Monday 6 August 2012

नारी-मुक्ति आन्दोलन जिन्दाबाद!




क्यों? आखिर क्यों?
प्रिय मित्र, काली और दुर्गा की पूजा करने वाले भक्त गण क्या अपनी बेटी को दुर्गा और पत्नी को काली जैसा आचरण करने की छूट देने की हिम्मत रखते हैं. मैं समझता हूँ वे किसी भी तरह से किसी भी हद तक उतर कर इसका उलटा ही करते हैं. अगर मेरी बेटी में काली का आत्मसम्मान और दुर्गा का शौर्य हो तो क्या बात है! इससे कम पर नारी-मुक्ति असंभव है. क्या यह कामना पूरी तरह भारतीय नहीं है? क्या मेरे परम्परावादी मित्र मुझसे सहमत होने का साहस रखते हैं?

"उठ खड़ी हो, बन्धनों को तोड़ दे! 
कर रही क्यों रूढ़ियों का जाप है? 
तन्त्र को इस पोसती अबला बनी, 
खुद बनी निज जाति पर अभिशाप है?"

Dear friend, have the devotees of Kali and Durga the courage to allow their daughters and wife to act like these goddesses. I think any way they can go to any length to do the opposite. if the self-esteem of kaalee and the valor of Durga develops in the personality of my daughter, then what's the point! Less than that the women-freedom is impossible. is this ambition not comletely an indian desire? do my conservative friends have the courage to agree with me?

"Stand up, to break the chains! 
Why are you chanting the stereotypes? 
becoming weak and vulnerable you are only defending this system! 
have you not become a curse to your own race? "

to oppose the women’s liberation there are standing in opposition the Tikadhari Kupmnduk conservatives on one side and on the other are the Taliban fighters intent on maintaining the value system of islam by making captive the women inside the mask. The husband is burning their wife in day to day family life at in law’s residence while she is alive and he is not even hesitating from killing her in dowry murder. there are fathers donating their daughters to become free from her burden by killing her even before her birth inside the uterus and turban bearing jaats have insisted on going ahead to kill their daughters in the name of prestige killing to maintain the purity of their clan’s blood. even today the women are bound to live the life of second grade citizen and are oppressed inside the frame of the doorway of house, as well as both in the in the market and the office being humiliated by not accepting them as humans on the level of equality but merely an "stuff" to be consumed by male dominated society all over the world. The women’s liberation movement may become even more powerful – I want to politely request you to involve, with your influential role in the campaign of women’s liberation movement. long live women’s liberation movement! long live revolution!with a lot of love - girijesh


आज नारी-मुक्ति के विरोध में खड़े हैं एक ओर टीकाधारी कूपमंडूक परम्परावादी, तो दूसरी ओर हैं नकाब में नारी को कैद करके रखने का दुराग्रह बनाये रखने पर आमादा तालिबानी जेहादी. जहाँ पतिदेव हर दिन उनको जिन्दा नरक में भूनते रहते हैं और दहेज-वध करने से भी बाज़ नहीं आते, वहीँ पिता जी या तो भ्रूण-हत्या करके अपनी कन्या का जन्म लेने के पहले ही 'दान' कर के मुक्त हो जाते हैं या फिर प्रतिष्ठा-हत्या कर के खाप के खाप पग्गडधारी जाट अपने खून को शुद्ध बनाये रखने पर बजिद हैं. अभी भी जहाँ चौखट के अन्दर नारी उत्पीड़ित है, वहीँ बाज़ार और ऑफिस में भी उसे मनुष्य नहीं 'माल' मान कर अपमानित किया जा रहा है. ऐसे में नारी-मुक्ति आन्दोलन और भी सबल बने - इस कामना को साकार करने के अभियान में अपनी प्रभावशाली भूमिका का निर्वाह करने का आप से विनम्रता के साथ अनुरोध करना चाहता हूँ.
आज भी नारी को समानता और सम्मान उपलब्ध नहीं है. सारी दुनिया में नारी दूसरे दर्जे के नागरिक का जीवन जी रही है. उसे सेकंड सेक्स कहा जाता है. फर्स्ट सेक्स नहीं. पुरुष ही फर्स्ट सेक्स बना हुआ है- क्यों? परिवार में कितना प्रेम है आप भी जानते हैं. औरत को अपने पिता का घर छोड़ कर पति के घर जा कर रहना होता है. पति क्यों नहीं पत्नी के घर जा कर अपनी जवानी के बाद का मृत्यु तक का जीवन बिताते हैं? क्यों औरत ही चूल्हे चौके की ज़िम्मेदारी उठा रही है. पति क्यों सुबह केवल अखबार पढ़ना और चाय का प्याला भी पत्नी के हाथ का ही पीना चाहता है? सारे व्रत नारी के लिये हैं क्यों? क्यों पत्नी की जगह पति कोई एक भी उपवास नहीं करता? अपने पूरे शरीर को रंग रोगन से पोत कर क्यों नारी ही सुन्दर मानी जाती है? पतिदेव क्यों मेकअप नहीं कर के स्वयं को और सुन्दर बना डालते हैं? मेरी एक बेटी है वह पढ़ना चाहती है, उसे टेलीफोन से पढाता हूँ. उसके ससुराल के लोग उसे केवल पेट पर्दा पर जनम-जेल में खटाने पर बजिद हैं? क्यों बेटी सरकारी स्कूल में जाती है और बेटा इंग्लिश मीडियम स्कूल में? क्यों केवल लडकी के घर से बाहर जाने पर निगाह रखते हैं माता-पिता, बेटे पर नहीं? क्यों लड़की की इज्ज़त ही बलात्कार का शिकार बना कर अपमानित की जाती है? लड़कों के कुकर्मों से माँ-बाप की इज्ज़त नहीं प्रभावित होती? क्यों पुरुष अनेक पत्नी रखता है? क्यों बहुपतिप्रथा जो एक समय में भारत में प्रचलित थी, अब प्रचलन में नहीं है. मगर बहुपत्नीप्रथा दिखाई दे जाती है? क्यों केवल नारी ही रखैल बनायी जाती है? पति रखेला नहीं बनता? पत्नीव्रती पति क्यों नहीं हैं? क्यों पतिव्रता नारी का ही गौरवगान भरा है पूरे साहित्य में? क्यों पूरा साहित्य नारी सौन्दर्य का वीभत्स चित्र लिखता रहा है ? पुरुषों ने ही अधिकतम ग्रंथों को क्यों लिख डाला? नारी और शूद्र क्यों वेद पढ़ने सुनने से प्रतिबंधित किये गये? क्यों नारी को असूर्यपश्या अवगुंठनवती बन कर रहना पड़ा? ये सारे प्रश्न उत्तर चाहते है?

इतिहास को नकारा नहीं जा सकता? क्यों सती को मायके जाने से शिव मना कर देते हैं? शिव को कहीं जाने से तो सती मना नहीं करतीं! क्यों तुलसी कह देते हैं - शिव संकल्प कीन्ह मन माही, यहि तन सती भेंट अब नाही. शिव का अपनी पत्नी को इस तरह मन ही मन तलाक दे देना क्या उचित है? इस्लाम भी तलाक देता है तो केवल पति क्यों देता है? पत्नी तलाक देने की अधिकारिणी धर्म की दृष्टि में क्यों नही है? नारी की समानता या गुलामी प्रश्न केवल इतना सीधा सा है! क्यों काली को क्रोध आया और सप्तशक्तियों को प्रकट करना पड़ा? शिव क्यों अक्षम हो गये काली के क्रोध के सामने? क्यों सारे देवगण दैत्यों का मुकाबला नही कर सके? और तब क्यों उनको अपनी नारी शक्ति को दुर्गा के रूप में युद्ध करने के लिये आह्वान करना पड़ा? क्यों सांख्य दर्शन का आदिपुरुष केवल साक्षी, द्रष्टा और निष्क्रिय है? सारी सृष्टि केवल प्रकृति की नारी शक्ति का ही विस्तार है? माया ही क्यों महाठगिनी है? मोहिनी रूप ही विष्णु को भी क्यों बना कर बार बार ठगना पड़ा?

सब सवालों का एक जवाब है कि नारी गुलाम थी और है! समाधान न हिन्दू दे सकते, न मुसलमान, समाधान केवल वह देता है, जो समस्या झेलता है और नारी आज समाधान के स्वर में बोल रही है? उसकी आवाज़ तस्लीमा नसरीन की आवाज़ है, कविता वाचक्नवी की आवाज़ है, पुष्पा की आवाज़ है, सिमोन दे बुआ की आवाज़ है, नीलाक्षी की आवाज़ है, रश्मि भारद्वाज की आवाज़ है, आकांक्षा और असंख्य लडकियों की आवाज़ है.

