Saturday 21 November 2020

सूर्य की पूजा और मानवता की पीड़ा

 

प्रिय मित्र, सूर्य की उपासना का आज पर्व है. विराट ब्रह्माण्ड के निस्सीम विस्तार में हमारा सूर्य अगणित ताराओं के बीच मात्र एक तारा ही तो है. सौर-मण्डल के सभी ग्रह और उपग्रह सूर्य के अंश ही तो हैं. हमारी अपनी धरती माता भी सूर्य की पुत्री ही तो है. सूर्य से अपनी निश्चित दूरी के कारण ही तो धरती ब्रह्माण्ड का एकमात्र नीला ग्रह है. सूर्य से इसी दूरी के कारण केवल धरती पर ही जीवन सम्भव हो सका. जीवन को प्रकाश मयस्सर हुआ. धरती की हरीतिमा के लिये अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे वनस्पति-जगत द्वारा सतत हो रहे प्रकाश-संश्लेषण से सम्पूर्ण सजीव जगत को ऊर्जा मयस्सर हुई. वायुमण्डल, जल, ओजोन छतरी की सुरक्षा मयस्सर हो सकी.
मनुष्य भी सजीव जगत का मात्र एक सदस्य ही तो है. सूर्य की पुत्री धरती की सन्तान होने के चलते मनुष्य सूर्य का नाती है और सूर्य हमारा नाना.
सूर्य में अनादि काल से परमाणु बमों का विस्फोट हो रहा है. सूर्य लगातार अपनी ही आग में जल रहा है. सूर्य के तपते रहने के कारण ही मनुष्यता को दिन का प्रकाश, रात का अँधेरा, मौसम की विविधता मयस्सर है. सूर्य की उपासना का पर्व सूर्य के कारण मानवता को मिली समस्त उपलब्धियों को महसूस करने और मन से आभार व्यक्त करने का पर्व भी है.
सूर्य की उपासना का पर्व अपनों के कल्याण की कामना का पर्व है. इस पर्व के उत्सव में हम पुरबियों की माँ अपनी सन्तान के बेहतर जीवन की मंगल-कामना से डूबते और उगते हुए सूर्य को निराजल रह कर जल में कमर तक खड़ी होकर पूजती हैं.
प्रश्न है - क्या मानव-जाति का कल्याण इस पूजा से सम्भव है ? उत्तर है - नहीं.
आपको मेरा यह उत्तर पसन्द नहीं आया न ? इस उत्तर से आपकी आस्था को ठेस लगी क्या ? अगर उत्तर आपको बुरा लग गया, तो मुझे क्षमा कीजिए. परन्तु एक पल रुक कर ज़रा सोचिए. सोचिए ज़रा कि मानवता संकट में क्यों है. धरती का अस्तित्व संकट में क्यों है. जीवन का अस्तित्व संकट में क्यों है. धरती पर अन्याय, अत्याचार, शोषण, उत्पीड़न, दमन क्यों है. धरती पर युद्ध, विग्रह और अशान्ति क्यों है. धरती पर अपमान, दुःख, भूख, ग़रीबी, कंगाली, अभाव और असहायता का आलम क्यों है. मन को निराश कर देने वाला अन्धकार का यह सांय-सांय करता चौतरफा पसरा हुआ सन्नाटा क्यों है. मानवता बिलख क्यों रही है.
मानवता का संकट मनुष्य-मात्र की वेदना का कारण है. मनुष्य का संकट प्रकृति-जन्य संकट कदापि नहीं है. इस संकट को स्वयं मनुष्य ने ही रचा है. समस्त सजीव जगत के साथ ही मनुष्य को भी मदर नेचर ने ही रचा. समस्त सजीव जगत में मनुष्य ही सबसे विकसित सदस्य है. उनके बीच एकमात्र मनुष्य ही रचने लायक बन सका. मनुष्य पशु-जगत में सबसे विकसित हो सका क्योंकि उसने अपने हाथों को आज़ाद किया. अपने पैरों पर सीधा तन कर खड़ा हुआ. अपने स्वर-यन्त्र का, अपने मस्तिष्क का, अपनी भाषा का विकास किया. उसने सभ्यता का सृजन किया. उसने संस्कृति की संरचना की.
सबसे विकसित था न, इसलिये जब रचने निकला, तो मनुष्य ने मदर नेचर के साथ गद्दारी की. मनुष्य ने मनुष्यता के साथ गद्दारी की. मनुष्य ने धरती के साथ गद्दारी की. मनुष्य ने जीवन के साथ गद्दारी की. पीढ़ी दर पीढ़ी मनुष्य ने मनुष्य के साथ जितना बुरा व्यवहार किया, उतना बुरा किसी भी प्रजाति के पशु ने अपनी प्रजाति के दूसरे सदस्य के साथ नहीं किया. समूचा पशु जगत धरती पर मनुष्य के अवतार के पहले प्रकृति का ग़ुलाम था. मनुष्य ने प्रकृति का मालिक बनने की ठानी.
