Tuesday 29 October 2013

कट्टरता की इबारत - खुर्शीद अनवर



जनसत्ता 22 अक्तूबर, 2013 : वहाबी इस्लाम सऊदी अरब सरकार की राजनीतिक विचारधारा है। पूरे स्कूली पाठ्यक्रम में इस विचारधारा का प्रचार शामिल है। सऊदी अरब में पब्लिक स्कूलों की संख्या लगभग पच्चीस हजार है,

जिनमें पचास लाख से ऊपर छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं। फारूक मस्जिद, टेक्सास (अमेरिका) से बरामद एक दसवीं कक्षा की किताब ‘साइंस ऑफ तौहीद’ में दर्ज है कि गैर-मुसलिमों या गैर-वहाबी मुसलिमों के साथ रहना इस्लाम के खिलाफ है। इसीलिए अल्लाह का हुक्म है कि सिर्फ मुसलमानों (वहाबी मुसलमानों) के दरमियान उठो-बैठो। यह तो महज झलक है। जरा सऊदी अरब के शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्वीकृत वहां पाठ्यक्रम में मौजूद कुछ उदाहरणों को देखें तो तस्वीर और साफ हो जाएगी।

‘‘मुसलमान जो अंतर्धार्मिक संवाद में पड़ते हैं उनको भी अधार्मिक मानना चाहिए। सूफी और शिया आस्था को भी इसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए। जो मुसलिम कोई और धर्म अपना ले उसे कत्ल कर दिया जाना चाहिए। एक मुसलमान के लिए जायज है कि उसका खून बहा दे और उसकी संपत्ति पर कब्जा कर ले।’’

‘‘जो सुन्नी मुसलिम वहाबी विचारधारा में विश्वास नहीं रखते उनकी भर्त्सना करनी चाहिए और उन्हें हेय दृष्टि से देखना चाहिए और उनको बहु-ईश्वरवादी नस्ल की पैदावार मानना चाहिए। मुसलमानों पर जोर डालो कि ईसाई, यहूदी, बहु-ईश्वरवादी, और गैर-वहाबी मुसलिमों समेत तमाम अनास्था वालों से नफरत करनी चाहिए। न तो किसी गैर-मुसलिम या वहाबी आस्था में विश्वास न रखने वाले मुसलिम से मेलजोल करो न ही आदर दिखाओ।’’

‘‘जिहाद के जरिए इस्लाम फैलाना ‘मजहबी फर्ज’ है। एक सच्चे मुसलमान का फर्ज है कि अल्लाह के नाम पर जिहाद के लिए तैयार रहे। तमाम नागरिकों और सरकार का भी यही फर्ज है। सैन्य प्रशिक्षण आस्था में निहित है और इसे लागू किया जाना चाहिए। जंग के लिए असलहे रखना जरूरी है। बेहतर तो यह हो कि विशिष्ट सैन्य वाहन, टैंक, रॉकेट, लड़ाकू विमान और वे अन्य सामान जो आधुनिक युद्ध में जरूरी होते हैं उनकी फैक्ट्रियां लगाई जाएं।’’

जरा नजर डालिए कि प्राथमिक शिक्षा में जिन बच्चों को पढ़ाया जाए कि ‘इस्लाम (वहाबी) के अलावा हर धर्म गलत रास्ते पर है। और फिर इम्तिहान में सवाल हो, रिक्त स्थान की पूर्ति करें ‘‘.... के अलावा हर धर्म गलत रास्ते पर है। जो मुसलमान नहीं है वह मरने के बाद ... में जाएगा।’’ जाहिर है कि पहले इन बच्चों को गैर-इस्लामी कौन है यह बताया जा चुका है। इसमें गैर-वहाबी सुन्नी, शिया समेत तमाम धर्म शामिल हैं।

एक मार्च, 2002 को ऐन-अल-यकीन नामक पत्रिका ने ऑनलाइन सऊदी अरब के राजशाही परिवार के वहाबियत को दुनिया भर में फैलाने के शैक्षणिक कार्यक्रम के बारे में रिपोर्ट दी। इसमें बताया गया कि किंग फहद अरबों सऊदी रियाल वहाबी इस्लामी संस्थानों और इस विचारधारा की शिक्षा पर खर्च कर रहे हैं। सऊदी अरब से बाहर पश्चिमी देशों में 210 इस्लामी केंद्र, 500 मस्जिदें, 202 कॉलेज और 2000 स्कूल एशिया, ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी अमेरिका में इन्हीं पाठ्यक्रमों के साथ खोले हैं, जिनमें वही शिक्षा दी जाएगी जो सऊदी अरब के पब्लिक स्कूलों में दी जाती है। मतलब जिहादी शिक्षा, नफरत की शिक्षा, आतंकी शिक्षा।

ऐन-अल-यकीन ने जो देश गिनाए उनमें दक्षिण एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका सहित अस्सी देशों का जिक्र है। सऊदी अरब में तो वहाबियत राजनीतिक विचारधारा ही है और राष्ट्र एक वहाबी राष्ट्र, लेकिन इसका नासूर दुनिया भर में फैले इसके लिए मदीना स्थित इस्लामी विश्वविद्यालय में पचासी सीटें विदेशी छात्रों के लिए आरक्षित हैं और इसमें लगभग एक सौ चालीस देशों के पांच हजार छात्र पंजीकृत हैं।

सऊदी अरब के शिक्षामंत्री फैसल बिन अब्दुल्लाह बिन मोहम्मद अल सऊद ने जहरीली शिक्षा का राज फाश होने के बाद 2005 में पाठ्यक्रम में सुधार लाने की बात की, लेकिन आज तक इस पर कोई अमल नहीं हुआ। इतना ही नहीं, इसी वर्ष यानी 2005 में एक अध्यापक को यहूदियों, शिया मुसलिमों, गैर-वहाबी सुन्नियों को भी इंसान बताने के जुर्म में सार्वजनिक रूप से साढ़े सात सौ कोड़े और कैद की सजा हुई। बाद में अंतरराष्ट्रीय दबाव में कैद की सजा माफ की गई।

कौन-सी शिक्षा है यह? क्या मकसद है इस शिक्षा का? क्या बन रहे हैं यहां से तथाकथित शिक्षा प्राप्त करने वाले?

ईरान के प्रोफेसर मुर्तजा मुत्तरी के शब्दों में, इन वहाबियों को न इस्लाम की समझ है न कुरान की। लिहाजा इनका पूरा शिक्षाशास्त्र खूनी खेल ही सिखा सकता है। ‘‘वहाबियों का अकीदा है कि अल्लाह के दो पहलू हैं। पहला उसका तसव्वुर, जिसमें दाखिल होने की इजाजत किसी को नहीं। अल्लाह से वाबस्ता इबादत और तवस्सुल (अल्लाह तक पहुंचने का जरिया जैसे सुन्नी खलीफा या शिया इमामत) दो बिल्कुल अलग चीजें हैं। तवस्सुल तक आकर वहाबियत बाकी इस्लाम से दूर हो जाती है।

यह कुरान के खिलाफ है कि आप खालिक (अल्लाह) और मखलूक (इंसान) में मखलूक की अजमत को न मानें। खुदा ने आदम के सामने फरिश्तों तक को सजदा करने को कहा और वहाबी उसे नकारते हैं। इस तरह से आप इंसान को अशरफ-उल-मख्लूकात (जीवों में सर्वश्रेष्ठ) से गिरा कर सिर्फ जानवर बना देते हैं। जो लोग इंसान की श्रेष्ठता को ही नकारते हैं उनसे उम्मीद करना कि इंसानी खून की कोई कीमत होगी, बेकार ही है।

नफरत फैलाने का दूसरा जरिया है अन्य इस्लामी मान्यताओं को खारिज करना। इसी शिक्षा के अनुसार मजारों और कब्रों पर जाना भी इस्लाम के खिलाफ है। पूरे सऊदी पाठ्यक्रम में शुरू से ही बच्चों को यह तालीम दी जाती है। इससे फौरन इस्लामी सिलसिले के तमाम गैर-वहाबी समुदाय इस्लाम से बाहर हो जाते हैं। इतना ही नहीं, वहाबी ऐसा कदम उठा कर खुद कुरान को झुठलाते हैं।

सूरह अल-कहफ में साफ आया है कि ‘‘अल्लाह का वादा सच है यह बताने के लिए इमारत बनाओ’’ (कुरान 18:21)। ऐसी मान्यता है कि कयामत के दिन उसमें से ही मुर्दे निकल कर आएंगे। लेकिन इंसानियत के दुश्मन वहाबी मजारों पर जाने वालों को कत्ल करते हैं और मजार तोड़ने की बाकायदा मुहिम चला रहे हैं। शिया अपने इमामों के लिए जियारत (दर्शन) करने इराक, सऊदी अरब, ईरान सहित अन्य देश भी जाते हैं। सऊदी अरब में अब इस पर रोक लगा दी गई है।

पिछले कुछ वर्षों से वहाबियों ने सिलसिलेवार ढंग से सूफी संतों, शिया समुदाय, अहमदिया मुसलिम और गैर-वहाबी सुन्नी आस्था वाले प्रतीकों पर हमले शुरू किए। इनके हमले केवल इन प्रतीकों पर नहीं हुए, मक्का स्थित काबे के पीछे के हिस्से को भी इन्होंने ध्वस्त कर दिया। वहां पर बड़े-बड़े होटल और शॉपिंग मॉल बनाने शुरू किए। इनमें पेरिस हिल्टन का शॉपिंग मॉल मुख्य आकर्षण का केंद्र है। काबा के अलावा मदीना में इन्होंने मोहम्मद के परिवार और साथियों की मजारें और कब्रें तोड़नी शुरू कीं। इनमें मोहम्मद की बेटी फातिमा, अबू बकर और उमर की मजारें और मस्जिदें प्रमुख हैं।

सूफी मजारों पर हमले तमाम हदों को पार कर गए। माली में 333 सूफी संतों की मजारों वाले मशहूर स्थल को वहाबियों ने ध्वस्त कर दिया। 1988 में यूनेस्को से विश्व-धरोहर के रूप में मान्यता-प्राप्त सिद्दी याहिया मस्जिद भी इन वहाबी हमलों की भेंट चढ़ी। लीबिया में पचास सूफी मजारों को इन वहाबियों ने एक साथ उड़ा दिया। सोमालिया में शायद ही सूफी संतों का कोई मजार बचा हो जो अल-शबाब के हमलों का शिकार न हुआ हो। पाकिस्तान में बाबा फरीद, बाबा बुल्लेशाह, हजरत दाता गंजबख्श सहित अनेक मजारों पर लगातार वहाबी तालिबानी हमले हुए।

सऊदी अरब समर्थित ये हमले अल-कायदा और उसके सहयोगी संगठन अंजाम देते आए हैं। वहाबियत पूरी तरह से फासीवादी विचारधारा में ढल चुकी है जो इस धरती से मोहब्बत का नाम मिटा देना चाहती है। जरा एक नजर देखें कि वहाबियत का इस्लाम जो कर रहा है उसके बरक्स सूफी मत कैसा पैगाम दे रहा है।

निजामुद्दीन औलिया के बारे में मशहूर है कि बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने उनसे इस्लाम का प्रचार करने के लिए कश्मीर जाने को कहा। निजामुद्दीन का जवाब था कि मैं मोहब्बत का पैगाम देता हूं, मेरे लिए मुमकिन नहीं कि इस्लाम का प्रचार करने कश्मीर जाऊं। इसके बाद अलाउद्दीन ने अमीर खुसरो के जरिए निजामुद्दीन को दरबार तलब किया। निजामुद्दीन ने पैगाम भेजा कि जो सूफी सत्ता के नजदीक जाता है वह ईमान खो बैठता है। अलाउद्दीन ने कहलाया कि मैं खुद आ रहा हूं। निजामुद्दीन ने कहा, मेरी खानकाह में आने पर किसी को रोक नहीं, मगर मेरी खानकाह के दो दरवाजे हैं। जिस वक्त एक दरवाजे से बादशाह के कदम मेरी खानकाह में पड़ेंगे, उसी वक्त दूसरे दरवाजे से मैं निकल जाऊंगा।

बाबा बुल्ले शाह। मोहब्बत का पैगाम देने वाले इस सूफी को कौन नहीं जानता। जरा देखिए क्या है मजहब इनकी नजर में। ‘‘होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह/ नाम नबी की रतन चढ़ी, बूंद पड़ी इल्लल्लाह/ रंग-रंगीली उही खिलावे, जो सखी होवे फना-फी-अल्लाह/ होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह/ अलस्तु बिरब्बिकुम पीतम बोले, सभ सखियां ने घूंघट खोले? कालू बला ही यूं कर बोले, ला-इलाहा-इल्लल्लाह/ होरी खेलूंगी कह कर बिस्मिल्लाह।’’

वारिस शाह की हीर आज भी मोहब्बत का पैगाम बनी हुई है। सितार की ईजाद करने वाले अमीर खुसरो फरमाते हैं: ‘‘काफिर-ए-इश्कम मुसलमानी मरा दरकार नीस्त/ हर रग-ए-मन तार गश्ता हाजत-ए-जुन्नार नीस्त’’ (इश्क का काफिर हूं मुसलमान होना मेरी जरूरत नहीं। मेरी हर रग तार बन चुकी है मुझे जनेऊ की भी जरूरत नहीं)।

वहाबी मत ने पिछले लगभग दो दशक में न सिर्फ मासूम इंसानों का खून बहाया है बल्कि मोहब्बत का भी खून किया है। इस महाद्वीप में निजामुद्दीन औलिया, मोइनुद्दीन चिश्ती, अमीर खुसरो, वारिस शाह, बुल्लेशाह, बाबा फरीद जैसे सूफी संतों ने धार्मिकता की कट्टर जंजीरें तोड़ते हुए सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत का पैगाम फैलाया था। वहाबी आंदोलन इन संतों की मजारों को रौंदता हुआ इनके मोहब्बत के पैगाम का भी गला घोंट रहा है। और इसके लिए सऊदी अरब बेपनाह धन खर्च कर रहा है।

जो देश अपने स्कूलों में नफरत की शिक्षा देगा, वहां से निकलने वाली विचारधारा और उस विचारधारा के वाहक ऐसे शिक्षा संस्थानों से निकलने वाले विद्यार्थी क्या गुल खिला सकते हैं इसका अंदाजा अफ्रीका, अरब देशों, दक्षिण एशिया और यहां तक कि पश्चिमी देशों में चल रहे खूनी खेल से लगाया जा सकता है। सऊदी अरब जैसे देश और दारुल उलूम जैसे शैक्षणिक संस्थानों का यह गठजोड़ आज सारी दुनिया को बारूद के ढेर पर बिठा चुका है। इससे पहले कि इस बारूद के ढेर को आग लगे, इन वहाबियों और इनकी विचारधारा को साकार रूप देने वाले अल-कायदा और उनके सहयोगी संगठनों का समूल नाश समय की मांग है।

Monday 28 October 2013

यह क्रूरता कहां से आती है - खुर्शीद अनवर



Khurshid Anwar - "तुम साज़िशें रचो. क़लम नहीं रुकेगी. तालिबानी कमीनगी का एक और रंग"
जनसत्ता 28 अक्तूबर, 2013 : "धार्मिक कट्टरता जब तमाम सीमाएं तोड़ने लगती है तो सबसे पहले महिलाओं को निशाने पर लेती है। कभी उनका पूरा दमन करके कभी उनको इस्तेमाल करके। जो बातें वेदों में, ‘मानस’ में कहीं नजर न आएं उनको मनगढ़ंत स्मृतियों में और रोज पैदा होने वाले उपदेशों में देख लें। ताज्जुब है कि इनमें समानता भी बहुत होती है। मसलन, हिंदू मान्यता में धर्मजनित अंधविश्वास कि मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के लिए क्या-क्या वर्जित है, इस्लाम में भी देखा जा सकता है। मगर इसे ज्यादा तूल देने के बजाय देखना यह है कि किस तरह धार्मिक कट्टरता पागलपन का रूप लेती है। वहाबियत ने ठीक वही काम किया। हमारे देश में जो हो रहा है उसकी झलक खुद-ब-खुद मिल जाएगी।

