Saturday 1 February 2014

याद करने का वैज्ञानिक तरीका — गिरिजेश (1.2.14.)






प्रिय मित्र, याद करने की समस्या प्रत्येक छात्र को परेशान करती है| 
परीक्षाओं के ठीक पहले इस समस्या के समाधान के तौर पर यह व्याख्यान प्रस्तुत है|
अधिकतर छात्र/छात्राएँ रटने के तरीके से याद करने के चक्कर में रहते हैं| वे अपने उत्तर को रटना चाहते हैं| 
रटने में एक वाक्यांश को कई बार दोहराने के बाद वे अगले वाक्यांश को छूते हैं| यह याद करने का अवैज्ञानिक तरीका है|
याद करने का वैज्ञानिक तरीका पढ़ाई को खेल की तरह मनोरंजक बना देता है| इस तरीके से तैयारी करने वालों को परीक्षा परेशान नहीं करती|
इस व्याख्यान को ध्यान से सुनिए और लागू करने का प्रयास कीजिए| 
वैज्ञानिक तरीके से अपनी तैयारी करने पर आप अधिक आत्मविश्वास के साथ परीक्षा देंगे और बेहतर परिणाम भी प्राप्त कर सकेंगे|
आशा है कि युवा मित्रों को याद करने की अपनी क्षमता का विकास करने में इस व्याख्यान से सहायता मिल सकेगी|
मेरा यह व्याख्यान इस श्रृंखला का उनतीसवाँ व्याख्यान है|
यह प्रयास युवा-शक्ति की सेवा में विनम्रतापूर्वक समर्पित है|
कृपया इस प्रयास की सार्थकता के बारे में अपनी टिप्पड़ी द्वारा मेरी सहायता करें|
ढेर सारे प्यार के साथ — आपका गिरिजेश 
इसका लिंक है — https://www.youtube.com/watch?v=8TXURM8pdcU&feature=youtu.be
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इस विषय में ये तीन लेख भी आपकी सहायता करेंगे. मेरा अनुरोध है कि इनको भी एक बार फिर से पढ़िए.
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1. याद करने का वैज्ञानिक तरीका: — गिरिजेश
परीक्षा और प्रतियोगिता में सफलता के जानलेवा दबाव के चलते सभी छात्रों के सामने याद करने और याद रखने की यह भीषण समस्या आती ही है. अधिकतर छात्र अक्सर यह शिकायत करते हैं कि मुझे याद नहीं होता या मैं याद तो कर ले जाता हूँ, मगर लिखते समय भूल जाता हूँ या घर पर तो सही लिख ले जाता हूँ, मगर परीक्षा में गलती हो जाती है या मैं यह नहीं जान पाता कि जो मैं जानता हूँ उसे कैसे बताऊँ या कहाँ से लिखना या बोलना शुरू करूँ.
विज्ञान हमें हमारी सभी समस्याओं का विश्लेषण करना और उनका समाधान खोजना सिखाता है. अगर आपको यह पता चल गया कि आपकी समस्या क्या है, तो समाधान की तलाश का पहला चरण पूरा हो गया. याद न होना भी एक समस्या है और इसका भी विज्ञान के पास समाधान है. आइए इस अनुभवसिद्ध पद्धति को समझने और सीखने का प्रयास करें. इस पद्धति से कठिन से कठिन और लम्बे से लम्बे उत्तर को आप याद भी कर ले जायेंगे और लिख भी ले जायेंगे.
१- जब भी कोई उत्तर याद करना हो, तो एकान्त में किसी शान्त जगह पर बैठना चाहिए.