मानवता की गौरवशाली परम्पराओं पर खड़ी सभ्यताओं और संस्कृतियों का विकास करने में लगे मनुष्य ने जघन्यतम कुकृत्य भी किये. मनुष्य ने मनुष्य को जंज़ीरों में जकड़ा. मनुष्य ने मनुष्य को अपना ग़ुलाम बनाया. मनुष्य ने मनुष्य को बेचा और ख़रीदा. मनुष्य ने मनुष्य के ऊपर क्रूरतम अत्याचार किया. मनुष्य ने अपनी ही आधी आबादी को उपभोक्ता सामग्री में रूपान्तरित कर दिया. पुरुष-प्रधान बनी हमारी सभ्यता. नारी विरोधी बनी हमारी संस्कृति.
मनुष्य ने प्रकृति-प्रदत्त उपहारों का अपने उपभोग योग्य रूपान्तरण करना आरम्भ किया. उसने अपने उर्वर मस्तिष्क और सबल हाथों से उत्पादन की प्रक्रिया का प्रवर्तन किया. कल्पनातीत परिणाम सामने था. सम्पत्ति का उपभोग से अधिक उत्पादन होने लगा. मनुष्य ने अब सम्पत्ति का संचय आरम्भ किया.
सम्पत्ति के लोभ ने कपट को जन्म दिया. कपट ने युद्ध को विस्तार दिया. सभ्यता के विकास के साथ युद्ध और मारक होता चला गया. हथियार और विकसित होते चले गये. साथ ही उत्पादन और जटिल और संश्लिष्ट होता गया. विज्ञान के विकास के साथ औजारों का स्थान मशीनों ने ले लिया. उत्पादन में पेशियों की भूमिका गौड़ हो गयी.
उत्पादन का वितरण अनिवार्य था. वितरण ने बाज़ार को जन्म दिया. और बाज़ार ने सम्पत्ति का असमान वितरण कर दिया. अधिकतर के पास आवश्यक आवश्यकताएँ भी पूरी न करने भर को न्यूनतम छोड़ा, तो मुट्ठीभर के पास अनावश्यक अत्यधिक संचित कर दिया.
अब दो तरह के मनुष्य धरती पर सह-अस्तित्व में रहने लगे. दोनों के हित परस्पर विरोधी ठहरे. एक को और सम्पत्ति का लोभ है, तो दूसरा सम्मान से सिर उठा कर जीने के लिये जूझ रहा. एक प्रतिशत मालामाल हैं और निन्यानबे प्रतिशत कंगाल. एक करोड़पति को बनाने में एक करोड़ मनुष्यों को कंगाल होना पड़ा.
बाज़ार की पैशाचिक भूख का दुष्परिणाम भी सामने है. ज्ञान-विज्ञान का अभी तक का सबसे विकसित स्वरूप है तो, परन्तु हर बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार नहीं है. कार्यसक्षम हाथ हैं तो, मगर काम पाने का अधिकार नहीं है. चिकित्सा के विशेषज्ञ हैं तो, परन्तु ग़रीब बीमार पड़ने पर कंगाल होने और कंगाल मर जाने को अभिशप्त है. छोटे और बड़े अगणित न्यायालय हैं तो, मगर न्याय नहीं दे सकते. वे केवल सम्पत्ति के हित में निर्णय देने वाली दूकानों में रूपान्तरित हो गये हैं.
जनतन्त्र है तो, मगर तन्त्र की जन पर ज़बरदस्ती जारी है. शासन-सत्ता है तो, मगर धरती के धनकुबेरों की चाकर है. व्यवस्था है तो, मगर दुर्व्यवस्था बढ़ाने का उपकरण बन कर रह गयी है.
मेरे मासूम दोस्त, केवल माँ की दुआ और सूर्य की उपासना से महँगाई, बेरोज़गारी, अशिक्षा, अन्याय, अत्याचार, अपमान और तिल-तिल कर मारती यह रात-दिन की आपकी घुटन समाप्त नहीं होने वाली है.
समूची धरती पर पीढ़ियों से जारी संग्राम मानवता के अस्तित्व का युद्ध है. इसमें आपकी दो ही परिणति है. या तो विजय या मृत्यु. दोनों में से किसी का भी वरण करने के लिये मन बनाकर आपको स्वयं ही अपनी तैयारी करनी पड़ेगी.
इसके लिये आपको सूर्य-पुत्र कर्ण के संकल्प, शौर्य, साहस तथा उदारता का विकास अपने व्यक्तित्व में करना पड़ेगा. आपको दो-टूक अपना पक्ष चुनना पड़ेगा. या तो कर्ण की तरह सब समझते हुए भी अपना शस्त्र और कवच अपने ही हत्यारों को सहजता के साथ दे देना होगा, या फिर कर्ण की हत्या के षड्यन्त्र में हिस्सेदारी का मन बनाकर कपट करने की कला सीखनी पड़ेगी और अन्ततोगत्वा विजेता से कुछ ईनाम-इकराम भर पा लेने से अपने मन को संतुष्ट करना पड़ेगा.
अब यह आप पर है कि आप क्या चुनना पसन्द करते हैं.
ढेर सारा प्यार - आपका गिरिजेश छठ 2020. https://www.facebook.com/girijeshkmr/posts/10217294056971255