आठ अप्रैल 1994 को संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकारों से संबंधित रिपोर्ट पेश की, जिसमें अफगान तालिबान ने महिलाओं पर जो बंदिशें लगार्इं उनकी एक लंबी सूची है। यहां उनमें से कुछ बिंदु पेश किए जा रहे हैं। पुरुष डॉक्टर के पास जाने पर पूरी पाबंदी। सिर से पैर तक बुर्के में ढंके रहना। घर से बाहर काम करने पर पूरी पाबंदी। पुरुष दुकानदारों से सामान न खरीदना। अगर टखने खुले दिख जाएं तो कोड़ों से उनकी पिटाई। उन्हें कोड़े मारना अगर वे तालिबान द्वारा निर्धारित लिबास न पहनें, सार्वजनिक रूप से उनकी पिटाई और गालियां। पति के अलावा किसी अन्य पुरुष से संबंध पर संगसारी करके मार देना। जोर से हंसने पर पाबंदी। रेडियो, टेलीविजन या किसी सार्वजनिक स्थल पर महिलाओं की मौजूदगी पर पाबंदी। साइकिल, मोटर साइकिल और कार चलाने पर पाबंदी। ईद या अन्य त्योहारों पर या मनोरंजन के लिए महिलाओं के इकट्ठा होने पर पाबंदी। तमाम शीशों की खिड़कियों पर पेंट करवाया जाना, जिससे औरतें बाहर न देख सकें। यहां सारे बिंदु देना संभव नहीं, क्योंकि सूची बहुत लंबी है। यानी महिलाओं को सिर्फ और सिर्फ चलती-फिरती लाश में तब्दील कर देना।

यहां दो तथ्यों का उल्लेख आवश्यक है। पहला यह कि इनमें से अधिकतर शरिया कानून महिला उत्थान की अलंबरदार मानी जाने वाली रब्बानी-मसूद सरकार के जमाने में अफगानिस्तान में नाफिज किए गए, जिनके कुछ उदाहरण यहां पेश किए जाएंगे। दूसरी अहम बात यह है कि महिलाओं के लिए बने इन तालिबानी कानूनों का आधार सऊदी अरब के वहाबी आस्था के कानून और स्कूलों के पाठ्यक्रम हैं।

रब्बानी-मसूद सरकार के दौरान महिलाओं पर वहाबी-तालिबानी क्रूरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1978 से मसूद ने सोवियत संघ के खिलाफ जंग छेड़ी और सोवियत संघ के विघटन के बाद गुलबुद्दीन हिकमतयार से जंग के दौरान सऊदी अरब ने सय्याफ और इत्तेहाद-ए-इस्लामी को जब वहाबी विचारधारा को फैलाने के लिए समर्थन दिया तो मसूद ने उसका स्वागत किया और फिर सिलसिला चला वहाबियत की स्त्री विरोधी विचारधारा के अफगानिस्तान में प्रसार का, और संयुक्त राष्ट्र में पेश किए गए दस्तावेज में मसूद की भागीदारी की सनद। आठ अप्रैल 1994 को प्रस्तुत इस रिपोर्ट में मसूद सरकार की बड़ी भूमिका थी। औरतों पर जुल्म जो सामने न आया। 1979 से लेकर अगले पांच वर्ष तक उच्च स्तर तक महिला शिक्षा नब्बे फीसद हो चुकी थी। बंदिशों के आने के बाद 1992-93 तक महिला शिक्षा घट कर तीस फीसद हो गई, जबकि इसमें भी वे महिलाएं शामिल हैं जिन्हें शिक्षा 1979 के बाद के पांच वर्षों में मिली थी।

पतियों के जुल्म से केवल हेरात में इस दौरान नब्बे महिलाओं ने आत्महत्या की। (संयुक्त राष्ट्र दस्तावेज ) ऊपर से क्रूर मजाक। सीआइए ने मसूद की चे-गेवारा से तुलना की। लेकिन देखिए यही जिहादी तालिबान इन्हीं महिलाओं का इस्तेमाल अपने मकसद के लिए कैसे करते हैं! तालिबानी कारी जिया रहमान ने, जो कुनार और नूरिस्तान (अफगानिस्तान) और बाजौर और मोहम्मद (पाकिस्तान) में महिला आत्मघाती दस्ते का प्रशिक्षण शिविर चलाता है, अब तक कई महिलाओं को आत्मघाती हमले में इस्तेमाल किया है। यहां से फरार दो लड़कियों ने इसकी सूचना पाकिस्तान सरकार को दी, लेकिन हमेशा की तरह पाकिस्तान ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके फौरन बाद 21 जून 2010 को कुनार में महिला आत्मघाती हमला हुआ। कारी जिया रहमान ने खुशी का इजहार करते हुए हमले की तस्दीक की। इसके बाद 24 जून 2010 को बाजौर में अगला महिला आत्मघाती हमला हुआ जिसमें चालीस नागरिकों की जान गई। सिर्फ 2010 में पख्तूनख्वा के खैबर सूबे में बमबारी की उनचास घटनाएं हुर्इं, जिनमें बाजौर (पाकिस्तान) में विश्व खाद्य कार्यक्रम पर हुआ एक महिला आत्मघाती हमला शामिल नहीं है।

वर्ष 2011 से ‘बुर्का बमबारी’ का दौर शुरू हुआ। इसे तालिबान ने ‘मुजाहिदा सिस्टर्स’ का नाम दिया। इस नई तर्ज के हमले में बुर्के में अक्सर मर्द भी आकर बमबारी करते रहे लेकिन मुख्यत: आत्मघाती हमलों की जिम्मेदारी औरतों की ही रही। चार जून 2011 को कुनार (अफगानिस्तान) में फिर महिला आत्मघाती हमला हुआ, जिसकी जिम्मेदारी लेते हुए तालिबान ने कहा कि ‘मुजाहिदा सिस्टर्स’ ने यह काम अंजाम दिया। इसी साल अगला हमला डेरा इस्माइल खां में हुआ। महिला आत्मघाती हमलों का नातमाम सिलसिला रुका नहीं। ये वही इस्लाम के ठेकेदार हैं जिनके अनुसार महिलाओं के जोर से हंसने पर पाबंदी होनी चाहिए। रेडियो, टेलीविजन या किसी सार्वजनिक स्थल पर महिलाओं की मौजूदगी पर पाबंदी होनी चाहिए। साइकिल, मोटर साइकिल और कार के चलाने पर पाबंदी होनी चाहिए। तमाम शीशों की खिड़कियों पर पेंट करवाया जाना चाहिए जिससे औरतें बाहर न देख सकें।

आत्मघाती हमलों के समय ये नियम कहां चले जाते हैं? औरतों के प्रति इस दोहरे रवैए को तालिबान की मक्कारी और इनके सरपरस्त वहाबी पैरोकारों के दोमुंहेपन के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। एक तरफ सऊदी अरब की वहाबी सरकार और इनके आतंकी संगठन महिलाओं को गुलाम से बदतर जिंदगी देने वाले नियम बनाते हैं, दूसरी तरफ यही औरतें ‘मुजाहिदा’ कहलाने लगती हैं। महज इस्तेमाल की शय हैं इनकी नजर में औरतें और ये वहाबी और आतंकी खुद को इस्लाम का सही पैरोकार बताते हैं। क्या इनका कुरान अल-वहाब के आने के बाद अठारहवीं सदी में नाजिल हुआ? जो कुरान मोहम्मद साहब के वक्त नाजिल माना जाता है उसमें तो ऐसा कुछ नजर नहीं आता। यह है राजनीतिक इस्लाम, जिसका मजहब और कुरान-हदीस से कोई लेना-देना नहीं।

इनकी हैवानियत का दूसरा रुख देखिए। जरा कोई आलिम बताए कि कुरान या किस हदीस में लिखा है कि मासूम बच्चों के गले में बम लगा कर उसे इंसानी और खुद का कत्ल करने को तैयार करो? लेकिन इनका इस्लाम यही करता है। मासूम गरीब बच्चों को और उनके घरवालों को जन्नत के ख्वाब दिखा कर और कुछ पैसे देकर आत्मघाती हमले के लिए तैयार करना अल-कायदा और तालिबान का ऐसा घिनौना काम है जिससे सारी मानवता का सिर शर्म से झुक जाना चाहिए। 4 नवंबर 2008 को संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में न केवल इस बात की तस्दीक की बल्कि इसकी भर्त्सना भी की कि तालिबान और अल कायदा दस से तेरह साल के बच्चों को आत्मघाती दस्ते में शामिल करके उन्हें प्रशिक्षण दे रहे हैं।

ग्वांतानामो की संयुक्त खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार तालिबान का मानना है कि ये बच्चे चूंकि तर्क के आधार पर सोच नहीं सकते इसलिए शहीद बनने के लिए आसानी से तैयार हो सकते हैं। इसके लिए इनके दिमाग में जहर भरा जाता है और इन्हें पूरी तरह से असंवेदनशील बना दिया जाता है। खुद अफगानिस्तान की सरकार ने यह माना कि इन बच्चों को मुसलमानों, मुसलिम औरतों और बच्चों को यातना देने के वीडियो दिखाए जाते हैं जिससे कि इनका खून खौले और ये बदला लेने के लिए आतुर हों।

अफगानिस्तान की सरकार ने भी सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया कि ये बच्चे सात हजार डॉलर से चौदह हजार डॉलर की कीमत पर खरीदे जाते हैं और मां-बाप को कहा जाता है कि सिर्फ पैसा नहीं मिलेगा, आपका बेटा इस्लाम के नाम पर शहीद होकर सीधे जन्नत पहुंचेगा।

अल कायदा और तालिबान के लोग बेशर्मी की किस हद तक जा रहे हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुनार और नूरिस्तान इलाके में जब बच्चा पूरी तरह से आत्मघाती कार्रवाई के लिए तैयार हो जाता है तो उसे दूल्हे की तरह सजा कर घोड़े पर बैठा कर पूरे गांव में घुमाया जाता है और गांव के लोग, जिनमें कुछ तालिबान के डर की वजह से या फिर उनके समर्थक होने के कारण, बच्चे के मां-बाप को मुबारकबाद देने आते हैं। इन कम-उम्र बच्चों की संख्या पांच हजार से सात हजार के बीच खुद पाकिस्तान सरकार ने स्वीकार की है।

पाकिस्तान के गृह मंत्रालय (इंटीरियर मिनिस्ट्री) के अनुसार पिछले दो साल में 2488 आतंकवादी घटनाएं घटी हैं जिनमें लगभग चार हजार लोग मारे गए हैं। इनमें से अधिकतर आत्मघाती हमले कमसिन बच्चों द्वारा किए गए हैं। तालिबान ने फिदायीन-ए-इस्लाम नाम से पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर वजीरिस्तान में ऐसे तीन प्रशिक्षण शिविर तैयार किए हुए हैं जिनमें हजारों की तादाद में कम-उम्र बच्चे प्रशिक्षण पा रहे हैं। आतंकवाद के आज तक के इतिहास में इतने बर्बरता भरे सोच की मिसाल मिलना नामुमकिन है। इस पूरे इलाके में फैली अशिक्षा और अकल्पनीय गरीबी का फायदा उठा कर ये सारे काम अंजाम दिए जाते हैं।

वहाबियत का यह चेहरा किस कोण से इस्लामी चेहरा हो सकता है? गरीब का पेट भरना, गरीबी दूर करना, अशिक्षा दूर करना इन्हें इनका इस्लाम नहीं सिखाता। इनका इस्लाम सिखाता है ऐसी स्थिति का फायदा उठा कर मासूम इंसानों का खून बहाना। यह नया इस्लाम है। वहाबी इस्लाम। इसकी जड़ में मजहब नहीं राजनीति है। और जब मजहब और राजनीति का मेल होता है तो इंसानियत मौत के दरवाजे पर नजर आती है। वहाबियत और इनके आतंकी संगठन मजहब के नाम पर राजनीतिक इस्लाम स्थापित कर रहे हैं जिस पर लगाम नहीं लगी तो एक नए फासीवाद का जन्म निश्चित है।"

शब्द-चित्र : हरिशरण पन्त - गिरिजेश


"विकास करना है, तो विवाद से बचिए !" 

— हरि शरण पन्त
प्रिय मित्र, आइए आज आपकी आज़मगढ़ की एक शानदार शख्सियत से मुलाकात कराऊँ.
यह है पन्त - मेरा पन्त - हरिशरण पन्त - यानि कि वह शख्सियत,
जिससे मेरी मुलाकात 1987 में अचानक हुई,
सिधारी चौराहे पर एक कवि-सम्मेलन के दौरान उसकी कविता सुनी,
उसी रात के अँधेरे में वहीँ एक जीप की पिछली सीट पर चाय पीते-पीते परिचय हुआ,
जो मूलतः कवि है,
जो पेशे से पत्रकार है,
जिसने फर्श से अर्श तक ज़िन्दगी का हर दौर पूरी शिद्दत के साथ जिया है,
जिसकी कलम की धार ने समय-समय पर अनेक दुर्दान्त शिकार किये हैं,
जो अपने आप में एक टीम है,
जिसकी दिलेरी और बहादुरी का मैं ख़ुद चश्मदीद गवाह हूँ,
जो गरीबों के हक़ में अधिकारियों से निःस्वार्थ भाव से बार-बार जूझता रहा है,
जिसके दोस्त भी अगणित हैं और जिससे जलने वाले भी असंख्य हैं,
जो वहाँ तो होता ही है, जहाँ ख़ुद होता है,
मगर वहाँ और भी कूबत के साथ होता है, जहाँ ख़ुद नहीं होता,
क्योंकि वहाँ उसके अपने लोग होते हैं,
लोग जो उसे प्यार करते हैं,
लोग जिनके लिये उसने अपनी ज़िन्दगी का कोई न कोई हिस्सा जिया है,
जो काल-पुरुष पुरस्कार योजना का महत्वपूर्ण साथी रहा,
जिस अकेले की वजह से मैं वापस लौट कर 91 में आज़मगढ़ आया,
जिसके साथ टोली बना कर आज़मगढ़ की सड़कों पर घूम-घूम कर मैंने क्रान्तिकारी जनगीत गाये,
जो स्टूडेन्ट ऐक्शन फ़ोर्स की टीम में साथ-साथ खड़ा रहा था,
जिसके कलाभवन के कमरे में मुझे शरण मिली,
जिसके घर से मुझे वर्षों तक भोजन मिला,
जिसके साथ मैंने ज़िन्दगी के अनेक वर्ष गुज़ारे,
जिसने मेरा सम्मान खुद भी किया और लोगों से भी करवाया,
जिसके साथ मैंने अपनी पराजित ज़िन्दगी की एक और अगली पारी शुरू की,
जो राहुल सांकृत्यायन जन इन्टर कालेज की कल्पना और स्थापना में साथ रहा,
जिसके दम पर मैंने सबसे कद्दावर लोगों को भी खुल कर के ललकारा,
जिसकी ज़बान पर मैं आँख मूँद कर यकीन करता रहा हूँ,
जिसने मेरी मुसीबत की सबसे बुरी घड़ियों में अपना सब कुछ दाँव पर लगाया है,
जिसके बारे में लोग मुझसे ही सबसे अधिक शिकायतें करते रहे हैं,
जिसे मैं घोषित तौर पर आज़मगढ़ में सबसे अधिक प्यार करता हूँ,
यह है - मेरा अपना - मेरा प्यारा पन्त !

