Sunday 19 May 2013

एक व्यंग्य : 'मधुर' के कटु प्रश्न का उत्तर


Amarnath Madhur -
"भारत की उस राष्ट्रीय पार्टी का नाम बताओ जो न उत्तर में है न दक्षिण में और न पूरब में है न पश्चिम में [एकाध राज्य को छोड़कर]. मध्य में है जहां ह्रदय में शूल की तरह पीड़ा पहुँचाती रहती है. आओ इस पीड़ा का सही उपचार करें और आगामी आम चुनाव में इसे जमींदोज कर दें."


उत्तर :- प्रिय मित्र, वह पार्टी ही देश की एक-मात्र ऐसी पार्टी है, जो अपना नाम-रूप-वेश-घोषणापत्र-कार्यक्रम-नारा-नेता-झण्डा सब कुछ वक्त-ज़रूरत के हिसाब से बार-बार बदलती रहती है. वह परम मायाविनी पार्टी है. उसका अण्डरग्राउण्ड तरीके से रिमोट से सञ्चालन किया जाता है. हिटलर उसका चाचा है और मुसोलिनी उसका मामा. उसकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है सबको धमकाते रहना, बेगुनाहों पर जानलेवा हमला करना, घरों को फूँकना, जोर-ज़बरदस्ती आम पब्लिक पर अपना रौब ग़ालिब करना, चोरी करके सीनाज़ोरी करना, सच छिपाना, झूठ बोलना, नफ़रत का धुआँ उड़ाना, अफवाह फैलाना, सबको बदनाम करना और खुद ही अपनी पीठ ठोंकते रहना. उसे खास-खास लोगों-विचारों-मान्यताओं-आस्थाओं से बहुत अधिक चिढ़ है. उनको तो वह सीधे अरब सागर में दफ़न कर देना चाहती है.

"वाह भाई, हम! वाह, वाह!" - उसका मूल-मन्त्र है. वह हरदम अतीत के गीत गाती है. नितान्त वर्तमान में जीती है. भविष्य से सख्त नफ़रत करती है. वह केवल हर तरह की रोशनी से डरती है और रात के अन्धेरे में उसे सुकून मिलता है. एक से बढ़ कर एक अपराधी, माफिया, गुण्डे उसके कार्य करते हैं. 'चरित्र' नाम का गाना उसे बहुत पसन्द है. मगर ''चरित्र-चरित्र" गाने के चक्कर में वह चरित्रहीनों का हरदम ही विशेष ध्यान रखती है. हर तरह के दलबदलुओं का बाहें फैला कर तह-ए-दिल से स्वागत करती है. चमचों के बिना उसका काम ही नहीं चलता. मगर ईमानदार और मेहनती कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों को एक के बाद एक बार-बार हरदम झटकती-फेंकती रहती है.

तरह-तरह के लोगों और दलों से किसी भी स्तर पर उतर कर समझौते-दर-समझौते कर-कर के कुर्सी की गणेश-परिक्रमा करती रहती है. मगर कुर्सी है कि उसके इतनी पूजा-आराधना करने पर भी उसके कब्ज़े में आने को तैयार नहीं होती. जितना वह कुर्सी के पीछे भागती है, उतना ही कुर्सी उससे दूर भागती रहती है. इस भाग-दौड़ में उसे हरदम हाँफते रहना पड़ता है. उसे 'श्वास-कास-हिक्का' नामक बीमारी तो है ही, साथ ही 'वातज ज्वर' नामक भीषण बीमारी भी है. जो बार-बार 'सन्निपात' की हद तक पहुँचती रहती है.

उसकी झोली में हर तरह का माल है. पहले वह शिशुओं और बालकों को उलटा पहाड़ा पढ़ाती रहती थी. मगर अब ज़माना बदल जाने के बाद उसकी ऊँची दूकान का फीका पकवान बिकना बन्द हो गया है. दूकान के दिवालिया हो जाने के बाद से वह अब अन्तर-जाल पर वेतनभोगी चाकरों को नियुक्त करके काम चला रही है. वह केवल मासूम और भावुक युवाओं और किशोरों को चुन-चुन कर अपने मकड़जाल में फांसती रहती है. उसका ऐसे तो सब कुछ ही खास है. मगर सबसे खास चीज़ उसकी ज़ुबान है. उसके पास दो ज़ुबान है. एक देश के भीतर इस्तेमाल करती है और दूसरी विदेशों में.

क्या अभी भी आप नहीं समझ सके कि वह कौन पार्टी है? क्या कहा? समझ गये! चलिए फिर तो ठीक है. खुद समझे तो समझे, अब सजग रहिए. किसी और से बताइएगा मत. खुद अपने तक ही यह अनमोल जानकारी महदूद रखिए. वरना अगर सब लोग जान जायेंगे, तो फिर तो उसकी बड़ी बदनामी होगी. होगी न! और फिर आप ठहरे शरीफ आदमी. जग-ज़ाहिर है कि शरीफ लोग किसी को बदनाम तो नहीं करते हैं. नहीं न!

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