकसित करते डबलू0टी0ओ0 के तीसरी दुनिया के विद्यार्थियों का हमदर्द होने की त्रासदी पर दिल्ली के साथी विकास गुप्ता ने अपने गहन दृष्टिबोध से सभागार को आलोकित किया । साथी सचिन ने मलयाली भाषी होते हुए भी जिस तरह से हिन्दी मे अपने सम्बोधन से नवउदारवादियो के शिकंजे मे फंसे समाजो की अकुलाहट को जोड़ते हुए पूर्वांचल की जमीन से उपजने वाले आलोड़न की पीठिका तैयार करने का आह्वाहन किया, उससे लगा कि बाजार के शिकंजे मे जकड़े अभिभावकों के दर्द को स्वर मिलने लगा है । मैं सोच रहा था कि सन् 1848 मे महात्मा ज्योतिबा फूले और सावित्री बाई फुले ने किस मुनाफे के लिए तथाकथित शूद्रों, पिछ़ड़ो, महिलाओ और दारुण विपन्नता मे पलते मनुष्यों के हित में तमाम् रुढि़वादियो से लड़ते हुए विद्यालय खोलकर उनको उस नायाब मानव जीवन से परिचय कराया होगा, जो तत्समय की रुढि़यो से उत्पादित सिर्फ मानवेतर दो पाए ही रह गए होते । शब्दों की बाजीगरी से कैसे लूट को आर्थिक लोकतंत्र की तरह पेश किया जा रहा है, कैसे किसान, आदिवासी, मजदूर को तीसरे दर्जे का नागरिक बनाकर उनसे ही इन दुकानो की चैकीदारी कराने की साजिश रची जा रही है सभागार मे छात्रो, नौजवानो, बुनकरो, सामाजिक कार्यकर्ताओ, विभिन्न शिक्षण संस्थानो के प्राध्यापकों ने महसूस किया ।
    और अन्त में-
    सम्मेलन मे बहुत दिनो बाद मिले साथी गिरजेश जी की पंक्तियां-
    "तिलमिलाती अस्मिता की दलित क्षमता,
    घात से, उपहास से आक्रोश तीखा,
    श्रम निरन्तर, गति सतत,
    हैं वेदना-संवेदना के तार झंकृत।
    जिन्दगी की भृकुटियों पर बल पड़े हैं ।"
    मे मैने अभी भी उसी तेवर मे अपने प्रयोगधर्मिता पर अटूट विश्वास देखा, जैसा मैने बीसियों वर्ष पूर्व सरायगोबर्द्धन मे देखा था । धन्यवाद डा0 स्वाती, प्रो0 महेश विक्रम, मनोज त्यागी, डा0 नीता च ौबे जी इस आयोजन के लिए ।

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