(हिमांशु कुमार अपने आश्रम के प्रशासन द्वारा ध्वस्त किये जाते समय)
जिन्दा मैं हूँ, जिन्दा तुम हो,
जिन्दा वे भी हैं, जो कल तक/
सौ बार प्रशंसा करते थे,
जो दिखा-दिखा कर रोते थे,
जो दिखा-दिखा कर हँसते थे,
पर उनका वह सब नकली था,
था ढोंग-धतूरा, फर्ज़ी था.
सच देख चुके हो तुम भी अब,
उन सब का जो गद्दार रहे,
तुम कहते हो, मैं सहता हूँ.
बेहतर होगा कुछ न कहना,
सहते रहना, चुप भी रहना,
कह देने पर हम हलके हैं,
सह लेने पर ताकतवर हैं.
है दर्द बहुत हो रहा तुम्हें,
गुस्सा मुझको भी आता है,
इस दर्द और इस गुस्से को,
पीकर आगे बढ़ते जाओ!
चुपचाप सहो, बर्दाश्त करो,
करते जाओ, सहते जाओ,
देखो तो फिर क्या होता है;
बर्बाद कौन, आबाद कौन,
अनुमान लगाने दो उनको,
फिर-फिर डर जाने दो उनको,
देखो वे थर-थर काँप रहे,
हर बार हुआ जो, वही सुनो -
इस बार क्यों नहीं होना है!
कल किसका है - सब जान रहे!
सच जीता है, सच जीत रहा,
सच जीतेगा - सब मान रहे.
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