Saturday 26 October 2013

ज़हरीला तपन की ज़हरीली कहानी : मेरे हिस्से का सच – गिरिजेश


प्रिय मित्र, एक दिन मुझे ज़हरीला तपन https://www.facebook.com/Tapan2708 नाम के एक सज्जन का यह सन्देश मिला.
“October 15, 10/15, 6:24pm, Zahreelaa Tapan - Sir Aapse Milna Hai. Kuch Salaah Leni Hai Aapse.
10/15, 7:55pm, Girijesh Tiwari - jab chahiye aa sakte hain. behtar hoga ki agar kal subah 8 a.m. ke baad pahle fon se baat kar len. mera no. hai 9450735496.
10/15, 8:26pm, Zahreelaa Tapan - Ji Mai Kal Hi Aapse Milne Ki Soch Raha Hu. Mera Number 09335481802 Hai. Kal Subah Aapko Call Karta Hu.
10/15, 8:27pm, Girijesh Tiwari - ok
10/15, 8:27pm, Zahreelaa Tapan - ok and thnx.
10/15, 8:28pm, Girijesh Tiwari - good night
10/15, 8:28pm, Zahreelaa Tapan - Good night sir”

इसके बाद अगले दिन ज़हरीला तपन जी आये और आने के साथ ही बोले – “पहले यह विडियो देख लीजिए और तब बात करते हैं. मैंने उनके सम्मान में विडियो अपने कम्प्यूटर में स्कैन करके लगा दिया. थोड़ी देर देखने के बाद बोले – “आप …. को तो जानते ही हैं. यह विडियो उनके ही बारे में है.”
मैंने पूछा - “यह किसका बयान लिया जा रहा है और कहाँ पर लिया जा रहा है ?”
उन्होंने बताया – “यह …. का बयान है और मधुकिश्वर के कार्यालय में लिया जा रहा है. मधुकिश्वर मोदी की विशेष प्रचारिका हैं और बड़ा एन.जी.ओ. चलाती हैं.”
मैंने तुरन्त विडियो बन्द कर दिया और उनसे कहा – “…. के ख़िलाफ़ मोदीवादी महिला के कार्यालय में बयान का विडियो आप मुझे क्यों दिखा रहे हैं ? वह वहाबियों के ख़िलाफ़ पूरी शिद्दत से लिख रहे हैं. अभी-अभी हिन्दूवादियों ने दाभोलकर की हत्या किया है. 2014 के चुनाव के चक्कर में जगह-जगह दंगे फूट रहे हैं. इस बयान में जो लड़की बोल रही है, उसका इस मामले में खुद क्या कहना है ? क्या वह इस मामले को कोर्ट में ले जाना चाहती है ? अगर हाँ, तो वह मधुकिश्वर के कार्यालय में क्यों बयान देने गयी ? उसे तो पुलिस-स्टेशन में जाना चाहिए था.”
तपन महोदय का कथन था – “टीम बूँद की …. और …. ने मिल कर सारे सबूत मिटा दिये हैं और यह लड़की भी अभी किसी तरह की कानूनी कार्यवाही करने के लिये तैयार नहीं है. उसका कहना है कि अगर बात मेरे गाँव तक पहुँची, तो मेरे परिवार और मेरे लिये गाँव वालों के हाथों हर तरह का - जान जाने तक का - ख़तरा है. मगर वह एक सप्ताह में कानूनी कार्यवाही के लिये तैयार हो जायेगी.”
इस पर मैंने उनको समझाया – “देखिए, यह एक लड़की की प्रतिष्ठा का प्रश्न है. अगर वह ख़ुद सामने आ कर कानूनी कार्यवाही के लिये तैयार नहीं है, तो आपका और आपके मित्रों का किसी लड़की की अस्मिता के बारे में लोगों के बीच इस तरह से अभियान बना कर विडियो दिखाने का क्या औचित्य है ? आप बता रहे हैं कि मेरे सहित अपने इस विडियो दिखाओ अभियान में अब तक आप चार लोगों तक यह विडियो पहुँचा चुके हैं. यह कुत्सा-प्रचार है. इसका लाभ केवल साम्प्रदायिक ताकतों को मिलेगा. इस काम को कम से कम तब तक रोक दीजिए, जब तक आप उस लड़की को सहमत नहीं कर लेते. मेरा निवेदन अपने मित्रों तक भी पहुँचा दीजियेगा. मैं उनके नाम जानने में कोई दिलचस्पी नहीं रखता. मगर वे जो भी लोग हों, रचनात्मक काम करें, तो समाज की बेहतर सेवा करेंगे. मेरा विशवास रचनात्मक कार्यों में है. कीचड़ में पैर थपथपाने से दूसरों का चाहे जो नुकसान होना है, वह तो होगा ही. मगर आप भी इसमें से साफ़-सुथरे रह कर निकल नहीं सकेंगे.”
इस पर उन्होंने कहा – “मैं आपकी बात पर विचार करूँगा और अपने मित्रों से भी बात करूँगा.”
मैंने अनुरोध किया – “जो भी निश्चय हो, मुझे सूचित कीजियेगा.”
मगर आज तक उनका कोई सकारात्मक सन्देश या समाचार नहीं मिला. इसके बजाय जब मैंने आज उनकी इस सिलसिले में दूसरी पोस्ट देखी, तो मुझे बहुत क्षोभ हुआ. मैंने उनको तुरन्त फोन किया, मगर पूरी घन्टी जाने के बाद भी उनका उत्तर नहीं आया. वह अभी तक मुझे कॉल बैक भी नहीं कर सके. 
मैंने उस लड़की को भी तुरन्त ही यह मेसेज किया –
“good morning …., you don't know me. but i am sorry to inform you that your case is brought to me by mr. tapan of varanasi. he is continuously writing and talking to persons like me. he is showing your video statement by visiting. even i requested him to stop such talk till you are not interested and he himself told me that you are not interested in spreading these things in this way. i don't know the facts. i don't know you even. but i am feeling insulted and guilty of being taken in a trap related to an unknown girl. i beg your pardon. but tell me. do you want tapan to circulate that video and talk to unconcerned persons and write about your personal matter? hope you will reply me. i am neither your friend, nor enemy. i myself am an chronic bachalor and oldman devoted fully for the revolutionary awareness of the youth of our society. once again i am sorry to disturb you.”
उसका भी अभी तक कोई जवाब नहीं मिला.
ज़हरीले तपन की मेरे आवास तक की ज़हरीली यात्रा के बाद मुझे अन्य मित्रों से जानकारी मिली कि इस सिलसिले में दिल्ली में हुई मित्रों की बैठक में आगे इसकी चर्चा रोक देने का सामूहिक निर्णय हुआ था.
मगर ज़हरीला तपन का यह कुत्सा-अभियान अभी भी जारी है और आगे भी इसके जारी रहने के लक्षण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं. 
अब स्वाभाविक तौर पर मेरे सामने ये प्रश्न हैं कि....
- जहरीला तपन के इस कुत्सा-प्रचार का असली मकसद क्या है ?
- जहरीला तपन अपनी श्रृंखलाबद्ध कहानी में लुका-छिपी का खेल संध्या-भाषा में क्यों खेल रहे हैं ?
- अगर उनके अन्दर वाकई सच को सामने लाने का इतना ही साहस है, तो साफ़-साफ़ सब लोगों के नाम क्यों नहीं लेते ?
- उस लड़की ने क्यों कैमरे के सामने अपना बयान बी.जे.पी. की शुभचिन्तिका मधुकिश्वर के कार्यालय में ही दिया ?
- अपना मामला लेकर वह लड़की पुलिस के पास क्यों नहीं गयी ?
- इस बयान को लोगों के बीच ले जाने के लिये उसने जहरीला तपन को सहमति क्यों नहीं दिया ?
- जहरीला तपन क्यों उस लड़की की सहमति के बिना उसके बयान का विडियो ले कर घूम रहे हैं ?
- अगर ज़हरीला तपन को इस विडियो को सबको दिखाना ही है, तो वह इसे अपलोड क्यों नहीं कर देते ?
- वह इसे घूम-घूम कर चोरी-चोरी चुने हुए लोगों को ही क्यों दिखाते फिर रहे हैं ?
- मुझे तो इस प्रकरण की कोई जानकारी भी नहीं थी.
- मैं तो इस पूरे प्रकरण से पूरी तरह से अपरिचित और असम्बद्ध था.
- ज़हरीला तपन ने फिर मेरे जैसे एक अदना से साधारण इन्सान को भी क्यों इस प्रकरण में लपेटा ?
- जहरीला तपन वह विडियो लेकर मेरे पास ही क्यों आये ?
- ज़हरीला तपन के कुत्सा-प्रचार की इस ज़हरीली कहानी में परदे के पीछे का असली खलनायक कौन है ?
- ज़हरीला तपन …. जैसे मेरे कई मित्रों को क्यों तनावग्रस्त करने पर आमादा हैं ?
- उनके इस कुत्सा-प्रचार से किसको और कौन-सा लाभ मिलने जा रहा है ?
- ये सारे प्रश्न मेरे दिमाग में लगातार चक्कर काट रहे हैं.
- और किसी भी कीमत पर ज़हरीला तपन को मेरे इन प्रश्नों के उत्तर देने ही होंगे.
- उन्होंने मेरे घर आकर मुझे इस मामले में अपनी भागीदारी करने की दावत दिया है.
- तो कुछ तो षड्यंत्र उनके भी शातिर दिमाग में रहा ही होगा.
- और अब उनके चुप लगाने से कम से कम मैं तो उनका पीछा नहीं ही छोड़ने वाला हूँ.
- वह अपने कुत्सा-प्रचार की श्रृंखलाबद्ध कहानी को चाहे जितना भी महत्वपूर्ण समझ रहे होंगे.
- मगर मेरे लिये तो अब उनका वीभत्स सच सबके सामने लाना उससे भी अधिक ज़रूरी है.
- आपका इस प्रकरण में क्या मत है ?
- असह्य क्षोभ के साथ - आपका अपना गिरिजेश

(तपन ने अपनी वाल से इस पोस्ट को डिलीट कर दिया और मुझे अनफ्रेण्ड कर दिया. कायर केवल गाल बजा सकते हैं और पीठ दिखा सकते हैं.)
 (सन्दर्भ : जहरीली बूंदें (http://zahreeleeboondein.blogspot.in/2013/10/blog-post.html)

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इस सन्दर्भ में ये दो पोस्ट भी देखिए.
प्रिय मित्र, यह पेज हमारे शहीद कॉमरेड खुर्शीद अनवर की याद को ज़िन्दा रखने और उनके सम्मान की पुनर्स्थापना के लिये बनाया गया है. इसका लिंक अभी मुझे कॉमरेड Shamshad Elahee Shams से मिला. मेरा अनुरोध है कि कृपया इस पेज को लाइक और शेयर करें. अधिक से अधिक साथियों को इससे जोड़ने का प्रयास करें. इस लड़ाई को और धार देने में मदद करें. इस पेज पर खुर्शीद भाई से सम्बन्धित सारी जानकारी शेयर करें. इस लड़ाई से जुड़ी अपनी और उनकी उपलब्ध सभी रचनाओं को भी यहाँ शेयर करें.
https://www.facebook.com/pages/Justice-For-Khurshid-Anwar-STOP-the-Media-Trials/221960527983285?fref=ts
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प्रिय मित्र, हम सब के शहीद कॉमरेड खुर्शीद अनवर के नाम से बना यह पेज उनके विषय में बहुत सारी जानकारियाँ समेटे है. सब कुछ शेयर करना किसी के भी लिये नामुमकिन है. मेरा विनम्र अनुरोध है कि अगर आप कॉमरेड खुर्शीद अनवर को मौत के दरवाज़े तक पहुँचाने के लिये ज़िम्मेदार ताकतों के खिलाफ़ हमारी जंग में अपनी भूमिका अदा करना चाहते हैं, तो कृपया इस पेज को लाइक कीजिए और इस पर उपलब्ध पोस्ट्स में से जिसे भी चाहिए अपने मित्रों के बीच शेयर भी कीजिए.
https://www.facebook.com/pages/Khurshid-Anwar/225372560977478?ref=stream

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मुझे तो कोई खबर नहीं थी . भला हो मित्र और बड़े भाई गिरिजेश तिवारी का. 
बाकी नाम बाद में. शुरू यहाँ से. 
न तुम हमें जानो , न हम तुम्हें जानें. पता चला इत्तेफ़ाक से कि कोई ज़हरीला साहब हैं. ज़हरीला तपन. नाम का मतलब समझ तब आया जब कुछ मित्रों ने बताया कि यह व्यक्ति कोई वीडियो लेकर घूम रहा है जो मधु किश्वर के घर तैयार हुआ. मैंने देखा नहीं वीडियो पर पर इतना पता चला कि मधु किश्वर और यह साहब एक ही विचारधारा वाले हैं. किसी तरह उस लड़की का नाम तलाश किया गया फेस बुक पर और उस से पूछा पूछा गया. उसने कहा इस से मेरा लेना देना नहीं. इसका स्क्रीन भी मित्रों नर रख लिया . लेकिन अब वह लड़की गायब. इसके बाद सुना कि कई लोग और इसमें शामिल हैं. अब उनकी सूची तैयार करना और जवाब तलब ज़रूरी है . अब अगर ऐसा गन्दा खेल है तो मुझे लगता है सबको खुल कर बोला चाहिए नाम समेत. और जितनी जानकारी है उसके आधार पर अदालत अच्छा रास्ता है और उन सबका नाम लेकर जो इसमें शामिल हैं. सच्चाई की चुनौती है सामना करो. लाओ उस लड़की को सामने. कहानी अंजाम तक पहुचाओ . सुबूत के साथ. और ज़हरीला ही नहीं जो लोग ज़हर उगल रहे हैं फरेब का. यह है सिर्फ भाग एक.
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An Appeal to the media regarding the ongoing vilification of Khursheed Anwar and his organisation:Institute For Social Democracy
DECEMBER 23, 2013
A statement by The institute for Social Democracy
पिछले सोलह दिसंबर से मीडिया के छोटे और ग़ैर ज़िम्मेदार हिस्से द्वारा प्रचारित प्रसारित की गयी एक रिपोर्ट ने खुर्शीद अनवर (पूर्व निदेशक, ISD ) को आत्म हत्या करने पर मजबूर कर दिया।
हम ISD कि ओर से मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे इन भ्रामक और ग़लत तथ्यों का विरोध करते हैं. हम ज़ोर दे कर कहना चाहते हैं कि
यह कहना कि ‘सम्बन्ध आपसी सहमति से बनाये गए थे’ बिना किन्ही तथ्यों के आधार पर प्रचारित किया जा रहा है. हमारा यह मानना है कि खुर्शीद अनवर द्वारा लिखे गए जिस कथित नोट का ज़िक्र किया जा रहा है वह है ही नहीं।
१२ सितम्बर को खुर्शीद अनवर ने कोई पार्टी नहीं दी थी, उनके घर पर आने का प्रस्ताव स्वयं इला जोशी व मयंक सक्सेना के द्वारा दिया था जिसे खुर्शीद ने स्वीकार किया था. इन दो लोगों के अलावा बाकी लोगों के आने के बारे मे उन्हें कोई पूर्व सूचना नहीं थी.
हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि बूँद टीम का ISD से औपचारिक या अनौपचारिक किसी भी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं रहा है. ISD ने बूँद को कभी किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं दी.
हम आप से अनुरोध करते हैं कि कृपया इस मामले मे ग़लत व भ्रामक तथ्यों के प्रचार द्वारा दोबारा उनका चरित्र हनन न होने दें।
ISD के सभी साथी

An appeal to responsible and sensitive section of media
Friends,
From 16 December a small and irresponsible section of media has been reporting a story which forced Khurshid Anwar (Executive Director of ISD) to commit suicide.
We, the members of ISD condemn these false and misguiding rumors. We wish to strongly put forward that
to say that ‘it was consensual sex’ is absolutely false and baseless. We believe that there is no such note written by Khurshid Anwar, as claimed by various media persons.
Khurshid Anwar did not throw a party on 12th September. It was proposed by Ila Joshi and Mayank Saxena, which he accepted. Other people were accompanying Ila and Mayank, and it was not known to Khurshid.
ISD has no relations with Boond Team, whatsoever. ISD has never supported or donated Boond team financially or otherwise.
We request you to kindly refrain from character assassination of Khurshid Anwar even after his death by spreading rumors.
ISD Team
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"OFFENSE IS THE BEST DEFENSE" - MAO
NOW FASCISM IS ON DEFENSE & PRO-PEOPLE FORCES ARE OFFENSIVE.
Madhu Kishwar is circulating this article nowadays.
dear friend, i am thankful to a responsible comrade for this information. it is said - repeat a lie again and again. but it is only a lie. it can never be THE TRUTH. i request you to share it as much as possible so that our friends and comrade participating and leading the struggle of our martyr comrade khursheed anvar may know that the enemies of humanity is trying to save their brutal face behind curtain of lies.

Madhu Kishwar - "Dear Friends, I am reposting the article which was published with much appreciation in Jansatta. today, Om Thanvi is using this article against me making it out as if we paid bribe to wriggle out of wrong doing. The truth is that we immediately lodged a complaint against police attempt to wrongly implicate us. I put this in the public domain because police was hand in glove with a professional blackmailer who chose his targets randomly. Please judge for yourself.
Police Can’t Be “Women Friendly” Without Being "Citizen Friendly"
Personal Experience of Misuse of Anti Rape Law

Our colonial minded police has emerged as the biggest threat to the security of life and liberty of citizens of India- because of their deep nexus with not just political mafias but also petty criminals and lumpen elements. Therefore, merely subjecting them to special training courses on “gender sensitivity” cannot transform them into lawful instruments for protecting citizens from harm.

I illustrate this from one of many personal experiences because I am convinced such abuse is taking place on a large scale. But it remains hidden because of the silence of victims.

On 13th July 2012, my brother AK was shocked out of his wits when in the middle of the night at about 1.30 a.m. Sub Inspector Jasveer and constable Jogendra Singh of R.K. Puram South Campus police station told him that they had come to arrest him on the complaint of one Rahul David alleging that my brother had sexually assaulted him earlier that evening, thereby making him liable to arrest under Section 377 of the penal code which treats “unnatural sex” as an offence punishable with up to 10 years in jail plus fine.

David alleged that AK had met him in Munirka Market outside Bikanerwala, made him get into an auto and took him to a park in Shanti Niketan where AK sexually assaulted him. David showed some superficial self-inflicted bruises and cuts to support his allegations. My brother told the SI that several neighbours could testify that he had spent time with them that evening. Moreover, the CCTV cameras installed at the entrance of the housing complex records every entry and exit to the gated colony. The SI would have none of it and insisted that AK had to accompany them to the South Campus Police station right away or else they would drag him forcibly.

When AK went to change his clothes, the SI whispered to his wife RB that he could get the case settled right then and there if they paid David the demanded sum of money. My sister-in-law was outraged at this brazen blackmail since it amounted to accepting guilt. At this point my brother phoned me and narrated the bizarre happenings. I asked him to let me speak to the SI and asked him why could he not wait till morning so that they could investigate the authenticity of the charge? The SI replied rudely, “We come when we receive a complaint. You better not interfere in the performance of our duty unless you want to invite trouble!”

We realized we had no choice but to do their bidding. Fortunately, I was able to get a lawyer friend to come to the R.K. Puram South Campus Police Station at that unearthly hour.

Here is a glimpse into the background of Rahul David: My sister in-law’s father was bedridden due to a paralytic stroke he suffered in January 1991. Since then, her parents who live in the same housing complex have always kept a male attendant to take care of the father. Rahul David came through a nursing agency and worked at their home for about 4 months in late 2007.During that period, a number of valuables, including cash, jewelry and electronic items went missing. David had a very lavish lifestyle. Things he flaunted indicated that apart from stealing in this particular house, he was into other thefts and illegal acts.

Therefore, David’s contract was terminated without reporting the thefts he had committed over 4 months to the police because of lack of hard evidence and also because they feared he might harm them out of vindictiveness.

Even though there were gaping holes in his story, the SI seemed determined to push us towards a “settlement” and “compromise. “When I asked the policemen why they were reluctant to examine the veracity of David’s version, Jogendra Singh told me, “Madam, all of these ‘human rights walas’ have tied the hands of the police and rendered it powerless. We have no choice but to go by his version—right or wrong—and register a case against whomever he complains. Otherwise we will be hauled up for dereliction of duty”.

My brother stood adamant for a long while insisting that they go ahead with the MLC of David and that he was willing to fight the case. But our lawyer friend told us that the whole drama was well scripted and there seemed solid complicity between David and the two policemen. If we did not yield the demanded bribe a criminal case would be registered against him under a non-bailable offence. This would not only mean immediate suspension from his government job but also a long drawn legal battle to prove his innocence. Since all this was happening in the dead of night and we knew that the police were capable of fudging the MLC as well to trap my brother if he did not yield to their blackmail, I persuaded my family to let me pay up lest my brother end up being sent to jail for no other crime except resisting blackmail by a small time thug.

They first asked us to pay Rs 15,000 but later scaled down the demand to Rs 10,000. (We found out later that from most others victims David managed to extort much larger sums. Policemen made a relatively lighter demand on us because we were resisting blackmail and were insisting that the case be investigated.)

After receiving the money, the SI made David sign a statement that he had made a mistake about AK’s identity and that he had no complaint against him or his family. Our family was deeply traumatized by this incident because this was the first time any of us paid a bribe.
I succumbed to the pressure because I am already saddled with the burden of facing a whole array of false counter cases on account of my policy reform work for street vendors which brought Manushi, the human rights organization I work for, into conflict with political mafias who prey on the illegal status of street hawkers. Every time I or other Manushi volunteers were subjected to murderous attacks from politically patronized gangsters, the goons succeeded in filing fake counter cases against me and other Manushi members involving serious criminal charges (including attempt to murder, Section 420, impersonation, extortion and fraud) with a view to forcing us to abandon our work. (For details readhttp://www.manushi.in/articles.php?articleId=1586&ptype=campaigns).

One of our most active and valuable member has also been implicated in a bogus “attempt to rape” case through the use of call girls. These cases, filed in 2007, have gone on and on without an end in sight. They have caused us endless grief, humiliation, harassment and a waste of time in addition to financial burden.

For my brother the consequences would have been much worse since he is in a government job. Even one day in jail would mean automatic suspension from his job and endless ignominy.

The eagerness of the police in brokering a “settlement” convinced me that this kind of misuse of the sodomy and sexual assault law we experienced is not likely to be a solitary incident. Therefore, I personally met the DCP of South Delhi to apprise her of the facts. Since she assured me of action, I sent her a written complaint by e-mail.

Within two days I got a midnight call from the DCP saying their investigations had confirmed that even in recent weeks David had lodged similar complaints against dozens of men in several thanas of Delhi and managed to extract huge pay offs. One of the victims happened to be a well known TV anchor known to me. I called the person and he confirmed that David had extorted hefty amounts of money from him on several occasions using a similar strategy. After the second incident, he had filed a police complaint but nothing came of it and David targeted him yet again.

I persuaded him to lodge yet another complaint. Thanks to the DCP’s personal intervention, we succeeded in getting an F.I.R registered on 23rd July 2012. However, even though in my complaint I had specially mentioned the devious role of the two policemen, the F.I.R made no mention of them.

When my sister-in-law went to the police station to collect a copy of the F.I.R, she was shown transcripts of a number of calls made by David to the police control room from different localities such as Hari Nagar, C.R Park, GK II, Safdarjung Enclave and several others to register similar cases against numerous men. However, in the case registered against David, only two cases of blackmail were mentioned even though the DCP herself told me that David had blackmailed dozens of others in the preceding few months.

I insisted that the DCP should investigate the role of the policemen who accompanied David in blackmailing our family on 12th July as well as other families on earlier occasions because a petty thug like David could not have dared walk into respectable homes and extort money without active help and complicity of the police.

However, the “internal inquiry” by the S.H.O held that the two cops had “acted in good faith”; that the charge of blackmail does not appear valid since “Madhu Kishwar as a well-known activist cannot possibly be intimidated or blackmailed.” Needless to say, Rahul David managed to be out on bail within no time. We were not even informed when the case came up for hearing, or the name of the public prosecutor appointed to appear on our behalf. I am certain David and his police accomplices are back in business as before.

I am also convinced that he is not the only crook to have discovered this method of blackmail. It is likely to be happening on a large scale indicating that even men can be entrapped in a culture of silence to protect themselves from social disgrace.

I narrate this story mainly to highlight the point that you cannot make our police “gender sensitive” by subjecting them to special training sessions or sermons unless they are made “citizen sensitive”. This too doesn't happen by subjecting them to occasional sermons. It happens only by institutionalizing principles of accountability and transparency in the very structure of the police - including better recruitment criteria, and creating incentives for honest work.
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This article is also available on the Manushi website :http://www.manushi.in/articles.php?articleId=1670

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फेसबुक पर कुछ लोग बहुत कहानियाँ सुना रहे हैं.. जहरीली बूंदों की कहानियाँ. बहुत दिन सोचा चुप रहूँ पर अब अब खामोश रहना जुर्म में शरीक रहना होगा सो इन कहानियों के जवाब में सच सुनाता हूँ.. 
हुआ यह था कि उड़ीसा से लौट दिल्ली आने की पहली शाम ही आदतन एक बहुत प्यारे कामरेड और पुराने दोस्त के घर चला गया था. उस शाम हो रही बातचीत के बीच अचानक पुरानी और प्यारी दोस्त और कामरेड Ila Joshi का फोन आया. फोन पर उन्होंने जो कहा वह होश उड़ा देने वाला था, स्तब्ध करने वाला था. खैर, उस फोन के बाद ज्यादा देर वहाँ बैठना मुनासिब नहीं था सो निकल आया. 

फिर इला और Mayank ही नहीं बल्कि लगभग पूरी टीम बूँद से दिल्ली कॉफ़ी हाउस में मुलाकात हुई. जो नाम याद हैं उनमे Gaurav Gupta, Nalin Mishra, KaliKant Jha, Pauline Huidrom, स्वाति मिश्र और कुछ और. खैर, वहाँ इला ने बताया कि एक रात टीम बूँद के कुछ दोस्त एक वरिष्ठ कामरेड साथी के घर गए थे जहाँ बहुत शराब पी लेने के बाद समूह की एक महिला साथी की हालत बहुत ख़राब हो गयी. जिनको उस वरिष्ठ साथी के तमाम बार साथ ले जाने के या कमसेकम बूँद के किसी सदस्य के रुकने के आग्रह को नकार पूरी टीम बूँद उस लड़की को वहाँ अकेला छोड़ चली गयी. इला के मुताबिक़ फिर उस लड़की ने उन्हें बताया कि उस वरिष्ठ साथी ने रात में उस लड़की से बलात्कार किया. 
मुझे अभी भी याद है कि अविश्वास से लेकर नफरत तक के कितने भाव मेरे मन में एक साथ आये थे. 

मेरी पोजीशन बिलकुल साफ़ थी कि ऐसे मामलों में लड़की का बयान ही सही माना जाना चाहिए चाहे फिर आरोपी आपका कितना ही करीबी क्यों न हो. मैंने इला, मयंक और पूरी टीम बूँद (वहाँ मौजूद) को यही कहा कि उन्हें तुरंत उस व्यक्ति के खिलाफ़ एफआईआर करनी चाहिए, और साथ ही उसे कनफ्रंट करना चाहिए. मैंने अपनी यह पोजीशन भी साफ़ कर दी थी कि मैं साथ जाकर उस व्यक्ति को कन्फ्रंट करने को तैयार हूँ. तीसरी बात यह कही कि कानूनी कार्यवाही के साथ साथ उसका सामाजिक बहिष्कार करवाना चाहिए और उसके लिए मैं मेरी और उनकी साझा महिला मित्रों से मैं इस विषय में बात कर सकता हूँ और मुझे करनी चाहिये. 

पर आश्चर्यजनक तरीके से इनमे से किसी भी बात पर इला, मयंक और वहाँ मौजूद और दोस्त तैयार नहीं हुए.पीड़िता(नाम नहीं ले रहा अभी, क्योंकि जहरीली बूंदों के जहर के बावजूद सामाजिक और कानूनी दोनों नैतिकताओं का सम्मान करता हूँ, पर आप मजबूर करेंगे तो नाम ले भी सकता हूँ) ने भी इससे साफ़ इनकार कर दिया. उनका तर्क था कि लड़की तैयार नहीं है, उसके सम्मान पर असर पड़ेगा, उसका कैरियर ख़त्म हो जाएगा. टीम बूँद जैसे बड़े दावों वाले संगठन की सदस्य से ऐसी बात सुनना दुखी तो करता है पर फिर, अपने निर्णय लेने की एजेंसी लड़की की है इस समझदारी के साथ मैंने एफआईआर न करने वाली बात मान ली पर कन्फ्रंट करने की जरुरत पर जोर दिया. काफी देर तक हुई बात के बाद यही बात तय पायी गयी. खैर, उसके बाद मैं लगभग रोज इन लोगों को फोन करता रहा कि आज कन्फ्रंट करें, आज करें पर वापस हांगकांग आने तक इनका जवाब कभी नहीं आया. 

एक बात और साफ़ कर दूं कि इस पूरे दौर में मैंने उस व्यक्ति से बातचीत बंद कर दी थी पर फिर भी एक बात जो लगातार खटक रही थी वह यह कि ये लोग उस व्यक्ति पर सिर्फ आरोप लगा रहे हैं,और कोई कानूनी या सामाजिक कार्यवाही नहीं कर रहे. 

फिर अचानक एक दिन टीम बूँद के अन्दर चल रहे घमासान के बारे में खबरें (फेसबुक से ही) मिलनी शुरू हुईं. आर्थिक घपलों की खबरें, टीम पर कब्जे को लेकर लड़ाई की खबरें. और उन्ही के साथ टीम बूँद के कुछ लोग जहरीली बूंदों में तब्दील हो उस व्यक्ति के खिलाफ जहर बुझी पोस्ट्स लगाने लगे. 

अब मामला कुछ कुछ साफ़ हो रहा था कि कहीं वह आदमी टीम बूँद की आंतरिक राजनीति का शिकार तो नहीं बनाया जा रहा? फिर थोड़े गुस्से में इला और मयंक को फोन किया कि मामला क्या हुआ? उन्होंने अबकी बार जो बताया वह तो और भी स्तब्ध करने वाला था. या कि तथाकथित पीड़िता ने स्वीकार कर लिया था कि वह झूठा आरोप लगा रही थी. यही नहीं, इन दोनों ने मुझे यह भी बताया कि इस सन्दर्भ में टीम बूँद के तमाम सदस्यों के साथ उस व्यक्ति के घर में मीटिंग हुई जिसमे मयंक, इला Pushpendra Singh और अन्य लोगों के साथ Manisha Pandey को भी बुलाया गया था. उस मीटिंग में टीम बूँद के (वहाँ मौजूद) सदस्यों ने माना कि आरोप गलत हैं, झूठे हैं और उन्होंने उस व्यक्ति से माफ़ी मांगी और सार्वजनिक माफ़ी मांगने का वादा किया. 

मैं अब और भी स्तब्ध था. कि यह सब हो गया और मुझे बताया भी नहीं जबकि आरोप के ठीक बाद पहला फोन मुझे किया गया था. उसके बाद और कमाल तब हुआ जब मुझे पता चला कि उस मीटिंग में उस व्यक्ति को यह बताया गया कि टीम बूँद वालों को तो यकीन ही नहीं हुआ, वह तो जब उन्होंने मुझे फोन किया और मैंने कहा कि ऐसे मामलों में पहली नजर में लड़की का पक्ष ही मानना चाहिए और इसीलिए उन लोगों ने कार्यवाही करने का निर्णय लिया. (वैसे मझे इस बात का गर्व है, और अपनी पोजीशन आगे भी यही रहने वाली है, फिर सामने कितना भी जरुरी दोस्त क्यों न हो). 

खैर, उसके बाद मैंने वह किया जो मुझे करना चाहिए था. मयंक और इला को फोन और उन्हें या तो कानूनी कार्यवाही करने की या माफ़ी मांगने की सलाह. जब उन्होंने नहीं मांगी ,तो मैंने एक स्टेटस लगाया जिसके बाद उन्होंने पहली बिना नाम की माफ़ी मांगी. पर मैं और ठगे जाने को तैयार नहीं था. उसके बाद दूसरा स्टेटस लगाया जहाँ सार्वजनिक चरित्रहनन के लिए सार्वजनिक माफ़ी की बात की. और इसी के बाद मयंक और इला ने टीम बूँद की तरफ से उस व्यक्ति से माफ़ी मांगी. 

फिर इस कथा का अगला दौर शुरू हुआ. टीम बूँद के दूसरे खेमे के लोगों द्वारा अपनी राजनीति के लिए उस व्यक्ति को मोहरा बनाने का खेल जिसका नेतृत्व कोई जहरीला तपन नामक आदमी कर रहा है. इस खेल की खबर मुझे तब लगी जब कामरेड Girijesh Tiwari ने मुझे बताया कि जहरीला तपन कोई वीडिओ लेकर उनसे मिलने आजमगढ़ तक गया. उन्होंने यह भी बताया कि जहरीला तपन ने यह माना कि यह वीडिओ नरेंद मोदी भक्त मधु किश्वर के घर में बनाया गया, क्यों यह हममें से कोई नहीं जानता. यह भी कि वह व्यक्ति यह वीडिओ लेकर गली गली घूम रहा है,. 

मुझे लगता है कि अब इस मुद्दे से सीधे टकराने का वक़्त आ गया है. वक़्त आ गया है कि अगर इन लोगों को लगता है कि कुछ ऐसा हुआ है तो वह उस व्यक्ति के खिलाफ पीड़िता के साथ कानूनी और सार्वजनिक दोनों कार्यवाहियाँ शुरू करें और मेरा वादा है कि मैं पीड़िता के साथ खड़ा रहूँगा. 

और अगर वह ऐसा नहीं करें तो साफ़ होगा कि वह इस कहानी के बहाने कोई और खेल खेल रहे हैं और यह नाकाबिले बरदाश्त है. सो अब सीधी चुनौती है, न्याय की लड़ाई लड़नी है तो सामने आकर लड़ने की हिम्मत करें, और नहीं तो इतना तो सामने आयें ही कि वह व्यक्ति आप पर कार्यवाही कर सके. 

सो साहिबान, वीडियो ही नहीं, पूरी कहानी नाम के साथ सार्वजनिक कर दें. फुसफुसाहटों से न्याय नहीं पाया जा सकता न.

[उस वरिष्ठ साथी का नाम इसलिए नहीं लिया क्योंकि मैं चाहता हूँ कि यह महान काम वह लोग करें जिससे अगर वे मुकदमा न करें तो उस साथी को उनपर मानहानि का दावा कर 'डैमेजेज' मांग सकें. इसलिए भी कि वह समझ सकें कि पीड़िता का आविष्कार नहीं किया जा सकता, या तो कोई पीड़िता है, या नहीं है. सो जो बात हो साफ़ हो, सीधी हो.]

मौन तोड़ देने का समय 
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हाल के दो दिनों के प्रकरण में बहुत सारी चर्चाएं हुई, कुछ सार्थक और कुछ चकल्लसी...राहत देने वाली बात ये थी कि कई सारे सच सामने आए और कई प्रहसनों-अफ़वाहबाज़ों का पर्दाफ़ाश हुआ....अब सवाल ये कि मैं और इला चुप क्यों थे...चलिए मैं मौन (चुप्पी नहीं) तोड़ देता हूं...
इस पूरे मामले को लेकर कुछ मेरे अज़ीज़ साथी Samar Anarya लिख चुके हैं, बाकी मैं लिख देता हूं...शुरुआत से ही इस मामले में मेरे प्रहसन करने वाले प्रोपोगेंडाबाज़ साथियों की 'पीड़िता' का रुख हमारे सामने कुछ और ज़हरीलों के सामने कुछ और था...इस बारे में हम न केवल उस शख्स से मिले जिस पर आरोप लगाए गए...बल्कि हमने इस मामले को रोकने और प्रोपोगेंडे को हद पार करने से रोकने के लिए हर उपाय किया...हमको जब लगा कि बूंद की ओर से हमको उस शख्स की सार्वजनिक छवि की क्षति रोकने के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए तो हम ने माफ़ी मांगी...उस माफ़ीनामे के लिए मुझे आज भी कोई अफ़सोस नहीं है...लेकिन हां, ये भी सब जानते हैं, वो शख्स भी जिनसे माफ़ी मांगी गई थी...कि इस पूरी साज़िश में हमारी कहीं से कोई भूमिका नहीं थी, सिवाय इसके कि हमारी टीम के कुछ लोगों ने हमारा भरोसा तोड़ा...और वो कभी हमारे साथ काम करते थे...
ख़ैर इस बीच एक ख़बर और मिली कि एक वीडियो है जिसे कुछ लोग फिर से लेकर गली-गली घूम रहे हैं...हमारा दिमाग खराब हो चुका था...कई लोग हमें फोन कर के उस वीडियो के बारे में बता चुके थे...अंततः हमको Balendu Swami ने सुझाव दिया कि हम को ज़हरीलों से मिल कर उस वीडियो और इस प्रोपोगेंडा को फैलने से रोकना चाहिए...क्योंकि न केवल यह उस शख्स की छवि को धूमिल करने का शर्मनाक प्रयास था...साथ ही इनके हिसाब से 'पीड़िता' मानी जा रही लड़की की निजता का भी हनन था...न केवल यह ग़ैरइंसानी था बल्कि ग़ैरक़ानूनी भी...
1 अक्टूबर की रात हम कनॉट प्लेस में अपने साथियों के साथ इनसे मिले...इन्होंने कहा कि मीटिंग का मक़सद मतभेद दूर करना है...हम चाहते थे कि वीडियो और कुत्सित षड्यंत्र का दौर खत्म हो...हमको तब तक ये भी ख़बर नहीं थी कि इस वीडियो को एक मोदीवादी एनजीओ एक्टिविस्ट के दफ्तर पर शूट किया गया था...इस बीच वो 'पीड़िता' कहां थी इसका कोई पता नहीं था...न ही वो इस मामले में अपना कोई रुख साफ़ कर रही थीं...ख़ैर उस बैठक में क्या हुआ ये भी समझिए...

1. मीटिंग में शामिल इन सब लोगों में से ज़्यादातर ने कहा और माना कि 'पीड़िता' का जिस तरह का रवैया रहा है, उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। 

2. ज़्यादातर लोगों ने जानबूझ कर पीड़िता के संदिग्ध व्यवहार की बजाय हमारे माफ़ीनामे को एजेंडा बना दिया, इसमें वो लोग भी थे जो अब समर भाई की वॉल पर उनके और उस शख्स के ख़ैरख्वाह बन रहे हैं, ये लोग उनके भी करीबी हैं, जिन्होंने समर भाई को माफ़ीनामे वाली एक्सक्लूसिव जानकारी दी और उन ज़हरीलों के साथी भी जो ये कर रहे थे।

3. ज़हरीले भाई ने ख़ुद अपने श्रीमुख से कहा कि पीड़िता पर उनको भी भरोसा नहीं है, यही नहीं उन्होंने वीडियो दिखाने को को भी ग़लत माना।

4. इनमें से ज़्यादातर लोग ये मानते थे कि इनके पास न कोई सुबूत हैं न ही पीड़िता का स्टैंड साफ़ और विश्वसनीय है और न ही कोई लड़ाई लड़ी जा सकती है, हम भी ये चाहते थे कि ये नाटक-गंदा खेल खत्म हो।

5. ख़ैर हमारे सामने शर्त रखी गई कि अगर हम माफ़ीनामा हटा लें तो ये उस वीडियो को प्रचारित नहीं करेंगे और साथ ही फेसबुक पर अपना दुष्प्रचार भी बंद कर देंगे। 

6. हमारे सामने ये एक अहम मुद्दा था कि आखिर कैसे जिस शख्स के खिलाफ़ दुष्प्रचार हमने एक सार्वजनिक माफ़ीनामे से रोका था, उसे अब फिर से रोका जाए...हमने अपने साथियों के साथ काफ़ी विचार विमर्श किया। 

7. लेकिन तब तक फिर से ज़हरीले भाई और उनके साथियों ने दुष्प्रचार का खेल शुरु कर दिया, हालांकि वो ऐसा न करने का वादा कर चुके थे...हमने आपस में बैठ कर काफ़ी बात की और एक बात तय थी कि इस पूरे प्रकरण में ये लोग लगातार हम को भी निशाना बना रहे थे और हम पर भी उतने ही आरोप लग रहे थे, जितने कि उन सज्जन पर...हमारे सामने ये स्पष्ट था कि हमारा और उन सज्जन का सच साझा है...एक की छवि की हानि दूसरे की छवि की हानि है...और ऐसे में हमारी ग़लती कहीं से कोई भी नहीं है, हम तो ख़ुद पीड़ित थे।

8. हां, मैंने वो माफ़ीनामा हटाया, क्योंकि मैं चाहता था कि ये प्रहसन-प्रोपोगेंडा रुक जाए...और साथ ही इसलिए भी कि उस माफ़ीनामे को हम सार्वजनिक लिख चुके थे...उस पर तमाम कमेंट आ चुके थे और हमारी स्थिति साफ़ थी...लेकिन साथ ही ये भी कि शायद हम दोषी नहीं थे, दोषी कोई और था...

9. अफ़सोस कि शातिर लोगों की चालें ऐसी ही होती हैं, माफ़ीनामा हटा लेने के बाद भी इनका कुत्सित खेल जारी रहा, और अब इनके ही बीच के कुछ लोग पहले से तय खेल के मुताबिक उन सज्जन और समर भाई को चालाकी से तैयार किया हुआ सच बता रहे हैं...जबकि उस मीटिंग में वो य़ा उनके करीबी मौजूद थे, जो उन सज्जन के खिलाफ़ ही नहीं थे, बल्कि लगातार इशारों में उनके खिलाफ़ लिखते भी रहे...और ज़हरीले स्टेटस शेयर भी करते रहे...अब ये लोग नया खेल रच रहे हैं..

10 . हम ने सिर्फ एक शख्स की मानहानि रोकने और एक लड़की की निजता के लगातार उस वीडिये के ज़रिए हो रहे ग़ैरक़ानूनी निजता के हनन को रोकने के लिए वो माफ़ीनामा हटाया, हमारी नीयत साफ़ है...हां, ये ज़रूर है कि हम सामने वाले को रोकने के लिए ऐसा करने के लिए मजबूर थे। 

यही नहीं अब इन ज़हरीलों का शातिराना रवैया देखने के बाद, उस माफ़ीनामे में लिखी गई ज़्यादातर बातों पर मैं फिर से सहमत हूं, सिर्फ एक बात को छोड़ कर कि इस पूरे प्रकरण में मेरा या बूंद का कहीं से कोई दोष है। हां, मेरा दोष है कि मैंने सरलता से लोगों पर भरोसा किया और धोखा खाया। लेकिन मैं फिर से कह रहा हूं कि इस मामले में मैं और Ila Joshi बराबर के पीड़ित हैं...उतनी ही मानहानि हमारी भी होती रही है, कोई दोष न होने के बावजूद...हां, हम छले गए और फिर भी बार बार लोगों पर भरोसा करने को मजबूर थे, ये हमारा दोष है। 

हमने आज तक उस शख्स के खिलाफ़ एक शब्द नहीं लिखा, न ही इस मामले को लेकर कुछ लिखा, हम लगातार कोशिश करते रहे इस गंदे खेल को रोकने की, हम सब लोगो से मिलते रहे, शांतिपूर्ण तरीके से इस खेल को रोकने की कोशिश करते रहे, इस मामले को और गंदा होने से बचाते रहे...हम पर तमाम ऐसे आरोप लगे, जो हम स्वप्न में भी नहीं सोच सकते थे लेकिन हम चुप रहे...लेकिन अब मौन तोड़ देने का समय था...हम बोल रहे हैं...
और हां, हमने उस वीडियो और फेसबुकिया साज़िश के गंदे खेल को रोकने के लिए माफ़ीनामा ज़रूर हटाया पर उसे हटाने का मतलब उसका खंडन भी नहीं है, मैं फिर से कहता हूं कि मैं उसकी मानहानि पर उतना ही दुखी हूं, जितना चिंतित वह हमारे ऊपर हो रहे हमलों से हैं...इस प्रकरण में उनके साथ हमको भी लगातार फ्रेम ही किया गया...उनका साथी ही बताया गया...उम्मीद है कि वे भी समझते होंगे...

इस मामले में हमारी पिछले कुछ दिनों में लगातार कामरेड Girijesh Tiwari से भी बात हुई है और उन्होंने हमारे पक्ष को कितना समझा है वो भी आपको साफ़ कर सकते हैं...बल्कि हम मानते हैं कि कर ही देंगे...

ख़ैर ये हमारा सच है, इसके अलावा जो भी बातें हैं, वो और कई लोग जानते हैं...उस 1 अक्टूबर की मीटिंग में कई लोग थे, जो ये सब जानते हैं...वो भी सच कहेंगे...आप में से किसी को ठगा नहीं गया है...ठगे हुए तो लगातार हम महसूस करते रहे...हां, हम अपनी ओर से ये सब रोकने की कोशिश में नाकाम ज़रूर हुए हैं, इसके लिए हम ज़रूर माफ़ी चाहते हैं...

