कोयल - एक
कोयल पागल हो बैठी है, अपनी सुध-बुध खो बैठी है।
बोल रही है, डोल रही है, अपने पर वह तोल रही है।
आज़ादी से गाती कोयल, सबके मन सरसाती कोयल।
आज़ादी का मूल्य चुकाती, मौसम आने पर ही गाती।
उसमें धीरज का भी बल है, बेमौसम चुप का सम्बल है।
यदि कोयल धीरज खो देती, बेमौसम ही गाती-रोती,
किसे भला फिर अच्छी लगती, भोली मनबढ़ बच्ची लगती।
इसकी विरह-व्यथा संगीन, प्रकृति नटी की अद्भुत बीन।
दीवानापन तनिक न दीन, सतत साधना-सुर में लीन।
कोयल की सुर-तान भली है, बिलकुल मस्तानी पगली है।
क्या कोई भी रोक सका है, इस सरगम को टोक सका है?
शासक भी क्या झुका सका है, कहाँ बन्दिनी बना सका है?
इसकी गर्वीली बोली पर कोई पहरा लगा सका है?
कोमल किसलय इसको प्यारा, सबसे सुन्दर सबसे न्यारा।
सहज लालिमामय किसलय-दल, बिलकुल काली अपनी कोयल।
यह बेमेल स्नेह-सम्बन्ध, जीवन के मद का अनुबन्ध,
समझ गये तो सुख पाओगे, तुम भी नाचागे-गाओगे,
वरना अपनी जड़ करनी पर आगे-पीछे पछताओगे!
कोयल - दो
कोयल उदास हो बैठी है, कितनी पीड़ा है - ऐंठी है!
ना राजा है, ना रानी है, कोयल की करुण कहानी है।
जंगल में आग लगाने को, कलरव की गूँज मिटाने को,
कुत्सा-प्रचार फैलाने को, कोयल को दुःखी बनाने को,
कुछ नर-पिशाच निज स्वार्थ-लीन, षडयन्त्र कर रहे हैं महीन।
धू-धू करके जलता जंगल, चीत्कार कर रहे जीव सकल।
कोयल के अण्डे फूट गये, कोयल के बच्चे छूट गये।
पड़ गयी अकेली है कोयल, कैसे खोले निज स्वर कोमल?
आशा टूटी, डाली छूटी, जल रहा घोंसले का निवास,
दुर्दान्त शिकारी अट्टहास, कर रहे उठा कर बाहु-पाश।
उपहास कर रहे कोयल के गीतों का, मीठी तानों का,
अपमान कर रहे कोयल की निष्कलुष प्रवीण उड़ानों का।
क्या कोयल रोती जायेगी? फिर कब-कैसे वह गायेगी?
सोचो, तुमको क्या करना है? क्या वन में मंगल भरना है?
फिर से हरियाली लाने को, षड्यन्त्र नष्ट कर पाने को,
अपनी ताकत एकत्र करो, वृक्षारोपण सर्वत्र करो।
तब नयी कोपलें फूटेंगी, कोयल की कुण्ठा टूटेगी।
फिर से कोयल पागल होगी, अपनी धुन में प्रतिपल होगी।
उम्मीद भरा जीवन होगा, कोयल का पुनर्मिलन होगा।
प्रिय मित्र, मेरी यह कविता Santosh Kumar Yadav ने अपने इंस्टिट्यूट के समारोह में सुनाने के लिये चुनी. उनको मैंने इसका m.p.3 रिकार्ड कर के आज ही भेजा. आप भी इसे सुनिए और इसके काव्य-पाठ में मुझसे हुई चूक का आनन्द लीजिए.
ReplyDeletehttps://www.facebook.com/photo.php?v=10201117520607956
Dr Maa Samta - "वाह अति उतकृष्ट रचना बुलंद उम्मीद का आगाज़ "
Parmanand Shastri - "adbhut!shbd aur swar anutha mel."
Digamber Digamber - "तब नयी कोपलें फूटेंगी, कोयल की कुण्ठा टूटेगी।
फिर से कोयल पागल होगी, अपनी धुन में प्रतिपल होगी।
उम्मीद भरा जीवन होगा, कोयल का पुनर्मिलन होगा।"
Salman Rizvi - "कोयल के अण्डे फूट गये, कोयल के बच्चे छूट गये।
पड़ गयी अकेली है कोयल, कैसे खोले निज स्वर कोमल?
बेहद उम्दा लाजवाब सर!"
Adnan Kafeel Rahi - "बेहद उम्दा बधाई सर .."
Harish C Deorari - "KOYAL KE UPER ITNI SUNDAR KAVITA,ANAND AA GAYA.APNE AAS PAS KE PARIVESH KO DHEKNE KI SHUKSM DRISTI HAAP ME."
Harish C Deorari - "koyal ka rang jaroor KALA hota h ,par sur MEETHA. iska matlab ranga ko n dekho ,guno ko dekho."