Thursday 8 October 2020

शिक्षा पर गिरिजेश तिवारी की दहाड़ । The Tarkash I #thetarkash

शिक्षा बाज़ार में बिक रही उपभोक्ता सामग्री नहीं है.
शिक्षा हर बच्चे का मूलभूत अधिकार है.
जब तक हम हर बच्चे को समान स्तर की शिक्षा नहीं दे सकते, तब तक स्वयं को मनुष्य कहने लायक नहीं हो सकेंगे.
इन्कलाब ज़िन्दाबाद. बाज़ार मुर्दाबाद.
https://www.youtube.com/watch?v=9Z4AdDZfCyo&feature=youtu.be&fbclid=IwAR1gvAww2H3O76y3nuXBcNGShquaa660TkV3uV4GLaLAjEgKFoiI9vi5VAk

Friday 19 June 2020

सबसे अच्छा कौन है ?

मेरा बच्चा सबसे अच्छा, उससे बेहतर कौन है ?
वह शालीन और भावुक है, जारी दृष्टि विकास है ;
सही वक़्त पर बोला करता, वरना रहता मौन है !
छोटे-मोटे कंकड़-पत्थर आयें या चट्टानें हों,
उसे नहीं भटका पायेंगे, चाहे पथ अनजाने हों ;
जीवन तंत्री बजा रहा है, कैसा अदभुत नाद है !
समझ रहा है पूरा कारण, कर देता प्रतिवाद है.
मुझे बताओ इस कविता का नायक लगता कौन है ?
झिलमिल-झिलमिल करता उभरा, किसका विलसित मौन है ?
- Girijesh Tiwari 19 June 2011 at 07:03
("सही वक़्त पर बोला करता, वरना रहता मौन है !" - कृपया इस पंक्ति पर ध्यान दें और तब अपने जवाब के बारे में सोचें.)

पिता - Ashwini Tiwari June 19, 2016

जन्म की दुर्घटना से परे
मात्र एक पुरुष जिसकी अप्रतिम कठोरता भी स्नेहिल थी
आँखों के सामने चिंगारियां उड़ाते थप्पड़ याद आते हैं आज भी
मात्र एक पुरुष जिसके बिना इस्तरी के कुर्ते का सफ़ेद रंग
इंद्रधनुष से ज्यादा रंगीन लगता है आज भी,
चाँदी से बाल दाढ़ी और मूछ
पेशानी पर मेरी शरारतों से पड़े बल
या चूतड़ों पर बेहिसाब बरसाए डंडे
अंतस में जीवित हैं
किसी पुरानी फ़िल्म के यादगार दृश्यों की भाँती
जिनका स्मरण होंठो पर अनायास ही बिखेर देता है मुस्कुराहटें,
पुस्तकालय का परिचय
हजारों पुस्तकों के बीच तनिक अजनबी भयभीत सा मैं
और तुम्हारा हौंसला
मात्र एक किताब जो तुमने थमाई औपचारिक परिचय हेतु
पिता ! उस पुस्तक का नाम "माँ" क्यों था
आज बखूबी समझता हूँ मैं,
दृष्टि
क्षितिज के उस पार तक
भविष्य तराशने की क्षमता
तुम्हारी एक एक साँस का जुटाया गया अनुभव
तुम्हारा मौन, तुम्हारा विश्वास, तुम्हारा स्पर्श
तब भी जब टूट कर फ़ूट फ़ूट कर तुम्हारे पहलू में रो रहा था मैं
यह तुम ही थे जो मेरे लिए खपच्चियों सा सम्बल बने,
विशाल बरगद की भाँति तुमने आकाश दिया
यह छूट भी कि अपनी जरूरतों के सापेक्ष
मैं पूर्ण स्वार्थी बन तुम्हारी छाया का उपभोग करूँ
मेरी पाँखों का सामर्थ्य तुमने ही पहचाना
तुमने ही बतलाया, तुमने ही समझाया,
तुमने ही दुत्कारा, तुमने ही सहलाया,
नंगे पॉँव पगडंडियों पर साँस उखड़ने तक दौड़ाया
काँटे हटा सकते थे तुम हर कदम से
तुमने तलवे सहलाते समय, काँटे निकालते समय
कांटो को अपनाना सिखाया
टीस को सहना बताया
तुमने दुर्बल पुत्र से परे मुझे दुरूह मनुष्य बनाया,
इतना कि आज धरती के किसी कोने में
तुम्हारी परवाह किये बगैर
तुम्हारा हाल जाने बग़ैर
अपने आकाश के टुकड़े पर मैं अधिकार जमा सकूँ
मेरे स्वप्न तुम्हारी आँखों में कई कई बार देखा
तुम्हारे सपनों तक जब भी पहुंचा केवल खुद को पाया,
पिता,
तुम्हारी उपलब्धियाँ अनगिनत हैं
मुझसे कहीं बेहतर तुम्हारी संतानें
मेरी एक मात्र उपलब्धि
केवल तुम,
पिता! अब एक ही इच्छा शेष है मन में
कि तुम्हारी अनवरत यात्रा को विराम मिले
तुम मेरी भाँति उन्मुक्त हो
मैं तुम्हारी भाँति संभाल सकूँ तुमको
तुम्हारा पितृत्व मेरा हो
तुम मेरा शिशुत्व जी सको
बहुत कुछ पाया तुमसे यह फिर माँगता हूँ
यह मौक़ा जरूर देना तुम मुझे
आखिर अभी भी तुम पिता जो ठहरे
- मलंग

