Monday 26 January 2015

___हिन्दू-मुसलमान या मज़दूर-किसान___

"हिन्दू-मुसलमान, हिन्दू-मुसलमान"
सुनते-पढ़ते कान पक गया और दिमाग भन्ना गया.
क्या इस देश में हिन्दू-मुसलमान ही रहते हैं !
कोई मज़दूर, कोई किसान नहीं रहता !
कोई अमीर, कोई ग़रीब नहीं रहता !
कोई पूँजीपति, कोई शैतान और कोई इन्सान नहीं रहता !

क्यों अब इन्सान को केवल उसके धर्म और जाति से ही पहिचाना जा रहा है !
क्यों इन्सान का रोज़गार, उसका वर्ग, उसकी सोच और उसका आचरण -
सब मिल कर भी अब इन्सान को पहिचान नहीं दे पा रहे !

हिन्दू-मुसलमान के नाम पर इन्सान की पहिचान को बदल देने वाले लोग कौन हैं !
उनकी ख़ुद की पहिचान क्या है !
क्या वे ख़ुद भी हिन्दू-मुसलमान हैं या केवल शैतान हैं -
इसे सोचने की ज़रूरत है, समझने और समझाने की ज़रूरत है.
वरना शैतान जीतते रहेंगे और इन्सान हारता रहेगा !

शैतान जीतेगा तो दंगा करायेगा !
इन्सान जीतेगा तो अमन-चैन और भाई-चारा बढ़ेगा !
शैतान की एक-एक साज़िश का पर्दाफ़ाश करना पड़ेगा !
सुकून और सम्मान की ज़िन्दगी जीने के लिये इन्सान को एकजुट होना पड़ेगा !
वरना इन्सानियत ज़लील होती रहेगी और शैतान ठहाका लगाता रहेगा !
इन्सान ज़िन्दाबाद ! देशी-विदेशी लुटेरे मुर्दाबाद !

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