प्रिय मित्र, महाराणा प्रताप के बारे में एक
कहानी है कि वह कहा करते थे कि अगर मेरे और मेरे बाबा राणा सांगा के बीच में मेरा
बाप उदय सिंह नहीं होता, तो मेवाड़ का इतिहास कुछ और होता.
क्या यही यही बात आने वाली पीढ़ी के लोग हमारी पीढ़ी के लिये नहीं कहेंगे कि अगर
हमारे और भगत सिंह की पीढ़ी के बीच देश को बिकते देख कर भी चुप रहने वाले कायरों की
पीढ़ी के लोग न होते तो हिन्दुस्तान का वर्तमान कुछ और होता!
धिक्कार तुम्हें है हुई बन्दिनी
माता!
कब तक रोज़ी-रोटी में फंसे रहोगे?
अपमान गुलामी का कब तलक सहोगे?
कायर बन कितने दिन तक तुम जी लोगे?
थर-थर कांपोगे या कुछ उत्तर दोगे?
जीवन क्या इतना सुखद-शान्त-सुन्दर है,
जिसकी खातिर गद्दारी पर उतरोगे?
राणा का भाला, झाला का सिर देना,
पन्ना दायी का पुत्र-यग्य कर लेना;
वीरों ने गूँथी शत्रु-मुंड की माला,
जौहर की अब तक धधक रही है ज्वाला.
क्या भूल चुके हो अपने यश की गाथा?
हाथों में बैठे आज भला क्यों माथा?
क्या शौर्य बुझ गया काल-चक्र के
नीचे?
चुप क्यों बैठे हो अब भी आँखें मींचे?
चुप बैठे तो भावी जग का क्या होगा?
कैसे बच्चों को समता का सुख दोगे?
तुम तो शोषण की चक्की में पिस आये,
क्या यही वेदना उन्हें विरासत दोगे?
है परशुराम का परशु बुलाने आता,
तुमको अतीत के गौरव-गीत सुनाता,
'संकल्प करो, बलि दोगे' - यही सिखाता,
कायर बन कितने दिन तक तुम जी लोगे?
राणा का भाला, झाला का सिर देना,
क्या भूल चुके हो अपने यश की गाथा?
चुप बैठे तो भावी जग का क्या होगा?
है परशुराम का परशु बुलाने आता,
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