Sunday 19 July 2015

____ Doubt and Trust ____



My Dear Friend, today one of my friends suggested me not to trust everyone blindly. 

I had only one reply. I told him - "if we want to change our social system based on exploitation, oppression, injustice and corruption, we must take care of each and every person with full responsibility, whosoever comes to us from the society.

If we don't want any sabotage, we must leave our work of changing the world.

Otherwise we must be prepared always to face 'THE WORST' response from any of OUR family members, relatives, neighbours, students, friends, colleagues or comrades.

Because we all have our 'BIRTH-SCARS', which come with us from our own background. 
And our background is only a part of the system dehumanising us all at each and every step of our lives.

We are to change the person who comes in our contact fully by the process of transformation of personality.
We are to transform his circumstances, his behaviour, his thoughts, his outlook, his backwardness, his limitations.
We are to cultivate a new strength from his inner self. 
We must try to change his weaknesses into his strength.

We may fail in our attempt, but we can't change our aim.
We have no option till we believe in and follow the slogan given by our great Path-Finder fore-father Rahul Sankrityayan -

"Don't Quit, Change The World."

with a lot of love and full hope in a better tomorrow - your's girijesh (18.7.15)

Thursday 16 July 2015

____ एक सुखद समाचार ____


"समुद्र और उठा, और उठा, और उठा; 
किसी के वास्ते ये चाँदनी बवाल हुई.

मेरी ज़ुबान से निकली तो सिर्फ़ नज़्म बनी
तुम्हारे हाथ में आई तो एक मशाल हुई." 
— दुष्यन्त कुमार

प्रिय मित्र, कल रात मुझे एक बार फिर अपने जीवन की सबसे बड़ी ख़बर मिली और परिवर्तनकामी जन-दिशा की अपनी सृजनात्मक और प्रयोगधर्मी कार्य-पद्धति की सार्थकता और सफलता का और भी अधिक गहराई के साथ बोध हुआ. 

अपने रचनात्मक मॉडल पर मेरा यकीन और भी बढ़ गया.

कल डॉ. मयंक त्रिपाठी का टाटा कैंसर इंस्टिट्यूट में चिकित्सा-जगत की उच्चतम उपाधि एम. सीएच. के लिये सभी बाहरी अभ्यर्थियों के बीच सर्वोत्तम व्यक्ति के रूप में चयन हो गया. टाटा कैंसर इंस्टिट्यूट कैंसर की चिकित्सा-शिक्षा के लिये भारत का एकमात्र विश्वस्तरीय संस्थान है.

डॉ. मयंक की पत्नी डॉ. शुभी मयंक का माइक्रोसर्जरी में एम. सीएच. के लिये किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ में चयन हुआ है.

दोनों ने अपने इस सपने को रूपायित करने के लिये सब कुछ छोड़ कर अनवरत स्वाध्याय किया है. 

शिक्षा क्रान्ति का अकाट्य शस्त्र है. शिक्षा-जगत में किये जाने वाले क्रान्तिकारी हस्तक्षेप का परिणाम सामने आने में लम्बा समय लेता है और इसका प्रभाव भी दीर्घकालिक होता है. 

आतुरता की आपा-धापी में की जाने वाली गतिविधियों का परिणाम भले ही ताबड़तोड़ सामने आता प्रतीत होता है परन्तु उनका प्रभाव भी क्षणिक होता है. 

और क्रान्ति क्षण-भंगुर नहीं हुआ करती. 
क्रान्ति मानवता की विकास-यात्रा का शास्वत और अनश्वर परिवर्तन है.

एक के बाद एक और नया इन्सान गढ़ना - पूरी तल्लीनता से गढ़ते जाना ही मेरे जीवन का लक्ष्य रहा. इसी काम में चुपचाप जीवन गुज़रा. 
जीवन भर कभी सफलता और सम्मान तो कभी विफलता और अपमान दोनों ही मुझे मयस्सर होता रहा है. दोनों ने ही मेरे काम को निखारा है. दोनों ने ही मेरा भी व्यक्तित्वान्तरण किया है.

आज एक बार फिर से मुझे अपनी कविता की ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं —

अन्दर का सच : —

हँसता-रोता हूँ, गीत गाता हूँ; मैं अकेले ही गुनगुनाता हूँ।
साथ में कोई भी नहीं होता, मैं ख़ुद अपने पे मुस्कुराता हूँ।।

सामने लाना कितना मुश्किल है? सामने ला भी कहाँ पाता हूँ?
मैं किसी से क्या कहूँ दर्द-ए-ज़िगर? जिसको पाता हूँ, दूर पाता हूँ।

बिजलियाँ क्यों वहीं गिराते हो? मैं जहाँ घोंसला बनाता हूँ।
भागता ही रहा हूँ आजीवन, अब कहाँ भाग भी मैं पाता हूँ?

रात में जागता हूँ मैं जब भी, गीत कोई नया बनाता हूँ।
उनकी यादों के पाक़ पैरों तले, अपने आँसू ही मैं बिछाता हूँ।।

बाहर का सच : — 

जब भी अन्धेरा सिर पे चढ़ता है, मैं तुरत रोशनी जलाता हूँ;
जिन्दगी सिलसिला ही है ऐसा, जब भी तोड़ा तो जोड़ पाता हूँ.

सच को स्वीकारना नहीं आसाँ... झूठ बोला तो दरक जाता हूँ;
क्यों तुम इतना अधिक उछलते हो? आइना जब भी मैं दिखाता हूँ.

दोस्ती है कहाँ मुझे हासिल? दुश्मनी की फसल उगाता हूँ;
तुम चुनौती भी ले नहीं पाते, जब भी ताकत को आजमाता हूँ.

जंग क्यों आर-पार होती नहीं? कसमसाता हूँ, तिलमिलाता हूँ;
अपनी इज्ज़त भी क्या, ज़लालत क्या? नेक इंसान जो बनाता हूँ.

ढेर सारे प्यार के साथ — आपका गिरिजेश  17.7.15.

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