Tuesday, 28 August 2012

चलो, निराला !


चलो, निराला !

चलो निराला,नाव तुम्हारे गाँव न बाँधेंगे;
देखेंगे, कैसे पूछेगी दुनिया खड़ी-खड़ी? 

गड़े हुए मुर्दों की दुनिया पूजा करती है; 
सड़े हुए मूल्यों के जंजालों में मरती है।

दुनिया को फिर से दुलराने आगे बढ़ना है; 
इसके अन्धेपन से भी हमको ही लड़ना है।

अन्धे को अन्धा कहने की जुर्रत करना है; 
नहीं किसी मक्कार लोमड़ी से ही डरना है। 

आओ चलें, बढ़ें हम आगे, टक्कर देखे, जनता जागे;
नयी रोशनी बढ़े, अँधेरा ठोकर खाता, गिरता भागे। 

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