अभी तो वक्त के मुकाम और भी बदल रहे;
अभी तो दौर-ए-सख्त झेल कर उठाया हाथ है,
व’ हाथ जो मुकाम-ए-वक्त को बदलने जा रहा...
अभी हैं तेज़ आँधियाँ, बगूले ख़ूब उड़ रहे,
अभी तो चीख़ सुन रहा हूँ ख़ूब ज़ोर-ज़ोर से;
अभी तो हूक उठ रही है ज़ोर से कलेजे से,
अभी तो आँख में गिरी पड़ी है ख़ूब धूल भी...
अभी तो काफ़िला बिखर गया है दूर-दूर तक,
अभी तो दोस्त भी सभी इसी तरह अटे पड़े;
अभी तो हाल कहने का भी वक्त आ सका नहीं,
उन्हें बुला रहा अभी, उन्हें बता रहा अभी...
करीब और आने के बहुत करीब आ चुके,
अभी कई मुकाम सर करेंगे, तब बढ़ेंगे हम;
खड़े नहीं रहेंगे हम, अगर जो साथ आ सके,
बढ़ेंगे एक साथ हम, गढ़ेंगे हम, लड़ेंगे हम...
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