काल-प्रवाह के साथ गूँजती-फैलती यह आवाज समानता के अधिकार का नारी-मुक्ति आन्दोलन का विजय-घोष है, जो पुरुष दम्भ को दहला रहा है. इतिहास का विरोध करने वाले इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिए जाते हैं. इतिहास का प्रवाह नारी-मुक्ति का प्रवाह भी है!

मेरा शरीर पुरुष का है, मगर मैं अपनी बेटियों के लिये उनकी अपनी माँ से अधिक नज़दीक हूँ. मुझे अपने बेटों से अधिक अपनी बेटियों पर गर्व है. वे किसी से भी किसी तरह से कम नहीं हैं. उन्होंने आजीवन मेरी अपेक्षाओं और परीक्षाओं - दोनों पर खुद को खरा साबित कर के दिखाया है. आज भी उनके दीप्तमान आवेग और आक्रामक आक्रोश के सामने सारे आभामंडल छिन्न-भिन्न हो रहे हैं. और मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ.

नारी-मुक्ति आन्दोलन जिन्दाबाद! 
इन्कलाब जिन्दाबाद! 
भारत माता की जय! 
शुभकामनाओं के साथ – गिरिजेश



Shamshad Elahee Shams - "बकरे जैसे मुंह वाला मुल्लाह बोला 'तुमने बुरका क्यों नहीं पहना? तुम यहाँ क्या कर रही हो-तुम्हारी जगह घर है'. महिला के पास इस बात का सिर्फ इतना जवाब था कि उसने जूती निकाली और सीधे मुल्लाह के मुंह पर....... (मुझे लगता है इस काम को सदियों पहले होना चाहिए था ..खैर देर आयद दुरुस्त आयद) "
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दुनिया की पहली गुलामी नारी के हिस्से आयी. अभी तक नारी गुलाम है. नारी मुक्ति आन्दोलन को अभी बहुत बहुत कुर्बानियाँ देने के बाद ही मंज़िल मिल सकेगी. पुरुषप्रधान समाजव्यवस्था का अन्त किये बिना यह लक्ष्य पूरा नहीं होगा.


आरती को सलाम! अगर काली और दुर्गा की कहानी सुनी जाती है, तो अब आरती की कहानी सुनी जा रही है. लफंगों का इलाज ऐसे ही सारी लड़कियों को करना सीखना होगा.

इस अकेली लड़की ने जो कर दिखाया है वह क्लबों में तीज महोत्सव मनाने वाली लिपस्टिक लगी महिलाओं के गाल पर भी एक जोरदार तमाचा है. छात्राओं पर फब्तियां कसने वाले शोहदे को इसने ऐसा सबक सिखाया कि देखने वाले दंग रह गए.


सुल्तानपुर जनपद के रहने वाले रामनायक यादव की पुत्री और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीए तृतीय वर्ष की छात्रा आरती यादव ने छेड़खानी कर रहे शोहदे को न सिर्फ चप्पलों से पीटा, बल्कि उसके भागने पर उसकी बाइक में भी आग लगा दी. आरती को विश्वविद्यालय जाते समय कर्नलगंज इलाके के फकीरागंज मुहल्ले में रहने वाला एक युवक आए दिन छेड़खानी करता था. आरती ने कई बार उसे ऐसा करने से मना किया, लेकिन वह अपनी हरकत से बाज नहीं आया. शुक्रवार को पूर्वाह्न करीब 11 बजे आरती विश्वविद्यालय जा रही थी, तभी कचहरी से नेतराम चौराहे की तरफ जाने वाली सड़क पर युवक ने उसे देखकर फब्तियां कसनी शुरू कर दी. आए दिन की छेड़खानी से आजिज आरती के सब्र का बांध टूटा तो उसने उसे सबक सिखाने की ठान ली. वह युवक के पास पहुंची और तेजी से चीखते हुए उसकी बाइक पर जोरदार लात मारी. युवक बाइक समेत गिर गया तो आरती ने चप्पल से उसकी पिटाई शुरू कर दी. एक लड़की का सरेआम इस तरह रौद्र रूप देख सब हतप्रभ रह गए. देखते ही देखते उसके आस-पास मजमा लग गया. बढ़ती भीड़ और लड़की का यह रूप देख युवक बाइक छोड़कर भाग निकला. आरती इतने गुस्से में थी कि उसने सड़क किनारे पड़े ईट-पत्थर को उठाया और बाइक को कूचने लगी. इस पर भी उसका गुस्सा शांत न हुआ तो पास के पेट्रोल पंप पर गई और बोतल में पेट्रोल लाकर बाइक में आग लगा दी.


https://www.google.co.in/search?q=%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80+%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80+%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95+%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5+%E0%A4%B6%E0%A4%B9%E0%A4%B0+:-+%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0+%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%AA%E0%A4%A6&source=lnms&tbm=isch&sa=X&ei=oHXaVMPLKtCquQSWiIDwDA&ved=0CAkQ_AUoAg&biw=1344&bih=706
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मुंबई की लड़कियों ने रोज-रोज होती छेड़खानी के खिलाफ एक नायाब हथियार ढूंढ निकाला है। इस हथियार से मनचलों पर आफत टूट पड़ती है। मुंबई के लाला लाजपतराय कॉलेज की 5 लड़कियों ने एक ऐसी मुहिम शुरु की है जिससे छेड़खानी करने वालों की अब खैर नहीं है। क्या है ये मुहिम और किस तरह से मुंबई की लड़कियां मनचलों के छक्के छुड़ा रही हैं।

मुंबई के कॉलेजों में पढ़ने वाले लड़कियों ने रोज रोज हो रही छेड़खानी, सीटीबाजी से परेशान होकर खुद ही सीटी को अपना हथियार बना लिया है। लड़कियों का कहना है कि वो अपने साथ हमेशा एक सीटी रखती हैं और जब भी कोई मनचला उन्हें सीटी या कमेंट करता है तो वो भी जवाबी कार्रवाई में सीटी बजाती हैं। और आसपास के लोगों को छेड़खानी के बारे में बताती है जिससे मनचलों को सबक सिखाया जा सके।


मुंबई के लाला लाजपत राय कॉलेज की लड़िकयों ने इस सीटी अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान का नाम है 'मैं एक बजाऊं! दरसअल जब भी कोई मनचला छेड़खानी या कमेंट्स करता है तो लड़कियां अपने बैग, पर्स, या फिर गले में लटकी सीटी को निकालती हैं और कहती हैं, मैं एक बजाऊं। इससे मनचला घबरा जाता है और लड़कियां सीटी बजाकर आसपास के लोगों को इकट्ठा कर इसकी जानकारी देती हैं। 


इन पांच लड़कियों के नाम वृद्धि शर्मा है। वृद्धि लाला लाजपत राय कॉलेज की छात्रा हैं। वृद्धि ने अपनी 4 और साथियों के साथ अभियान ‘मैं एक बजाऊं’ की शुरुआत की। वृद्धि और उनकी सहयोगियों का कहना है कि वो चाहती हैं कि कॉलेज में पढ़ने वाली हर लड़की, ऑफिस जाने वाली हर महिला अपने साथ एक सीटी जरूर रखें।


गौरतलब है कि अभियान की शुरुआत के बाद से अब तक 6 हजार लड़कियां इससे जुड़ चुकी हैं। लाला लाजपत राय कॉलेज और रुइया कॉलेज की छात्राएं अब सीटी अपने साथ रखना नहीं भूलतीं। मामूली सी सीटी अब लड़कियों के बैग में, लॉकेट की तरह गले पर और रिस्ट वॉच की तरह कलाई पर नजर आने लगी है। मुंबई में लड़कियां न केवल अपने साथ सीटी लेकर घूम रही हैं बल्कि फेसबुक और ट्विटर के जरिए इसके बारे में बाकी छात्राओं को बता रही हैं।
http://www.google.co.in/imgres?imgurl=http://static.ibnlive.in.com/pix/labs/sitepix/09_2012/manchalee.jpg&imgrefurl=http://khabar.ibnlive.in.com/news/80839/1&h=420&w=630&tbnid=Qoam0xenbLGeQM:&zoom=1&docid=eB-LGgjYI63ZcM&itg=1&ei=2G7aVOW7H4-0uASStoHQDQ&tbm=isch&ved=0CB0QMygAMAA

नारी मुक्ति आन्दोलन का प्रतिनिधि स्वर - मलाला यूसुफ जई!