फिलहाल इतना ही...क्योंकि हम पर दोनों ओर से एक दूसरे का साथ देने का आरोप लग रहा है...आप ही तय करें कि आखिर हम हैं किसके साथ...
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शुक्रिया Mayank भाई, देर से ही सही बोल कर आपने हम तमाम दोस्तों का यकीन टूटने से बचा लिया वरना अब बात सच में हाथ से निकल रही थी. बस यह जरुर कहूँगा कि आपने माफ़ीनामा हटाने के पहले इस मुद्दे से जुड़े रहे हम तमाम लोगों में किसी एक को यकीन में ले लिया होता तो किसी जयकरण सिंह की बात से क्या ही भ्रम फैलता. खैर देर आयद दुरस्त आयद. 
अब आपके बयान के बाद स्थिति साफ़ हो गयी है. यह कि पीड़िता तो कोई है ही नहीं (वह अब भी सामने आ जाएँ तो और बात है.)) यह भी कि मधु किश्वर नामक मोदी भक्तिन के ऑफिस में बनाये गए वीडियो को लेकर शहर शहर घूम रहे लोगों को पैसा कहाँ से मिल रहा है यह भी बहुत कुछ साफ़ कर देता है. 
सो जैसा कि हमेशा कहता रहा हूँ, आँधियाँ हाथ थामने का वक़्त होती हैं, अफ़सोस आपकी चुप्पी ने कुछ देर परेशान जरुर किया पर अब बोलने ने सब कुछ साफ़ कर दिया है. अब मिल के इन जह्रीलों का जहर उतारने का वक़्त आ गया है. और इन्ही का नहीं, उन तमाम निष्पक्ष/निष्कच्छ/सपच्छ/सकच्छ जन का भी जो मधु किश्वर के नेतृत्व में काम कर रहे "कामरेडों" के दम पर एक वरिष्ठ साथी के जीवन भर के संघर्षों पर मिटटी फेर उसके शिकार पर निकले थे.
मुझे लगता है कि अब उन पर कार्यवाही करने का वक़्त आ गया है. मिल के निपटते हैं अब इनसे.और इस निपटने में पहले सवाल..
१. ज़हरीला तपन: न्याय के सिपाही बनते घूमते हो (मधु किश्वर के पैसे से वह और बात है) हिम्मत हो तो सीधे नाम लो. भाग क्यों रहे हो? अदालत जाने से डर लगता है? 
२. खद कामरेड होने के दावे वाले तुम लोगों ने यह वीडिओ चुन चुन के मोदी समर्थक पत्रकारों को ही क्यों दिखाया? ऐसे लोगों की तमाम पोस्ट्स हमने पढ़ी हैं मियाँ जिनसे तुम्हारे चेहरे का नकाब उतरता है. 
३. कामरेड गिरिजेश तिवारी और Balendu Swami के अलावा तुमने सिर्फ और सिर्फ घोषित साम्प्रदायिक लोगों की मदद ली है. क्यों? 
जवाब हों तो जरुर देना, बाकी अनंत काल तक तथ्य इकट्ठे करते रहने का फर्जीवाड़ा नहीं चलेगा जहरीलों ... किसी की जिंदगी भर के संघर्षों की कमाई इतनी सस्ती नहीं है कि मधु किश्वर जैसों को बिक गए लोगों पर लुटा दी जाय.
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एक संकल्प और ! आगे बढ़िए साथियो ! अब यह लड़ाई वाकई इन्साफ की ही है...
कुमार नरेंद्र सिंह - "खुर्शीद हम तुम्हारे कातिलों को छोड़ेंगे नहीं। चाहे वे लाख कोशिश करें, हम उन्हें उनके अंजाम तक जरूर पहुंचाएंगे। यह तुमसे मेरा वादा है। मेरे इस वादे में तुम्हारे वे तमाम दोस्त शामिल हैं, जो तुम्हें दिलोजान से चाहते हैं।"
Amalendu Upadhyaya - "खुर्शीद को कई बार जान से मारने की धमकी भी मिल चुकी थी, लेकिन इन टुच्ची धमकियों से बेपरवाह अपने पथ पर लगातार बढ़ता जा रहा था। वह मौत का सामना तो कर सकता था, लेकिन बलात्कार का इल्जाम नहीं।..कायदे से इंडिया टीवी और मधु किश्वर जैसे छद्म लोगों के खिलाफ केस किया जाना चाहिए और यह होकर रहेगा।..."
कुमार नरेंद्र सिंह - "खुर्शीद मौत का सामना तो कर सकता था,
लेकिन बलात्कार का इल्जाम नहीं
आत्महत्या नहीं हत्या है यह, खुर्शीद दूसरा दाभोलकर था
अनवर खुर्शीद ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उसकी हत्या की गयी और उसकी हत्या में मी़डिया, विशेषकर इंडिया टीवी, अमानुषिक ‘मानुषी’ तथा सरकारी पदाधिकारी सभी शामिल थे। इंडिया टीवी पर प्रसारित हुये कार्यक्रम, जिसमें खुर्शीद पर एक लड़की के साथ बलात्कार करने के आरोप को सिद्ध करने की एक कुत्सित कोशिश की गयी, उसे मैंने देखा था। कार्यक्रम को इस तरह पेश किया गया, जैसे यह साबित हो चुका हो कि खुर्शीद ने सचमुच बलात्कार किया है। एंकर रजत शर्मा, नारीवाद की तथाकथित चैंपियन मधु किश्वर समेत अन्य पैनलिस्ट्स भी यही साबित करते दिखाई दे रहे थे।
मधु किश्वर तो ऐसे बता रही थीं, जैसे उन्होंने बलात्कार होते देखा हो। उनकी बातें और उनके तर्क मेरे मन में जुगुत्सा भर रही थीं। अन्त में उनका यह कहना कि एक और लड़की बलात्कार से बच गयी, क्योंकि उसने वहां रात में रुकने से मना कर दिया, वास्तव में मनुष्यता के नाम पर तमाचा लग रहा था। उनकी बातें सुनकर तो लग रहा था कि बलात्कार करने के सिवा खुर्शीद के पास कोई काम ही नहीं था। उनकी नजर में वह एक ऐसा सांड था, जो एक रात में अनेक लड़कियों को अपनी हवस का खुराक बना सकता था। पता नहीं, इसकी इतनी पुख्ता जानकारी उन्हें कैसे हो गयी। वह बड़े फख़्र से बता रही थीं कि कैसे खुर्शीद ने सॉफ्ट ड्रिंक में नशीली वस्तु मिलाकर उस लड़की को पिलाया और फिर अपनी हवस का शिकार बनाया।
रजत शर्मा भी ऐसी ही घृणित कोशिश करते दिखाई दे रहे थे। इंडिया टीवी क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। वह अपनी फेक न्यूज के लिये ही कुख्यात है। अपनी दुकान चलाने के लिये मधु किश्वर औऱ रजत शर्मा ने जो खेल रचा, खुर्शीद उसका सहज ही शिकार बन गया।
खुर्शीद को जो लोग जानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि वह हत्या और बलात्कार नहीं कर सकता। वैसे भी उसे ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं थी। खुर्शीद के सभी मित्र (पुरुष-महिला दोनों) जानते हैं कि वह दो पेग के बाद खाना भी खाने की स्थिति में भी नहीं रहता था और जहां जगह मिली, पसर जाता था। उसके घर में किसी ने सॉफ्ट ड्रिंक की बोतल भी नहीं देखी होगी। न तो वह स्वयं सॉफ्ट ड्रिंक लेता था औऱ न दोस्तों को ही परोसता था, लेकिन मधु किश्वर ने अपने घर में बैठे देख लिया कि उसके यहां सॉफ्ट डिंक औऱ नशीली दवा दोनों का मुकम्ल इंतजाम था। इस बात को कौन स्वीकार करेगा कि जो लड़की इतनी बोल्ड हो कि वह अपने ब्वॉय फ्रेंड औऱ अन्य दोस्तों के साथ छक कर दारू पी सकती है, बार-बार जाने के लिये कहने के बावजूद दूसरे के घर में रात को रुक सकती है, वह अचानक एक छुईमूई लड़की बन जाये और बलात्कार की शिकायत की हिम्मत तक न जुटा पाये। खुर्शीद डिप्रेशन का शिकार था और पिछले लगभग दो साल से AIIMS में उसका इलाज चल रहा था। इस बात की पुष्टि किसी डॉक्टर से हो सकती है कि डिप्रेशन की दवा लेने वाले मरीज की यौन इच्छा लगभग खत्म हो जाती है। स्वाभाविक रूप से वह यौनेच्छा महसूस नहीं करता, लेकिन पता नहीं डिप्रेशन की वह कौन सी दवा थी, जो उसकी यौन इच्छा को बलात्कार करने की हद तक पहुँचाने में सफल गयी।

पूरा प्रसारण एक षड्यंत्र ही नजर आ रहा था, क्योंकि सभी पैनलिस्ट्स उसे बलात्कारी साबित करने में जुटे थे। दरअसल, खुर्शीद एक दूसरा दाभोलकर था, जिसे बर्दाश्त करना इंडिया टीवी जैसे अंधविश्वास बेचने वाले चैनल के लिये भारी पड़ रहा था। खुर्शीद की बातों में उसे अपनी मौत का सायरन सुनाई दे रहा था। ऐसे में उसकी आवाज गुम करना ही चैनल के पास एकमात्र विकल्प बचा था। षड्यंत्रकारियों ने इसके लिये दिन भी 16 दिसंबर का चुना ताकी कोई खुर्शीद के पक्ष में कोई आवाज न उठे। खुर्शीद संघी और जमात दोनों के निशाने पर था।
खुर्शीद को कई बार जान से मारने की धमकी भी मिल चुकी थी, लेकिन इन टुच्ची धमकियों से बेपरवाह अपने पथ पर लगातार बढ़ता जा रहा था। वह मौत का सामना तो कर सकता था, लेकिन बलात्कार का इल्जाम नहीं। यही कारण था कि वह अकेले अपने घर आया, लेकिन घर का दरवाजा नहीं खोला औऱ सीधी चौथी मंजिल पर छढ़कर वहां से कूद गया और हमें अकेला छोड़कर चला गया। वह निर्भया की याद में कैंडिल जलाता था। उसका ऑफिस हिंदुस्तान का एकमात्र ऐसा ऑफिस था, जो निर्भया की याद में 16 दिसंबर को बंद रहता था। इस बार जहां 16 दिसंबर की रात उसने निर्भया की याद में कैंडिल जलाई थी, वहीं उसका मृत शरीर पड़ा था। उसके खून से लाल वहां की धरती पुकार-पुकार कर कह रही थी कि वह पवित्र था और इंडिया टीवी पर जो दिखाया गया, वह अपवित्र था और अपवित्र थे प्रोग्राम पेश करने वालों के इरादे।
कायदे से इंडिया टीवी और मधु किश्वर जैसे छद्म लोगों के खिलाफ केस किया जाना चाहिए और यह होकर रहेगा। मधु किश्वर औऱ रजत शर्मा दोनों को समझ लेना होगा कि खुर्शीद के कत्ल का जवाब आपको भी देना है। आपने ही उसकी उसे आत्मह्त्या के लिये विवश किया है और हमारे देश में किसी को आत्महत्या के लिये विवश करना एक संगीन अपराध है।
खुर्शीद हम तुम्हारे कातिलों को छोड़ेंगे नहीं। चाहे वे लाख कोशिश करें, हम उन्हें उनके अंजाम तक जरूर पहुंचाएंगे। यह तुमसे मेरा वादा है। मेरे इस वादे में तुम्हारे वे तमाम दोस्त शामिल हैं, जो तुम्हें दिलोजान से चाहते हैं।

About The Author
कुमार नरेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार हैं।
http://www.hastakshep.com/intervention-hastakshep/बहस/2013/12/19/खुर्शीद-मौत-का-सामना-तो-कर?fb_ref=widget&fb_source=message
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Ashwini Aadam - "कामरेड खुर्शीद! जब तक मैं ज़िंदा हूँ, जब तक तुम्हारे साथी ज़िंदा हैं तुम ज़िंदा रहोगे ,युवा रहोगे और ऊर्जावान रहोगे........
दोगले कौवों! अब अपनी टट्टी पर बैठ कर क्यों बदबू रोकने की नाकाम कोशिश कर रहे हो ? मीडिया ट्रायल के नाम पर ह्त्या के जघन्य अपराध को अंजाम तक पहुंचाने की तुम्हारी घिनौनी साजिश तो कामयाब हो गयी, अब अपनी कामयाबी का जश्न तो कायदे से मना लो।
इस अपराधबोध को खुद पर हावी होने से कैसे रोक पाओगे तुम सब बुद्धिजीवी और जागरूक हत्यारों! कि तुमने तो सत्य को सामने आने में लगने वाले समय की प्रतीक्षा भी आवश्यक नहीं समझा; खुर्शीद अनवर आशाराम और नारायण साईं नहीं था, वह मुझसे तुमसे हमसब से कहीं ज्यादा सार्थक था मानवता और समाज के लिए...."__________________


दोस्तो, अभी यह लड़ाई जारी रहेगी....गिरिजेश
कामरेड खुर्शीद अनवर को आतंकवाद के विरुद्ध लगातार आग उगलने वाले उनके विद्रोही तेवर की सज़ा देने के लिये उनके ऊपर बलात्कार का जघन्य आरोप लगा कर उनको घेरने वाली, गली-गली घूम कर उनके खिलाफ़ माहौल खड़ा करने वाली, अपने सारे दोस्तों के बीच भी उनको हर तरह से अलगाव में डालने वाली, जंगली जानवरों की तरह हाँका लगा कर उनको अकेले कर के घेर कर उनका क्रूरतापूर्वक शिकार करने वाली और अन्ततोगत्वा उनको इस तरह आत्महत्या के मोड़ तक पहुँचा देने वाली साम्प्रदायिक शक्तियों के गिरोह का सबसे बेहूदा मोहरा यह है.

इसका नाम है 'ज़हरीला तपन'. यही शख्स मेरे आवास तक उनके विरुद्ध बयान का वह कथित विडियो लेकर मेरी 'सलाह' माँगने आया था. जो मोदी की 'विशिष्ट प्रचारिका' मधुकिश्वर के ऑफिस में रिकार्ड किया गया था. खुर्शीद अनवर ने अपने खिलाफ़ इस शख्स के कुत्सा-प्रचार से तंग आकर इस के और इसके दूसरे साथियों के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा किया था.

और प्रतिवाद में तब मजबूर होकर मधुकिश्वर को इतने महीनों के बाद उस विडियो को मीडिया को दिखाना पड़ा. कल उस विडियो की ख़बर के इण्डिया टी.वी. के ज़रिये सामने आ जाने पर और अपमान-बोध से उबर न पाने के चलते ही अपने स्वाभिमान की रक्षा करने के लिये खुर्शीद अनवर को चुपचाप अपनी शहादत का रास्ता चुनना पड़ा.

कामरेड खुर्शीद अनवर की इस क्रूर हत्या के साथ ही साम्प्रदायिक शक्तियों की घिनौनी साज़िश की यह कहानी ख़त्म नहीं होने जा रही है. आने वाला कल इन हत्यारों से इनकी घिनौनी साज़िश का दो-टूक और खुले आम हिसाब लेगा ही.

मैं अपने सभी मित्रों से विनम्र निवेदन कर रहा हूँ कि विपत्ति की इस घड़ी में यथासम्भव सन्तुलित वक्तव्य दें. वरना हम एक बार और हारेंगे और वे एक बार और जीतेंगे. तब जब हम आपस में ही आरोप-प्रत्यारोप करके एक-दूसरे के खिलाफ़ पूर्वाग्रहग्रस्त होकर अपनी एकजुटता को और कमज़ोर कर देंगे, तो हम उनकी साज़िश का एक बार और शिकार हो जाने के लिये मजबूर होंगे.

इस समय इस लड़ाई में हमारे लिये अपनी एकजुटता को मजबूत और मजबूत करने की ज़रूरत है.
https://www.facebook.com/Tapan2708?fref=ts
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कॉमरेड खुर्शीद अनवर ने डायरी में सदमा लगने का किया जिक्र :
"खुर्शीद अनवर के फ्लैट की तलाशी लेने पर पुलिस को एक डायरी में लिखे तीन पन्ने का नोट मिला है। इसमें उन्होंने लिखा है कि उन्हें झूठा फंसाया गया है। ... उन्हें साजिश के तहत फंसाया है। जिस युवती ने आरोप लगाया है, उसका मेडिकल भी नहीं कराया गया। उहोंने दुष्कर्म का आरोप लगाने पर गहरा सदमा पहुंचने का जिक्र किया है।"

दुष्कर्म के आरोप पर एनजीओ निदेशक ने जान दी - दैनिक जागरण
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : दुष्कर्म का आरोप लगने पर इंस्टीट्यूट फॉर सोशल डेमोक्रेसी एनजीओ के निदेशक खुर्शीद अनवर ने बुधवार सुबह तीसरी मंजिल पर बने फ्लैट की बालकनी से कूदकर जान दे दी। मंगलवार शाम वसंत कुंज उत्तरी थाने में उनके खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया था। एम्स ट्रॉमा सेंटर में पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया। बृहस्पतिवार दोपहर एक बजे लोधी रोड स्थित शमशान घाट पर शव का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
मूल रूप से इलाहाबाद के खुर्शीद अनवर (55) वसंत कुंज के बी-9 डीडीए फ्लैट नंबर 6424 में अकेले रहते थे। पुलिस के मुताबिक, बूंद एनजीओ के कर्मचारियों ने कुछ सप्ताह पहले राष्ट्रीय महिला आयोग में शिकायत की थी कि उनके एनजीओ के बढ़ते कद को देखते हुए 12 सितंबर को खुर्शीद अनवर ने उनके सभी कर्मचारियों (तीन महिला व सात पुरुष) को अपने घर पार्टी पर बुलाया था। पार्टी में सभी ने रम पी और खाना खाया। देर रात तक चली पार्टी में ज्यादा रम पीने पर मणिपुर की रहने वाली 23 वर्षीय युवती को नशा चढ़ गया। तबीयत खराब होने पर खुर्शीद ने उसके सहकर्मियों से कहा कि वे उसे वहीं छोड़ दें, नशा उतरने पर सुबह उसे घर भिजवा देंगे। घटना के कुछ दिनों बाद युवती ने सहकर्मियों को बताया कि खुर्शीद ने उसके साथ दुष्कर्म किया था। उसने आरोप लगाया कि 13 सितंबर की सुबह भी उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की। इस पर उन्होंने मामला दर्ज कराने की सलाह दी, लेकिन युवती ने ऐसा नहीं किया। उसके मणिपुर जाने पर सहकर्मियों ने राष्ट्रीय महिला आयोग में खुर्शीद के खिलाफ शिकायत की। वहां से मामला पुलिस मुख्यालय भेज दिया गया। दक्षिण जिले के डीसीपी के निर्देश पर वसंत कुंज उत्तरी थाने में मंगलवार शाम 5.40 बजे खुर्शीद के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया। यह जानकारी मिलने पर बुधवार सुबह उन्होंने साढ़े 11 बजे फ्लैट की बालकनी से कूदकर खुदकुशी कर ली।
ज्ञात हो कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से पढ़ाई की थी और कई साल से एनजीओ चला रहे थे। उनकी पत्नी जेएनयू में प्रोफेसर हैं और परिसर में सरकारी क्वार्टर में रहती हैं।
इस बारे में पुलिस के आला अधिकारी का कहना है कि खुर्शीद के खिलाफ राष्ट्रीय महिला आयोग के निर्देश पर मुकदमा दर्ज हुआ है। आयोग ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को पत्र भेजकर मुकदमा दर्ज कराने व 24 घंटे के अंदर रिपोर्ट की मांग की थी। युवती को बुलाकर उससे पूछताछ की जाती कि वह शिकायतकर्ता बनना चाहेगी या नहीं। उसका मेडिकल भी कराया जाता। यदि वह शिकायतकर्ता बनने को तैयार हो जाती, तो पुलिस पहले साक्ष्यों को जुटाती इसके बाद खुर्शीद को गिरफ्तार करती। यदि वह शिकायतकर्ता बनने को तैयार नहीं होती तो मुकदमा रद कर दिया जाता।
सदमा लगने का किया जिक्र
खुर्शीद अनवर के फ्लैट की तलाशी लेने पर पुलिस को एक डायरी में लिखे तीन पन्ने का नोट मिला है। इसमें उन्होंने लिखा है कि उन्हें झूठा फंसाया गया है। बूंद के सभी कर्मचारियों ने मिलकर उन्हें साजिश के तहत फंसाया है। जिस युवती ने आरोप लगाया है, उसका मेडिकल भी नहीं कराया गया। उहोंने दुष्कर्म का आरोप लगाने पर गहरा सदमा पहुंचने का जिक्र किया है।
http://www.jagran.com/delhi/new-delhi-city-10944824.html
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AHRC mourns the tragic death of Khurshid Anwar and demands a thorough investigation into the events that drove him to take this extreme step.
http://www.humanrights.asia/news/ahrc-news/AHRC-STM-246-2013
AHRC mourns the tragic death of Khurshid Anwar
December 20, 2013
"The AHRC condoles the death of Mr. Khurshid Anwar, a writer and activist reputed for his life-long struggle for upholding the rights and dignity of the downtrodden, not only in India but the whole subcontinent. Unable to cope with the mental torture of relentless social media trial over a case of an alleged rape which was never taken to the police or a court of law, Mr. Anwar committed suicide on December 18 by jumping off the roof of his apartment building.

