Friday 19 June 2020

पिता - Ashwini Tiwari June 19, 2016

जन्म की दुर्घटना से परे
मात्र एक पुरुष जिसकी अप्रतिम कठोरता भी स्नेहिल थी
आँखों के सामने चिंगारियां उड़ाते थप्पड़ याद आते हैं आज भी
मात्र एक पुरुष जिसके बिना इस्तरी के कुर्ते का सफ़ेद रंग
इंद्रधनुष से ज्यादा रंगीन लगता है आज भी,
चाँदी से बाल दाढ़ी और मूछ
पेशानी पर मेरी शरारतों से पड़े बल
या चूतड़ों पर बेहिसाब बरसाए डंडे
अंतस में जीवित हैं
किसी पुरानी फ़िल्म के यादगार दृश्यों की भाँती
जिनका स्मरण होंठो पर अनायास ही बिखेर देता है मुस्कुराहटें,
पुस्तकालय का परिचय
हजारों पुस्तकों के बीच तनिक अजनबी भयभीत सा मैं
और तुम्हारा हौंसला
मात्र एक किताब जो तुमने थमाई औपचारिक परिचय हेतु
पिता ! उस पुस्तक का नाम "माँ" क्यों था
आज बखूबी समझता हूँ मैं,
दृष्टि
क्षितिज के उस पार तक
भविष्य तराशने की क्षमता
तुम्हारी एक एक साँस का जुटाया गया अनुभव
तुम्हारा मौन, तुम्हारा विश्वास, तुम्हारा स्पर्श
तब भी जब टूट कर फ़ूट फ़ूट कर तुम्हारे पहलू में रो रहा था मैं
यह तुम ही थे जो मेरे लिए खपच्चियों सा सम्बल बने,
विशाल बरगद की भाँति तुमने आकाश दिया
यह छूट भी कि अपनी जरूरतों के सापेक्ष
मैं पूर्ण स्वार्थी बन तुम्हारी छाया का उपभोग करूँ
मेरी पाँखों का सामर्थ्य तुमने ही पहचाना
तुमने ही बतलाया, तुमने ही समझाया,
तुमने ही दुत्कारा, तुमने ही सहलाया,
नंगे पॉँव पगडंडियों पर साँस उखड़ने तक दौड़ाया
काँटे हटा सकते थे तुम हर कदम से
तुमने तलवे सहलाते समय, काँटे निकालते समय
कांटो को अपनाना सिखाया
टीस को सहना बताया
तुमने दुर्बल पुत्र से परे मुझे दुरूह मनुष्य बनाया,
इतना कि आज धरती के किसी कोने में
तुम्हारी परवाह किये बगैर
तुम्हारा हाल जाने बग़ैर
अपने आकाश के टुकड़े पर मैं अधिकार जमा सकूँ
मेरे स्वप्न तुम्हारी आँखों में कई कई बार देखा
तुम्हारे सपनों तक जब भी पहुंचा केवल खुद को पाया,
पिता,
तुम्हारी उपलब्धियाँ अनगिनत हैं
मुझसे कहीं बेहतर तुम्हारी संतानें
मेरी एक मात्र उपलब्धि
केवल तुम,
पिता! अब एक ही इच्छा शेष है मन में
कि तुम्हारी अनवरत यात्रा को विराम मिले
तुम मेरी भाँति उन्मुक्त हो
मैं तुम्हारी भाँति संभाल सकूँ तुमको
तुम्हारा पितृत्व मेरा हो
तुम मेरा शिशुत्व जी सको
बहुत कुछ पाया तुमसे यह फिर माँगता हूँ
यह मौक़ा जरूर देना तुम मुझे
आखिर अभी भी तुम पिता जो ठहरे
- मलंग

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