 

अशोक कुमार पाण्डेय - मलाला के लिए चिट्ठी
जानते हैं न आप मलाल युसुफ़जाई को? वही बच्ची जो रावलपिंडी के एक हस्पताल में मौत और ज़िंदगी के बीच संघर्ष कर रही है...वही बच्ची जो तालिबानी हत्यारों से अपने पढने के हक के लिए लड़ रही थी...कल एक पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि हरियाणा में औरतों की इज्जत बचाने का तरीका यह है कि उनकी शादी उस उम्र में कर दो जो पढने-लिखने की होती है, उससे पहले किसी पुलिस अधिकारी ने कहा था कि लड़कियों के साथ बलात्कार इसलिए होता है कि वे आधुनिक कपडे पहनती हैं...किसने सोचा था कि आज़ादी के सात दशक बीतते न बीतते सीमा के दोनों पार औरतों के इतने हत्यारे पैदा हो जायेंगे. 
खैर यह वक़्त उस बहादुर लड़की के लिए दुआ करने का है. उसके संघर्ष से एकजुटता दिखाने का है...हमारी फेसबुक मित्र आभा मोंढे निवसरकर ने यह कविता उसके नाम की है...

मलाला
तुम्हें मैंने सुना है
कॉर्नफ्लेक्स में दूध पर केला काट कर डालते समय
जब तुम ग्यारह साल में
खौलते खून के साथ
खुले आम भाषण दे रही थीं
उन लड़कियों की याद में
जो अपने स्कूल की तरह कहीं राख हुई
किसी बच्चे को गोद में लिए
कोई पन्ना चूल्हे में डाल रही होंगी
मैं ठंडे यूरोप में स्मार्ट फोन पर तुम्हें देख रही थी
मलाला
मैं तुम्हारी जगह ले ही नहीं पाऊंगी.

जिस समय उन दाढ़ी वाली लोगों ने
तुम्हारे सिर और गले पर गोली मारी
तो वह सिर्फ तुम्हारा मुंह और दिमाग बंद करना चाहते थे
वो कुछ और कर भी नहीं सकते मलाला
क्योंकि उनके दिमाग और गले पहले ही बंद हैं

मलाला
मैं जिसे सब मिला है
वो सिर्फ महसूस कर सकती है
तुम्हारा संघर्ष, तुम्हारी जिद
मलाला... तुम जियो
और हर लड़की का दिमाग बनो
यही तमन्ना है
http://asuvidha.blogspot.in/2012/10/blog-post_11.html



प्रिय मित्र, पुष्पा ने इस लेख के साथ नारी समस्या पर अनेक लेखों के लिंक्स दिये हैं. विस्तार में जानने की इच्छा हो, तो लिंक्स तक जाने का कष्ट करें.
Pushpa Yadav - 
"महाभारत-काल की नारी-विरोधी घटना में भगवान की मदद की कल्पना पर लेख असह्य क्यों?
थोड़ा भी तार्किक तरीके से सोचने वाले सभी लोग आसानी से यह समझ सकते हैं कि आजकल तथाकथित हिन्दू संस्कृति को अपनी बपौती मानने वाले अतीतजीवी अन्धविश्वासी धर्म-रक्षक तिल का ताड़ बनाना और अबोध जनमन में विभ्रम फैलाना अपना परम कर्तव्य समझते हैं.

आपको ज्ञात है कि जिस हिन्दू संस्कृति की ये बात करते हैं, यही वह संस्कृति है, जिसने विश्व को पहले तो "वसुधैव कुटुम्बकं" का जनवादी नारा दिया और फिर "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" का भी फ़ासिस्ट नारा भी दे दिया था. अब ये हिन्दुत्व के नाम पर धर्म की रक्षा करने के चक्कर में कुत्सा-प्रचार के लिये तरह-तरह की षडयंत्रकारी युक्तियाँ अपना रहे हैं. धार्मिक पुस्तकों का गलत ढंग से अनुवाद करके, तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करके ये अपना जाल फैला रहे हैं.

इतिहास गवाह है कि जब-जब अज्ञानता, संकीर्णता, असहिष्णुता और अमानवीयता बढ़ी है, तब-तब जनपक्षधर विद्रोही लोगों ने इनके खिलाफ़ आवाज़ उठाई है. आज जब हमारे समय के अधिकतर युवा अपने अधकचरे अज्ञान को ही सही ज्ञान समझकर मूर्खता के अंधकार में खोये हुए हैं, वे भारतीय संस्कृति और हिन्दुत्व के नाम पर कुछ भी करने को उतारू हो जायेंगे. परन्तु भारतीय संस्कृति के पीछे का दर्शन समझने के लिये वे कदापि तैयार नहीं हैं.

हम ने कहीं भी यह नहीं कहा है कि हम केवल पाश्चात्य संस्कृति का समर्थन और भारतीय संस्कृति का विरोध करते हैं. हम ज्ञान-विज्ञान के आलोक में तर्कों के आधार पर धर्म की जड़ता की आलोचना का पूरा हक रखते हैं और इस आलोचना को "हिन्दुत्व से बलात्कार, हिन्दू संस्कृति का अनाथ होना" - इस तरह की संज्ञा देना सिर्फ और सिर्फ बुद्धिहीनता और पूर्वाग्रह की निशानी है.

हमारी भारतीय संस्कृति की मूल विशेषता रही है - सर्वविश्लेषी-सर्वसंग्राहक प्रवित्ति, जिसने हमें प्रागैतिहासिक मातृसत्तात्मक आदिम कबीलाई समाज व्यवस्था से दास-व्यवस्था और फिर सामंतवादी समाज से आज के पूंजीवादी युग तक की अपनी लम्बी घुमावदार विकासयात्रा के विविध चरणों से होते हुए वर्तमान जनतान्त्रिक चेतना के स्तर तक पहुँचाया है। हम मानवमात्र के हितों के समर्थक हैं, मानवता ही हमारा एकमात्र धर्म है। अब चाहे वह हिन्दू धर्म हो या इस्लाम - जिस किसी में भी जो कुछ भी नारी-विरोधी है, हम उसका पुरजोर विरोध करते हैं. हम पितृसता की हर तरह की नारिविरोधी निरंकुशता का घोर विरोध करते हैं.

और अब इसके आगे हमें इस बात की कोई आवश्यकता नहीं प्रतीत हो रही है कि हम सत्य का साक्षात्कार कराने वाले इन विचारों का अन्धविरोध करने वालों के लगातार जारी अनर्गल प्रलाप पर बार-बार नयी-नयी पोस्ट डालें. हम अपने कथन को पुष्ट करने के लिये नारी-मुक्ति आन्दोलन से जुड़े सभी तरह के लिन्क्स इस पोस्ट में दे रहे हैं. जो भी हमसे जुड़ना चाहे, उसका स्वागत है और जो कूपमंडूकता की अंधभक्ति की माला जपना चाहे, उसके लिये चाणक्य ने कहा है - "अज्ञानी के लिये किताबें और अंधे के लिये दर्पण एक सामान उपयोगी है."

हम भगत सिंह की विचारधारा के समर्थक और वाहक हैं और उन्होंने कहा है - "प्रत्येक मनुष्य को, जो विकास के लिये खड़ा है, रूढ़िगत विश्वासों के हर पहलू की आलोचना तथा उन पर अविश्वास करना होगा और उनको चुनौती देनी होगी. प्रत्येक प्रचलित मत की हर बात को हर कोने से तर्क की कसौटी पर कसना होगा. यदि काफ़ी तर्क के बाद भी वह किसी सिद्धांत या दर्शन के प्रति प्रेरित होता है, तो उसके विश्वास का स्वागत है. उसका तर्क असत्य, भ्रमित या छलावा और कभी-कभी मिथ्या हो सकता है. लेकिन उसको सुधारा जा सकता है क्योंकि विवेक उसके जीवन का दिशा-सूचक है. लेकिन निरा विश्वास और अंधविश्वास ख़तरनाक है. यह मस्तिष्क को मूढ़ और मनुष्य को प्रतिक्रियावादी बना देता है. जो मनुष्य यथार्थवादी होने का दावा करता है, उसे समस्त प्राचीन विश्वासों को चुनौती देनी होगी. यदि वे तर्क का प्रहार न सह सके, तो टुकड़े-टुकड़े होकर गिर पड़ेंगे. तब उस व्यक्ति का पहला काम होगा, तमाम पुराने विश्वासों को धराशायी करके नये दर्शन की स्थापना के लिये जगह साफ करना."

