Wednesday 7 November 2012

शिशु गीत - गिरिजेश


दादा जी!
दादा जी ने केला खाया, दादा जी ने ढेला खाया;
ढेला बहुत बड़ा था, केला बहुत कड़ा था.
ढेला खा कर दादा भागे, केला खा कर सबसे आगे;
खाया केला, छिलका फेंका, हडबड-गडबड उसे न देखा.
पैर के नीचे छिलका आया, दादा जी ने लोट लगाया;

तोंद फट गयी चर्र से, दादा बोले भर्र से.
सूई लाओ, तागा लाओ, दादा जी की तोंद सिलाओ;
तोंद सिला कर उसे हिलाओ, फिर से केला उन्हें खिलाओ.



मेरे पापा
मेरे पापा अच्छे हैं, हम सब उनके बच्चे हैं।
हमको सुबह उठाते हैं, पढ़ने को बैठाते हैं।
जब हम पढ़ने लगते हैं, तो मार्निंग वाक पर जाते हैं।
पापा के बाहर जाते ही हम सब उधम मचाते हैं।
सुबह दूध ले आने को भी पापा डेली जाते हैं।
आफ़िस उनका दूर है, साहब उनके क्रूर हैं।
अगर देर हो जाती उनको, तगड़ी डाँट पिलाते हैं।
देर शाम घर आते हैं, सब्ज़ी भी ले आते हैं।
थक कर चूर हुए रहते भी पापा हमें पढ़ाते हैं।
जब हम गलती करते हैं, नहीं किसी से डरते हैं।
तब पापा गुर्राते हैं, ज़ोर-ज़ोर चिल्लाते हैं।
पहले जो भी मिल जाता है, उसे पीटते जाते हैं। 
जब हम पीटे जाते हैं, मम्मी-पापा भिड़ जाते हैं। 
मम्मी के झगड़ा करने पर पापा भी डर जाते हैं।
हम सब छिप कर देखा करते और मज़ाक उड़ाते हैं।
लेकिन जब भी खुश होते हैं, बाँहों में लेकर हमको 
 झूला खूब झुलाते हैं।
प्यार भी अगर करते हैं, तो दाढ़ी हमें चुभाते हैं।


मेरी मम्मी
सबसे पहले उठती है, सबसे आखिर में सोती है;
सबसे प्यारी मम्मी है, बस बात-बात में रोती है।
होम-वर्क करवाती है, फिर वह मुझको नहलाती है;
अगर चोट लग जाती मुझको, मम्मी ही सहलाती है।
टिफ़िन सजाती, झोला देती, पानी की बोतल भर देती;
नकली भी है अगर डायरी, हँस कर हस्ताक्षर कर देती।
मुझे देखकर खुश होती है, मुझे खिलाकर खाती है;
अच्छा-अच्छा ख़ाना मेरी मम्मी रोज़ बनाती है।
जब भी मैं बीमार हो गया, हिलने से लाचार हो गया;
मेरे बिस्तर के सिरहाने पर मम्मी जम जाती है।
जब भी, जो भी माँग लिया, वह तुरत जुटा कर देती है;
जब मुझको डर लगता है, वह हिम्मत से भर देती है।
मुझे चिढ़ाती, मुझे हँसाती, मुझे खूब दुलराती है;
खेल-खेल में अच्छी-अच्छी बातें मुझे सिखाती है।

" मेरी अम्मा-तेरी अम्मा और सबकी अम्मा "…!!
लेती नहीं दवाई अम्मा,
जोड़े पाई-पाई अम्मा ।
दुःख थे पर्वत, राई अम्मा
हारी नहीं लड़ाई अम्मा ।
इस दुनियां में सब मैले हैं
किस दुनियां से आई अम्मा ।
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरमागर्म रजाई अम्मा ।
जब भी कोई रिश्ता उधड़े
करती है तुरपाई अम्मा ।
बाबू जी तनख़ा लाये बस
लेकिन बरक़त लाई अम्मा।
बाबूजी थे छड़ी बेंत की
माखन और मलाई अम्मा।
बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीरथ हो आई अम्मा।
नाम सभी हैं गुड़ से मीठे
मां जी, मैया, माई, अम्मा।
सभी साड़ियाँ छीज गई थीं
मगर नहीं कह पाई अम्मा।
अम्मा में से थोड़ी - थोड़ी
सबने रोज़ चुराई अम्मा ।
घर में चूल्हे मत बाँटो रे
देती रही दुहाई अम्मा ।
बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ-साथ मुरझाई अम्मा ।
रोती है लेकिन छुप-छुप कर
बड़े सब्र की जाई अम्मा ।
लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई अम्मा।
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब ज़ेवर दे आई अम्मा।
अम्मा से घर, घर लगता है
घर में घुली, समाई अम्मा ।
बेटे की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई अम्मा ।
दर्द बड़ा हो या छोटा हो
याद हमेशा आई अम्मा।
घर के शगुन सभी अम्मा से,
है घर की शहनाई अम्मा ।
सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई अम्मा ।
-----(प्रो. योगेश छिब्बर)



मेरा भैया
मेरे प्यारे लम्बू भैया, चलते जैसे डगमग नैया। 
ख़ाना मुझसे कम खाते हो, सीधे बढ़ते ही जाते हो। 

बिलकुल ताड़ सरीखे हो तुम, केवल हड्डी का ढाँचा हो। 
अभी सींकिया पहलवान हो, फूँक दिया तो उड़ जाओगे।

आलू खाओ, चावल खाओ, पहले अपना वज़न बढ़ाओ। 
कसरत करके शक्ति जुटाओ, तब फिर मुझसे लड़ने आओ। 

मैं तुमसे तगड़ा-मोटा हूँ, बेशक थोड़ा-सा छोटा हूँ। 
फिर भी तुम मुझसे डरते हो, ऐसा तुम कैसे करते हो!


नया ज़माना-नयी कहानी 
(सोनू - एक)
आओ, प्यारे बच्चो, आओ, तुम्हें सुनायें एक कहानी;
बहुत सुन चुके - ‘राजा-रानी’, नया ज़माना-नयी कहानी।

काले-काले बादल आये, उमड़-घुमड़ कर शोर मचाये;
गरज-गरज कर झूम-झूम कर, ज़ोर-ज़ोर से बरसा पानी।

सोनू जी तो छोटे-से थे, खूब गदबदे, मोटे-से थे;
नहीं किसी की बात मानते, हरदम करते थे मनमानी।

मम्मी ने कितना समझाया, पापा ने भी आँख दिखाया;
पर सोनू जी समझ न पाये, ज़िद में भींगे, की शैतानी।

सोनू को चढ़ गया बुख़ार, पूरे डिग्री साढ़े चार;
बहने लगा नाक से पानी, याद आ गयी उनको नानी।

मम्मी आयीं, पापा आये, जिसने जाना सब घबराये;
टुनटुन चाचा भागे आये, पाँड़े डॉक्टर को दिखलाये।

सोनू को मिल गयी दवाई, मीठी वाली गोली आयी;
सोनू बोले, ‘‘पकड़े कान, सही बात पर दूँगा ध्यान।’’



नौकरी - ना करी!
(सोनू - दो)

मौसम बदला, मगर न बदले नन्हे सोनू लाल,
पहले जैसा बना हुआ है अब भी इनका हाल।

आठ बजे तक सोते रहते, फ़ों-फ़ों राग सुनाते,
चाहे जितना इन्हें जगा लो, मगर नहीं उठ पाते।

देर रात तक देखा करते टी0वी0 का जंजाल,
पढ़ना-लिखना छोड़ घूमते रहते पूरे साल।

और बोलते, ‘‘कैसी चिन्ता? किसका करें मलाल?
नहीं नौकरी मिलनी है, तो खोलो टी-स्टाल।








‘मच्छर’ – गिरिजेश 
आओ मच्छर, गाओ मच्छर, भनभन राग सुनाओ मच्छर |
दोनों पल्ले खुले हुए हैं, दरवाजे के और खिड़की के |
जाली का भी जाल नहीं है, फँस जाने का नहीं है खतरा |
आओ-जाओ जब भी मन हो, अपना घर है, अपना कमरा |
सिर के आगे-पीछे गाओ, कानों में गुन-गुन कर जाओ |
पीठ-पेट पर हाथ-पैर पर सुइयाँ खूब चुभाओ मच्छर |
खून हमारा लाल-लाल है, तुम उसको पी जाओ मच्छर |
पीते जाओ गरम खून को, अपनी तोंद फुलाओ मच्छर |
बदले में कुछ देना पड़ता, रोगी हमें बनाओ मच्छर |
चाहे दे दो हमें मलेरिया या फाइलेरिया-डेंगू हमे दिलाओ मच्छर |
गीत तुम्हारा तंग कर रहा, सदा रंग में भंग कर रहा |
हमने तुमसे बचना चाहा, तुमको मार भगाना चाहा |
ताली तुम्हें सुना करके ही जान तुम्हारी लेना चाहा |
क्वायल, टिकिया या दवात हो, स्प्रे हो या मच्छरदानी |
तुम नन्हे- से, कितने तगड़े! याद आ गयी सबको नानी |
अच्छा तुम्हें अँधेरा लगता और नाली का गन्दा पानी |
हार गये हम जीत गये तुम, करते जाते हो मनमानी |

http://raviratlami.blogspot.in/2008/03/blog-post.html

'चींटी-सेना' – गिरिजेश 






नन्हीं चींटी बहुत तेज़ है, चलती रहती, हिलती रहती, कभी न रुकती |
पतली, भूरी, लम्बी लाइन वही लगाती, आनुशासन वह हमें सिखाती |
आते-जाते हाथ मिलाती, बात बताती, तब जा कर आगे बढ़ जाती |
चीनी मीठी जैसे गिरती, नन्हीं चींटी झट आ जाती |
कहीं भी गिरी, पता लगाती, झट ले जाती |
नन्हीं चींटी जब गुस्साती, तुरत काटती, ‘सी’ करवाती,
ज़हर घुसाती, जगह फुलाती, बड़ी देर तक सहलाने की वह इच्छा पैदा कर जाती |
छोटी हो या बड़ा शिकार, जब मर जाता, ना सड़ पाता, ना ही बदबू फैला पाता |
नन्हीं चींटी झुण्ड बना कर चट आ जाती, उसे हटाती, धरती को वह साफ़ बनाती |

बहुत बहादुर 'चींटी-सेना' अपनी भी है !
अभी उम्र है तीन साल ही, चींटी-सेना नहीं आलसी |
ज़ोर दिखाती चींटी-सेना बहुत चुस्त है, नहीं सुस्त है,
वह भी हरदम हिलती रहती, हरदम ही है चलती रहती |
‘किस में है दम?’ - जब भी पूछा, हमें बताती – ‘हम में है दम !’
अपनी ताकत हमें दिखाती, जब वह आपस में मिल जाती,
चाहे जितना बड़ा तख़त हो, मिल-जुल कर के उसे उठाती,
खूब दूर तक ले जाती है, फिर उसको वापस लाती है |
चींटी–सेना इसी तरह से जीता करती और तख़त को वही हराती |
वही मेज़ पर चढ़ जाती है, लाइन लगाये बढ़ जाती है,
धम-धम कर के कूद–कूद कर खुश होती है,
हिम्मत से खुद को भरती है, साहस से हमको भरती है |
उछल–उछल कर, कूद–फाँद कर धक्का–मुक्की करती रहती,
आपस में ही लड़ती रहती, पल में रोती, पल में हँसती |
खेल-कूद कर बढ़ती रहती, नन्ही खुशियाँ गढ़ती रहती,
नाच-नाच कर, झूम-झूम कर हम सब को भी है खुश करती |
मगर सीखती जब दीदी से, नयी–नयी चीज़ें पा जाती,
मस्ती में वह खुश होकर फिर बजा तालियाँ, शोर मचाती |


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