Wednesday, 1 August 2012

क्रान्ति की आहट




सोचिये मेरे मित्र, कृपया सोचिये! 
क्या आप को भी यह लगता है कि हमारे देश की किस्मत केवल इस या उस पार्टी या नेता को वोट दे देने से बदल जायेगी? 
क्या हमारा संविधान ही मूलतः जनविरोधी नहीं है? 
क्या सारे कानून अंग्रेज़ों के समय के नहीं हैं? 
एक जनलोकपाल की लड़ाई जब इतनी तीखी और पेचीदी है, तो एक एक करके सारे जनविरोधी कानून कैसे और कब तक बदले जा सकेंगे? 
शोषण पर आधारित यही पूंजीवादी व्यवस्था अगर बनी रही, तो वोटर और सांसद या विधायक समस्याओं का समाधान कैसे और कितना कर लेंगे?
"सही नेता चुनिए" कहने वाले सारे लोग क्या केवल पूरी तरह किम्कर्तव्यविमूढ़ बने हुए समझदार वोटर को भी और भी दिग्भ्रमित नहीं कर रहे हैं? 
कम समझ वाले सामान्य वोटर को कौन जातिवाद की सोच से उबार पा रहा है? 
सही नेता कौन है? 
सही नेता गलत पार्टी में कहाँ से आयेगा?
 कौन सी पार्टी जनपक्षधर है? 
क्या हमारी सारी समस्याओं का समाधान बिना क्रांति के संभव है? 
क्या अब भी क्रान्ति की आहट सुनी जा रही है?
 मगर अभी भी क्रांति का आह्वान करने वाले क्रान्तिकारी संगठन राष्ट्रीय फलक पर नेतृत्वकारी हैसियत में क्यों नहीं हैं? 
क्या माओवादी आन्दोलन क्रान्ति कर पायेगा? 
आज तक माओवादी आन्दोलन आतंकवाद ही में क्यों अटका हुआ है और दशकों तक अनवरत संघर्ष और असंख्य बलिदानों के बाद भी आदिवासी बस्तियों तक ही क्यों सिमटा हुआ है? 
जनदिशा में सक्रिय क्रान्तिकारी नेतृत्व कहाँ गायब है?
 कौन करेगा व्यवस्था परिवर्तन का नेतृत्व?
 टीम अन्ना कानून में सुधार के लिये तो प्रयास करती दिख रही है, व्यवस्था परिवर्तन की बात भी कर रही है, मगर क्रान्ति के नाम से क्यों भड़क जाती है? 
क्या यही सडी-गली व्यवस्था केवल धीरे धीरे सुधारी जानी चाहिए या यह पूरी तरह से बदल दी जानी चाहिए? क्या टीम अन्ना केवल सुधारवादी रास्ते पर ही नहीं बढ़ना चाहती है?
क्या सुधारवाद ही क्रान्ति है? 
इन सवालों का हल खोजे बिना भारतीय जनतंत्र का अगला कदम कैसे सम्भव है? 
क्या भुलावा देने का युग अब भी बीत नहीं रहा है? 
क्या इतिहास अब भी समाधान नहीं चाहता है?
सोचिये मेरे मित्र, कृपया सोचिये!
 सोचिये और उत्तर खोजिये! 
करिये मेरे मित्र! 
वह सब कुछ करिये, जो भी आप कर सकते हैं!




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