__एक_खुला_पत्र__दोस्ती_अमीर_और_ग़रीब_की__


मेरे सम्मानित दोस्त, आपके पास पैसा हैं. मैं ग़रीब हूँ. यह अमीर और ग़रीब के बीच की दोस्ती है. आप अपने लिये या मेरे लिये जो चाहें कर सकते हैं. मैं न तो अपने लिये, न ही आपके लिये और अब तो न औरों के लिये ही कुछ भी करने के लायक हूँ. आपने मेरी लम्बे समय तक मदद की. मैं जीवन भर आपको केवल धन्यवाद कह सका.
मैं उन ज़रूरतमन्द बच्चों के सपनों को पंख देना चाहता था, जो किसी तरह आपके बच्चे की बराबरी करने लायक नहीं थे. मैं अपने बच्चों के कल के लिये बीमार बुढ़ापे में आपकी शर्तों पर मज़दूरी करने और हर एक परिचित-अपरिचित से भीख माँगने से भी पीछे नहीं हटा.
मगर आपने बीच राह में मुझे चुपके से धोखा दे दिया. मैंने ईमान के साथ हर क़दम पर हर तरह से आपका साथ दिया. आपने मुझे दोस्त कहा और मेरा शिकार किया. मैंने कोई पलटवार नहीं किया. मैंने आपको दोस्त कहा, तो दोस्त समझा.
अब अचानक आपने मेरी मदद बन्द कर दी. अभी तक मैं मुख्यतः आपके भरोसे था. अब मैं और ग़रीब हो गया. आपको और पैसा चाहिए था. मुझे और नौजवान चाहिए थे. दोनों के रास्ते अलग होने ही थे, अलग हो गये. आपके पास कुछ और अधिक पैसा हो गया. मेरे पास कुछ और नौजवान हो गये.
यह बहुत बुरा हुआ. मगर यह बहुत अच्छा भी हुआ. अब मेरे बच्चे अपने सपनों को साकार करने के लिये मुझ पर निर्भर नहीं रहेंगे. अब वे और मजबूत बनेंगे, और ताक़त जुटाने की कोशिश करेंगे, और शानदार कारनामे करेंगे, और गम्भीरता से दुनिया के सच को समझने की कोशिश करेंगे.
दुनिया से मैं भी जाऊँगा. दुनिया से आप भी जायेंगे. मैं नंगा फ़कीर बन कर दुनिया को अलविदा कहूँगा. आप थोड़ी-सी दौलत जुटा कर जायेंगे. आप मेरी बात अनसुनी कर सकते हैं. आप मेरा अपमान कर सकते हैं. आप मेरा मज़ाक उड़ा सकते हैं. आप मेरी मजबूरी में मेरे सामने मेरे सिद्धान्तों के विरुद्ध अपनी शर्तें रख सकते हैं. आप मुझसे झूठ बोल सकते हैं. आप मुझे धोखा दे सकते हैं. आपने बार-बार यह सब किया भी.
हाँ, सामने कहने की आपने कभी हिम्मत नहीं की. चुप रहे या सम्मान का अभिनय किया. मैं आपको आज भी उतना ही प्यार करता हूँ. हाँ, जीवन भर मैंने अपने सिद्धान्तों से कोई समझौता न किया, न करूँगा. मेरे बच्चों ने फैसला कर दिया है कि अब मैं आपके पास आपका पैसा माँगने नहीं आऊँगा.
धरती पर मुझसे और आपसे पहले से ही अमीर और ग़रीब के बीच वर्ग-संघर्ष चल रहा है. आपने अपना पाला बदल लिया. मगर आख़िरी साँस तक मेरा पक्ष वही रहेगा - ग़रीब, सच, ईमान, इन्साफ़, विनम्रता, मेहनत, किफ़ायत, इन्सानियत और इन्क़लाब. कोशिश कर रहा कि अतीत के भूत से पीछा छुड़ा कर कार्यसक्षम शरीर दुबारा बना सकूँ ताकि मानवता की सेवा करने लायक बना रह सकूँ.
मेरा जवाब मेरे बच्चे हैं. ढेर सारा प्यार - आपका गिरिजेश (17.6.20.)

Saturday 16 May 2020

दिनकर आज लिखते तो यही नहीं होता क्या ?


है व्यवस्था एक प्रतिशत शोषकों के हाथ में,
जो नहीं इन्सान हमको मानते;
लाभ केवल लाभ पर ही गिद्ध-दृष्टि लगा रखी है,
वे व्यथा को हैं नहीं पहिचानते.
दुरदुरा कर महानगरों से भगाया है उन्होंने,
और पिटवाया पुलिस से सड़क पर;
जान लेकर भागने से मुक्ति किसको मिल सकी है,
शक्तिशाली को सभी ही मानते.
आपदा के जाल में जब भी फँसा पाये हमें वे,
रहे वे अपने सहारे हम विधाता के सहारे;
हम विजित और वे विजेता इसी कारण बन सके हैं,
समर हमने सभी केवल तभी हारे.
बाहुबल है बुद्धिबल है सत्य है ईमान है,
है ग़रीबी चरम मुश्किल में हमारी जान है;
हर तरह समर्थ है असंख्य संख्या बल हमारा,
एकजुटता की कमी ही आ रही हर बार आड़े.
काम पूरा कर दिया जब भी जहाँ भी,
वे हमेशा पलट कर के ज़ोर से हम पर दहाड़े;
इस धरा पर स्वर्ग हम ही रहे गढ़ते हैं सदा से,
किन्तु उनकी कृपा से हमने पढ़े उलटे पहाड़े.
- गिरिजेश (16.5.20)
(कविता-पोस्टर पर चित्र Navin Kumar का है. क्योंकि दिनकर की और मेरी पीढ़ी के सच्चे वारिस व्यवस्था-परिवर्तन की कामना लिये जूझ रहे युवा ही हैं.)

