Sunday 27 May 2012

हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!



हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!  

हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!
तुम काट रहे हो वही डाल, जिस पर है डेरा सुबह-शाम;
अपना भी हित तुम नहीं समझ सकते, बन बैठे हो गुलाम.
है कठिन मार्ग जीवन-रण का, चलता प्रलाप से नहीं काम;
पर अक्ल नहीं है तनिक तुम्हें, पाते असफलता, नहीं नाम.
सम्मति का भी कुछ नहीं काम; हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!

अपना लेते हो तुरत-फुरत, जग से मिलते जो भी विकार;
दिन-रात ईर्ष्या से जलते, करते रहते कुत्सा-प्रचार.
शुभचिंतक यदि है कोई तो, देते हो कष्ट उसे अपार;

अपनी करतूतें दोहराते, ले नहीं पा रहे हो विराम.
लग नहीं सकी मुँह में लगाम; हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!

सब को ही गैर समझते हो, खुद को कैसे पहिचानोगे?
चाहे जितना कोई कर दे, एहसान भला क्यों मानोगे?
धन-पशु समझा है जिसे सदा, इन्सान भला क्यों मानोगे?
खाते हो नमक जिस किसी का, करते जीना उसका हराम.
तुम पाओगे कैसा इनाम? हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!

सच की ताकत से दूर खड़े, हर बार झूठ ही कहते हो;
डूबे घमण्ड में रहते हो, बन-ठन कर ऐंठन सहते हो.
जन-गण प्रतिरोध कर रहे हैं, तुम क्यों धारा में बहते हो?
सत्ता की चमक देखते ही, झुक जाते, करते हो सलाम.
बन सका नहीं कोई मुकाम, हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!

दुश्मन से बाज नहीं पाते, अपनों पर ही करते प्रहार;
मन की कालिख के चलते ही, सब लोग कर रहे बहिष्कार.
प्रहसन के पात्र बने फिरते, हर ओर पा रहे तिरस्कार;
हरदम खटते ही रहते हो, पाया जीवन भर नहीं दाम.
चलने न दिया कुछ इन्तेजाम, हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!

कुछ फ़िक्र करो बच्चों की भी, कुछ तो पत्नी की भी सोचो;
कुछ बूढ़ी माँ का ख्याल करो, कुछ तो समाज की भी सोचो.
यदि नहीं साथ में दौड़ सके, तो भी जीवन बढ़ जाएगा;
पीछे छोड़ेगा तुम्हें, ज़हर कायरता का चढ़ जाएगा;
कैसे बदलोगे यह निजाम? हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!

है टूट रही यह डाल बचो, होगा विध्वंस संभल जाओ;
ऐसा न करो कुछ भी जिससे जीवन भर रोओ-पछताओ.
सोचो, क्यों छले जा रहे हो, मंजिल भी नहीं पा रहे हो?
कैसे पाओगे साम-दृष्टि? कैसे खोजोगे दिशा वाम?
छल-छद्म छोड़ दो, रचो साम! हे मूर्खराज, तुमको प्रणाम!

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