Wednesday, 11 July 2012

सवाल सच का !




सवाल सच का !!!

"सत्यं वद धर्मम् चर" या "सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्" ?
"सत्यमेव जयते नानृतम्" !
साँच बराबर तप नहीं...

सच कहना अगर बगावत है, तो समझो मैं भी बागी हूँ.
the truth is alone but a lie has many faces.
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग...
सच परेशान तो होता रहा है. मगर अभी तक साख उसी की है.
सच बोलने का अनुरोध करते ही 
आदमी की असलियत की पहिचान हो जाती है. 
आदमी की यही अन्तिम परीक्षा है. 
मुझे दु:ख है कि
 इस परीक्षा में मेरे अनेक मित्र खरे नहीं उतर पाये और 
मुझे सच और अपने झूठ बोलने वाले मित्रों

दोनों में से


सच को चुनना पड़ा 
और मित्रों को छोड़ना पड़ा 
क्योंकि 
मैं सच का झण्डा छोड़ नहीं सकता 
और 
वे सच बोलने का साहस कर नहीं सकते.
वे सभी मुझे बेतहाशा प्यार तो करते हैं. 
मगर मेरे सामने अपनी सीमाओं को स्वीकार करने के बावज़ूद 
वे मेरे साथ चलने में अक्षम हैं. 
सच के साथ खड़े रहने का ही परिणाम है कि 
मुझे तो दुनिया में 
अकेला, अकिंचन, अपमानित, असफल और उपेक्षित 
हो कर जीना पड़ा है. 
और उनके साथ धूर्त चाटुकारों की भीड़ है
आदमी का खून निचोड़ कर जुटायी गयी सम्पत्ति है 
और है 
तथाकथित सफलता के आभामण्डल का दम्भ. 
मगर अन्दर से वे 
निहायत ही बेचारे, भयभीत, खोखले, कमज़ोर और बौने हैं.
मुझे शोषण, उत्पीडन और अन्याय पर टिकी 
इस पूँजीवादी व्यवस्था से 
तीखी नफ़रत है. 
क्योंकि यह जनविरोधी व्यवस्था 
इसी तरह के कपट करने वाले चरित्रों को ही गढ़ सकती है. 
और
 "इन्कलाबी अपने विचारों को छिपाना 
अपनी शान के खिलाफ समझते हैं..."

फिर भी मैं अपने स्थिति से पूरी तरह संतुष्ट हूँ.
मैं तो हमेशा सच ही बोलता हूँ 
क्योंकि 
सच ही मेरी पहिचान है.
प्रिय मित्र
क्या आप भी सच कहने का साहस रखते हैं?
या फिर आप झूठ का सहारा लेने के लिये मजबूर हैं? 
अगर हाँ
तो आप भी एक अवसरवादी ही हैं, इन्कलाबी नहीं !
बहुत बहुत प्यार के साथ
गिरिजेश


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