Wednesday, 29 August 2012

और शिष्य ने ऐसा कहा.....- गिरिजेश



आइना दिखा दिया, क्या गुनाह कर डाला?

वाह हुज़ूर, आप तो सच कहते ही गुर्राते हैं!


हम तो मुंह खोलते ही पीट दिये जाते हैं !

"चुप रहो, तभी भला है!" हमें समझाते हैं.


'बोलती बन्द ही हो जाये न कहीं अपनी'

सोचते हैं सभी और हम बहुत डर जाते हैं.


हम ज़ुबां बन्द रखें तो हो क्या ही अच्छा!

आप तो जैसे चाहें, वैसे सितम ढाते हैं.


आप का ज़ुल्म सलामत रहे, हम डरते रहें.

पाठ हम को भला क्यों न्याय का पढ़ाते हैं?


हम निडर होंगे तो क्या आप को ख़तरा होगा?

डर की तासीर से क्यों एकता घटाते हैं?


आप ईमान से कुछ याद कराये ही नहीं;

वरना हम बार-बार फेल क्यों हो जाते हैं?


अपने दिल में झाँक कर खुद अपनी गलती पूछिये;

छोटे बच्चों पर भला क्यों बिजलियाँ गिराते हैं?


डर के जीते हैं और हम को भी डरवाते हैं;

शह तो मिलती नहीं, हर बार मात खाते हैं.


अपना कद देखिये खुद आप ज़रा सा पहले;

नन्ही औकात को क्यों चुनौती बताते हैं?


हम तो बच्चे हैं, चूक करते हैं, करने देते;

आप उस्ताद हैं, क्यों गलतियाँ कर जाते हैं?


आप कहते तो हैं कि इन्कलाब है अच्छा;

ज़िन्दगी से हमारी खेल क्यों कर जाते हैं? - गिरिजेश


1 comment:

  1. इस कविता का विडियो इस लिंक पर है.
    https://www.facebook.com/video.php?v=10204075147946791

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