Monday 28 October 2013

शब्द-चित्र : हरिशरण पन्त - गिरिजेश


"विकास करना है, तो विवाद से बचिए !" 

— हरि शरण पन्त
प्रिय मित्र, आइए आज आपकी आज़मगढ़ की एक शानदार शख्सियत से मुलाकात कराऊँ.
यह है पन्त - मेरा पन्त - हरिशरण पन्त - यानि कि वह शख्सियत,
जिससे मेरी मुलाकात 1987 में अचानक हुई,
सिधारी चौराहे पर एक कवि-सम्मेलन के दौरान उसकी कविता सुनी,
उसी रात के अँधेरे में वहीँ एक जीप की पिछली सीट पर चाय पीते-पीते परिचय हुआ,
जो मूलतः कवि है,
जो पेशे से पत्रकार है,
जिसने फर्श से अर्श तक ज़िन्दगी का हर दौर पूरी शिद्दत के साथ जिया है,
जिसकी कलम की धार ने समय-समय पर अनेक दुर्दान्त शिकार किये हैं,
जो अपने आप में एक टीम है,
जिसकी दिलेरी और बहादुरी का मैं ख़ुद चश्मदीद गवाह हूँ,
जो गरीबों के हक़ में अधिकारियों से निःस्वार्थ भाव से बार-बार जूझता रहा है,
जिसके दोस्त भी अगणित हैं और जिससे जलने वाले भी असंख्य हैं,
जो वहाँ तो होता ही है, जहाँ ख़ुद होता है,
मगर वहाँ और भी कूबत के साथ होता है, जहाँ ख़ुद नहीं होता,
क्योंकि वहाँ उसके अपने लोग होते हैं,
लोग जो उसे प्यार करते हैं,
लोग जिनके लिये उसने अपनी ज़िन्दगी का कोई न कोई हिस्सा जिया है,
जो काल-पुरुष पुरस्कार योजना का महत्वपूर्ण साथी रहा,
जिस अकेले की वजह से मैं वापस लौट कर 91 में आज़मगढ़ आया,
जिसके साथ टोली बना कर आज़मगढ़ की सड़कों पर घूम-घूम कर मैंने क्रान्तिकारी जनगीत गाये,
जो स्टूडेन्ट ऐक्शन फ़ोर्स की टीम में साथ-साथ खड़ा रहा था,
जिसके कलाभवन के कमरे में मुझे शरण मिली,
जिसके घर से मुझे वर्षों तक भोजन मिला,
जिसके साथ मैंने ज़िन्दगी के अनेक वर्ष गुज़ारे,
जिसने मेरा सम्मान खुद भी किया और लोगों से भी करवाया,
जिसके साथ मैंने अपनी पराजित ज़िन्दगी की एक और अगली पारी शुरू की,
जो राहुल सांकृत्यायन जन इन्टर कालेज की कल्पना और स्थापना में साथ रहा,
जिसके दम पर मैंने सबसे कद्दावर लोगों को भी खुल कर के ललकारा,
जिसकी ज़बान पर मैं आँख मूँद कर यकीन करता रहा हूँ,
जिसने मेरी मुसीबत की सबसे बुरी घड़ियों में अपना सब कुछ दाँव पर लगाया है,
जिसके बारे में लोग मुझसे ही सबसे अधिक शिकायतें करते रहे हैं,
जिसे मैं घोषित तौर पर आज़मगढ़ में सबसे अधिक प्यार करता हूँ,
यह है - मेरा अपना - मेरा प्यारा पन्त !

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