हमने अपनी पोस्ट के सन्दर्भ में जो कुछ भी कहना था, कह दिया. अब इसके बाद भी न समझ सकने वाले की समझ की सीमा के लिये हम उत्तरदायी नहीं हैं. हमारा अनुरोध है कि स्वर्णिम अतीत के मनोरम सपनों की कपोल-कल्पना में जीने से बेहतर है मानव-समाज के बेहतर भविष्य की कल्पना को साकार करने के लिये वर्तमानजीवी बनना. धन्यवाद

मेरा पन्ना: सवाल आधी आबादी की सुरक्षा का....
rashmi-kala.blogspot.com
I totally agree. We need to keep working on it.....else we give our children a very bad future. Very passionately written.
Bhagat Singh 
मानवता की दुहाई देने वाला हिंदू धर्म इतना नाजुक है कि वह किसी इंसान के छू लेने भर से भ्रष्ट हो जाता है. उसमें पशुओं की पूजा उपासना को तो महत्व दिया जाता है, उनके आगे धूपबत्ती जलाई जाती है, फूल-फल चढ़ाया जाता है.. मगर एक इंसान को इंसान होने का दर्जा तक नहीं दिया जाता है. उसे मानवीय गरिमा और अधिकारों तक से वंचित कर दिया जाता है. - शहीद-ए-आज़म भगत सिंह
Ujjwal Bhattacharya - यह पाखंड कब तक चलेगा कि एक तरफ धर्म के नाम पर नवरात्रों का व्रत रहा जाए, कन्या पूजन और कन्या भोज कराया जाय और दूसरी तरफ मासूम बच्चियों पर अपनी मर्दानगी दिखाई जाए?
कोई भी दावे के साथ कह सकता है कि बलात्कार करने वाला पक्का आस्तिक रहा होगा.

Pushpa Yadav इस घिनौनी देवदासी प्रथा के लिए कौन जिम्मेदार है?
धर्म शोषण को वैधानिकता प्रदान करते हैं. इसलिए ऐसे धर्म को नष्ट करना ही एकमात्र उपाय है.


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Fight against the patriarchy, Not only against a rape | Towards A New Dawn...the other voice of th
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अन्धविश्वास मुर्दाबाद!

प्रिय मित्र, मुझे आज एक बार फिर धुर बचपन में पढ़े गये महाकाव्य 'महाभारत' के इस काल्पनिक दृष्टान्त पर गुस्सा आ रहा है? तथाकथित 'धर्मराज' युधिष्ठिर द्वारा जुए में हारी जाने के बाद सार्वजनिक तौर पर अपमानित की जाने वाली द्रौपदी के सम्मान की रक्षा करने वाला 'भगवान कृष्ण' आज है भी क्या? अगर हाँ, तो आज जब मनोरोगी नन्ही बच्चियों तक को नहीं बख्श रहे हैं, तो आस्तिकों का वह तथाकथित 'करुणानिधान दीनबन्धु भगवान' कहाँ है और क्या कर रहा है?
मेरी मान्यता है कि नारी-मुक्ति के अभियान के लिये हमें खुद पहल लेनी होगी. 
अपनी बेटी को किसी भी दुष्ट का मुकाबला करने लायक शक्तिशालिनी बनाने में कोई भी कोर-कसर मत छोड़िए.
कहीं कोई भगवान है ही नहीं. और वह किसी की भी कोई मदद नहीं कर सकता.
भगवान मुर्दाबाद!
पुरुष-प्रधान व्यवस्था मुर्दाबाद!!
नारी-मुक्ति आन्दोलन ज़िन्दाबाद!!!
इन्कलाब ज़िन्दाबाद!!!!


बर्बर खाप मुर्दाबाद !! नारी-मुक्ति-आन्दोलन ज़िन्दाबाद !!!
रोहतक ऑनर किलिंग: डेढ़ घंटे तक गूंजती रहीं चीखें
प्रेमियों का हुआ ये कैसा भयावह अंत, मां, बाप और चाचा गिरफ्तार
रोहतक‌ जिले के गांव गरनावठी में बुधवार को हुई ऑनर किलिंग के मामले में ग्रामीण इस कदर तक संवेदनहीन हो गए थे कि डेढ़ घंटे तक गांव में प्रेमी जोड़े की चीखें गूंजती रहीं, लेकिन उन्हें बचाने के लिए कोई आगे नहीं आया।
जब गांव में युवती निधि के परिजन उसका और धर्मेंद्र का अपहरण करके लाए थे तब भी किसी ने पुलिस को फोन नहीं किया। यदि कोई हिम्मत करके पुलिस को फोन कर देता तो उनकी जान बच जाती।

पूछताछ में हत्या आरोपी युवती के पिता नरेंद्र और चाचा रविंद्र ने बताया कि उन्होंने पहले निधि की हत्या की क्योंकि वह धर्मेंद्र को बचाने के लिए बहुत शोर मचा रही थी।

प्यार करने की इतनी खौफनाक सजा

'पापा धर्मेंद्र को मत मरो, चाहे मुझे मार दो'
बहादुरगढ़ से प्रेमी जोड़े का अपहरण कर युवती के परिजन उसे गरनावठी लेकर आए। युवती के घर के एक कमरे में उन्हें अलग-अलग बांधा गया। इसके बाद उन्हें पहले पीट-पीटकर अधमरा किया गया।

आरोपी पिता ने बताया कि जब वे धर्मेंद्र के साथ मारपीट कर रहे थे तो निधि बीच-बीच में उसे छोड़ने को कह रही थी, जिससे उनका गुस्सा और बढ़ गया, फिर उन्होंने निधि की गर्दन धड़ से अलग कर दी।

आरोपियों ने यह बताया कि युवती बार-बार यह कह रही थी कि भले ही उसे जान से मार डालो, परंतु धर्मेंद्र को छोड़ दो। अपने प्रेमी की जान बचाने के लिए निधि परिजनों के सामने खूब गिड़गिड़ाई थी, परंतु उनका दिल नहीं पसीजा।

युवती की हत्या के बाद युवक का सिर भी धड़ से अलग कर दिया। युवती का शव फूंकने का प्रयास किया गया, लेकिन पुलिस ने उसे अधजली हालत में बरामद किया। मामले की जांच कर रहे कलानौर थाना प्रभारी ने बताया कि पहले युवती की हत्या की गई थी, बाद में युवक की हत्या कर शव उसके घर के बाहर फेंक दिया था।

दोस्त से मांगी थी मदद, मिली मौत
प्रेमी जोड़े की जान बच जाती यदि वे पैसे मांगने के लिए अपने दोस्त को फोन नहीं करते। मंगलवार रात को निधि और धर्मेंद्र गांव से फरार हो गए थे। रात से ही युवती के परिजन उनकी तलाश में जुटे थे, लेकिन उनका कोई सुराग नहीं मिला।

धर्मेंद्र ने बुधवार सुबह अपने दोस्त से दिल्ली से बाहर जाने के लिए आर्थिक मदद मांगी। उस वक्त उसका दोस्त निधि के घर पर था। युवती के परिजनों ने ही उसे और धर्मेंद्र के भाई को वहां पर शक के आधार पर बैठा रखा था।

युवती के पिता नरेंद्र उर्फ बिल्लू को जैसे ही भनक लगी कि फोन धर्मेंद्र का है तो उन्होंने दोस्त को झांसे में ले लिया। पुलिस पूछताछ में नरेंद्र ने बताया कि उन्होंने दोस्त को कहा था कि वे निधि और धर्मेंद्र को माफ कर देंगे।
इसके बाद उन्होंने धर्मेंद्र के भाई को भी घर बुलवा लिया। उन्होंने दोस्त से फोन करवाया कि बहादुरगढ़ बस स्टैंड पर आ जाओ।

इसके बाद वे धर्मेंद्र के भाई और दोस्त को साथ लेकर बहादुरगढ़ के लिए रवाना हो गए। जब निधि और धर्मेंद्र बहादुरगढ़ पहुंचे तो युवती के परिजनों ने उन्हें अपनी गाड़ी में बैठा लिया और उसके भाई और दोस्त को वहीं छोड़ दिया।