The AHRC strongly condemns the media trials and social lynching which forced Mr. Anwar to take this extreme step. The trigger came from India TV, an electronic news channel, which aired a story on the evening of December 17 and declared Mr. Anwar guilty as if the channel were a court of law. The diatribes of Mr. Rajat Sharma, the anchor of the show, included assertions like "ham balatakari ko uske anzam tak pahuchayenge", i.e. "we will ensure that the rapist gets his dues." This media trial was in essence a media murder.

The AHRC firmly believes that every allegation of rape, or sexual assault, in fact, any crime, needs to be expeditiously investigated with due process of law. Sadly, in this instance, those alleging rape never went to the police or took any steps to bring the matter to a court of law. They chose, instead, to engage in a vicious social media campaign, forgetting that even an accused has a right to defend himself.

According to information received by the AHRC, the person who initially made the allegation of rape refused to go to any police station to make a complaint, even when several friends and human rights activists advised her that this was the proper thing to do if her allegations are true. This is even more notable given that the campaigners include many seasoned activists well aware of the due process of law, which gives both the complainant and the accused equal legal hearing pending inquiry.

Mr. Anwar was never given this chance. Those who kept repeating the allegations deliberately prevented him from being able to answer them. They did this by using the devious method of never referring to him by name. They only made insinuations by use of terms like "secular rapist".

The AHRC has learnt that Mr. Anwar sought legal redress as soon as he received complaints that were sent to the Board of Directors of the nongovernmental organization, Institute for Social Democracy, of which he was Executive Director. On November 29, 2013, Mr. Anwar filed a defamation suit against those running the campaign against him, and the case is to be heard soon.

The AHRC firmly advocates the right of victims to seek support by way of publicity. However, it is an equally important principle that allegations be made with due regard to fact and that opportunities be provided so the person accused may have the opportunity to respond with their version of events. Furthermore, it is also a fundamental obligation to make complaints to lawful authorities and to enable impartial inquiry so that the path is paved for the establishment of truth or falsehood of the allegations. Spreading false rumours and resorting to devious means to prevent individuals from responding to unsubstantiated allegations itself amounts to criminal blackmail.

India TV declaring Mr. Anwar a rapist without airing his version of events and before any complaint had been filed, forget about conviction by a court of law, is a failure of its fundamental obligations, and the concerned news channel must be held responsible for abetting Mr. Anwar's suicide. While this news channel had Anwar's denial recorded, they did not air it. This amounts to deliberate manipulation to propagate falsehood. India TV also did not once mention the defamation suit that Mr. Anwar had filed, despite having full knowledge of it. What India TV did was partake in blackmail. The term "media trial" is now being used as a euphemism for pure and simple blackmail.

Mr. Anwar's wish to have this matter submitted to a proper inquiry should be respected. It was his right to have the matter fully investigated by lawful authorities, which have all the technical equipment, including DNA mapping. If those making allegations do not cooperate with the investigations of lawful authorities, lawful action should follow. AHRC's demand is that either Mr. Anwar's culpability should be proved through proper legal channels, or his innocence should be vindicated.

We hope that those who engaged in the public campaign against Mr. Anwar without regard to his rights will at least now respect the rights of a dead man and his family and do what the law requires them to do. On the other hand, if they have been spreading falsehoods, it is now their duty, in the name of decency, to admit their wrongdoings and vindicate the name of an innocent man. The merits of the case must be left for the lawful authorities now. We urge the authorities to act in the manner law requires. Continuing the smear campaign even after his death, while at the same time preventing legal inquiries through lawful authorities, is criminal behavior.

It appears to the AHRC that the smear campaign is now being continued purely so rumours and falsehoods prior to Mr. Anwar's suicide can be justified, and not for any honourable reason. It appears that protection from expressions of public outrage is the motive now.

The AHRC offers its deepest condolences to family and friends of Mr. Anwar and hopes that the struggles and the principles he stood for are carried forward and that justice will be upheld through the workings of the rule of law.

The AHRC appeals to all activists and civil society organisations to come forward to express their demand for the observance of moral and ethical standards in all matters, including those relating to publicity. If blackmail were to take the place of public expression of concern, civil society and its activism will be irrevocable damaged. What is done one day to blackmail and destroy one activist can also be done the next day to others.

Document Type :Statement
Document ID :AHRC-STM-246-2013
Countries : India
Issues : Democracy, Extrajudicial killings, Freedom of expression, Judicial system, Rule of law, Torture, Violence against women, Women's rights
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खुर्शीद हत्याकांड- हत्या तो पहले ही तय हो चुकी थी (!) : हस्तक्षेप से साभार
तीन महीने लंबा चलने वाला कत्ल : फुसफुसाहटों से न्याय नहीं पाया जा सकता न
नई दिल्ली। यह बड़े-बड़े क्रांतिकारी चेहरों पर पड़े हुए नकाब नोंचे जाने का वक्त है। अजब इत्तेफाक है, फासिस्ट ताकतें तो मौत पर नाचा ही करती हैं, उनकी प्यास तो मानव रक्त से ही बुझती है, लेकिन मौत पर नाच करने वालों को कुछ तथाकथित गम्भीर किस्म के लोगों का भी साथ मिल रहा है।
खुर्शीद अनवर की हत्या कोई सीधा-सादा अपराध नहीं है बल्कि यह तीन महीने लंबा चलने वाला कत्ल है। भाड़े के हत्यारे भले ही खुर्शीद की हत्या करने में कामयाब रहे हों लेकिन कल 19 सितंबर को निगमबोध घाट पर “खुर्शीद तेरे सपनों को मंज़िल तक पहुँचाएंगे” के लगते गगनभेदी नारे बता रहे थे कि खुर्शीद ने मरते-मरते भी बहुत से चेहरों पर पड़े नकाब नोंच डाले और उनकी जलाई लौ आसानी से बुझने न पाएगी।
मानवाधिकार कार्यकर्ता समर अनार्या की फेसबुक वॉल पर अक्टूबर महीने के अंत में लंबी बहस चली थी। उस बहस में तथाकथित पीड़िता के पक्ष के कई लोगों ने भी भाग लिया था और उस बहस से लगभग तय हो गया था कि एक बड़ा षडयंत्र है। इस बहस में खुद खुर्शीद अनवर ने भी हिस्सा लिया था।
कानून अपना काम करेगा। प्रकरण की जाँच होगी, खुर्शीद की हत्या की भी। लेकिन फेसबुक पर अभी भी जिस तरह से खुर्शीद की हत्या की जा रही है ऐसे दौर में समर अनार्या की फेसबुक टाइमलाइन पर चली बहस को हम यहाँ दे रहे हैं ताकि बहुत सी चीजें साफ हो सकें, बस उसमें तथाकथित पीड़िता का चित्र डिलीट कर रहे हैं, क्योंकि वे अभी भी पीड़िता ही हैं।
सं.-हस्तक्षेप

Samar Anarya - फेसबुक पर कुछ लोग बहुत कहानियाँ सुना रहे हैं.. जहरीली बूंदों की कहानियाँ. बहुत दिन सोचा चुप रहूँ पर अब अब खामोश रहना जुर्म में शरीक रहना होगा सो इन कहानियों के जवाब में सच सुनाता हूँ..
हुआ यह था कि उड़ीसा से लौट दिल्ली आने की पहली शाम ही आदतन एक बहुत प्यारे कामरेड और पुराने दोस्त के घर चला गया था. उस शाम हो रही बातचीत के बीच अचानक पुरानी और प्यारी दोस्त और कामरेड Ila Joshi का फोन आया. फोन पर उन्होंने जो कहा वह होश उड़ा देने वाला था, स्तब्ध करने वाला था. खैर, उस फोन के बाद ज्यादा देर वहाँ बैठना मुनासिब नहीं था सो निकल आया.
फिर इला और Mayank ही नहीं बल्कि लगभग पूरी टीम बूँद से दिल्ली कॉफ़ी हाउस में मुलाकात हुई. जो नाम याद हैं उनमे Gaurav Gupta, Nalin Mishra, KaliKant Jha, Pauline Huidrom, स्वाति मिश्र और कुछ और. खैर, वहाँ इला ने बताया कि एक रात टीम बूँद के कुछ दोस्त एक वरिष्ठ कामरेड साथी के घर गए थे जहाँ बहुत शराब पी लेने के बाद समूह की एक महिला साथी की हालत बहुत ख़राब हो गयी. जिनको उस वरिष्ठ साथी के तमाम बार साथ ले जाने के या कमसेकम बूँद के किसी सदस्य के रुकने के आग्रह को नकार पूरी टीम बूँद उस लड़की को वहाँ अकेला छोड़ चली गयी. इला के मुताबिक़ फिर उस लड़की ने उन्हें बताया कि उस वरिष्ठ साथी ने रात में उस लड़की से बलात्कार किया.
मुझे अभी भी याद है कि अविश्वास से लेकर नफरत तक के कितने भाव मेरे मन में एक साथ आये थे.
मेरी पोजीशन बिलकुल साफ़ थी कि ऐसे मामलों में लड़की का बयान ही सही माना जाना चाहिए चाहे फिर आरोपी आपका कितना ही करीबी क्यों न हो. मैंने इला, मयंक और पूरी टीम बूँद (वहाँ मौजूद) को यही कहा कि उन्हें तुरंत उस व्यक्ति के खिलाफ़ एफआईआर करनी चाहिए, और साथ ही उसे कनफ्रंट करना चाहिए. मैंने अपनी यह पोजीशन भी साफ़ कर दी थी कि मैं साथ जाकर उस व्यक्ति को कन्फ्रंट करने को तैयार हूँ. तीसरी बात यह कही कि कानूनी कार्यवाही के साथ साथ उसका सामाजिक बहिष्कार करवाना चाहिए और उसके लिए मैं मेरी और उनकी साझा महिला मित्रों से मैं इस विषय में बात कर सकता हूँ और मुझे करनी चाहिये.
पर आश्चर्यजनक तरीके से इनमे से किसी भी बात पर इला, मयंक और वहाँ मौजूद और दोस्त तैयार नहीं हुए.पीड़िता(नाम नहीं ले रहा अभी, क्योंकि जहरीली बूंदों के जहर के बावजूद सामाजिक और कानूनी दोनों नैतिकताओं का सम्मान करता हूँ, पर आप मजबूर करेंगे तो नाम ले भी सकता हूँ) ने भी इससे साफ़ इनकार कर दिया. उनका तर्क था कि लड़की तैयार नहीं है, उसके सम्मान पर असर पड़ेगा, उसका कैरियर ख़त्म हो जाएगा. टीम बूँद जैसे बड़े दावों वाले संगठन की सदस्य से ऐसी बात सुनना दुखी तो करता है पर फिर, अपने निर्णय लेने की एजेंसी लड़की की है इस समझदारी के साथ मैंने एफआईआर न करने वाली बात मान ली पर कन्फ्रंट करने की जरुरत पर जोर दिया. काफी देर तक हुई बात के बाद यही बात तय पायी गयी. खैर, उसके बाद मैं लगभग रोज इन लोगों को फोन करता रहा कि आज कन्फ्रंट करें, आज करें पर वापस हांगकांग आने तक इनका जवाब कभी नहीं आया.
एक बात और साफ़ कर दूं कि इस पूरे दौर में मैंने उस व्यक्ति से बातचीत बंद कर दी थी पर फिर भी एक बात जो लगातार खटक रही थी वह यह कि ये लोग उस व्यक्ति पर सिर्फ आरोप लगा रहे हैं,और कोई कानूनी या सामाजिक कार्यवाही नहीं कर रहे.
फिर अचानक एक दिन टीम बूँद के अन्दर चल रहे घमासान के बारे में खबरें (फेसबुक से ही) मिलनी शुरू हुईं. आर्थिक घपलों की खबरें, टीम पर कब्जे को लेकर लड़ाई की खबरें. और उन्ही के साथ टीम बूँद के कुछ लोग जहरीली बूंदों में तब्दील हो उस व्यक्ति के खिलाफ जहर बुझी पोस्ट्स लगाने लगे.
अब मामला कुछ कुछ साफ़ हो रहा था कि कहीं वह आदमी टीम बूँद की आंतरिक राजनीति का शिकार तो नहीं बनाया जा रहा? फिर थोड़े गुस्से में इला और मयंक को फोन किया कि मामला क्या हुआ? उन्होंने अबकी बार जो बताया वह तो और भी स्तब्ध करने वाला था. या कि तथाकथित पीड़िता ने स्वीकार कर लिया था कि वह झूठा आरोप लगा रही थी. यही नहीं, इन दोनों ने मुझे यह भी बताया कि इस सन्दर्भ में टीम बूँद के तमाम सदस्यों के साथ उस व्यक्ति के घर में मीटिंग हुई जिसमे मयंक, इला Pushpendra Singh और अन्य लोगों के साथ Manisha Pandey को भी बुलाया गया था. उस मीटिंग में टीम बूँद के (वहाँ मौजूद) सदस्यों ने माना कि आरोप गलत हैं, झूठे हैं और उन्होंने उस व्यक्ति से माफ़ी मांगी और सार्वजनिक माफ़ी मांगने का वादा किया.
मैं अब और भी स्तब्ध था. कि यह सब हो गया और मुझे बताया भी नहीं जबकि आरोप के ठीक बाद पहला फोन मुझे किया गया था. उसके बाद और कमाल तब हुआ जब मुझे पता चला कि उस मीटिंग में उस व्यक्ति को यह बताया गया कि टीम बूँद वालों को तो यकीन ही नहीं हुआ, वह तो जब उन्होंने मुझे फोन किया और मैंने कहा कि ऐसे मामलों में पहली नजर में लड़की का पक्ष ही मानना चाहिए और इसीलिए उन लोगों ने कार्यवाही करने का निर्णय लिया. (वैसे मझे इस बात का गर्व है, और अपनी पोजीशन आगे भी यही रहने वाली है, फिर सामने कितना भी जरुरी दोस्त क्यों न हो).
खैर, उसके बाद मैंने वह किया जो मुझे करना चाहिए था. मयंक और इला को फोन और उन्हें या तो कानूनी कार्यवाही करने की या माफ़ी मांगने की सलाह. जब उन्होंने नहीं मांगी ,तो मैंने एक स्टेटस लगाया जिसके बाद उन्होंने पहली बिना नाम की माफ़ी मांगी. पर मैं और ठगे जाने को तैयार नहीं था. उसके बाद दूसरा स्टेटस लगाया जहाँ सार्वजनिक चरित्रहनन के लिए सार्वजनिक माफ़ी की बात की. और इसी के बाद मयंक और इला ने टीम बूँद की तरफ से उस व्यक्ति से माफ़ी मांगी.
फिर इस कथा का अगला दौर शुरू हुआ. टीम बूँद के दूसरे खेमे के लोगों द्वारा अपनी राजनीति के लिए उस व्यक्ति को मोहरा बनाने का खेल जिसका नेतृत्व कोई जहरीला तपन नामक आदमी कर रहा है. इस खेल की खबर मुझे तब लगी जब कामरेड Girijesh Tiwari ने मुझे बताया कि जहरीला तपन कोई वीडिओ लेकर उनसे मिलने आजमगढ़ तक गया. उन्होंने यह भी बताया कि जहरीला तपन ने यह माना कि यह वीडिओ नरेंद मोदी भक्त मधु किश्वर के घर में बनाया गया, क्यों यह हममें से कोई नहीं जानता. यह भी कि वह व्यक्ति यह वीडिओ लेकर गली गली घूम रहा है,.
मुझे लगता है कि अब इस मुद्दे से सीधे टकराने का वक़्त आ गया है. वक़्त आ गया है कि अगर इन लोगों को लगता है कि कुछ ऐसा हुआ है तो वह उस व्यक्ति के खिलाफ पीड़िता के साथ कानूनी और सार्वजनिक दोनों कार्यवाहियाँ शुरू करें और मेरा वादा है कि मैं पीड़िता के साथ खड़ा रहूँगा.
और अगर वह ऐसा नहीं करें तो साफ़ होगा कि वह इस कहानी के बहाने कोई और खेल खेल रहे हैं और यह नाकाबिले बरदाश्त है. सो अब सीधी चुनौती है, न्याय की लड़ाई लड़नी है तो सामने आकर लड़ने की हिम्मत करें, और नहीं तो इतना तो सामने आयें ही कि वह व्यक्ति आप पर कार्यवाही कर सके.
सो साहिबान, वीडियो ही नहीं, पूरी कहानी नाम के साथ सार्वजनिक कर दें. फुसफुसाहटों से न्याय नहीं पाया जा सकता न.
[उस वरिष्ठ साथी का नाम इसलिए नहीं लिया क्योंकि मैं चाहता हूँ कि यह महान काम वह लोग करें जिससे अगर वे मुकदमा न करें तो उस साथी को उनपर मानहानि का दावा कर 'डैमेजेज' मांग सकें. इसलिए भी कि वह समझ सकें कि पीड़िता का आविष्कार नहीं किया जा सकता, या तो कोई पीड़िता है, या नहीं है. सो जो बात हो साफ़ हो, सीधी हो.]
http://www.hastakshep.com/hindi-news/khoj-khabar/2013/12/20/खुर्शीद-हत्याकांड-हत्याटे
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खुर्शीद अनवर प्रकरण : मुसीबत में फँस सकती हैं मधु किश्वर ! (हस्तक्षेप से साभार) : Amalendu Upadhyaya
नई दिल्ली। बलात्कार पीड़िता लड़की को न्याय दिलाने के नाम पर मरहूम खुर्शीद अनवर के खिलाफ तीन महीने कैंपेन चलाने के मामले में एनजीओ साम्राज्ञी मधु किश्वर धारा 306 की अभियुक्त बन सकती हैं।
हमने इस संबंध में आरुषि मर्डर केस में नूपुर तलवार के अधिवक्ता मनोज सिसौदिया से जब बात की तो उनका साफ कहना था कि मधु किश्वर पर दफा 306 और कथित अभियुक्त व कथित पीड़िता दोनों के डिफेमेशन का साफ मामला बनता है। उन्होंने बताया कि मधु किश्वर या किसी अन्य को कथित पीड़िता का बयान रिकॉर्ड करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है और ऐसा करके मधु किश्वर व उनके सहयोगियों ने साफ तौर पर पुलिस के काम में हस्तक्षेप किया है और पुलिस को स्वतः इसकी जाँच करनी चाहिए।
श्री सिसौदिया ने कहा कि जब कथित पीड़िता स्वयं पुलिस में शिकायत करने की इच्छुक नहीं थी तो यह संदेह बनता है कि पता नहीं किन परिस्थितियों में उसका बयान चोरी-छिपे रिकॉर्ड किया गया। यह भी हो सकता है कि उस सीडी के जरिए दुष्प्रचार करके कथित पीड़िता और कथित अभियुक्त दोनों को ही ब्लैकमेल किया जा रहा हो। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि कथित पीड़िता का छल के साथ बयान रिकॉर्ड कर लिया गया हो।
मामला इसलिए भी गंभीर है कि कथित पीड़िता का वीडियो रिकॉर्ड मधु किश्वर ने किया था तो वह बिना मधु की सहमति के दूसरे लोगों तक कैसे पहुँचा जिन्होंने पूरे तीन महीने तक उस वीडियो का प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि जब बयान रिकॉर्ड कर लिया गया था और कथित पीड़िता पुलिस में शिकायत दर्ज करना नहीं चाहती थी तो उस वीडियो का प्रदर्शन करना पीड़िता की भी अवमानना है।

वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज सिसौदिया
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मीडिया अदालत नहीं है और उसे इस प्रकार का प्रसारण करने का कोई अधिकार नहीं है, यदि मृतक की हत्या नहीं हुई है और उसने आत्महत्या की है तो इंडिया टीवी के जिम्मेदार लोगों, मधु किश्वर और सीडी केजरिए दुष्प्रचार करने वाले लोगों पर पुलिस जाँच के बाद मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने का भादस की धारा 306 का मुकदमा बन सकता है। यह जाँच का विषय है। उन्होंने कहा कि अब कानून को अपना काम करने देना चाहिए और मीडिया ट्रायल बंद किया जाना चाहिए।
उधर मरहूम खुर्शीद अनवर के भाई प्रो. अली जावेद ने भी कहा है कि पिछले तीन महीने से एक सोशल नेटवर्किंग साइट पर कुछ लोगों ने उसे (खुर्शीद) को बलात्कारी घोषित कर दिया था, जहां उसने बार-बार कहा था कि कम से कम उसके खिलाफ पुलिस में कोई शिकायत तो दर्ज कराओ।
इस प्रकरण में ध्यान देने की बात यह है एकमात्र कानूनी प्रक्रिया सिर्फ खुर्शीद अनवर द्वारा ही अपनाई गई। उन्होंने पुलिस में भी शिकायत दर्द कराई थी और अदालत में भी अवमानना का मुकदमा किया था। जबकि कथित पीड़िता का वीडियो जगह-जगह प्रदर्शित करने वाले लोगों ने पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई। अब अगर यह बात मान भी ली जाए कि पीड़िता किसी भी दबाव में पुलिस में शिकायत दर्ज कराना नहीं चाहती थी तो सवाल उठता है कि क्या पीड़िता उक्त वीडियो का जगह-जगह प्रदर्शन करवाने के लिए सहमत थी? यदि हाँ तो वह पुलिस में शिकायत दर्ज कराना क्यों नहीं चाहती थी और यदि नहीं तो कथित बूँद के कार्यकर्ता किस हैसियत से उक्त वीडियो का प्रदर्शन कर रहे थे ? क्या यह उक्त पीड़िता के साथ छल नहीं है?
http://www.hastakshep.com/hindi-news/khoj-khabar/2013/12/22/
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खुर्शीद-अनवर-प्रकरण-मुसीमधुकिश्वर का घिनौना सच और ॐ थानवी की टिप्पणी :
समय निकाल सकें तो आज रात 11 बजे IBN7 पर डॉ. खुर्शीद अनवर की आत्महत्या में सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडिया की भूमिका पर विशेष कार्यक्रम का पुनर्प्रसारण जरूर देखें। इसलिए नहीं कि मैंने भी उसमें शिरकत की; बल्कि वकील अमन लेखी का सुलझा हुआ पक्ष और मधु किश्वर का उलझा हुआ पक्ष देखने के लिए।

मधु कल से चैनलों पर चीखती-चिल्लाती हैं, पर यह नहीं बता पा रहीं कि उन्होंने कथित पीड़िता का डेढ़ घंटे का खुले चेहरे वाला वीडियो (जिससे उसकी पहचान उजागर होती है, जो आपराधिक काम है) किस हैसियत में बनाया? मामले को उन्होंने पुलिस, महिला आयोग या किसी आधिकारिक एजेंसी तक क्यों नहीं पहुंचाया? वीडियो फेसबुक के जहरीले वीरों और कुछ टीवी चैनलों तक कैसे पहुंचा? कहना न होगा उसी के हवाले, पुलिस तक मामला पहुंचने से पहले, खुर्शीद बलात्कारी के रूप में चौतरफा बेइज्जत और अंततः आत्महत्या की ओर उन्मुख हुए।
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3. Another statement on Kafila.org : On the Death of Khurshid Anwar : Kalyani Menon Sen and Kavita Krishnan
DECEMBER 22, 2013
tags: Khurshid Anwar's Suicide, Rape Allegations, Social media
by Shuddhabrata Sengupta
Guest Post by KALYANI MENON SEN & KAVITA KRISHNAN
(Find Hindi translation below the English statement)
We are deeply shocked and saddened by the death of Khurshid Anwar.
As activists committed to ending violence against women, we have been trying to ensure the due process of law and justice in relation to the allegations against Khurshid Anwar.
These allegations were being bandied about on social media, where a concerted campaign of intimidation and vilification was also going on against the complainant.
It was clear to us that the rights of both parties were being violated through such irresponsible social media campaigns. We were therefore trying (in our different capacities – Kalyani as a member of the ISD Board and Kavita as an office-bearer of a national women’s organisation) to contact the complainant and make it possible for her to come forward, so that a proper investigation could be initiated.
We deliberately held back from approaching the police or NCW without an explicit direction from the complainant. We also made sure not to breach the confidentiality of either the accused or complainant in any way. We would like to emphasise that we did not circulate the complainant’s testimony and other materials about the case to anyone.
Khurshid Anwar’s untimely and shocking death, leaving behind so many unanswered questions, is a tragedy. Equally disturbing is the continued campaign of threats and insinuations against the complainant that is continuing on social media. We fear that this campaign will destroy any remaining possibility of resolution or closure to this painful issue.
We extend our deepest condolences to Khurshid Anwar’s friends, colleagues and family, and hope that his pioneering work in the cause of secularism and peace will live on as his true memorial.
खुर्शीद अनवर के निधन से हमें गहरा सदमा और दुख पहुंचा हैं।
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध कार्यकर्ता होने के नाते खुर्शीद अनवर के खिलाफ लगे आरोपों के सिलसिले में हम कानून और न्याय की मुनासिब प्रक्रिया को सुनिश्चित करवाने की कोशिश करते रहे।
ये आरोप सोशल मीडिया पर गैरजिम्मेदाराना बहसों में लगाए गए। वहीं शिकायतकर्ता के खिलाफ भी धमकी और चरित्र-हनन का सामूहिक अभियान चलाया जा रहा था।
हम जानते हैं कि सोशल मीडिया पर इस तरह के गैरजिम्मेदाराना अभियान से दोनों पक्षों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। इसलिए हम दोनों [इन्स्टीच्यूट फॉर सोशल डेमोक्रेसी की बोर्ड सदस्य की हैसियत से कल्याणी और एक राष्ट्रीय स्तर के महिला संगठन की पदाधिकारी के बतौर कविता] ने शिकायतकर्ता से संपर्क करने की कोशिश की। हमने कोशिश की कि शिकायतकर्ता सामने आ सके जिससे समुचित जांच शुरु हो सके।
हम समझ-बूझ कर सीधे पुलिस या राष्ट्रीय महिला आयोग के पास नहीं गए क्योंकि हमारे पास इस मामले में शिकायतकर्ता के स्पष्ट निर्देश नहीं थे। हमने अभियुक्त और शिकायतकर्ता, दोनों की गोपनीयता का हर संभव तरीके से पूरा ध्यान रखा। हम स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि हमने शिकायतकर्ता की गवाही और मामले से जुड़े किसी भी अन्य तथ्य को किसी से साझा नहीं किया।
खुर्शीद अनवर की असामयिक एवं दुखद मृत्यु की त्रासदी अपने पीछे बहुतेरे अनुत्तरित सवाल छोड़ गई है। सोशल मीडिया पर शिकायतकर्ता के खिलाफ लगातार जारी धमकियाँ और खुसफुसाहटें भी उतनी ही व्यथित करने वाली हैं। हमें डर है कि इस तरह के अभियानों से इस त्रासद मामले के समाधान की बची-खुची संभावना भी नष्ट हो जाएगी।
हम खुर्शीद अनवर के मित्रों, सहयोगियों और परिवारजनों के दुख के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त कराते हुए आशा करते हैं कि धर्मनिरपेक्षता और शांति के लिए किया गया उनका महत्वपूर्ण काम उनकी सच्ची स्मृति हो।
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ज़हरीले तपन का एक और झूठ -
" गिरिजेश तिवारी नामक छद्म वामपंथी जो खुद को न्याय का सिपाही घोषित करता है, वह अपने पास न्याय की लड़ाई में सलाह लेने जाने पर अगर मेरी आलोचना करता है तो उसे यह घोषित करना चाहिये कि वह न्याय का पक्षधर नहीं है. वैसे उस समय भी उसने मुझसे कहा था कि खुर्शीद अनवर से यह गलती अगर हो गयी है तो उसके पिछले कार्यों को देखते हुये उसे माफ कर देना चाहिये. तो गिरिजेश तिवारी कौन या कैसा है यह मुझे समझाने की जरूरत नहीं है."
Zahreelaa Tapan -
1. मुझे 'संवेदनहीन' आप बेशक कह सकते हैं, लेकिन मैने पहले ही कहा था कि, मैं किसी अपराधी या उसके दलाल से सहानुभूति नहीं रखता. कानून तोड़ने, इंसानियत को शर्मसार करने वाले और कानून में विश्वास न रखने वालों का तो बिल्कुल नहीं. हम अगर संविधान और कानून से अपने अधिकारों की अपेक्षा रखते हैं तो हमें अपने कर्तव्यों का भी पूरी जिम्मेदारी से पालन करना होगा.
2. कल तक 'केस करो', 'पीड़िता को सामने लाओ' की मांग करने वाला ऐसा होने के बाद खुदकुशी जैसा कृत्य कर लें तो इससे वह महान नहीं हो जाता है. अगर आप उसे महान साबित करना चाहते हैं तो आपको 'राम सिंह' 'हिटलर' और 'नाथूराम गोडसे' जैसों को भी महान बोलना होगा. क्या आप ऐसा करेंगे...???
3. गिरिजेश तिवारी नामक छद्म वामपंथी जो खुद को न्याय का सिपाही घोषित करता है, वह अपने पास न्याय की लड़ाई में सलाह लेने जाने पर अगर मेरी आलोचना करता है तो उसे यह घोषित करना चाहिये कि वह न्याय का पक्षधर नहीं है. वैसे उस समय भी उसने मुझसे कहा था कि खुर्शीद अनवर से यह गलती अगर हो गयी है तो उसके पिछले कार्यों को देखते हुये उसे माफ कर देना चाहिये. तो गिरिजेश तिवारी कौन या कैसा है यह मुझे समझाने की जरूरत नहीं है.
4. मेरी नजर में खुर्शीद अनवर ने खुदकुशी जैसा कृत्य करके एक दूसरा बहुत बड़ा गुनाह किया. ऐसे गुनाह द्वारा सिर्फ इस मामले को सामने लाने वाले लोगों और पीड़िता के संघर्ष का ही मजाक नहीं उड़ाया गया है बल्कि आगे भी दूसरे पीड़ीताओं और उनका साथ देने वालों के अधिकार पर कुठाराघात किया है. इस कार्य के लिये उसके प्रति आक्रोश में वृद्धि ही हुई है. कानून तोड़ने और कानून का मजाक उड़ाने वाले का आप पक्ष लीजिये लेकिन इससे हमारे जज़्बों में कोई कमी नहीं आयेगी. अभी मयंक सक्सेना और इला जोशी जैसे दलालों को सजा दिलाना बाकी है. गलत साबित होने पर हम कल भी सजा भुगतने को तैयार थे और आज भी है. हमने अपने हर तरह के अंजाम को पहले ही स्वीकार कर लिया था.
5. पुलिस स्टेशन से हो आया हूँ, उम्मीद है अब कार्यवाही जल्द ही पूरी होगी और फैसला भी जल्द ही होगा. वैसे लगभग तीन महीने बाद भी पीड़िता अपने आरोप पर कायम है यह सबको पता है जबकि पीड़िता के खिलाफ दुष्प्रचार में समर अविनाश पाण्डेय, मोहम्मद अनस, मयंक सक्सेना, इला जोशी, कालिकान्त झा, दीपेंद्र राजा पाण्डेय जैसे दलाल लगे हुये हैं उनका स्टैंड उनके और खुर्शीद अनवर के गुनाहों को समझने के लिये काफी है. हाँ जिनके आँखों पर दोस्ती-रिश्तेदारी का चश्मा लगा हो, उनको यह नजर न आना स्वाभाविक है. बहुत लिख चुका अब अदालती कार्यवाही की तैयारी करता हूँ.

संघर्ष के साथियों को सलाम और मित्रों को धन्यवाद...!!!
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