Friday 19 June 2020

सबसे अच्छा कौन है ?

मेरा बच्चा सबसे अच्छा, उससे बेहतर कौन है ?
वह शालीन और भावुक है, जारी दृष्टि विकास है ;
सही वक़्त पर बोला करता, वरना रहता मौन है !
छोटे-मोटे कंकड़-पत्थर आयें या चट्टानें हों,
उसे नहीं भटका पायेंगे, चाहे पथ अनजाने हों ;
जीवन तंत्री बजा रहा है, कैसा अदभुत नाद है !
समझ रहा है पूरा कारण, कर देता प्रतिवाद है.
मुझे बताओ इस कविता का नायक लगता कौन है ?
झिलमिल-झिलमिल करता उभरा, किसका विलसित मौन है ?
- Girijesh Tiwari 19 June 2011 at 07:03
("सही वक़्त पर बोला करता, वरना रहता मौन है !" - कृपया इस पंक्ति पर ध्यान दें और तब अपने जवाब के बारे में सोचें.)

पिता - Ashwini Tiwari June 19, 2016

जन्म की दुर्घटना से परे
मात्र एक पुरुष जिसकी अप्रतिम कठोरता भी स्नेहिल थी
आँखों के सामने चिंगारियां उड़ाते थप्पड़ याद आते हैं आज भी
मात्र एक पुरुष जिसके बिना इस्तरी के कुर्ते का सफ़ेद रंग
इंद्रधनुष से ज्यादा रंगीन लगता है आज भी,
चाँदी से बाल दाढ़ी और मूछ
पेशानी पर मेरी शरारतों से पड़े बल
या चूतड़ों पर बेहिसाब बरसाए डंडे
अंतस में जीवित हैं
किसी पुरानी फ़िल्म के यादगार दृश्यों की भाँती
जिनका स्मरण होंठो पर अनायास ही बिखेर देता है मुस्कुराहटें,
पुस्तकालय का परिचय
हजारों पुस्तकों के बीच तनिक अजनबी भयभीत सा मैं
और तुम्हारा हौंसला
मात्र एक किताब जो तुमने थमाई औपचारिक परिचय हेतु
पिता ! उस पुस्तक का नाम "माँ" क्यों था
आज बखूबी समझता हूँ मैं,
दृष्टि
क्षितिज के उस पार तक
भविष्य तराशने की क्षमता
तुम्हारी एक एक साँस का जुटाया गया अनुभव
तुम्हारा मौन, तुम्हारा विश्वास, तुम्हारा स्पर्श
तब भी जब टूट कर फ़ूट फ़ूट कर तुम्हारे पहलू में रो रहा था मैं
यह तुम ही थे जो मेरे लिए खपच्चियों सा सम्बल बने,
विशाल बरगद की भाँति तुमने आकाश दिया
यह छूट भी कि अपनी जरूरतों के सापेक्ष
मैं पूर्ण स्वार्थी बन तुम्हारी छाया का उपभोग करूँ
मेरी पाँखों का सामर्थ्य तुमने ही पहचाना
तुमने ही बतलाया, तुमने ही समझाया,
तुमने ही दुत्कारा, तुमने ही सहलाया,
नंगे पॉँव पगडंडियों पर साँस उखड़ने तक दौड़ाया
काँटे हटा सकते थे तुम हर कदम से
तुमने तलवे सहलाते समय, काँटे निकालते समय
कांटो को अपनाना सिखाया
टीस को सहना बताया
तुमने दुर्बल पुत्र से परे मुझे दुरूह मनुष्य बनाया,
इतना कि आज धरती के किसी कोने में
तुम्हारी परवाह किये बगैर
तुम्हारा हाल जाने बग़ैर
अपने आकाश के टुकड़े पर मैं अधिकार जमा सकूँ
मेरे स्वप्न तुम्हारी आँखों में कई कई बार देखा
तुम्हारे सपनों तक जब भी पहुंचा केवल खुद को पाया,
पिता,
तुम्हारी उपलब्धियाँ अनगिनत हैं
मुझसे कहीं बेहतर तुम्हारी संतानें
मेरी एक मात्र उपलब्धि
केवल तुम,
पिता! अब एक ही इच्छा शेष है मन में
कि तुम्हारी अनवरत यात्रा को विराम मिले
तुम मेरी भाँति उन्मुक्त हो
मैं तुम्हारी भाँति संभाल सकूँ तुमको
तुम्हारा पितृत्व मेरा हो
तुम मेरा शिशुत्व जी सको
बहुत कुछ पाया तुमसे यह फिर माँगता हूँ
यह मौक़ा जरूर देना तुम मुझे
आखिर अभी भी तुम पिता जो ठहरे
- मलंग

