Monday 27 April 2015

___ 'स्व' के विरुद्ध संघर्ष {FIGHT AGAINST SELF} ___

प्रिय मित्र, मनुष्य के छः सहज गुण बताये गये हैं —
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर.
इनमें से किसी का भी अतिरेक व्यक्ति के विकास में अवरोध उत्पन्न करता है.
इन को मर्यादा की सीमा में नियन्त्रित रखने से 'व्यक्तित्व-विकास' में सहायता मिलती है.
'अहंकार' भी इन सहज गुणों में से एक है.
सकारात्मक अर्थ में इसे 'स्वाभिमान' कहते हैं.
नकारात्मक अर्थ में इसे 'दम्भ' कहते हैं.
यही 'अस्मिता' है.

लम्बे समय तक मैं अपने 'स्व' (EGO) को 'स्वाभिमान' समझता गया.
हर छोटे-बड़े मामले में मैंने अपने 'स्वाभिमान' की रक्षा के लिये प्रतिवाद किया.
परन्तु कोई भी प्रतिवाद सही होने पर भी मुझे सफल नहीं कर सका.
हर प्रतिवाद मुझे शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तरों पर तोड़ता गया.

जबकि सामने वाले पर मेरे प्रतिवाद का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ सका.
उसने मेरे प्रतिवाद को कभी भी गम्भीरता से लिया ही नहीं.
हर बार वह अपनी अवस्थिति पर पूर्ववत् ही बना रहा.
वह अपने हित-अहित के अनुरूप ही सोचता, कहता और करता चला गया.
हाँ, उसने मुझसे थोड़ी और दूरी बना ली.

प्रत्येक प्रतिवाद ने मेरे स्वास्थ्य और मेरी शान्ति दोनों को नष्ट किया.
प्रतिवाद के चक्कर में मेरी ऊर्जा का बहुत अधिक हिस्सा व्यर्थ ही बर्बाद होता रहा.
प्रतिवाद में बर्बाद होने वाली अपनी ऊर्जा से मैंने अनेक महत्वपूर्ण काम किये होते.
परन्तु इसके चलते मेरा सृजन मात्रा और गुणवत्ता दोनों में ही प्रभावित होता रहा.
प्रतिवाद के चलते ही मेरे अनेक मित्र मुझसे दूर होते चले गये.

मेरे अनन्य मित्र Hari Sharan Pant जी का यह कथन मुझे प्रेरणा देता रहा है —
"विकास करना है, तो विवाद से बचिए."
परन्तु यह सूत्र जब मुझे मिला, तब तक मैं बहुत कुछ बर्बाद कर चुका था.

सहजता सृजन की शर्त है.
'दम्भ' किसी को भी सहज नहीं रहने देता.
अस्त-व्यस्त रहने पर कोई भी सृजन नहीं किया जा सकता.
सहज रहने के लिये 'स्व' के विरुद्ध संघर्ष अनिवार्य है.
मेरा अनुरोध है कि 'स्व' के विरुद्ध अपने संघर्ष को और तेज़ करें.
तभी आप व्यर्थ के विवादों से बच सकेंगे.
तभी आप शान्त चित्त से अपना सृजन और संघर्ष आगे बढ़ा सकेंगे.
तभी आप अपनी समस्त ऊर्जा मानवता की सेवा में समर्पित कर सकेंगे.

ढेर सारे प्यार के साथ — आपका गिरिजेश (26.4.15.)

1 comment:

  1. प्रत्येक लक्ष्य व्यक्ति और समूह दोनों ही से सृजन की मौलिकता और अध्ययन की गहराई माँगता है. केवल सृजन ही प्रत्येक ध्वन्स का विकल्प प्रस्तुत करता है. कुटिलता, स्वार्थ और वैयक्तिकता या निजता सभी 'स्व' के ही अलग-अलग नाम हैं. 'स्व' ही सपनों को साकार करने में सबसे बड़ा अवरोध बन जाता है. सहजता के बिना प्रत्येक व्यक्ति और समूह अपने लक्ष्य तक पहुँचने और सपने साकार करने की जगह भ्रम, मोह और आतुरता के चलते जन-सामान्य से अलगावग्रस्त होने के लिये बाध्य होता है. मानवता का हित पुरातन के जनविरोधी पक्षों के विकल्प के रूप में जनपक्षधर नूतन के सतत सृजन में ही है.

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