२- याद करते समय हमारा दिमाग पूरी तरह से ठण्डा होना चाहिए. उस समय किसी तरह की हड़बड़ी, परेशानी, उथल-पुथल, तनाव, चिन्ता, दु:ख, क्षोभ या क्रोध नहीं होना चाहिए.
३- जिस उत्तर को याद करना है, उसे रटना नहीं चाहिए. रटने का मतलब है बिना सोचे-समझे उत्तर के केवल कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों को ही जल्दी-जल्दी बार-बार दोहराना. रटने से उत्तर दिमाग में गहराई से बैठ नहीं पाता और जल्दी ही भूल जाता है. याद करने की यह परम्परागत पद्धति गलत और अवैज्ञानिक है.
४- वैज्ञानिक पद्धति से याद करने के लिये अपने उत्तर को धीरे-धीरे, रुक-रुक कर, समझ-समझ कर एक बार में शुरू से अन्त तक पूरा एक साथ ही पढ़िए.
५- उसके बाद अपनी उत्तर-पुस्तिका (NOTE-BOOK) को बन्द कर के ऊपर आसमान में देखते हुए पूरे उत्तर को एक सिरे से दूसरे सिरे तक अपने दिमाग में घुमाइए. इससे पूरे उत्तर की मोटी-मोटी रूप-रेखा पर दिमाग की पकड़ बन जायेगी.
६- इन दोनों क्रियाओं को कुल पाँच बार एक साथ ही दोहराइए. अर्थात पाँच बार पूरे उत्तर को धीरे-धीरे समझ-समझ कर पढ़िए और फिर उत्तर-पुस्तिका को बन्द कर के दिमाग में पूरे उत्तर को घुमाइए.
७- अब अपनी उत्तर-पुस्तिका को बन्द करके एक तरफ रख दीजिए. और अपनी रफ़ की कॉपी खोल लीजिए. उस पर ऊपर दिनांक और समय लिख लीजिए.
८- अब पूरे उत्तर को बिना नक़ल मारे जल्दी-जल्दी तेज रफ़्तार से लिखिए.
९- लिखने के दौरान उत्तर के बीच-बीच में कोई-कोई चीज़ भूल जायेगी. उसके लिये खाली जगह छोड़ते चले जाइए.
१०- इस तरह से पूरा उत्तर लिख डालिए और तब घड़ी देखिए और उत्तर लिखने में लगा समय नोट कर लीजिए.
११- अब अपनी उत्तर-पुस्तिका खोलिए और लिखते समय जितने शब्द या वाक्यांश याद न आने के कारण छूट गये थे, उनकी खाली जगहों को उत्तर-पुस्तिका से देख कर दूसरे रंग की स्याही से भर दीजिए.
१२- अब एक बार और अपने पूरे उत्तर को दिमाग में घुमा कर नये पन्ने पर समय नोट कर के लिख डालिए.
१३- इस तरह आप अपने प्रयोग के अन्त में देखेंगे कि आपको न केवल उत्तर याद हो गया, बल्कि आपका आत्मविश्वास भी बढ़ गया और जब एक बार आत्मविश्वास पैदा हो गया, तो फिर तो कोई भी उत्तर आपके लिये बड़ा या कठिन लगेगा ही नहीं.
१४- यदि आप इस प्रयोग से सन्तुष्ट और प्रसन्न होते हैं, तो मेरा निवेदन है कि अपने आस-पास के लोगों को भी इसे सीखने के लिये प्रोत्साहित कीजिए.
१५- अधिक से अधिक छात्रों और विद्यालयों तक इसे पहुँचाने के काम में मेरी सहायता कीजिए.
१६- इसको सीखने में अगर आप कोई दिक्कत महसूस करते हैं, तो आपकी सहायता करने के लिये मैं विनम्रतापूर्वक उपलब्ध हूँ. मुझसे 09450735496 पर सम्पर्क कीजिए.
http://young-azamgarh.blogspot.in/2012/09/blog-post_20.html
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2. समय-प्रबन्धन की वैज्ञानिक पद्धति — गिरिजेश