एसपी राजेश दुग्गल ने बताया कि धर्मेंद्र ने दोस्त के पास फोन आने के बाद युवती के परिजनों को उनकी लोकेशन का पता चला और बहादुरगढ़ से प्रेमी जोड़े को उठाया गया।

अंतिम संस्कार को भी राजी नहीं थे परिजन
निधि और धर्मेंद्र के शवों के पोस्टमार्टम के लिए तीन डॉक्टरों का पैनल बनाया गया। सिविल अस्पताल के डॉ. अजीत के नेतृत्व में दोनों के शवों का पोस्टमार्टम किया गया।

धर्मेंद्र की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि तेजधार हथियार से पहले वार किए गए हैं। निधि का शव जला होने के कारण विसरा जांच के लिए मधुबन भेजा गया है। पहले दोनों के शव लेने को परिजन राजी नहीं हुए।

पुलिस ने गांव के सरपंच से बातचीत कर दोनों के परिजनों को मनाया। सुरक्षा के बीच दोनों का अलग-अलग दाह संस्कार किया गया।

युवक के परिजनों ने तोड़ी चुप्पी, दिए बयान
धर्मेंद्र के भाई पवन और चाचा सतबीर ने चुप्पी तोड़ी। दोनों ने बताया कि योजनाबद्ध तरीके से धर्मेंद्र की हत्या की गई है। दोनों पक्षों के बयान हत्या के मामले में तब्दील हो जाएंगे।

पवन ने पुलिस को बताया कि घटना के वक्त वे खेत में गए हुए थे। उसके भाई धर्मेंद्र और निधि के बीच तीन साल से प्रेम-संबंध थे, जिसको लेकर युवती के परिजन नाराज थे।

उन्होंने योजना बनाकर उसके भाई की हत्या की है। इसी तरह पुलिस ने मृतका निधि के परिवार के सदस्य आनंद और रामेश्वर के भी बयान दर्ज किए हैं जोकि रिश्ते में उसके दादा हैं।

गांव में पसरा खौफ, दबी जुबान में चर्चा
गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। ग्रामीण घटना को लेकर इस कदर खौफ में हैं कि वे सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने हुए हैं। युवक और युवती के घर के बाहर भारी पुलिस बल तैनात किया गया है।

छोटे से लेकर बड़े तक सब इस वारदात की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन पुलिस को कोई कुछ बताने को तैयार नहीं है। युवक और युवती के घर के बाहर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ था और गली भी सुनसान पड़ी थी।

महिलाएं तो पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। वहीं, बुजुर्ग हत्या पर अफसोस करने की बजाय यही कह रहे हैं कि सामाजिक ताना-बाना बिखरने लगा है।
-----------अनिल शर्मा
अमर उजाला, रोहतक शुक्रवार, 20 सितंबर 2013
(मुजफ्फरनगर के ''सिखेड़ा '' गाँव में एक भाई ने अपनी बहन को उसके प्रेमी के साथ पकड़ने पर उसकी गर्दन धड से अलग कर दी और उसका सिर एवं धड उसके प्रेमी के घर में जाकर फेंक आया ....)http://www.bhaskarhindi.com/News/21021/.html
http://www.amarujala.com/news/crime-bureau/rohtak-honour-killing-updates/
http://mediadarbar.com/tag/%E0%A4%91%E0%A4%A8%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%97/


(हमारी आवाज़ ग्रुप में अमरनाथ 'मधुर' के सौजन्य से)



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मुसलमान अपने शवों को पूरे सम्मान के साथ दफ़न करते हैं. मगर धर्मान्ध उन्मादी अपने विरोधियों को जला कर मारते हैं. क्या इस्लाम ऐसा करने को उचित ठहराता है ?
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अफ़ग़ान मर्द होने पर मैं क्यों शर्मिंदा हूँ? - करीम हैदरी बीबीसी पश्तो सेवा 26 मार्च 2015
फ़रखंदा की पीट पीट कर हत्या
अफ़ग़ानिस्तान में फ़रखंदा को पीट-पीटकर मारने और फिर उसे जलाए जाने की घटना के चार दिन हो गए हैं और मुझे नींद नहीं आ रही है.
मुझे गुस्साई भीड़ का शोर और खून से लथपथ और जली हुई महिला की तस्वीर जगाए हुए है.
काबुल के मेरे गृह नगर से हज़ारों मील दूर फ़रखंदा पर उन्मादी भीड़ का हमला हुआ था, लेकिन इन हिंसक दृश्यों ने मेरा लंदन तक पीछा नहीं छोड़ा.
अपराध बोध
फ़रखंद की हत्या के समय हज़ारों मौजूद थे
पुरुष होने की वजह से शायद मुझमें अपराध बोध का भाव आ गया है.
अाखिर सभी युद्धों के कर्ताधर्ता तो मर्द ही हैं. या इस अपराध बोध की वजह मेरा अफ़ग़ानी मर्द होना है.
मेरे देश के किसी न किसी कोने में महिलाओं के ख़िलाफ़ इसी तरह की वारदात होती रहती है.
फ़रखंदा ने शाह दू शमशेर (यानी, दो बादशाहों की तलवार) मज़ार की सरज़मीं पर जब अपने पैर रखे थे, उसके कई हफ़्ते पहले ही मैं काबुल छोड़ चुका था.
यह शहर के बीचोंबीच क़ाबुल नदी के किनारे बहुत ख़ूबसूरत इमारत है. राष्ट्रपति भवन और मुख्य बाज़ार भी पास ही है.
मज़ार पर मन्नत!
महिलाओं ने फ़रखंदा को दिया कंधा
यहां लोग मन्नत मांगने और किसी समस्या के हल के लिए फ़ीता बांधने आते हैं. क़ाबुल छो़ड़ने से पहले, मैं भी कैलीफ़ोर्निया में रहने वाली अपनी एक दोस्त की तरफ से फ़ीता बांधने मज़ार पर गया था. उसने मुझे एक तस्वीर लेने और इसे भेजने को कहा था.
मैं सीढियां चढ़ते हुए जब ऊपर पहुंचा तो वहां औरतों के एक समूह पर मेरा ध्यान गया. यह बुधवार का दिन था. पूरे देश भर में औरतें इस पारम्परिक दिन मज़ारों पर जाती हैं.
यहां कपड़ों से ढंकी चार मीनारों में से एक पर मैंने चमकते हुए पॉलीस्टर का धागा बांध दिया.
मज़ार के ऊपर और अंदर दीवारों पर रंग बिरंगे ढेर सारे कपड़े बंधे थे.
भीड़ के शोर में अपनी आवाज़ को तेज़ करते हुए, एक अधेड़ औरत ने मुझसे पूछ ही लिया, “तुमने क्या मन्नत मांगी है?”
पर मैंने टालते हुए कहा, “खाला! मन्नत तो गोपनीय होती है.”
ताबीज़ का कारोबार?
पुलिस की मौजूदगी में हत्या
वहां से निकलते वक़्त मैंने गौर किया कि औरतों के पास बैठे लंबी दाढ़ी और सफ़ेद पगड़ी बांधे दो बुज़ुर्ग एक काग़ज़ पर कुछ लिख रहे थे.
पर यह भी कोई अजीब बात नहीं थी और ऐसा तो होता ही रहता है कि महिलाएं अपनी घरेलू समस्याओं को हल करने, पतियों की सेहत की दुआ मांगने, सेना में अपने बेटों को सुरक्षित रखने या अपनी बेटियों के लिए अच्छे पति तलाशने के लिए ऐसे लोगों के पास आती हैं.
और कम पढ़े लिखे मुल्ला ताबीज़ बेच कर कुछ पैसे कमा लेते हैं.
अफ़ग़ानिस्तान के सोशल मीडिया और टेलीविज़न पर इसे लेकर ज़ोरदार बहस छिड़ी हुई है. यह तर्क दिया जा रहा है कि यह इस्लाम का दुरुपयोग तो है ही, धोखाधड़ी भी है.
फ़रखंदा की मौत पर उठे सवाल
धार्मिक मामलों में ग्रैजुएशन करने वाली फ़रखंदा भी इन आलोचकों में से एक थी. उसने एक क़दम आगे बढ़ कर मीडिया में इसका विरोध भी किया था.
वास्तव में उन्होंने निःसंतान महिलाओं को तावीज़ बेचने वाले मुल्लाओं का विरोध भी किया था.
बहस के दौरान ही उस पर क़ुरान जलाने का आरोप लगा दिया गया. ऐसा लगता है कि भीड़ ने यह सुना और उस पर हमला बोल दिया.
मर्द क्या कुछ कर सकते हैं, फ़रखंदा ने इसे आंकने में ग़लती की थी. पुरुष किसी महिला को बेवकूफ़ ही नहीं बना सकते, वे पुलिस की मौजूदगी में उसकी जान भी ले सकते हैं.
अौरत होेने का दर्द
अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं की स्थिति बुरी
मज़ार के बाहर हमेशा ही नौजवान मर्दों की भीड़ लगी रहती है. वो महिलाओं को ताकने और इस उम्मीद में यहां आते हैं कि शायद किसी से उनकी नज़रें दो चार हो जाए.
फ़रखंदा की हत्या के मामले में अभी तक 20 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया है. इनमें कई युवा और आधुनिक शहरी मर्द हैं. इनमें से कई के फ़ेसबुक अकाउंट हैं, जिन पर उन्होंने हत्या की ज़िम्मेदारी का दावा किया है.
मेरे समेत कई अफ़ग़ानों के लिए यह परेशान करने वाली बात है कि इस तरह के युवा लोग अचानक ख़ुद को क़ुरान के दिग्भ्रमित रक्षक के रूप में तब्दील कर सकते हैं और इस तरह की घृणित हिंसा कर सकते हैं.
फ़रखंदा की हत्या पर उठे सवाल
एक युवा जान दर्दनाक ढंग से ख़त्म कर दी गई. यह उस देश में हुआ है जहां लोगों में मज़हब की समझ बहुत अच्छी नहीं है, जहां विद्वान लोग कई बार केवल वापस लेने के लिए ज़ल्दबाजी में फ़ैसले ले लेते हैं.
यह वह समाज है, जहां पुलिस बल भ्रष्ट और अयोग्य है और जहां औरतों की तक़लीफ़ें ख़त्म होने के कोई आसार फ़िलहाल नहीं दिखते.
http://www.bbc.co.uk/…/03/150324_why_farkhanda_was_killed_pm


