Wednesday, 1 May 2013

आज की कबीर-बानी - गिरिजेश


जगत-गति समझा लाल फ़कीर ।
बाकी दुनिया समझ न पायी काहें फूटि गइल तकदीर।
पहिले दुसमन पइसा वाले, दुसरे पण्डित-पीर।
मारो दुसमन खोजि-खोजि के, फेंको मुखौटा चीर।
एक दुनिया को राम पढ़ावै, दूजा कहै रहमाना ।
तसलीमा को कोऊ न पचावै, जिसने किया कारनामा ।
सच बोली तो सबने भगाया, सच करता हंगामा ।
सच को कइसे कुचल सकेंगे नकली धरम के धीर ?
पइसा खा के बम-बम करते इनकी यही तसवीर ।
चाहे हों वे ज्योती बाबू, या मोदी के वीर ।
भगवा झण्डा, हरियर झण्डा, ललका झण्डाधारी ।
हैं ग़रीब पर जुलुम तोड़ते, धनपसु कै रखवारी ।
इनकी कब आयेगी बारी, साधो कब आयेगी बारी ?
हारा सो मिट गया जगत से, जीता सोई मीर ।
जगत-गति समझा लाल फ़कीर ।
(मई-दिवस पर विशेष)

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