प्रिय मित्र, अपनी पढ़ाई के घण्टे बढ़ाने में समय-प्रबन्धन के मकसद से डेली डायरी बनाना छात्रों-छात्राओं की मदद करता है. इसमें भागीदार सभी छात्रों-छात्राओं को उनके दैनिक अध्ययन-काल का सटीक रिकार्ड प्रतिदिन बनाने का हम निर्देश देते हैं.

किसी भी व्यक्ति को एक दिन में केवल चौबीस घण्टे मिलते हैं. यह समय तीन खंडों में विभाजित किया जा सकता है — उत्पादन-काल, तैयारी का काल और मनोरंजन का काल. हम में से ज्यादातर लोग अपने जीवन के लक्ष्य के बारे में गंभीरता से विचार किये बिना अथवा अपने कार्य-दायित्व पर अच्छी तरह ध्यान दिये बिना अपने महत्वपूर्ण समय को निरर्थक कामों में ही बर्बाद करते रहते हैं.

समय-प्रबन्धन की इस पद्धति में जब भी कोई व्यक्ति व्यवस्थित तरीके से अध्ययन आरम्भ करता है, तो अपनी डेली डायरी में एक सेंटीमीटर चौड़े चार खाने और पाँचवां खूब चौड़ा खाना खींच कर पहले खाने में ‘दिनांक और पूर्वाह्न या अपराह्न (am./p.m.)’ लिख देता है, दूसरे खाने में ‘बजे से, तीसरे में ‘बजे तक और चौथे में ‘घंटा-मिनट’ लिख कर अंतिम सबसे चौड़े खाने में ‘किये गये कार्य का विस्तृत विवरण’ लिखता है. 

अब वह पहले खाने में प्रतिदिन दिनांक और पूर्वाह्न या अपराह्न (am./p.m.) अंकित करके ‘बजे से’ नामक दूसरे खाने में पढ़ाई शुरू करने का सही-सही समय और ‘बजे तक’वाले तीसरे खाने में पढ़ाई खत्म करके अपनी पढ़ाई की मेज छोड़ने का सही-सही समय तुरन्त-तुरन्त लिखता है. क्योंकि इन दोनों प्रविष्टियों को बाद में लिख लेने के आलस्य के चक्कर में सही समय दिमाग से उतर जाता है और अनुमान से लिखा गया समय गलत हो सकता है. चौथे ‘घंटा-मिनट’ वाले खाने में उस एक बार के बैठने में किये गये काम का अध्ययन-काल घंटा-मिनट में तीसरे खाने की प्रविष्टि में से दूसरे खाने की प्रविष्टि को घटा कर लिख देता है. और सबसे चौड़े खाने में पढ़े गये विषय और पाठ का नाम, किस प्रश्न से किस प्रश्न तक हल किया या पढ़ा गया या याद किया, उनका क्रमांक और हल किये गये कुल प्रश्नों की पूरी संख्या अच्छी तरह विस्तार में लिखी जाती है.

इस तरह दिन भर का रिकार्ड बना कर अन्त में पूरे अध्ययन-काल के योग को जोड़ने के बाद अगले दिन सभी छात्र-छात्राएँ अपनी डायरी अपने अभिभावक से हस्ताक्षर करवा कर मुझसे चेक करवाने और मेरे हस्ताक्षर के लिये मेरे सामने प्रस्तुत करते हैं और अपने उपस्थिति-रजिस्टर में P/A की जगह अपने पढ़ने का समय लिखते हैं.

इस प्रकार समय-प्रबंधन की प्रतिदिन की डायरी उनकी इच्छा-शक्ति को बढ़ा देती है और उनके तैयारी और मनोरंजन में लगने वाले समय को नियंत्रित कर के उनके उत्पादन-काल में भरपूर वृद्धि करती जाती है. इस पद्धति से प्रत्येक छात्र-छात्रा केवल दो या तीन घंटे के अध्ययन के साथ अपनी दैनिक डायरी बनाने की शुरुवात करता है और देखते-देखते धीरे-धीरे आसानी से दस या उससे अधिक घंटे तक जा पहुँचता है और अपने अध्ययन के उस स्तर को बनाये रखने के लिये और उसके रिकॉर्ड में पिछले दिन की तुलना में और भी अधिक वृद्धि करने की कोशिश करता चला जाता है.

अब वह अपने प्रदर्शन पर स्वयं तो गर्व महसूस करता ही है, अपने दोस्तों को भी इस प्रणाली का पालन करने के लिये प्रोत्साहित करता है. उसके परिजन भी उसके व्यक्तित्वान्तरण से गौरवान्वित होकर उसे प्रोत्साहित करते हैं. समय की सटीकता के प्रति उनकी दृष्टि में सुधार के लिये हम उन के बीच सच्चाई के प्रति सम्मान की भावना विकसित करने की कोशिश करते हैं और उनमें से ज्यादातर गलत प्रविष्टियों से बचते हैं. मेरे बच्चे मुझसे झूठ नहीं बोलते, क्योंकि मैं भी उनसे झूठ नहीं बोलता. हम परस्पर एक दूसरे का विश्वास करते हैं.

मैं अपने सभी युवा मित्रों से समय-प्रबंधन की इस प्रणाली का अनुसरण करने के लिये और इसके ज़रिये उनकी अपनी मनोदशा में होने वाले सकरात्मक परिवर्तन को खुद ही महसूस करने का अनुरोध करता हूँ. यह चिंता, अवसाद और अलगाव की भावना की सबसे अच्छी दवा है, जो आज के अनिश्चय, आपाधापी और भागमभाग के पूँजीवादी दौर में व्यापक रूप से पूरी दुनिया में अधिक से अधिक युवाओं का बुरी तरह पीछा करते हुए उन्हें हर-हमेशा व्यथित और बीमार बना रही है.

इस सिलसिले में अपने सभी ‘अतिवादी’ अति उत्साही युवा मित्रों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि हर हालत में प्रतिदिन कम से कम छः घण्टे अवश्य सोयें. और सत्रह घंटों से अधिक किसी भी परिस्थिति में न पढ़ें. पूरी नींद दिमाग को ताजगी देगी और इससे कम सोने पर आपके स्वास्थ्य और स्वाध्याय दोनों पर बुरा असर पड़ेगा.
http://young-azamgarh.blogspot.in/2012/12/what-man-has-done-man-can-do.html
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3. सुन्दर लिखने का वैज्ञानिक तरीका: — गिरिजेश 

सुन्दर लिखना कौन नहीं चाहता! लिखने के लिये टाइप राइटर और फिर कम्प्यूटर के इस्तेमाल से पहले तो हाथ से ही लिखने का चलन था. अभी भी कहा जाता है - "पेन इज़ द बेस्ट मशीन". अभी भी आपको अक्सर हाथ से लिखने की ज़रूरत तो पड़ती ही है. और अगर आपने सुन्दर लिखा है, तो पढ़ने वाले को भी अच्छा लगता है. खास कर लिखित परीक्षा में परीक्षक पर आपकी राइटिंग का बहुत ही सकारात्मक असर पड़ता है. वही उत्तर अगर गन्दी राइटिंग में लिखा हो और वही उत्तर अगर सुन्दर राइटिंग में लिखा हो, तो मिलने वाले अंकों में फ़र्क पड़ जाता है. आपको मिलने वाले अंकों को बढ़ाने में आपकी राइटिंग एक महत्वपूर्ण और लाभकारी घटक है. 

अक्सर लोगों को कहते सुना जाता रहा है कि सुन्दर हैण्ड-राइटिंग तो "गॉड गिफ़्टेड" होती है. या कि बचपन में जिसकी राइटिंग नहीं सुधरी, उसकी फिर जिन्दगी भर नहीं सुधर सकती है. परन्तु मेरा मानना है कि अगर आपमें इतनी अक्ल है कि आप अपने जूते के फीते बाँध सकते हैं, तो आप अपनी राइटिंग भी सुधार सकते हैं. इस लेख में सुन्दर लिखने का वैज्ञानिक तरीका बताया गया है. इस तरीके का परिणाम अद्भुत होता रहा है. पिछले दो दशकों में अभी तक दसियों हज़ार लोगों ने इस तरीके से अपनी राइटिंग सुधारी है.

क्या आप भी अपनी राइटिंग से असंतुष्ट हैं? क्या आप उसे सुधारना चाहते हैं? यदि हाँ, तो इस लेख में दिये गये सुझावों को ध्यान से पढ़िए. और यदि आप चाहें, तो इन सुझावों को लागू कीजिए. इसका कल्पनातीत परिणाम स्वयं ही आपके सामने कुछ ही दिनों के अभ्यास के बाद आ जायेगा.

१- आपकी कॉपी में खींची गयी लाइनों को ध्यान से देखिए. दो लाइनों के बीच 8 मिमी. की दूरी होती है.
२- एक ही लाइन पर हिन्दी को कपड़े की तरह लटकाया जाता है और अंग्रेज़ी को मोमबत्ती की तरह खड़ा किया जाता है. अर्थात हिन्दी के शब्दों के ऊपर 'शिरोरेखा' खींची जाती है और अंग्रेज़ी के शब्द 'अधोरेखा' पर लिखे जाते हैं.
३- हिन्दी के शब्दों के ऊपर शब्द के आरम्भ से एक मिमी पहले से शुरू कर के शब्द के अन्त के एक मिमी बाद तक एक ही शिरोरेखा खींची जाती है. बिना शिरोरेखा के लिखना या टूटी हुई शिरोरेखा बनाना सही नहीं है.
४- हिन्दी के अक्षर चार मिमी. लम्बाई के बनाने चाहिए. अर्थात दो लाइनों के ठीक बीचोबीच तक ही अक्षरों की लम्बाई होनी चाहिए. नीचे का आधा हिस्सा मात्राएँ देने के लिये प्रयोग किया जाता है.
५- सभी दो अक्षरों के बीच दो मिमी. और दो शब्दों के बीच छः मिमी. की समान दूरी रखनी चाहिए. एकरूपता सौन्दर्य का महत्वपूर्ण अंग है.
६- सभी सीधे अक्षरों को 90 अंश और घुमावदार अक्षरों को 45 अंश के कोणों पर बनाना चाहिए. 
७- सभी टेढ़ी मात्राओं को 45 अंश के कोण पर बनाना चाहिए.
८- अंग्रेज़ी के बड़े अक्षर छः मिमी और छोटे अक्षर तीन मिमी की ऊँचाई के लिखने चाहिए.
९- लिखते समय पूरे पन्ने पर बायीं ओर एक इंच और दाहिनी ओर आधा इंच जगह खाली रखनी चाहिए. इसी तरह ऊपर की ओर एक इंच और नीचे की ओर भी आधा इंच जगह छोड़ देनी चाहिए.
१०- प्रत्येक नया पैराग्राफ शुरू करते समय बायीं ओर से तीन लाइनों के बीच की दूरी के बराबर अर्थात 16 मिमी जगह छोड़ कर लिखना शुरू करना चाहिए.
११- लिखने में केवल नीली या काली कलम का प्रयोग करना चाहिए. लाल कलम कॉपी जाँचने के लिये और हरी कलम जाँची गयी कॉपी को दुबारा जाँचने के लिये होती है. लिखने वाले को लाल या हरी कलम का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
१२- शीर्षक के नीचे दो अधोरेखा और उपशीर्षक के नीचे एक अधोरेखा खींच कर शीर्षक के सामने (:—) तथा उपशीर्षक के सामने (—) चिह्न लगाना चाहिए.
१३- महत्वपूर्ण अंशों पर पाठक का ध्यान आकर्षित करने के लिये स्याही का रंग बदल दें, उसके नीचे अधोरेखा खींच दें, बोल्ड कर दें, या टेढ़े अक्षरों में (इटैलिक) लिख दें. और अगर महत्वपूर्ण अंश अधिक लम्बा है, तो उसके दाहिनी ओर किनारे की खाली जगह पर ऊपर से नीचे की ओर सीधी रेखा खींच दें.
१४- इस तरीके से अभ्यास करते समय शुरू में आपकी लिखने की रफ़्तार निश्चय ही धीमी होगी. मगर इससे बिलकुल घबराइए मत. 
१५- धीरे-धीरे कर के सुन्दर लिखने का अभ्यास करने के साथ ही अपनी रफ़्तार भी बढ़ाते जाइए. आप देखेंगे कि आपकी लिखावट भी सुन्दर हो गयी और आपके लिखने की रफ़्तार भी बढ़ती जा रही है. 
१६- बाद में अभ्यास बढ़ाने के साथ घड़ी देख कर तेज लिखना शुरू कर दें. ताकि परीक्षा में समय से सभी उत्तरों को हल कर ले जायें.
१७- यदि आप इस प्रयोग से सन्तुष्ट और प्रसन्न होते हैं, तो मेरा निवेदन है कि अपने आस-पास के लोगों को भी इसे सीखने के लिये प्रोत्साहित कीजिए.
१८- अधिक से अधिक छात्रों और विद्यालयों तक इसे पहुँचाने के काम में मेरी सहायता कीजिए.
१९- इसको सीखने में अगर आप कोई दिक्कत महसूस करते हैं, तो आपकी सहायता करने के लिये मैं विनम्रतापूर्वक उपलब्ध हूँ. मुझसे 09450735496 पर सम्पर्क कीजिए.
http://young-azamgarh.blogspot.in/2012/09/blog-post_18.html

2 comments:

  1. ___ याद करने का वैज्ञानिक तरीका ___
    तथ्य याद रखने का सही तरीका क्या है? - टॉम स्टेफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ऑफ़ शेफील्ड
    अगर मैं आपसे कहूं कि बैठें और फ़ोन नंबरों की एक सूची याद करें, या कुछ तथ्य याद करें, तो आप ये काम किस तरह करेंगे?
    इस बात की ख़ासी संभावना है कि आप ग़लत तरीक़ा अपनाएंगे क्योंकि ज़्यादातर लोग वही करते हैं.
    मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि लोग नहीं जानते कि दिमाग का सबसे बेहतर इस्तेमाल किस तरह से किया जा सकता है, यानी 'सीखने' या 'याद' करने का असल तरीका क्या होना चाहिए?
    बार-बार टेस्ट करने का तरीका
    हैरानी की बात यह है कि हम इस बारे में बहुत कम सोचते हैं.
    शोधकर्ता जेफ़्री कार्पिक और हेनरी रॉडिगर बताते हैं कि ख़ुद को बार-बार टेस्ट करना, तथ्यों को याद रखने के साथ हमारी स्मरण शक्ति को मज़बूत कर सकता है.
    उन्होंने अपने प्रयोग में कॉलेज के छात्रों से स्वाहिली भाषा और उसके अंग्रेज़ी के मतलब को सीखने को कहा.
    स्वाहिली का शब्द देने का मतलब ये था कि इसे सीखने वाले अपनी पुरानी जानकारी से मदद न ले पाएँ.
    याद करने के दो अलग तरीके
    सभी शब्दों को सीखने के एक हफ्ते बाद परीक्षा ली गई.
    आम तौर पर आप और हम क्या करते? पहले शब्दों की सूची बनाते, फिर उन्हें दोहराते और जो शब्द याद न होते उन्हें फिर दोहराते.
    इससे होता यह है कि हमें जो शब्द याद हो जाते हैं उन्हें हम सूची से बाहर निकाल देते हैं और अपना ध्यान उन्हीं शब्दों पर केंद्रित करते हैं जो अभी तक सीखे नहीं जा सके हैं.
    यह तरीक़ा याद करने के लिए सबसे अच्छा लगता है, और यही सही तरीका माना जाता रहा है. लेकिन अगर चीज़ों को सही तरीक़े से याद रखना है तो यह बेहद ग़लत तरीका है.
    कार्पिक और रॉडिगर ने छात्रों से परीक्षा की तैयारी अलग-अलग तरीके से करने को कहा. उदाहरण के लिए, छात्रों का एक ग्रुप सभी शब्दों को लगातार दोहराता और जांचता रहा, जबकि दूसरा ग्रुप सही शब्दों को छोड़, बाक़ी शब्दों पर ध्यान केंद्रित करता रहा.
    चौंकाने वाले नतीजे
    इन ग्रुपों की अंतिम परीक्षा के परिणाम चौंकाने वाले थे. परीक्षण के दौरान जो लोग सिर्फ़ छूटे हुए या याद न रहे वाले शब्द याद कर रहे थे, उन्हें सिर्फ़ 35 प्रतिशत शब्द याद थे.
    जबकि पूरी सूची के शब्दों को बार-बार दोहरा कर याद करने वाले लोगों को 80 प्रतिशत तक शब्द याद थे.
    इससे साफ़ है कि सीखने का सबसे अच्छा तरीक़ा सभी तथ्यों को बार-बार याद करना या दोहराना है.
    ज़्यादातर स्टडी गाइड में बताया जाता है कि उन तथ्यों को दोहराने से बचना चाहिए जो आपके स्मरण में हैं. यह सलाह एकदम ग़लत है.
    आपको अंतिम परीक्षा के समय तक यदि तथ्यों को याद रखना है तो आपको सभी सीखे तथ्यों को दोहराते रहना चाहिए.
    http://www.bbc.com/hindi/international/2015/07/150711_vert_fut_memory_skills_du_as

