आती है आवाज़ जब कभी, दुःख से मानव के रोने की;
होती है मन में उथल-पुथल, बलिदान देश पर होने की|
आवेग हृदय में उठता है, सहना मुश्किल हो जाता है;
सुख-सुविधाओं में पल-भर भी रहना मुश्किल हो जाता है|
जब क्रान्ति-मार्ग पर चलने को, कोई व्याकुल हो जाता है;
उसका तन-मन-धन-जीवन सब, जन को अर्पित हो जाता है|
साधना-समर्पित जब कोई, इतिहास बदलने आता है;
उसके पीछे चल कर जन-बल, तूफ़ान उठाता जाता है|
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