__एक_खुला_पत्र__दोस्ती_अमीर_और_ग़रीब_की__


मेरे सम्मानित दोस्त, आपके पास पैसा हैं. मैं ग़रीब हूँ. यह अमीर और ग़रीब के बीच की दोस्ती है. आप अपने लिये या मेरे लिये जो चाहें कर सकते हैं. मैं न तो अपने लिये, न ही आपके लिये और अब तो न औरों के लिये ही कुछ भी करने के लायक हूँ. आपने मेरी लम्बे समय तक मदद की. मैं जीवन भर आपको केवल धन्यवाद कह सका.
मैं उन ज़रूरतमन्द बच्चों के सपनों को पंख देना चाहता था, जो किसी तरह आपके बच्चे की बराबरी करने लायक नहीं थे. मैं अपने बच्चों के कल के लिये बीमार बुढ़ापे में आपकी शर्तों पर मज़दूरी करने और हर एक परिचित-अपरिचित से भीख माँगने से भी पीछे नहीं हटा.
मगर आपने बीच राह में मुझे चुपके से धोखा दे दिया. मैंने ईमान के साथ हर क़दम पर हर तरह से आपका साथ दिया. आपने मुझे दोस्त कहा और मेरा शिकार किया. मैंने कोई पलटवार नहीं किया. मैंने आपको दोस्त कहा, तो दोस्त समझा.
अब अचानक आपने मेरी मदद बन्द कर दी. अभी तक मैं मुख्यतः आपके भरोसे था. अब मैं और ग़रीब हो गया. आपको और पैसा चाहिए था. मुझे और नौजवान चाहिए थे. दोनों के रास्ते अलग होने ही थे, अलग हो गये. आपके पास कुछ और अधिक पैसा हो गया. मेरे पास कुछ और नौजवान हो गये.
यह बहुत बुरा हुआ. मगर यह बहुत अच्छा भी हुआ. अब मेरे बच्चे अपने सपनों को साकार करने के लिये मुझ पर निर्भर नहीं रहेंगे. अब वे और मजबूत बनेंगे, और ताक़त जुटाने की कोशिश करेंगे, और शानदार कारनामे करेंगे, और गम्भीरता से दुनिया के सच को समझने की कोशिश करेंगे.
दुनिया से मैं भी जाऊँगा. दुनिया से आप भी जायेंगे. मैं नंगा फ़कीर बन कर दुनिया को अलविदा कहूँगा. आप थोड़ी-सी दौलत जुटा कर जायेंगे. आप मेरी बात अनसुनी कर सकते हैं. आप मेरा अपमान कर सकते हैं. आप मेरा मज़ाक उड़ा सकते हैं. आप मेरी मजबूरी में मेरे सामने मेरे सिद्धान्तों के विरुद्ध अपनी शर्तें रख सकते हैं. आप मुझसे झूठ बोल सकते हैं. आप मुझे धोखा दे सकते हैं. आपने बार-बार यह सब किया भी.
हाँ, सामने कहने की आपने कभी हिम्मत नहीं की. चुप रहे या सम्मान का अभिनय किया. मैं आपको आज भी उतना ही प्यार करता हूँ. हाँ, जीवन भर मैंने अपने सिद्धान्तों से कोई समझौता न किया, न करूँगा. मेरे बच्चों ने फैसला कर दिया है कि अब मैं आपके पास आपका पैसा माँगने नहीं आऊँगा.
धरती पर मुझसे और आपसे पहले से ही अमीर और ग़रीब के बीच वर्ग-संघर्ष चल रहा है. आपने अपना पाला बदल लिया. मगर आख़िरी साँस तक मेरा पक्ष वही रहेगा - ग़रीब, सच, ईमान, इन्साफ़, विनम्रता, मेहनत, किफ़ायत, इन्सानियत और इन्क़लाब. कोशिश कर रहा कि अतीत के भूत से पीछा छुड़ा कर कार्यसक्षम शरीर दुबारा बना सकूँ ताकि मानवता की सेवा करने लायक बना रह सकूँ.
मेरा जवाब मेरे बच्चे हैं. ढेर सारा प्यार - आपका गिरिजेश (17.6.20.)