Monday, 2 July 2012

"सुनो, भेड़िये गुर्राते हैं!"



अपनी बकरी छोटी-सी है, खूब गदबदी, मोटी-सी है;
इसको शेर बनाना होगा, दाँव-पेंच सिखलाना होगा।

सुनो, भेड़िये गुर्राते हैं, वे केवल गुर्रा सकते हैं; 
भोली-भाली, सीधी-सादी दुनिया को धमका सकते हैं।

मौका पाकर, घात लगाकर बकरी को बहका सकते हैं;
लूट-पाट कर, नोंच-नाच कर अपनी बकरी खा सकते हैं।

क्या हम यह सब देख-भाल कर मन अपना बहला सकते हैं? 
यहीं पड़ेगा रहना हमको, कहाँ भाग कर जा सकते हैं?

कभी नहीं, यह नहीं चलेगा, हमीं मशाल जला सकते हैं;
कुछ कर के दिखलाना होगा, हमें मशाल जलाना होगा।

1 comment: