Tuesday 1 November 2022

____ सही हिन्दी के बारे में — गिरिजेश ____

(प्रिय मित्र, कल रात में मैं इस लेख को पूरा नहीं कर सका था. उसे और विस्तार से अब लिख सका. असुविधा के लिये खेद है. पंकज कुमार जी ने मुझसे यह लिखवा लिया. उनके प्रति मैं केवल साधुवाद व्यक्त कर सकता हूँ. अभी तक इस विषय पर केवल बोला ही था. भाषा-विज्ञान का बोध मुझे अपने आदरणीय गुरु जी प्रो. Prabhunath Singh Mayankसे प्राप्त हुआ. लेख में मात्र कलम मेरी है और ज्ञान उनका. ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश (19.9.15.)
प्रश्न : पंकज कुमार - "हिंदी या हिन्दी ? व्याकरण के अनुसार 'हिंदी' ग़लत है और 'हिन्दी' सही है. क्योंकि नियम है - "वर्गे वर्गान्तः". देवनागरी लिपि के पाँच वर्गों में से अनुस्वार के बाद आने वाला वर्ण जिस वर्ग का सदस्य होता है, उसी वर्ग का अन्तिम वर्ण उसकी जगह ले लेता है. हिन्दी में द वर्ण त वर्ग का है, इसीलिये आधा न बन जायेगा. त वर्ग का एक और उदाहरण देखिए – चन्दन. जबकि ट वर्ग का तीसरा वर्ण ड है, इसलिये इसमें अनुस्वार को आधा ण में बदल कर पण्डित कर देते हैं. इसी तरह प वर्ग का प्रथम अक्षर प है, तो अनुस्वार को यहाँ आधा म में बदल कर कम्पनी लिखा जाता है. मन्थन में थ त वर्ग का वर्ण है. इसमें अनुस्वार आधा न में बदलता है. जबकि क वर्ग और च वर्ग के अन्तिम वर्णों को टाइपिंग की सीमा के चलते लिखना मुश्किल है. इसलिये उनके स्थान पर अनुस्वार से ही काम चलाना पड़ रहा है. जैसे लंका, चंचल.
मात्राओं के नामों का प्रयोग बन्द हो चुका है. ‘छोटी’ मात्रा, ‘बड़ी’ मात्रा कहना ग़लत है. अपने उच्चारण में निकलने वाली वायु की मात्रा के आधार पर तीन मात्राएँ होती हैं. छोटी मात्रा का नाम ‘ह्रस्व’ है. इसमें एक निश्चित मात्रा में कम वायु निकलती है. ‘ह्रस्व’ मात्रा की दूनी मात्रा में वायु निकलने पर उसका नाम बड़ी मात्रा के बजाय ‘दीर्घ’ मात्रा है और ह्रस्व की तीन गुनी मात्रा निकलने पर उसे ‘प्लुत’ मात्रा कहते हैं. अब हिन्दी में प्लुत मात्रा का प्रयोग समाप्त हो चुका है. उदहारण है ॐ. इसे ओ3म् या ओSम् लिखा देखा गया है. हिन्दी में ‘ए’ की केवल ह्रस्व मात्रा का प्रचलन बच गया है. इसकी दीर्घ मात्रा का लोप हो चुका है. बोलने के सहारे हम इसकी दीर्घ मात्रा का उच्चारण तथा बोध कर ले जाते हैं. ह्रस्व ए के उदहारण हैं ‘गयेउ’, ‘जानेसि’ और इनका दीर्घ होगा ‘गये’ या ‘जाने’. या 'बेटवा' में ह्रस्व ए है और 'बेटा' में दीर्घ. जबकि अंग्रेज़ी में PEN और PAIN या NAME के रूप में इनके अन्तर को लिख कर व्यक्त किया जाता है.
सड़क वाला ‘छोटा’ स, शहर वाला ‘बड़ा’ श तथा रोष वाला ‘पेट-फ़ड़वा’ ष कहना ग़लत है. लोक ने उच्चारण की सुविधा के चक्कर में देशज बोली भोजपुरी की सहायता से ‘श’ को ‘स’ और ‘ष’ को ‘ख’ कर दिया है. इन तीनों मात्राओं का नामकरण इन के उच्चारण में निकलने वाली वायु के टकराने वाले स्थान के आधार पर किया गया है. ‘स’ के उच्चारण में वायु दाँतों से टकराती है. इस वजह से इसे ‘दन्त्य’ स कहते हैं. ‘श’ के उच्चारण में वायु तालु से टकरा कर सीटी की आवाज़ की तरह निकलती है. इसलिये इसका नाम ‘तालव्य’ श है. और ‘ष’ के उच्चारण में वायु तालु के पिछले भाग में जहाँ से घाँटी लटकती है, उस स्थान से टकराती है. उस स्थान का नाम ‘मूर्धा’ है. इसी कारण ‘ष’ को ‘मूर्धन्य’ कहते हैं. इसके उच्चारण के लिये जीभ को पीछे की ओर मोड़ना होता है. ऐसा करना थोड़ा कठिन होने के चलते ‘श’ से ही दोनों का काम चला लिया जाता है. या फिर इसे ‘ख’ कह दिया जाता है. कच्छा और कक्षा का भी यही मामला है. पहिनने वाले वस्त्र को कच्छा और समूह या स्थान का बोध करने वाले को कक्षा कहते हैं. लोग अपनी सुविधा के लिये सरलीकरण में दोनों को कच्छा कह लेते हैं. जब कि कक्षा के उच्चारण में ‘कक्शा’ कहना शुद्ध है. इसी तरह ‘क्षण’ को ‘छड़’, ‘उदाहरण’ को ‘उदाहरड़’ और ‘टिप्पणी’ को ‘टिप्पड़ी’ कहना ग़लत है.
लिंग और वचन के मामले में भी दोष दिखाई देता है. लडकियाँ एक वचन स्त्री लिंग की जगह बहुवचन पुल्लिंग का प्रयोग करती हैं और ‘मैं जाती हूँ.’ के स्थान पर ‘हम जाते हैं.’ बोलती रहती हैं. ‘अच्छी गीत’ गलत है और ‘अच्छा कविता’ भी ग़लत है. गीत अकारान्त होने के चलते पुल्लिंग है और ‘अच्छा गीत’ सही है. जब कि कविता आकारान्त है. इसलिये स्त्रीलिंग है. तो ‘अच्छी कविता’ सही है. एक वचन उत्तम पुरुष कर्ता ‘मैं’ भोजपुरी में है ही नहीं. उसके स्थान पर ‘मो’ है. हिन्दी में स्थानीयता के असर और भाषा के लोकानुगामिनी होने के कारण ‘मैं’ को ‘हम’ कहने का चलन है. जबकि यह बहुवचन है. हालाँकि कुछ विद्वान स्वयं को सम्मान देने का कारण बता कर ‘मैं’ की जगह ‘हम’ के प्रयोग को सही ठहराते हैं. परन्तु यह ग़लत है. भूतकाल में कर्ता कारक के चिह्न ‘ने’ और कर्म कारक के चिह्न ‘को’ का प्रयोग एक स्थान पर सही है, तो दूसरे स्थान पर ग़लत भी है. उदहारण के लिये ‘मैंने गया’ ग़लत है और ‘मैं गया’ सही है. जबकि ‘मैंने पढ़ा’ सही है और ‘मैं पढ़ा’ ग़लत है. इसी तरह ‘पत्र को लिखा’ ग़लत है और ‘पत्र लिखा’ सही है. ‘राम रावण मारा’ ग़लत है और ‘राम ने रावण को मारा’ सही. इसी तरह 'चाहिये', 'कीजिये' ग़लत है क्योंकि जिसके एक वचन पुल्लिंग में 'या' आयेगा, उसके बहुवचन में 'ये' लगेगा. उदहारण देखिए -लिया से लिये और इसलिये, आया से आये, गया से गये, आदि.ऊपर के इन दोनों उदाहरणों में 'ए' लगेगा और 'चाहिए' और 'दीजिए' सही है.
प्रश्न : पंकज कुमार - "इसलिए" सही शब्द है न ? अनुस्वार के प्रयोग में भी समस्या है , शब्दकोष के अनुसार जिंदा सही होना चाहिए।
नहीं, 'इसलिए' सही नहीं हो सकता, क्योंकि 'लिया' तो होता है, 'लिआ' नहीं होता. इस और लिये को जोड़ देने पर 'इसलिये' ही सही है.
'जिंदा' भी सही नहीं है. 'ज़िन्दा' सही है. ज़ का नुक्ता उर्दू से है और आधा न उपरोक्त नियम के अनुरूप.
पंकज कुमार - लिये शब्द किसी भी शब्दकोष में है ही नहीं। इन दिनों काफी पढ़ा है इंसबके विषय में। लिये एक जगह मिला मुझे - लिये दिये - लेन देन के अर्थ में , अब कोई प्रामाणिक व्याकरण भी नहीं है , जो भी मिली ऑनलाइन अधूरी ही है और शब्द रचना का अध्याय ही गायब है। हर जगह लिए औए इसलिए ही दिख रहा है , यह सीमा टाइपिंग की है. हिन्दी टाइपिंग में कोई भी अर्धाक्षर और संयुक्ताक्षर लिखने के लिये ‘न्युमरिक लेटर्स’ के कई बटन दबा कर उसे बनाया जाता है. उसके झमेले में उलझने के बजाय सीधे हलन्त लगाना आसान है और टाइपिस्ट इसी आसान तरीक़े से ही काम चलाना पसन्द करता है. सीधे ऑन लाइन टाइपिंग के लिये प्रयुक्त होने वाले यूनिकोड ने भाषा को अक्षर-विन्यास की दृष्टि से और बिगाड़ा है क्योंकि यूनिकोड में न तो अर्धाक्षर हैं और न ही संयुक्ताक्षर.
सरलीकरण के नाम पर भी हिन्दी में तरह-तरह के प्रयोग होते रहे हैं. जैसे क और च वर्ग के अन्तिम वर्णों का प्रयोग और संयुक्ताक्षरों का प्रयोग लगभग बन्द हो चुका है. ‘लिये’ की जगह ‘लिए’ भी इसी तरह का मामला है. शिरोरेखा का प्रयोग करने के विरुद्ध राहुल बाबा के ज़माने से ही विवाद चलता चला आ रहा है. भाषा के सरलीकरण के नाम पर अनुनासिक का प्रयोग बन्द किया जा रहा है. उसकी जगह भी अनुस्वार से ही काम चलाने का चलन चल पड़ा है. अब ‘आँख’ को ‘आंख’ और ‘गाँधी’ को ‘गांधी’ लिखने और उसे सही समझने का दौर है. समकालीन कविता ने स्वयं को परम्परा के सभी बन्धनों से मुक्त किया है. इन बन्धनों में विराम-चिह्न भी हैं. समर्थ कलमकार भी गद्य में ही नहीं, कविता में और भी खुल कर पूर्ण-विराम के साथ ही अन्य सभी विराम-चिह्नों का प्रयोग बन्द कर चुके हैं. हिन्दी भाषा में सचेत तौर पर की जा रही इन सभी विकृतियों को शास्त्र के विरुद्ध होने के बावज़ूद अबोध जन-सामान्य सहज भाव से चुपचाप स्वीकारता जा रहा है. परन्तु जिनको भाषा-विज्ञान और व्याकरण के नियमों का तनिक भी ज्ञान है, उनके लिये यह ऊँट के लिये संस्कृत में शुद्ध शब्द ‘उष्ट्र’ के बजाय कालिदास के द्वारा ‘उट्र-उट्र’ कहने की तरह त्रासद है.
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____विराम-चिह्नों की सही जगह के बारे में____
प्रश्न : — वाक्य के अन्त में पूर्णविराम तुरन्त लगता है या एक स्पेस के बाद ?
उत्तर : — सभी विराम चिह्न, चाहे अल्पविराम हो, या अर्धविराम, चाहे पूर्णविराम हो, प्रश्न-चिह्न हो या विस्मयादि बोधक चिह्न या सामासिक चिह्न सब के सब अपने पहले वाले शब्द के बाद तुरन्त ही लगाये जाते हैं. उसके बाद वाले शब्द या वाक्य को लिखने के पहले एक स्पेस दिया जाता है. मगर शीर्षक चिह्न और डैश के आगे और पीछे स्पेस देना होता है.
चूँकि फेसबुक के फ़ॉन्ट्स यूनीकोड में होने के चलते मंगल या अपराजिता नामक फ़ॉन्ट्स की डिज़ाइन की सीमाएँ हैं, तो यदि तुरन्त दिया हुआ पूर्ण-विराम, प्रश्न-चिह्न या विस्मयादि बोधक चिह्न स्पष्ट न दिखे, तो हम उसके दिखाई देने के लिये उसके पहले एक स्पेस दे देते हैं.
और कोई-कोई लेखक तो नये वाक्य के आरम्भ के पहले ही एक की जगह दो स्पेस देने का प्रयोग करते रहे हैं.
अल्पविराम (,), अर्धविराम ( ; ), पूर्णविराम (|), विस्मयादि बोधक चिह्न (!), प्रश्न-चिह्न (?), शीर्षक चिह्न ( : — ) और डैश (—) ये हैं.
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श्यामसुन्दर दास का हिन्दी शब्दसागर सबसे अधिक प्रामाणिक शब्दकोष है. इस के लिये लिंक यह देखिए. यह डाउनलोड भी हो जायेगा. http://dsal.uchicago.edu/dictionaries/dasa-hindi/ Hindi sabdasagara. Online version of Syamasundara Dasa's 'Hindi sabdasagara' from the Digital Dictionaries of... DSAL.UCHICAGO.EDU लिये को श्यामसुन्दरदास ने प्रयोग किया है. ...दान के ‘लिये’ निकाला हुआ अन्न । ...इसके लगाने के ‘लिये’ कुछ चूना लगी हुई मिट्टी चाहिए । ...छिलके को नरम करने के ‘लिये’ या तो गंधक की धनी देते हैं अथवा नमक और शोरा मिले हुए गरम पानी में फलों को डुबाते हैं । ...मकानों की छाजन के ऊपर के गोलकलश जो शोभा के ‘लिये’ बनाए जाते हैं । ...अंडे सेना = (१) पक्षियों का अपने अंडे पर गर्मी पहुँचाने के ‘लिये’ बैठना । ...यज्ञ की अग्नि को घेरने के ‘लिये’ जो तीन हरी लकड़ियाँ रखी जाती हैं, उनके भीतर का स्थान । http://dsalsrv02.uchicago.edu/... /phil.../ search3advanced... और 'लिए' के प्रयोग इसी कोष में यहाँ हैं.http://dsalsrv02.uchicago.edu/.../phil.../search3advanced... Hindi sabdasagara Online version of Syamasundara Dasa's 'Hindi sabdasagara' from the Digital Dictionaries of... DSALSRV02.UCHICAGO.EDU भाषा-विज्ञान में व्याकरण के इस पक्ष की विस्तार में चर्चा उपलब्ध है. भाषा-विज्ञान के लिये यह लिंक बेहतर लग रहा है.http://elearning.sol.du.ac.in/dusol/mod/book/view.php... Hindi-A / सामान्य भाषाविज्ञानभाषाविज्ञान : परिभाषा, स्वरूप, अèययन की प(तियां ELEARNING.SOL.DU.AC.IN गद्यकोश में भी है. http://gadyakosh.org/.../%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0... हिन्दी भाषाविज्ञान - Gadya Kosh - हिन्दी कहानियाँ, लेख, लघुकथाएँ, निबन्ध,... GADYAKOSH.ORG एक और है...https://hi.wiktionary.org/.../%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7... भाषाविज्ञान की शब्दावली – विक्षनरी HI.WIKTIONARY.ORG https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10205139127425613&set=a.2043969386669.2098291.1467398103&type=3&theater