Wednesday 20 March 2013

राहुल होना खेल नहीं - कैलाश गौतम


राहुल होना खेल नहीं, वह सबसे अलग निराला था, 
अद्भुत जीवट वाला था, वह अद्भुत साहस वाला था. 

रमता जोगी बहता पानी, कर्मयोग था बाहों में, 
होकर जैसे मील का पत्थर, वह चलता था राहों में. 

मुँह पर चमक आँख में करुणा, संस्कार का धनी रहा, 
संस्कार का धनी रहा, वह मान-प्यार का धनी रहा. 

बाँधे से वह बँधा नहीं, है घिरा नहीं वह घेरे से, 
जलता रहा दिया-सा हरदम, लड़ता रहा अँधेरे से. 

आँधी आगे रुका नहीं, वह पर्वत आगे झुका नहीं, 
चलता रहा सदा बीहड़ में, थका नहीं वह चुका नहीं. 

पक्का आजमगढ़िया बाभन, लेकिन पोंगा नहीं रहा,
जहाँ रहा वह रहा अकेला, उसका जोड़ा नहीं रहा. 

ठेठ गाँव का रहने वाला, खाँटी तेवर वाला था, 
पंगत मे वह प्रगतिशील था, नये कलेवर वाला था. 

जाति-धर्म से ऊपर उठ कर, खुल कर हाथ बँटाता था, 
इनसे उनसे सबसे उसका, भाई-चारा नाता था.

भूख-गरीबी-सूखा-पाला, सब था उसकी आँखों में,
क्या-क्या उसने नहीं लिखा है, रह कर बन्द सलाखों में. 

साधक था, आराधक था, वह अगुआ था, अनुयायी था, 
सर्जक था, आलोचक था, वह शंकर-सा विषपायी था.

सुविधाओं से परे रहा, वह परे रहा दुविधाओं से, 
खुल कर के ललकारा उसने, मंचों और सभाओं से.

माघ-पूस में टाट ओढ़ कर जाड़ा काटा राहुल ने,
असहायों लाचारों का दुःख हँस कर बाँटा राहुल ने.

कौन नापने वाला उसको, कौन तौलने वाला है?
जिसका कि हर ग्रन्थ हमारी आँख खोलने वाला है.

परिव्राजक, औघड़, गृहस्थ था, वह रसवन्त वसन्त रहा,
जीवन भर जीवन्त रहा वह, जीवन भर जीवन्त रहा.

1 comment:

  1. A personality eloquently captured by a profound and loving understanding.

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