'जलाई गई औरत ने नहीं जलाया था क़ुरान'
22 मार्च 2015
महिलाओं ने उठाया जनाज़ा
अफ़ग़ानिस्तान में अापराधिक मामलों की जांच करने वाले महकमे के प्रमुख ने कहा है कि जिस महिला को क़ुरान जलाने के आरोप में पीट-पीट कर मार डाला गया था, वह बेक़सूर थीं.
गुरुवार को गुस्साई भीड़ राजधानी काबुल में फ़रख़ंदा नाम की महिला को मस्जिद से बाहर खींच ले गई थी और उसे पीट-पीटकर मार डाला था. उसके बाद उसके शरीर को आग के हवाले कर दिया गया था.
जनरल मुहम्मद ज़हीर ने कहा है कि जांच के बाद ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है, जिससे यह साबित किया जा सके कि फ़रखंदा ने क़ुरान जलाया था.
सुपुर्दे ख़ाक़
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी
फ़रखंदा को रविवार को सुपुर्दे खाक कर दिया गया. उनके अंतिम संस्कार में बडी तादाद में लोगों ने शिरकत की. मानवाधिकारों के लिए लड़ रही संस्थाओं से जुड़े लोगों ने फ़रखंदा के जनाज़े को कंधा दिया.
फ़रखंदा के परिजनों का कहना है कि वह लंबे समय से मानसिक बीमारी से जूझ रही थीं. इस मामले में सात लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.
अफ़ग़ानिस्तान
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने वारदात की निंदा की थी और कहा था कि किसी भी शख़्स को क़ानून अपने हाथ में लेने का हक़ नहीं है. उन्होंने पूरे मामले की तफ़सील से जांच करने के आदेश भी दिए थे.
पाकिस्तान में ईश निंदा के नाम पर लोगों पर हमले अक्सर होते रहते हैं, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में यह इस तरह का पहला मामला बताया जा रहा है.
http://www.bbc.co.uk/.../150322_afghanistan_lynched_women...





 इस्लामी धर्मगुरुओं ने महिला की हत्या की निंदा की
24 मार्च 2015

फर्ख़ुन्दा
फर्ख़ुन्दा की मौत के बाद काबुल में व्यापक प्रदर्शन हुए हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में इस्लामी धर्मगुरुओं की एक प्रभावशाली संस्था ने पिछले हफ्ते काबुल में एक महिला की हत्या की कड़ी निंदा की है.
दोषियों को सज़ा दिलाने की मांग को लेकर दो हज़ार से अधिक लोगों ने मार्च किया, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान विमेन्स काउंसिल प्रमुख फ़ातिमा ग़िलानी भी थीं.
पिछले हफ़्ते काबुल में भीड़ ने फर्ख़ुन्दा नाम की इस महिला को बुरी तरह पीटा और फिर उसे जला दिया था.
यह महिला संतानहीन महिलाओं को तावीज़ बेचने के लिए एक मुल्ला का विरोध कर रही थी.
मुल्ला ने महिला पर क़ुरान जलाने का आरोप लगा दिया, इसके बाद गुस्साई भीड़ ने इस महिला की हत्या कर दी.
हालांकि एक सरकारी जांचकर्ता ने कहा है कि क़ुरान को जलाने के कोई साक्ष्य नहीं हैं.
महिला के परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने उसे बचाने की पर्याप्त कोशिशें नहीं की थीं.
सच्ची मुसलमान
फर्ख़ुन्दा
महिला के परिजनों का कहना है कि पुलिस ने उन्हें बचाने की कोशिशें नहीं की.
इस्लामी मौलवीयों के प्रतिनिधि समूह ने कहा है कि ये महिला एक सच्ची मुसलमान थी और तावीज़ बेचने का उसका विरोध बिल्कुल सही था.
अफ़ग़ानिस्तान में हज़ारों लोगों ने प्रदर्शन कर महिला की हत्या करने वालों पर कार्रवाई की माँग की है.
इससे पहले काबुल पुलिस के एक प्रवक्ता हशमत स्तानिकज़ई को भीड़ की कारगुजारी का फ़ेसबुक पर बचाव करने के लिए तुरंत बर्खास्त कर दिया गया.
इस मामले में 13 पुलिसकर्मियों को निलंबित भी किया जा चुका है और उनसे पूछताछ भी की जा रही है.
http://www.bbc.co.uk/.../150324_islamic_clerics_condemned...

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Pradyumna Yadav

मई महीने की 3 तारीख को रोज की तरह वंदना दोपहर में अपने दो मंजिला घर में ही ग्राउंड फ्लोर पर बने अपने पिताजी के ऑफिस में गई और आदतन सबसे पहले यूपीएससी की वेबसाइट खोली. वंदना को दूर-दूर तक अंदाजा नहीं था कि आज आईएएस का रिजल्ट आने वाला है. लेकिन इस सरप्राइज से ज्यादा बड़ा सरप्राइज अभी उसका इंतजार कर रहा था. टॉपर्स की लिस्ट देखते हुए अचानक आठवें नंबर पर उसकी नजर रुक गई. आठवीं रैंक. नाम- वंदना. रोल नंबर-029178. बार-बार नाम और रोल नंबर मिलाती और खुद को यह यकीन दिलाने की कोशिश करती कि यह मैं ही हूं. हां, वह वंदना ही थी. भारतीय सिविल सेवा परीक्षा 2012 में आठवां स्थान और हिंदी माध्यम से पहला स्थान पाने वाली 24 साल की एक लड़की.

वंदना की आंखों में इंटरव्यू का दिन घूम गया. हल्के पर्पल कलर की साड़ी में औसत कद की एक बहुत दुबली-पतली सी लड़की यूपीएससी की बिल्डिंग में इंटरव्यू के लिए पहुंची. शुरू में थोड़ा डर लगा था, लेकिन फिर आधे घंटे तक चले इंटरव्यू में हर सवाल का आत्मविश्वास और हिम्मत से सामना किया. बाहर निकलते हुए वंदना खुश थी. लेकिन उस दिन भी घर लौटकर उन्होंने आराम नहीं किया. किताबें उठाईं और अगली आइएएस परीक्षा की तैयारी में जुट गईं.