Friday 8 May 2020

अमीरों के सुख-चैन का दौर चले जाने पर मेरी चिन्ता उचित नहीं है क्या ?



अमीरो, आपके बुरे दिन आ गये. आपने हमारे लिये अच्छे दिन लाने का चुनावी जुमला उछाला था. मुझे आपके सुख-चैन का दौर गुज़र जाने की चिन्ता हो रही है. लाखों-लाख ग़रीब मज़दूर हजारों किलोमीटर दूर अपने गाँवों की ओर भिखमंगों की तरह माँगते-पकाते-खाते झुण्ड के झुण्ड पत्नी-बच्चों के साथ पैदल चले जा रहे हैं.

आपने उनको ख़ाली जेब बिना गोसया के गोरू की तरह सड़क पर हकाल दिया. सड़क पर उनको आपकी पुलिस ने जहाँ जब जिसे पाया, पागल कुत्तों की तरह लाठी-डंडों से भरहिक पीट-पीट कर अधमरा कर दिया. उनमें से न जाने कितने तो रास्ते में ही मर गये भूख से, प्यास से, धूप से, थकान से, कमज़ोरी और बीमारी से. आपकी रेल पर वे बैठ नहीं सके. रेल उनके ऊपर से गुज़र गयी. वे रेल के नीचे कट कर मर गये.


वे ही आपके लिये ज़िन्दगी भर दौलत पैदा करते थे. वे ही आपके बँगलों को बनाते-सजाते-सँवारते रहा करते थे. वे ही आपकी गाड़ियाँ चलाते थे. वे ही आपके कपड़े धोते और प्रेस करते थे. वे ही आपके कुक्कुर टहलाते थे. वे ही हर महानगर में चौथी सड़क पर बनी अपनी झुग्गी-झोपड़ियों से निकल कर सुबह से शाम तक आपकी सेवा में अपनी ज़िन्दगी गुज़ार देते थे. वे ही आपका खाना पकाते थे, बर्तन धोते थे, झाडू-पोछा करते थे, बेबी और बाबा खेलाते थे, आपके बुजुर्गों की सेवा करते थे. वे ही दौड़-दौड़ कर आपका हर हुक्म बजाते थे.


वे अपने घरों से दूर अल्हड़ जवानी में काले बाल लेकर आपके परदेस में कमाने आते थे, धरती के असली नरक में जीते थे और सफ़ेद बालों वाला टूटा बीमार शरीर लेकर बुढ़ापे में मौत का इन्तेज़ार करने के लिये चुपचाप अपने देस वापस लौट जाते थे.


अब तो वे चले गये. वे तो लौटकर आने से रहे. अब क्या होगा आपका? क्या होगा आपके सुख-चैन का ? क्या होगा आपकी दौलत को दिन दूना-रात चौगुना बढ़ाने की लालच का ? क्या होगा आपके बन्द पड़े कारखानों का ? कैसे जियेंगे आप उनके बिना ? मुझे उनके लिये तो केवल दुःख हो रहा क्योंकि अपने भगवान के बाद वे आप पर भरोसा करते रहे. मगर मुझे आपकी चिन्ता हो रही. क्या मेरी चिन्ता उचित नहीं है ?


मैं हूँ आपका दुश्मन एक क्रान्तिकारी. (8.5.20.)

Thursday 7 May 2020

_हैप्पीबड्डे___"अप्पदीपोभव" - बुद्ध____


आर्ष साहित्य के "तमसो मा ज्योतिर्गमय" (अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो) से "अप्पदीपोभव" (अपना दीपक स्वयं बनो) तक की बुद्ध की यात्रा मानवता की विकास-यात्रा भी है. आज युग है - "ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के", "भेड़िया मशाल नहीं जला सकता, मशाल जलाओ" और "चले चलो कि मन्ज़िलें बुला रही हैं तुम्हें, तुम्हारे हाथ में जलती हुई मशालें हैं." - एक बार फिर व्यवस्था-परिवर्तन की ललकार का.

"इन्कलाब ज़िन्दाबाद" आज के युग का प्रधान स्वर है.

आज का युग जन का युग है. जन-शक्ति के जागरण का युग है. यही आज की साधना है. यही आज का युगसत्य है. हमारी समूची धरती पर धन हर तरह से जन के विरुद्ध संगठित है. जन की एकजुटता ही युगधर्म है.

अन्धकार का नाश हो. जगत और जीवन को अन्धकारमय बना देने की साज़िशों का नाश हो.

मेरे लिये बुद्ध अपनी मान्यताओं की तुलना में अपने विचारों (विशेषकर चार महासत्य और मध्यम मार्ग) के चलते और विविध अवसरों पर अपने जीवन और आचरण के चलते अधिक प्रेरक और प्रासंगिक हैं.
मेरे एक प्रबुद्ध मित्र की मान्यता है कि बुद्ध प्रकारान्तर से धनतन्त्र के ही समर्थक रहे.
राहुल बाबा ने लिखा उन्होंने दासों, सैनिकों और नारियों को परिव्रज्या देने का विरोध किया.

मेरी समझ इसीलिये है कि महात्मा बुद्ध और बाबा साहेब अम्बेडकर के लोग व्यवस्था-परिवर्तन नहीं करना चाहते. उनकी इसी जन-विरोधी सम्पत्ति आधारित व्यवस्था में और बेहतर जगह की कामना है.

