Saturday 26 October 2013

संघर्ष और उसकी कीमत का सवाल - गिरिजेश


प्रिय मित्र,
ज़िन्दगी क़दम-क़दम पर हमारा इम्तेहान लेती ही रहती है.
ज़िन्दगी हर कदम पर कोई न कोई संघर्ष खड़ा करती ही रहती है.
हर संघर्ष के दो पक्ष होते ही हैं.
दोनों पक्षों के बीच एक ही सच हो सकता है.
सच केवल एक ही पक्ष के साथ रह सकता है.
दूसरे पक्ष को झूठ का ही सहारा लेना पड़ता है.
झूठ का हथियार चलाने वाला नैतिक रूप से कमज़ोर हो जाता है.
उसकी पराजय मूलतः इसी के चलते अपनी ही नज़र में गिर जाने के कारण होती है.
हर संघर्ष में हमें अपना पक्ष चुनना ही पड़ता है.
हमारे लिये भी कभी भी अपना पक्ष चुनना इतना आसान नहीं होता.
पक्ष चुनते ही हमको दो टूक शब्दों में अपने हिस्से का सच बोलना ही पड़ता है.
सच कहना तो मुश्किल है ही, सच सुनना भी बहुत ही मुश्किल होता है.
हर संघर्ष हर तरह की यन्त्रणा देता ही है.
हर संघर्ष हर एक से अपनी कड़ी कीमत वसूलता ही है.
हमको वह कीमत पूरी दिलेरी से अदा करनी ही होती है.
हर संघर्ष हमारी क्षमता की परीक्षा करता ही है.
पक्ष न चुनने वाला भी तटस्थता का पक्ष तो चुनता ही है.
उसकी चुप्पी और भी ख़तरनाक होती है.
सामने आ कर वार करने वाला प्रतिभट तो फिर भी बेहतर है.
चुप्पा दोस्त बोल देने वाले दुश्मन से भी अधिक खतरनाक होता है.
बोलता तो वह भी है.
शुरू में वह दोनों में से किसी एक के परास्त होने की प्रतीक्षा कर रहा होता है.
और तब विजेता के साथ खड़ा होकर पराजित का उपहास करने के लिये ही बोलता है.
अन्दर से वह केवल एक घिनौना चाटुकार होता है.
चाटुकार को कोई भी प्यार नहीं करता.
चाटुकार को कोई भी प्यार कर ही नहीं सकता.
उससे हर आदमी नफ़रत ही करता है.
मगर वह भी अपनी फ़ितरत से मजबूर होता है.
उसके अन्दर न तो सच बोलने का और न ही अपना पक्ष चुन सकने का साहस होता है.
लड़ कर मरना सड़ कर मरने से बेहतर है.
इसी लिये संघर्ष में हिस्सा लेना पलायन से बेहतर है.
हर संघर्ष हमारी क्षमता को बढ़ाता भी है.
हारने पर हमारी ज़िद बढ़ती है और जीतने पर हमारा हौसला बढ़ता है.
इतिहास विजेता के पक्ष में लिखा तो जाता है.
मगर पराजित योद्धा के तेवर को भी इतिहासकार सलाम करते रहे हैं.
आने वाली पीढ़ियाँ उससे ही अधिक प्रेरणा लेती रही हैं.
शहादत की अपनी अलग ही इज्ज़त, तेवर और शान है.
विजय का गौरवगान करने वाले भी तभी उसको इज्ज़त से नवाजते हैं,
जब विजय इन्सानियत की ख़िदमत में इन्साफ और सच के साथ खड़ी होती है.
वरना चाटुकार चाहे जो भी कहें, जन तो उससे नफरत ही करता है.
मैंने सामने आने वाले हर संघर्ष में अपना पक्ष चुनने की जीवन भर भरपूर कीमत अदा किया है. वह कीमत मैं आज भी अदा कर रहा हूँ और आगे भी करते रहने के लिये संकल्पबद्ध हूँ.
आपका अपने बारे में क्या मत है ?
अभी बस इतना ही...
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका अपना गिरिजेश.

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