यह रिजल्ट वंदना के लिए तो आश्चर्य ही था. यह पहली कोशिश थी. कोई कोचिंग नहीं, कोई गाइडेंस नहीं. कोई पढ़ाने, समझने, बताने वाला नहीं. आइएएस की तैयारी कर रहा कोई दोस्त नहीं. यहां तक कि वंदना कभी एक किताब खरीदने भी अपने घर से बाहर नहीं गईं. किसी तपस्वी साधु की तरह एक साल तक अपने कमरे में बंद होकर सिर्फ और सिर्फ पढ़ती रहीं. उन्हें तो अपने घर का रास्ता और मुहल्ले की गलियां भी ठीक से नहीं मालूम. कोई घर का रास्ता पूछे तो वे नहीं बता पातीं. अर्जुन की तरह वंदना को सिर्फ चिड़‍िया की आंख मालूम है. वे कहती हैं, ‘‘बस, यही थी मेरी मंजिल.’’

वंदना का जन्म 4 अप्रैल, 1989 को हरियाणा के नसरुल्लागढ़ गांव के एक बेहद पारंपरिक परिवार में हुआ. उनके घर में लड़कियों को पढ़ाने का चलन नहीं था. उनकी पहली पीढ़ी की कोई लड़की स्कूल नहीं गई थी. वंदना की शुरुआती पढ़ाई भी गांव के सरकारी स्कूल में हुई. वंदना के पिता महिपाल सिंह चौहान कहते हैं, ‘‘गांव में स्कूल अच्छा नहीं था. इसलिए अपने बड़े लड़के को मैंने पढऩे के लिए बाहर भेजा. बस, उस दिन के बाद से वंदना की भी एक ही रट थी. मुझे कब भेजोगे पढऩे.’’

महिपाल सिंह बताते हैं कि शुरू में तो मुझे भी यही लगता था कि लड़की है, इसे ज्यादा पढ़ाने की क्या जरूरत. लेकिन मेधावी बिटिया की लगन और पढ़ाई के जज्बे ने उन्हें मजबूर कर दिया. वंदना ने एक दिन अपने पिता से गुस्से में कहा, ‘‘मैं लड़की हूं, इसीलिए मुझे पढऩे नहीं भेज रहे.’’ महिपाल सिंह कहते हैं, ‘‘बस, यही बात मेरे कलेजे में चुभ गई. मैंने सोच लिया कि मैं बिटिया को पढ़ने बाहर भेजूंगा.’’

छठी क्लास के बाद वंदना मुरादाबाद के पास लड़कियों के एक गुरुकुल में पढऩे चली गई. वहां के नियम बड़े कठोर थे. कड़े अनुशासन में रहना पड़ता. खुद ही अपने कपड़े धोना, कमरे की सफाई करना और यहां तक कि महीने में दो बार खाना बनाने में भी मदद करनी पड़ती थी. हरियाणा के एक पिछड़े गांव से बेटी को बाहर पढऩे भेजने का फैसला महिपाल सिंह के लिए भी आसान नहीं था. वंदना के दादा, ताया, चाचा और परिवार के तमाम पुरुष इस फैसले के खिलाफ थे. वे कहते हैं, ‘‘मैंने सबका गुस्सा झेला, सबकी नजरों में बुरा बना, लेकिन अपना फैसला नहीं बदला.’’

दसवीं के बाद ही वंदना की मंजिल तय हो चुकी थी. उस उम्र से ही वे कॉम्प्टीटिव मैग्जीन में टॉपर्स के इंटरव्यू पढ़तीं और उसकी कटिंग अपने पास रखतीं. किताबों की लिस्ट बनातीं. कभी भाई से कहकर तो कभी ऑनलाइन किताबें मंगवाती. बारहवीं तक गुरुकुल में पढ़ने के बाद वंदना ने घर पर रहकर ही लॉ की पढ़ाई की. कभी कॉलेज नहीं गई. परीक्षा देने के लिए भी पिताजी साथ लेकर जाते थे.

गुरुकुल में सीखा हुआ अनुशासन एक साल तैयारी के दौरान काम आया. रोज तकरीबन 12-14 घंटे पढ़ाई करती. नींद आने लगती तो चलते-चलते पढ़ती थी. वंदना की मां मिथिलेश कहती हैं, ‘‘पूरी गर्मियां वंदना ने अपने कमरे में कूलर नहीं लगाने दिया. कहती थी, ठंडक और आराम में नींद आती है.’’ वंदना गर्मी और पसीने में ही पढ़ती रहती ताकि नींद न आए. एक साल तक घर के लोगों को भी उसके होने का आभास नहीं था. मानो वह घर में मौजूद ही न हो. किसी को उसे डिस्टर्ब करने की इजाजत नहीं थी. बड़े भाई की तीन साल की बेटी को भी नहीं. वंदना के साथ-साथ घर के सभी लोग सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. उनकी वही दुनिया थी.

आईएएस नहीं तो क्या? ‘‘कुछ नहीं. किसी दूसरे विकल्प के बारे में कभी सोचा ही नहीं.’’ वंदना की वही दुनिया थी. वही स्वप्न और वही मंजिल. उन्होंने बाहर की दुनिया कभी देखी ही नहीं. कभी हरियाणा के बाहर कदम नहीं रखा. कभी सिनेमा हॉल में कोई फिल्म नहीं देखी. कभी किसी पार्क और रेस्तरां में खाना नहीं खाया. कभी दोस्तों के साथ पार्टी नहीं की. कभी कोई बॉयफ्रेंड नहीं रहा. कभी मनपसंद जींस-सैंडल की शॉपिंग नहीं की. अब जब मंजिल मिल गई है तो वंदना अपनी सारी इच्छाएं पूरी करना चाहती है. घुड़सवारी करना चाहती है और निशानेबाजी सीखना चाहती है. खूब घूमने की इच्छा है.

आज गांव के वही सारे लोग, जो कभी लड़की को पढ़ता देख मुंह बिचकाया करते थे, वंदना की सफलता पर गर्व से भरे हैं. कह रहे हैं, ‘‘लड़कियों को जरूर पढ़ाना चाहिए. बिटिया पढ़ेगी तो नाम रौशन करेगी.’’ यह कहते हुए महिपाल सिंह की आंखें भर आती हैं. वे कहते हैं, ‘‘लड़की जात की बहुत बेकद्री हुई है. इन्हें हमेशा दबाकर रखा. पढऩे नहीं दिया. अब इन लोगों को मौका मिलना चाहिए.’’ मौका मिलने पर लड़की क्या कर सकती है, वंदना ने करके दिखा ही दिया है.

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प्रेरक व्यक्तित्व :-
80 साल की 'रिवॉल्वर रानी - राखी शर्मा बीबीसी 16 अप्रैल 2015 
शूटिंग ऐसा खेल है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को सबसे ज़्यादा मेडल दिला चुका है.
इसे युवाओं का खेल माना जाता है, इसमें पुरुषों की भागीदारी, महिलाओं के मुकाबले काफी ज़्यादा रही है.
लेकिन उत्तर प्रदेश के जौहड़ी गांव की दो ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने बंदूक थामी ही 60 साल की उम्र के बाद. ले

किन जब थामी तो ज़ोनल और राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीत डाले.
रिटायरमेंट की उम्र में आगाज़

रिवॉल्वर रानी सिर्फ फ़िल्मी पर्दे पर ही नहीं, असल ज़िंदगी में भी होती हैं. निशानेबाज़ी एक ऐसा खेल है जिसमें लड़कियां आपको छोटी से लेकर भारी-भरकम बंदूक उठाए दिख जाएंगी.
लेकिन अगर 70-80 साल की वृद्ध महिलाएं इन बंदूकों को उठाए दिखें, तो शायद पहली नज़र में आपको भी ये धोखा हो सकता है.