हाँ, निःसन्देह बुद्ध मेरे पुरखे थे. मैं उनका प्रशंसक हूँ.
हम दोनों के इस रिश्ते के बीच मुझे किसी और के हस्तक्षेप की कोई ज़रूरत नहीं है.
बौद्ध बहुत हुए. दूसरा बुद्ध नहीं हुआ. मेरे लिये इतना बहुत है.
बुद्ध के लिये नमन !

#____बुद्ध_की_बुद्धि__संघर्ष_और_समझौता____


बात तब की है जब जगत अपनी सहज गति से सर्वत्र प्रवाहमान था. जीवन निरन्तर जन्म लेता, सतत गतिमान रहता तथा अन्ततः काल के गाल में समा तिरोहित होता चला जा रहा था. सम्पूर्ण समाज परम्परागत पद्धति से चलता चला जा रहा था. समस्त जन-गण को अपनी-अपनी सीमाओं और संसाधनों के अनुरूप कम-ओ-बेश सुख और दुःख दोनों ही कभी न कभी मयस्सर होते रहते थे.

तब कोई भी कल्पना तक नहीं कर सकता था कि भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है. भविष्य शीघ्र ही समाज की जड़ता को ध्वस्त करने जा रहा था. एक नूतन विचार-धारा का प्रवर्तन होने जा रहा था. पुरातन का निषेध होने जा रहा था. उसका उद्भव और उत्कर्ष न केवल विद्वानों को निरुत्तर करने जा रहा था, अपितु सम्पूर्ण समाज के वैचारिक पटल को प्रभावित करने जा रहा था. उसके चिन्तन-विश्लेषण और रूपायन के आभा-मण्डल से सभी का मन दीप्त होने जा रहा था. समाज में व्याप्त सभी रूढ़ मान्यताओं और आस्थाओं पर मर्मस्पर्शी कशाघात होने जा रहा था. जीवन-संघर्ष में अनवरत जूझते जन-मन की वीणा के सारे तार उसकी मन्द-द्रुत-विलम्बित मधुर स्वर-लहरी के कोमल आरोह-अवरोह के सम्मोहन में झंकृत होने जा रहे थे.

बुद्ध तब मात्र सिद्धार्थ थे, महात्मा नहीं. सम्वेदनशील और जिज्ञासु सिद्धार्थ जब नगर-भ्रमण के लिये अपने आवास से निकले, तो संसार की समस्याओं को देख व्यथित हो उठे थे. जगत के दुःख के बारे में सोच-सोच कर उनके मन में उथल-पुथल मच गयी थी. विचारों का बवण्डर उमड़-घुमड़ कर उनकी मानसिक शान्ति को अस्त-व्यस्त कर रहा था. एक के बाद दूसरे प्रश्न के थपेड़े उनके मन पर तड़ा-तड़ पड़ रहे थे. 

उनके मन में अब मात्र जिज्ञासा ही नहीं थी. अब थी समस्या. समस्या – जिसका कोई समाधान नहीं था. समाधान की व्यग्रता सिद्धार्थ के अशान्त मन को रात-दिन मथ रही थी.

अब सिद्धार्थ के सामने स्वयं अपने जीवन के लिये स्पष्टतः दो ही पथ थे. या तो जो कुछ भी वह अपने भ्रमण के दौरान देख सके थे, सब भूल कर संसार की समस्याओं की पूरी तरह अनदेखी कर देते. परम्परागत पद्धति से जीने वाले जन-सामान्य का अनुसरण करते और सहज, सामान्य और सुविधापूर्ण गृहस्थ जीवन व्यतीत कर लेते. या फिर सत्य के साक्षात्कार के प्रयास का मन बना गृह त्याग निकल पड़ते.

इस द्वन्द्व से वह आसानी से उबर नहीं पा रहे थे. निर्णय की घड़ी में उनका मन नितान्त एकाकी था. अन्दर ही अन्दर वह आत्म-संघर्ष कर रहा था. सोचते-विचारते उनको सत्य-शोध के प्रयास का पथ गृहस्थ जीवन की अपेक्षा महत्वपूर्ण और श्रेयस्कर प्रतीत हुआ. जब वह पथ-चयन का निश्चय कर चुके, तो चित्त स्थिर हो गया. अन्ततः वह रात आयी, जब पत्नी और नवजात शिशु को सोता छोड़ बुद्ध बनने के लक्ष्य से सिद्धार्थ ने चुपके से प्रयाण किया.

अब उनके सामने कड़ी चुनौती थी – कहाँ जाऊँ, क्या करूँ, किस से मिलूँ, कैसे जानूँ! उन्होंने एक स्थान से दूसरे स्थान तक लगातार विचरण किया. जहाँ कहीं भी वह जाते, वहीं के लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों से जगत की पीड़ा के कारण और निवारण के बारे में तरह-तरह के प्रश्न करते. भिन्न-भिन्न विद्वानों से वार्ता करने पर भी उनको अपने प्रश्नों का सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिल सका. 

एक-एक कर उन्होंने सभी धाराओं के मूर्धन्य विद्वानों की सीमाओं को समझ लिया. समकालीन समाज में प्रचलित सभी धाराओं के प्रतिनिधि विद्वानों से सम्वाद की निष्फलता ने उनकी ज़िद को और भी प्रबल कर दिया. बार-बार विफल होने पर भी हताश होने के बजाय वह निरन्तर अपने प्रयास में लगे रहे.

