Monday 26 January 2015

___अनुरोध पहल का - उम्मीद आप से___


प्रिय मित्र, आज नेताजी सुभाष दिवस है. आज पूरे दिन मैं भारत रक्षा दल के आयोजन में बैठा रहा. चुपचाप सोचता रहा, सोचता रहा और क्षुब्ध होता रहा.

मैं सोचता रहा देश और समाज के बारे में, अपने कर्तव्यों और दायित्वों के बारे में, अपने दोस्तों और साथियों के बारे में, अपने सपनों और सीमाओं के बारे में, अपने बच्चों और उनके भविष्य के बारे में, अपने लोगों और उनकी यन्त्रणा के बारे में, ज़िन्दगी और उसकी जंग के बारे में, अतीत और वर्तमान के बारे में, अपने प्रयासों और उनकी विफलता के बारे में.

और मैं दुःखी होता रहा अपनी कूबत के बौनेपन पर, अपने लोगों की मासूमियत पर, अपने साथियों की हठधर्मिता पर, अपने दोस्तों के व्यक्तिगत स्वार्थों और सामूहिक हितों के द्वंद्व पर, अपने बच्चों के अभी इतना अधिक छोटे होने पर और देश-काल-परिवेश की गतिकी की दिशा पर, अपने क्रान्तिकारी आन्दोलन की दुर्दशा पर और कुल मिला कर अपने इतना अकेला और कमज़ोर होने पर.

मगर अभी तक भी मेरे सोचने और लिखने से, मेरे कहने और करने से, मेरे खुश और दुःखी होने से, मेरे क्षोभ और आक्रोश से, मेरी झल्लाहट और झुँझलाहट से, मेरे प्यार और मेरी नफ़रत से, मेरे ईमानदार और सच्चाई-पसन्द होने से, मेरी साधना और मेरी कूबत से कोई भी रंच-मात्र भी हिल तो नहीं सका.

अभी तक तो हम में से कोई भी सामूहिक शक्ति के रूप में आगे बढ़ने और कुछ कर गुज़रने की पहल तक भी नहीं ले सका, सभी दोस्तों और साथियों को जोड़ने और जन-सामान्य से जुड़ जाने के अभियान में कोई सफलता तो नहीं मिल सकी, तिनका-तिनका, तीली-तीली बिखरी जन-शक्ति को एकजुट करने का सपना साकार करने के नाम पर कुछ भी तो नहीं हो सका.

यही हालत कल थी, तब भी थी जब फासिज़्म की केवल धमक सुनी जा रही थी और यही हालत अभी भी है जब फासिज़्म के कब्ज़े में देश जा चुका है.

क्या कल भी हमारी निष्क्रियता, हमारे दम्भ, हमारे छोटे-बड़े रगड़ों-झगड़ों और हमारे बर्दाश्त की यही हालत बनी रहेगी ! और परसों भी !!
और आगे आने वाले बरसों-बरसों तक भी !!!

क्या आप मानवता के दुश्मनों के अट्टहास नहीं सुन पा रहे हैं !
क्या आप बाज़ार के निर्मम मुनाफाखोरों के कब्ज़े में हमारी रोज़मर्रा की मामूली ज़रूरतों तक को दम तोड़ते नहीं देख पा रहे हैं !
क्या आप नहीं समझ पा रहे हैं कि दुश्मन अपनी तैयारी में रात-दिन एक किये हुए है !
क्या आप दुनिया भर में दादागिरी चलाने वाले साम्राज्यवाद के चरित्र को नहीं पहिचान पा रहे हैं !
क्या आप मेहनतकशों के पसीने को सिक्कों में ढाल कर तिजोरियों में ठूँस-ठूँस कर भरने की साज़िश को नहीं समझ पा रहे हैं !

क्या आप अभी और भी बुरे दिनों के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं !
क्या आप कुछ भी सोचने और करने से इनकार करने की स्थिति में हैं !
क्या आप सोच रहे हैं कि कुछ भी न सोचने, कुछ भी न कहने और कोई पहल न लेने से आप सुरक्षित बचे रह जायेंगे !

तो फिर वह सुबह कैसे आयेगी !
तो फिर वह सुबह कौन लायेगा !!
तो फिर उस सुबह के गीत लिखने-पढ़ने और गाने-गुनगुनाने का क्या मतलब है !!!

सोचिए मेरे दोस्त, सोचिए !
पहल लीजिए मेरे दोस्त, जनपक्षधर शक्तियों की एकजुटता के लिये पहल लीजिए !!
करिए मेरे दोस्त, कुछ तो करिए !!
अब वक्त चिल्ला-चिल्ला कर ललकार रहा है...
और इतिहास की इस ललकार का उत्तर दिये बिना
हमारे-आपके अस्तित्व तक का भी बचे रह पाना नामुमकिन है !
आने वाले कल के सपने के साकार होने की उम्मीद के साथ
 — आपका गिरिजेश (21.1.15)

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