Thursday 17 October 2013

जीवन तुम, मैं पात पुराना – गिरिजेश


मैं दुनिया को बदल रहा हूँ,
मैं लोगों को सिखा रहा हूँ;
दुनिया कैसे-कैसे बदली –
यह लोगों को बता रहा हूँ|

लोग न बदले, तो धिक्कारा,
रोया, कलपा और ललकारा;
उनकी जगह खड़ा हो सोचा,
उनकी जड़ता को भी नोचा|

अपनी ख़ुद की जड़ता देखी,
उसको जब भी छूना चाहा;
मन ने थोड़ी छूट दे दिया,
अपनी कमी नहीं खलती है|

जब अपने को ख़ुद ही देखा,
नहीं कह सका खुद से भी मैं; 
मैं तो ख़ुद हूँ औना-पौना,
क्यों हूँ मैं इतना-सा बौना!

किया भला क्या कुछ भी ऐसा,
जिससे ख़ुद को सही कह सकूँ;
अपने पर ख़ुद गर्व कर सकूँ,
साफ़ दिख रहा दोहरापन है|

साफ़ दिख रहा अपना चेहरा,
बना जगत का मैं ख़ुद मोहरा;
मोहरा तो पीटा जाता है,
मैं ही फिर कैसे बच पाता!

जिसको मुझको पड़ा छोड़ना,
तड़ से छोड़ा, तड़ से तोड़ा;
फिर जब मुझको सबने छोड़ा,
तो क्यों बिलखा, कैसे कलपा!

जो मैंने है किया सदा ही,
वही सामने मेरे आता,
मुझको मेरा सच दिखलाता,
फिर भी मेरा मन क्यों उसको,
नहीं सहज स्वीकार कर रहा!

इस मन से मैं जूझ रहा हूँ,
इस मन से मैं हार रहा हूँ;
नहीं मगर मेरा ज़िद्दी मन,
मुझको अभी पटक ही पाता|

मैं तो लड़ता रहा अभी तक,
और हारता रहा लड़ाई;
तुम निर्मम बन मुझको छोड़ो,
ताकि आगे बढ़े लड़ाई|

“मैं लोगों को चला बदलने,
ख़ुद को नहीं बदल पाया मैं!”

मैं यह सच स्वीकार कर रहा,
मगर नहीं मैं अब तक बदला,
और नहीं उम्मीद कर रहा,
बहुत जल्द ही बदल सकूँगा|

तुम मुझसे मजबूत रही हो,
तुमने मुझसे ज़्यादा झेला;
तुम अब आगे बढ़ती जाना,
मुझे छोड़ दो – पात पुराना!

चाहे जितना ख़ुद को रोके,
चाहे जितना ख़ुद को टोके,
मगर उसे छँटना पड़ता है,
आँधी में गिर ही जाता है|

मुझे हटाओ, मुझको छोड़ो,
नूतनता से रिश्ता जोड़ो;
जीवन तो नूतनता में है,
जीवन से ही नाता जोड़ो!
(17.10.13. 5 बजे प्रातः)

1 comment:

  1. Ashok Verma - "बहुत उत्तम व सार्थक रचना पढवाने के लिए धन्यवाद गिरिजेश जी।"

    Himanshu Kumar - "वाह हमेशा की तरह शानदार"

    Shamshad Elahee Shams - "कथ्य शानदार है ....कविता और बेहतर हो सकती थी ..."

    Vijay Shanker Karahiya - "achchhi rachnaa hai"

    Vikash Gupta - Friends with Manaash Grewal and 1 other
    इस मन से मैं जूझ रहा हूँ,
    इस मन से मैं हार रहा हूँ;
    नहीं मगर मेरा ज़िद्दी मन,
    मुझको अभी पटक ही पाता|"

    Shashi Bhushan Jauhari - "सातवाँ, ग्यारहवाँ और अंतिम पद विशेष और पूरी कविता सुन्दर, शिक्षा प्रद ।"

    Yadav Shambhu - "चाहे जितना ख़ुद को रोके,
    चाहे जितना ख़ुद को टोके,
    मगर उसे छँटना पड़ता है,
    आँधी में गिर ही जाता है|..."

    Shamim Shaikh - "vah girjesh ji kaivta to bahut achchi likhi aapne atmalochna bhi hai zindagi ke prti asha bhi aur khij bhhi, very good"

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