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  2. 40 सेकेंड के फ़ॉर्मूला से याददाश्त बेहतर बनाएं - डेविड रॉबसन बीबीसी फ़्यूचर
    क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ कि आप पुरानी यादें भूलते जा रहे हैं?
    ये यादें किसी भी तरह की हो सकती हैं - अचरज में डालने वाला कोई दृश्य, या फ़िल्म का कोई सीन, या कोई लतीफ़ा, या फिर कोई गाना ही सही.
    ऐसा अकसर होता है कि जब आप उसे याद करने की कोशिश करते हैं तो कुछ स्पष्ट तौर पर याद नहीं आता, कुछ धुंधली सी यादें ही सामने आती हैं.
    कुछ घटनाओं के धुंधले नज़ारे या फिर बातचीत की कुछ पंक्तियां....इससे कई बार ख़ासी निराशा होती है.
    कई बार तो लोग सालों तक याद रहने वाली बातें जैसे किसी फ़िल्म स्टार से मुलाक़ात, भी लोग भूल जाते हैं.
    लेकिन आप अपनी याददाश्त को बेहतर बना सकते हैं, वो भी बेहद सामान्य तरीके से, महज 40 सेकेंड की कोशिश के साथ.
    ससेक्स यूनिवर्सिटी के क्रिस बर्ड के शोध के मुताबिक अगर कुछ सेकेंड निकालकर आप अपनी कल्पनाशीलता से थोड़ा काम लें, तो याददाश्त को बेहतर बना सकते हैं.
    बर्ड ने अपने छात्रों से ब्रेन स्कैनर के सामने लेटने को कहा और उन्हें यूट्यूब के शॉर्ट क्लिप दिखाए. इनमें ऐसे वीडियो भी शामिल थे जैसे पड़ोसी एक दूसरे को लतीफ़े सुना रहे थे.
    ये वीडियो दिखाए जाने के बाद, छात्रों के एक ग्रुप को 40 सेकेंड का समय दिया गया ताकि वे उन दृश्यों को अपने दिमाग में रीप्ले कर लें और जो उन्होंने देखा, उसके बारे में ख़ुद को बताएं.
    दूसरे ग्रुप को एक के बाद एक दूसरे वीडियो दिखाए जाने लगे. अपने दिमाग में वीडियोज़ को दोहराने वाले लोगों में सप्ताह, दो सप्ताह के बाद भी देखे गए दृश्यों को याद रखने की संभावना दूसरे ग्रुप के मुकाबले दोगुनी देखी गई.
    इससे जाहिर है कि किसी घटना को जब हम दिमाग में दोहराते हैं तो उसे याद रखने की संभावना दो गुना बढ़ जाती है. ये प्रयोग आप खुद भी कर सकते हैं.
    बर्ड ने अपने प्रयोग में ये भी देखा कि ब्रेन के स्कैन भी इस तरह से याददाश्त के पुख़्ता होने की तस्दीक करते हैं.
    जिन छात्रों ने इन दृश्यों या घटनाओं को अपनी दूसरी यादों से जोड़ा, उनमें इनको याद रखने की संभावना और भी बढ़ गई.
    दूसरे शब्दों में कहें तो अगर आप किसी चीज़ को लंबे समय तक याद रखना चाहते हैं तो फिर आप एक मिनट का समय निकाल कर उसे ख़ुद से दोहराएँ.
    उसका जितना शानदार और दिलचस्प वर्णन आप ख़ुद से करेंगे, उसके याद रहने की संभावना उतनी ही ज़्यादा होगी.
    बर्ड ने ये भी देखा कि किस तरह अदालती गवाहियों के दौरान ये तरीका महत्वपूर्ण हो जाता है. वो बताते हैं, “नतीजे ये बताते हैं कि किसी भी स्थिति में आप इस तरीके के जरिए घटना को याद कर सकते हैं. चाहे वो किसी घटना या अपराध की गवाही देने के वक्त ही क्यों ना हो.”
    वे बताते हैं, “कोई घटना तभी बेहतर ढंग से याद रहती है जब आप घटना के तुरंत बाद उसका विवरण ख़ुद को बताते हैं.”
    वैसे किसी भी घटना को याद करने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
    अगर आप अपनी याददाश्त को बेहतर बनाना चाहते हैं तो बीबीसी फ़्यूचर की इन दो गाइड्स- मेमोरी चैंपियन की तरह सीखें और कैसे 30 भाषाओं को सीखें का इस्तेमाल करते हैं.
    http://www.bbc.com/hindi/international/2016/01/160115_vert_fut_improve_memory_pk

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