परन्तु समाधान न तो मिलना था और न ही मिल सका. मिलता भी तो कैसे ! उसका तो अभी अन्वेषण ही नहीं हो सका था. इतिहास ने इस दायित्व के लिये उनको ही चुन रखा था. सब के विवेक को टटोल लेने के बाद उनके पास स्वयं अपने को साधने का एकमात्र विकल्प शेष था. जगत और जीवन की पीड़ा के कारण, निवारण तथा निवारण की पद्धति के रूप में अपने सम्मुख उपस्थित समस्या का समाधान पाने के लिये उनको स्वयं ही साधना करने का निश्चय उचित लगा. ..... (अधूरा है...) ___________________________________

Thursday 12 March 2020

61. A MESSAGE TO TRY FOR SPOKEN ENGLISH - GIRIJESH 12.3.20.


Here is a message to encourage the teachers to try their best in studying deeply and practicing again and again for better performance.

Please watch it carefully. It may be helpful for learning the movements of hands, while delivering your speech. A workshop is going on for the teachers of Rahul Sankrityayan Jan Inter College for improving their spoken english. Its link is : https://youtu.be/xgZVb0CGkhg

Thanks and love a lot - yours girijesh 12.3.20.

Wednesday 5 February 2020

जाइए कीजिए शिकार अपने सपने का : Go HUNT Your Dream - Motivational Speech




शिकार. है न ज़बरदस्त शब्द.
कई बार अपने शिकार का पीछा करने में पटकायेंगे आप.
लगेगा दुबारा उठने की ताक़त नहीं रही.
दुबारा खड़ा होने का दम ही नहीं रहा.
लगेगा एकमात्र विकल्प है छोड़ देना ही.

‘पलटवार’ का वक्त वही है जब आप पिट गये, पटका गये ज़िन्दगी के हाथों.
वही है सही वक्त ‘पलटवार’ का !

अनेक लोग पीटे जाते हैं ज़िन्दगी के हाथों. मगर वार नहीं करते कभी पलट कर वे.
क्या आप पसरे पड़े रहेंगे ? या उठ खड़े होने का फैसला करने जा रहे ?
इसके लिये ज़रूरत है हिम्मत की. इसके लिये ज़रूरत है आत्म-विश्वास की.
जब आप पर कोई भी यकीन न करे, तो पलटने के लिये ज़रूरत है ताकतवर मन की.

हम सब के अन्दर है एक शेर.
मगर कुछ लोग कभी नहीं कर पाते उस शेर को बाहर आने देने का फ़ैसला.
अनेक लोग रखते हैं कैद उस शेर को उसके पिंजरे में.
क्या आपमें सपने के लिये भूख है ?
क्या आपमें सपने के लिये जूझने की तड़प है ?
उस शेर को बाहर आने दीजिए. अपने सपने के लिये भूख महसूस कीजिए.
जाइए कीजिए शिकार अपने सपने का.

उस सपने के बारे में हाँकी गयी डींग दूर तक नहीं ले जा सकती आपको. ले जायेगा काम ही.

सन्देह करने वाले सलाह देंगे ‘व्यावहारिक’ बनने की.
नफ़रत करने वाले कहेंगे छोड़ देने को.
अकेले आप ही हैं, जो जा सकते हैं और हासिल कर सकते हैं उसे.

सपना आपका है.
कोई भी आपके लिये इसका पीछा नहीं करेगा.
कोई भी आपके लिये शिकार नहीं करेगा.
कोई भी आपके सपने का समर्थन तक भी नहीं करेगा. केवल आप करेंगे.

एक कहावत मशहूर है :
“खाना चाहता है हर इन्सान, मगर चाहते हैं शिकार करना कुछ ही लोग.
सफल होना चाहता है हर इन्सान, मगर ज़रूरी कामों में भिड़ जाने की ज़िद होती है कुछ लोगों में ही.”

बन्द कीजिए अपने को सीमाओं में बाँधना.
अपनी हक़ीकत बना सकते हैं अपने सपने को आप.
मगर इसके लिये केवल ज़रूरत है एक इन्सान की, जो यकीन कर सके कि ऐसा है मुमकिन.
ज़रूरत है केवल एक इन्सान को काम में भिड़ जाने की.
वह इन्सान हैं आप ही.

आपसे पहले भी हुए हैं अगणित इन्सान, जिन्होंने अन्जाम दिया है शानदार कारनामों को.
जो जी रहे हैं अपने सपने की ज़िन्दगी.
वे ऐसा कर ले गये. यही वह प्रमाण है कि कर सकते हैं आप भी.
यही प्रमाण है कि अगर वाकई चाह लें, तो जी सकते हैं अपने सपने को.

आप ही हैं सबसे ख़तरनाक दुश्मन भी अपने सपनों के
क्योंकि केवल आप फ़ैसला करते हैं कब हट जाना है पीछे और छोड़ देना है अपने सपनों को.
केवल आप फ़ैसला करते हैं कब कर देनी है हत्या इन सपनों की.

जितना आप जानते हैं, उससे कहीं अधिक ताक़तवर हैं आप.
अपने सपने से आप दुनिया बदल सकते हैं.
मगर इसके लिये ज़रूरत है आपको अपनी आरामगाह से केवल बाहर निकलने और अन्दर के शेर को खोल देने की.
इसके लिये ज़रूरत है आपको शेर को अपने पिंजरे से बाहर निकालने की.
इसके लिये ज़रूरत है पीछा करने की आपको अपने सपनों का, चाहे जैसी भी हों बाधाएँ.