82 साल की चंद्रो और 74 साल की प्रकाशी तोमर एक ही परिवार की हैं और इन्होंने 60 साल की उम्र के बाद निशानेबाज़ी में कदम रखा.
दोनों के निशानेबाज़ी में आने की वजह उनके पोते-पोतियां थे.
चंद्रो, प्रकाशी तोमर की जेठानी हैं और फिलहाल सिरसा के कॉलेजों में लड़के लड़कियों को निशानेबाज़ी सिखाती हैं.
चंद्रो बताती हैं कि निशानेबाज़ी में उनकी शुरुआत कैसे हुई. वे कहती हैं, "मैं 65 साल की थी जब मैंने पहली बार बंदूक थामी. मैं अपनी पोती शेफ़ाली को भारतीय निशानेबाज़ डॉ.राजपाल सिंह की शूटिंग रेंज पर लेकर गई थी."
"बच्चों को देखकर मैंने भी बंदूक उठा ली. मेरा निशाना एकदम सही लगा. डॉ. राजपाल इससे काफ़ी प्रभावित हुए और उन्होंने मुझे निशानेबाज़ी करने के लिए प्रेरित किया."
मर्दों को मात

हालांकि जब इन दोनों ने शुरुआत की तो इन्हें दिक्कतों का भी खूब सामना करना पड़ा. दोनों जब भी रेंज पर अभ्यास के लिए निकलतीं गांव के पुरुष इनका मज़ाक उड़ाते.
प्रकाशी कहती हैं, "गांव के आदमी हमें कहते थे कि ये बुढ़िया कारगिल में जाएँगी. ये इस उम्र में खेलेंगी. मैं और मेरी जेठानी चंद्रो छुप-छुपकर अभ्यास के लिए जाते थे."
"हम गांव की और औरतों को अपने साथ निशानेबाज़ी के लिए प्रेरित करती थीं. लेकिन कोई भी हमारे साथ चलने के लिए तैयार नहीं हुआ. चीज़ें तब बदली जब हमने मेडल जीते और हमारी तस्वीरें अख़बारों में आने लगीं."
तराश रही हैं नया हुनर

1999 से 2013 तक 'वैटरन कैटेगरी' में दोनों ने कई मेडल जीते हैं. इस कैटेगरी में महिलाएं कम और पुरुष निशानेबाज़ ज़्यादा रहे.
इसके बावजूद दोनों ने कई गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज़ मेडल जीते. दोनों से हारे हुए प्रतियोगी पुरुष इनके साथ हिस्सा लेने से भी कतराने लगे थे.
कई बार तो वो हारने के बाद इन दोनों के साथ फोटो खिंचवाने से भी इंकार कर देते थे.
आज इन्हीं से कोचिंग लेकर कई बच्चे राष्ट्रीय स्तर के निशानेबाज़ बन चुके हैं.

चंद्रो बताती हैं, "गांव के बच्चों ने गुंडा-गर्दी छोड़कर कर सही रास्ते पर आ गए हैं. कई बच्चों ने निशानेबाज़ी के दम पर सरकारी नौकरियां हासिल कर ली हैं."
वो कहती हैं, "मैंने पटना और अमेठी से 40-40 बच्चों को ट्रेनिंग दी है. ये सभी बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर खेल रहे हैं."
बाग़पत जैसे जिले, जहां बंदूकों और तमंचो का इस्तेमाल गैर-कानूनी ढंग से किया जाता है, वहां से निशानेबाज़ों का आना मिसाल है.

2 comments:

  1. शिव रात्रि पर विशेष -
    सुमित वर्मा - नेहा नरुका की कविता 'पार्वती योनि'
    ऐसा क्या किया था शिव तुमने ?
    रची थी कौन-सी लीला ? ? ?
    जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग
    माताएं बेटों के यश, धन व पुत्रादि के लिए
    पतिव्रताएँ पति की लंबी उम्र के लिए
    अच्छे घर-वर के लिए कुवाँरियाँ
    पूजती है तुम्हारे लिंग को,
    दूध-दही-गुड़-फल-मेवा वगैरह
    अर्पित होता है तुम्हारे लिंग पर
    रोली, चंदन, महावर से
    आड़ी-तिरछी लकीरें काढ़कर,
    सजाया जाता है उसे
    फिर ढोक देकर बारंबार
    गाती हैं आरती
    उच्चारती हैं एक सौ आठ नाम
    तुम्हारे लिंग को दूध से धोकर
    माथे पर लगाती है टीका
    जीभ पर रखकर
    बड़े स्वाद से स्वीकार करती हैं
    लिंग पर चढ़े हुए प्रसाद को
    वे नहीं जानती कि यह
    पार्वती की योनि में स्थित
    तुम्हारा लिंग है,
    वे इसे भगवान समझती हैं,
    अवतारी मानती हैं,
    तुम्हारा लिंग गर्व से इठलाता
    समाया रहता है पार्वती योनि में,
    और उससे बहता रहता है
    दूध, दही और नैवेद्य...
    जिसे लाँघना निषेध है
    इसलिए वे औरतें
    करतीं हैं आधी परिक्रमा
    वे नहीं सोच पातीं
    कि यदि लिंग का अर्थ
    स्त्रीलिंग या पुल्लिंग दोनों है
    तो इसका नाम पार्वती लिंग क्यों नहीं ?
    और यदि लिंग केवल पुरूषांग है
    तो फिर इसे पार्वती योनि भी
    क्यों न कहा जाए ?
    लिंगपूजकों ने
    चूँकि नहीं पढ़ा ‘कुमारसंभव’
    और पढ़ा तो ‘कामसूत्र’ भी नहीं होगा,
    सच जानते ही कितना हैं?
    हालांकि पढ़े-लिखे हैं
    कुछ ने पढ़ी है केवल स्त्री-सुबोधिनी
    वे अगर पढ़ते और जान पाते
    कि कैसे धर्म, समाज और सत्ता
    मिलकर दमन करते हैं योनि का,
    अगर कहीं वेद-पुराणऔर इतिहास के
    महान मोटे ग्रन्थों की सच्चाई!
    औरत समझ जाए
    तो फिर वे पूछ सकती हैं
    संभोग के इस शास्त्रीय प्रतीक के-
    स्त्री-पुरूष के समरस होने की मुद्रा के-
    दो नाम नहीं हो सकते थे क्या?
    वे पढ़ लेंगी
    तो निश्चित ही पूछेंगी,
    कि इस दृश्य को गढ़ने वाले
    कलाकारों की जीभ
    क्या पितृसमर्पित सम्राटों ने कटवा दी थी
    क्या बदले में भेंट कर दी गईं थीं
    लाखों अशर्फियां,
    कि गूंगे हो गए शिल्पकार
    और बता नहीं पाए
    कि संभोग के इस प्रतीक में
    एक और सहयोगी है
    जिसे पार्वती योनि कहते हैं
    नेहा नरुका महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में शोध सहायक हैं.

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  2. पुरुषप्रधान समाजव्यवस्था और नारी-मुक्ति-आन्दोलन !
    अंतिम संस्कार करने पर बहन को कुल्हाड़ी से काटा - आलोक प्रकाश पुतुल
    रायपुर से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए 2 अप्रैल 2015

    गीता हाल ही में सरपंच भी चुनी गई थीं.
    छत्तीसगढ़ के मोहदा गांव में मां का अंतिम संस्कार बहन के हाथों किए जाने से नाराज़ भाई ने अपनी बहन की कुल्हाड़ी से काट कर हत्या कर दी.
    रायपुर के आईजी पुलिस जीपी सिंह के मुताबिक़, तेजराम वर्मा अंतिम संस्कार के बाद से अपनी बहन से नाराज़ था.
    अभियुक्त को गिरफ़्तार कर उससे पूछताछ की जा रही है.
    थाना प्रभारी अलीम ख़ान के अनुसार, पति की मौत और बेटे से अनबन होने के बाद 80 वर्षीया सुरुजबाई पिछले 20 साल से अपनी बेटी गीता के घर रह रही थीं.
    सुरुजबाई की देखभाल गीता ही करती थीं और बेटे तेजराम वर्मा से कोई संपर्क नहीं था.
    हाल ही में गीता ग्राम पंचायत चुनाव में सरपंच भी चुनी गई थीं.

    अर्थी को श्मशान तक पहुंचाया
    मंगलवार को सुरुजबाई का निधन होने के बाद उनका अंतिम संस्कार उनकी बेटी गीता ने किया था. गीता ने अर्थी को गांव के लोगों के साथ श्मशान तक पहुंचाया और मुखाग्नि भी दी.
    गीता का कहना था कि उनकी मां सुरुजबाई ने ही अंतिम संस्कार बेटी के हाथों किए जाने की इच्छा जताई थी और सख़्त हिदायत दी थी कि बेटे को अंतिम संस्कार से दूर रखा जाए.
    गुरुवार को जब गीता अपनी बड़ी बहन सीता और गांव की दूसरी महिलाओं के साथ अंतिम संस्कार की एक रस्म के लिए तालाब जा रही थीं, उसी समय भाई तेजराम वर्मा अपने बेटे के साथ पहुंचा और कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ हमला कर गीता को मार डाला.
    इस हमले में गीता की बड़ी बहन सीता भी घायल हो गई हैं, जिन्हें स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
    http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2015/04/150402_cremation_sister_murder_chhattisgarh_tk

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