मगर यह आज़ादी पूँजीवादी धनतन्त्र तक ही सिमट कर रह गयी.
धनतन्त्र को जनतन्त्र में बदलने का युद्ध अभी जारी है.
इस युद्ध को जीते बिना आप सम्मानपूर्वक यह नहीं कह सकते कि
जन का, जन द्वारा, जन के लिये तन्त्र भारत में बन चुका.
काले अंग्रेज़ों से सम्पूर्ण आज़ादी के इस युद्ध में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करें.
जो भी आप कर सकते हैं, कर गुजरें.
"सर्दियाँ उनकी सही, वसन्त हमारा होगा."
कौन बचायेगा देश ? आप ! केवल आप !!
भारत का जन-तन्त्र जिन्दाबाद !
इन्कलाब जिन्दाबाद !!
"वो देखो सुबह का गुरफा खुला, पहली किरन फूटी,
वो देखो पौ फटी, गुन्चे खिले, जंजीर-ए-शब टूटी;
उठो, चौंको, बढ़ो, मुँह-हाथ धो, आँखों को मल डालो,
हवा-ए-इन्कलाब आने को है, हिन्दोस्तां वालों!" - अज्ञात
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