Saturday 15 December 2012

सच तो सच है! - गिरिजेश

प्रिय मित्र, अपने विद्रोही तेवर के चलते अपनी पूरी जिन्दगी मैंने शून्य से शुरू करके बार-बार नया प्रयोग खड़ा करने की कोशिश की है और इस जद्दोजहद में सफलता और विफलता दोनों का स्वाद चखा है. 
मेरी तरह जब भी हम में से कुछ लोग कुछ भी लीक से हट कर नया करने की कोशिश करते हैं, तो वर्तमान की विसंगति से तीखी नफ़रत और उस नफ़रत के प्रतिकार के प्रयास के पीछे प्रेरक घटक के रूप में एक ओर जहाँ कुछ बेहतर कर गुजरने की अकुलाहट होती है. वहीँ असफल हो जाने के अतीत के ढेरों और 
और भी कड़वे अनुभवों से जन्मी आशंकाएँ भी हमारे फैसले की मजबूती को डगमगाती रहती हैं.
फिर भी हम खुद को पिछली हर बार की तरह ही एक बार फिर से हिम्मत बटोर कर अनजान भवितव्य के अंधे कुएँ में झोंक देते हैं और पूरी कूबत से एक बार फिर एक और नया प्रयोग करते ही हैं. 
हर बार की तरह इस बार भी समाज के गिने-चुने लोग ही हमारी सम्वेदना को महसूस करते हैं और हर तरह से हमारा साथ देते हैं. ढेरों लोग हमारी ईमानदारी और समर्पण से प्रभावित होते हैं और हमारा समर्थन करते हैं. इनके अलावा बहुत से दूसरे लोग हमारे अतीत के सारे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं से परिचित होते हैं और हमारे प्रति शुभकामना व्यक्त करते हैं. 
कई चालाक लोग हमारी गतिविधियों को अपने लिये परेशानी की वजह मानते हैं और हमको सनकी समझते हैं और हम से सतर्क दूरी बना कर रखना पसन्द करते हैं, ताकि उनके अपने ताम-झाम और तथाकथित सुरक्षित दिनचर्या में हमारी वजह से कोई अनचाहा व्यवधान न पैदा हो. 
इन सबसे अलग कुछ मुट्ठी भर मक्कार लोग हमारे सामने चापलूसी करते हैं मगर पीठ पीछे हमेशा हमारा मज़ाक उड़ाते हैं या विरोध करते हैं और दिल से चाहते हैं और हर तरह से साज़िश करते रहते हैं कि हम किसी भी तरह फिर से असफल हो कर पिछली हर बार की तरह ही उपहास के पात्र बन जायें. ताकि वे अपनी टुच्ची दुनियादारी भरी सूझ-बूझ की एक बार फिर अपने चमचों के सामने डींग हांक सकें. 
मैंने ऐसे सभी अलग-अलग तरह के लोगों को इस चित्र में एक साथ पिरोने की कोशिश की है. अपने जीवन में छलाँग लेने के लिये आतुर एक और निर्णय की ऐसी ही परिस्थिति से जूझ रहे अपने युवा दोस्तों को सचेत करने की इच्छा से आज मैं खुद को रोक नही पा रहा हूँ और उनके सामने यह चित्र पेश करते हुए उनको एक बार आगाह करने की ज़ुर्रत कर रहा हूँ. 
मेरी कामना है कि वे अपने सपनों को साकार करने के लिये हर मुमकिन खतरा बेधड़क उठायें. अन्जाम चाहे जो भी हो. कम से कम वर्तमान की घुटन से तो मुक्ति ही होगी. हर हाल में हर तरह से हर स्तर पर मैं अपनी समूची कूबत भर उनके साथ उनके पीछे चट्टान की तरह हर कदम पर ताज़िन्दगी डटा मिलूँगा. 

जो मुझको बेवकूफ़ समझते हैं, कितने क़ाबिल हैं!
मैं जानता हूँ कि क्यों करते हैं उलटी करनी।
कई तरह के हैं ये लोग मेरे चारों तरफ़,
कई तरह की हैं सीमाएँ इनके जे़हन की।

कोई तो दिल से चाहता है, मानता है मुझे,
मुझे बचाने को ख़तरे हज़ार सहता है।
पर अपनी ज़िन्दगी के बोझ से ख़ुद बोझिल है,
इसी के चलते है रफ़्तार उसकी धीमी तो,
तुम्हीं बताओ कि उसका कुसूर इसमें कहाँ?

अगर तुरन्त कोई काम नहीं हो पाया,
अगर हुआ भी तो फिर देर से या आधा ही,
अगर खिलौने के लिये मचल रहा बच्चा
इन्तेज़ार करते-करते ही हो गया बूढ़ा!
व’ कौन है कि जो सपनों का कत्ल करता है?

कोई चमचागिरी में जीता है,ज़ुबान शहद से भी मीठी है, 
शहद लपेट कर गोली चलाता रहता है।
मग़र करतूत उसकी, उसके दिल-सी काली है।
व’ भी इन्सान है या इन्सानियत प’ गाली है?

सीखते-सीखते बुढ़ा गया कोई फिर भी
किसी भी काम को अन्ज़ाम तक पहुँचा न सका।
पलट क’ वक़्त को गुज़ार लिया तब बोला,
‘‘फलाँ वज़ह से मैं ये काम नहीं कर पाया।’’

य’ बात एक बार, कई बार, सौ-सौ बार,
जो बोलता है, उसका दिमाग़ कैसा है!
उम्र के इस मुकाम प’ खड़े हैं हम दोनों,
हक़ीकत की समझ अभी भी है मुश्किल क्या?

किसी ने ज़िन्दगी में कभी भी ‘नो सर’ न कहा,
मग़र दोहरी ज़ुबान, दोहरा मग़ज़, दोहरी समझ,
बनी-बनाई आस्तीन में घुस कर डँसता,
व’ समझता ही नहीं है कि उसे भी समझ रहा हूँ मैं।

कोई चालाक है मक्कार लोमड़ी की तरह,
लगा-बझा क’ तरह-तरह से मज़ा लेता है।
चिढ़ा-चिढ़ा क’ कुढ़ाता रहा है मुझको जो,
वही तो है जो मेरे काम को, सेहत को तोड़ता आया।

कोई शरीफ़ है मेहनत ही करना जानता है,
किसी भी दन्द-फन्द में कभी नहीं फँसता,
मुकाम जो भी मिला टीम को पसीने से,
अग़र ईमान रहेगा, तो मिलेगा ही मुकाम। - गिरिजेश

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