भ्रम की भी एक उम्र होती है .
तलाश जारी रहती है हकीकत की .
उम्मीद के सहारे
अनजान बियाबान जंगलों से होकर बढ़ती जाती है जिन्दगी.
ठिठकती, ठोकर खाती, लड़खड़ाती और सम्हलती
घटाटोप अँधेरे को हाथ बढ़ा कर टटोलती
कदमों को साधती, थपथपाती धरती को
वक्त की धारा को चीरती
अंधेरी रात के ढलने तक.
धीरज का दिया
डूबते हुए दिल के किसी कोने में
जुगनू की तरह टिमटिमाता रहता है तब तक
जब तक भ्रम का अन्धकार तार-तार होकर फट नहीं जाता, बिखर नहीं जाता
और फ़ैल नहीं जाता उम्मीद की उषा का लाल-लाल उजियारा!
भ्रम की भी एक उम्र होती है ...
हकीकत से रू-ब-रू होने तक
और फिर आखिरकार दिप-दिप दमकता है
जुझारू भरोसे का तेवर
चमकती हुई आँखों में
आंसुओं के सूख चुके दरिया के पार से
एक हुंकार उठती है - '' आगे बढ़ो-आगे बढ़ो,
टूट चुके भ्रम, काटो बंधन,
प्रस्थान करो नयी उम्मीद के साथ अगली मंजिल की ओर''!
28-5-11
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