अमीरो, आपके बुरे दिन आ गये. आपने हमारे लिये अच्छे दिन लाने का चुनावी जुमला उछाला था. मुझे आपके सुख-चैन का दौर गुज़र जाने की चिन्ता हो रही है. लाखों-लाख ग़रीब मज़दूर हजारों किलोमीटर दूर अपने गाँवों की ओर भिखमंगों की तरह माँगते-पकाते-खाते झुण्ड के झुण्ड पत्नी-बच्चों के साथ पैदल चले जा रहे हैं.
आपने उनको ख़ाली जेब बिना गोसया के गोरू की तरह सड़क पर हकाल दिया. सड़क पर उनको आपकी पुलिस ने जहाँ जब जिसे पाया, पागल कुत्तों की तरह लाठी-डंडों से भरहिक पीट-पीट कर अधमरा कर दिया. उनमें से न जाने कितने तो रास्ते में ही मर गये भूख से, प्यास से, धूप से, थकान से, कमज़ोरी और बीमारी से. आपकी रेल पर वे बैठ नहीं सके. रेल उनके ऊपर से गुज़र गयी. वे रेल के नीचे कट कर मर गये.
वे ही आपके लिये ज़िन्दगी भर दौलत पैदा करते थे. वे ही आपके बँगलों को बनाते-सजाते-सँवारते रहा करते थे. वे ही आपकी गाड़ियाँ चलाते थे. वे ही आपके कपड़े धोते और प्रेस करते थे. वे ही आपके कुक्कुर टहलाते थे. वे ही हर महानगर में चौथी सड़क पर बनी अपनी झुग्गी-झोपड़ियों से निकल कर सुबह से शाम तक आपकी सेवा में अपनी ज़िन्दगी गुज़ार देते थे. वे ही आपका खाना पकाते थे, बर्तन धोते थे, झाडू-पोछा करते थे, बेबी और बाबा खेलाते थे, आपके बुजुर्गों की सेवा करते थे. वे ही दौड़-दौड़ कर आपका हर हुक्म बजाते थे.
वे अपने घरों से दूर अल्हड़ जवानी में काले बाल लेकर आपके परदेस में कमाने आते थे, धरती के असली नरक में जीते थे और सफ़ेद बालों वाला टूटा बीमार शरीर लेकर बुढ़ापे में मौत का इन्तेज़ार करने के लिये चुपचाप अपने देस वापस लौट जाते थे.
अब तो वे चले गये. वे तो लौटकर आने से रहे. अब क्या होगा आपका? क्या होगा आपके सुख-चैन का ? क्या होगा आपकी दौलत को दिन दूना-रात चौगुना बढ़ाने की लालच का ? क्या होगा आपके बन्द पड़े कारखानों का ? कैसे जियेंगे आप उनके बिना ? मुझे उनके लिये तो केवल दुःख हो रहा क्योंकि अपने भगवान के बाद वे आप पर भरोसा करते रहे. मगर मुझे आपकी चिन्ता हो रही. क्या मेरी चिन्ता उचित नहीं है ?
मैं हूँ आपका दुश्मन एक क्रान्तिकारी. (8.5.20.)
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