अगर कमज़ोर है आपका मनोबल, अगर डरते हैं ख़तरों से खेलने से, तो ज़िन्दगी में बहुत दूर तक कभी भी नहीं जा सकेंगे.
कमज़ोर मनोबल से उस सपने को कभी भी नहीं पा सकेंगे.
तब भी जब दूसरे पीछे हट रहे हों, ऐसा मन बनाइए जो आगे बढ़ाता रहे आपको.
ज़िन्दगी है भविष्यवाणियों से परे, आश्चर्यों से भरपूर. जितना समझते हैं, उससे कहीं अधिक नज़दीक हो सकते हैं आप.
हक़ीकत में बदल सकता है आपका सपना अगर पीछे हटने से कर दें इन्कार तो.

शेर सरीखे बनिए. मत हटिए पीछे कभी भी मुक़ाबला करने से चुनौतियों का.
शेर कभी भी बन्द नहीं करता अपने शिकार का पीछा करना, जब तक दबोच नहीं लेता.
तब तक बन्द मत कीजिए अपने सपने का पीछा करना, जब तक जीने नहीं लगते उसे.

बड़ा सपना देखिए और मत समझाने दीजिए छोटी सोच वालों को कभी भी ख़ुद को कि पहुँच से परे है आपका लक्ष्य.
वह हो सकता है पहुँच से परे उनके लिये.
मगर बेहतर जानते हैं आप. यकीन कीजिए ख़ुद पर.
अगर सहयात्री हैं आप मेरे सपनों और लक्ष्य के, तो मैं देता हूँ सुझाव आपको : आगे बढ़िए.

- “FEARLESS MOTIVATION” खोजिए.
 https://www.youtube.com/watch?v=lk3BbhzsBgs

(अनुवाद : गिरिजेश 4.2.20.)

GO HUNT YOUR DREAM

HUNT. That is a powerful word.
You will get knocked down many times chasing your dreams.
You will feel like you don’t have the energy to get up back.
You don’t have the strength to get up back.
You will feel like GIVING UP is the only option.

When you are hit, when you are knocked down by the life that is when it is time to HIT BACK.
THAT IS WHEN IT IS TIME TO HIT BACK !

Many people get hit by the life, but they never hit back.
Are you going to stay down ? or are you going to DECIDE TO GET UP BACK ?
It takes COURAGE. It takes CONFIDENCE.
It takes STRONG MINDSET to get back when NOBODY believes in YOU.

There is a LION inside all of US.
But some people decide to never let that lion out.
Many people keep that lion locked in its cage.

Are you hungry for that dream ?
Are you willing to FIGHT for that dream ?

LET THE LION OUT.
GET HUNGRY FOR YOUR DREAM.
GO HUNT YOUR DREAM.

TALKING about that dream would not take you far.
WORKING WILL.

Doubters will tell you to be ‘REALISTIC’.
Haters will tell you to QUIT.

You are the only one who can GO AND GET IT.
IT IS YOUR DREAM.
NO ONE will chase it for you.
NO ONE will HUNT for YOU.
NO ONE will support YOUR dream BUT YOU.

There is a quote that goes :
“Everyone wants to EAT but few are willing to HUNT.
Everyone wants to SUCCEED but few are willing to PUT IN THE WORK REQUIRED.”

Stop limiting yourself.
You CAN make your DREAM your REALITY.
But it will only take ONE PERSON to BELIEVE that it is POSSIBLE.
IT WILL ONLY TAKE ONE PERSON TO PUT IN WORK.
THAT PERSON IS YOU.

There are plenty of humans before you who have accomplished big things.
Who are living their DREAM LIFE.
They have done it. That is the PROOF you can too.
It is PROOF that you can live your DREAM, if you really want it.


You are the most dangerous enemy of your dreams
because ONLY YOU decide when to QUIT and GIVE UP your dreams.
ONLY YOU decide when to kill these dreams.

You are more POWERFUL than even you know.
YOU CAN CHANGE THE WORLD WITH YOUR DREAM.

But it only requires you to come out of your COMFORT ZONE and UNLEASH the INNER LION.
It requires you to let the LION out of its CAGE.
It requires you to chase your dreams NO MATTER WHAT the OBSTACLES are.

If you have a weak mindset, if you are afraid of taking risks you will never get far in life.
You will never get that dream with a WEAK mindset.
Create a mindset that keeps you moving EVEN WHEN OTHERS QUIT.

Life is unpredictable. It is full of surprises. You might be CLOSER than you think.
Your DREAM can become a REALITY, if you REFUSE to QUIT.

BE LIKE A LION. NEVER BACK DOWN from the CHALLENGES you face.
A lion never stops chasing its prey until it catches it.
YOU NEVER STOP CHASING YOUR DREAM UNTIL YOU LIVE IT.

Dream BIG and NEVER let small minds convince YOU that your goal is out of reach.
It may be out of reach FOR THEM.
BUT YOU KNOW BETTER. BELIEVE IN YOURSELF.
If you are in the way of my GOALS and DREAMS
, I SUGGEST YOU TO MOVE.
          
            – Search “FEARLESS MOTIVATION”.                  https://www.youtube.com/watch?v=lk3BbhzsBgs