Monday, 3 June 2013

सवाल 'कल' का : 'जवाब' आपका !


प्रिय मित्र, कल एक युवक ने मुझसे यह प्रश्न किया. "गुरु जी, दस साल के बाद आन्दोलन की हमारी धारा की क्या तस्वीर होगी?"
प्रश्न मन को विचलित करने वाला था. अपनी तरुणाई से अब तक की दशक-दर-दशक की अपनी और अपने सभी साथी-दोस्तों की सभी की सभी सकारात्मक और नकारात्मक गतिविधियों के सारे ही चित्र तड़ातड़ एक के बाद एक मानस-पटल पर नाच गये. साफ़ दिख गया कि हम सब कितने पानी में थे, हैं और रह पायेंगे. 

तब तक आज सक्रिय 'वरिष्ठ' लोगों की पीढ़ी अपनी क्षमता, अक्षमता और अपने पूर्वाग्रहों के साथ मैदान खाली कर चुकी होगी और आज जो युवा सीखने की प्रक्रिया में हैं, तब उनको ही सिखाने की भूमिका में खेलना पड़ेगा. जो युग-जन्य सवाल हमारे सामने आज हैं और हम अभी तक उनके समाधान नहीं दे सके हैं, उनसे अधिक जटिल सवाल ले कर दस साल बाद के नेतृत्वकारी दिमाग से समाधान पाने की उम्मीद करता हुआ तब का तरुण और किशोर जिज्ञासा व्यक्त करेगा. विश्लेषण की जो क्षमता वे आज हासिल कर पा रहे हैं, तब वही क्षमता ही उनको विश्लेषण करने में मदद करेगी.

हमारे साथ जो हुआ, सो हुआ. हमने जो भी जैसे भी सीखा, सीखा. जो कुछ करते बना, कर सके. मगर अगर नयी पीढ़ी के समाज-वैज्ञानिकों को हर मुमकिन क्षमता से लैस करने का अपनी पूरी कूबत भर प्रयास करने में किसी तरह की कोताही हमारे स्तर से की गयी, तो यह भावी भारत के आन्दोलनों के नेतृत्वकर्ताओं के विकास के साथ तो अक्षम्य नाइन्साफी होगी ही, उनके पीछे खड़े होने वाले अगणित अबोध मस्तिष्कों के साथ भी ऐसा ऐतिहासिक छल होगा, जिसका कोई परिष्कार तब होना मुमकिन नहीं हो सकेगा.

आने वाले कल के इंकलाबियों को तैयार करने के दायित्व का निर्वाह करने में हम सब की और भी अधिक प्रभावी भूमिका बन सके, इसके लिये भी मेरा निवेदन है कि हम सब को किसी भी तरह से परस्पर न्यूनतम एकजुटता का ढाँचा खड़ा करने की पहल जल्दी से जल्दी लेनी ही होगी. मेरी समझ है कि हमारे सामने क्रान्तिकारी, प्रगतिशील, जनपक्षधर मित्रों की एकजुटता ही इतिहास द्वारा हमारे लिये दिया गया आज का सबसे प्रमुख कार्यभार है.
आपका क्या मत है? 
- आपका ही गिरिजेश

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