Tuesday 18 December 2012

खट्टर काका - हरि मोहन झा

अन्धविश्वास और कूपमंडूकता के विरुद्ध क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिये ज़बरदस्त हथियार बन चुकी हरि मोहन झा की बहुचर्चित कृति "खट्टर काका" के पृष्ठ 164 तक इस लिंक पर उपलब्ध हैं. अगर आपने अभी तक यह कृति नहीं पढ़ी है, तो मेरा निवेदन है कि इसे अवश्य पढ़ें.http://books.google.co.in/books?id=psrNs-9NVvsC&pg=PA161&lpg=PA161&dq=%E0%A4%96%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B0+%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE+%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95&source=bl&ots=NkHK2j1kG_&sig=wymxVqBCq2kIdAXyUu9NUs2rKDQ&hl=en&sa=X&ei=ld7JUJPICMXyrQeqmIC4Dg&sqi=2&ved=0CCsQ6AEwAA#v=onepage&q=%E0%A4%96%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%B0%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%95&f=false
"कबीर दास की तरह खट्टर काका भी उलटी गंगा बहा देते हैं। उनकी बातें एक-से-एक अनूठी, निराली और चौंकानेवाली होती हैं।....
खट्टर काका हँसी-हँसी में भी जो उलटा-सीधा बोल जाते हैं, उसे प्रमाणित किये बिना नहीं छोड़ते। श्रोता को अपने तर्क-जाल में उलझाकर उसे भूल-भुलैया में डाल देना उनका प्रिय कौतुक है। वह तसवीर का रुख यों पलट देते हैं कि सारे परिप्रेक्ष्य ही बदल जाते हैं। रामायण, महाभारत, गीता, वेदांत, वेद, पुराण, सभी उलट जाते हैं। बड़े-बड़े दिग्गज चरित्र बौने –विद्रूप बन जाते हैं। सिद्धांतवादी सनकी सिद्ध होते हैं, और जीवन्मुक्त मि्ट्टी के लोंदे ! देवतागण गोबर-गणेश प्रतीत होते हैं। धर्मराज अधर्मराज, और सत्यनारायण असत्यनारायण भासित होते हैं ! आदर्शों के चित्र कार्टून जैसे दृष्टिगोचर होते हैं। वह ऐसा चश्मा लगा देते हैं कि दुनिया ही उलटी नजर आती है ! वह अपनी बातों के जादू से बुद्धि को सम्मोहित कर उसे शीर्षासन करा देते हैं।

कट्टर पंडितों को खंडित करने में खट्टर काका बेजोड़ हैं। पाखंड-खंडन में वह प्रमाणों और व्यंग्य-बाणों की ऐसी झड़ियाँ लगा देते हैं, जिनका जवाब नहीं। कः समः करिवर्यस्य मालती-पुष्प-मर्दने ! उनके लिए सभी शास्त्र पुराण हस्तामलकवत् हैं। वह शास्त्रों को गेंद की तरह उछालकर खेलते हैं। और, खेल-ही-खेल में फलित ज्योतिष, मुहूर्त-विद्या को धूर्त-विद्या, तंत्र-मंत्र को षड्यंत्र और धर्मशास्त्र को स्वार्थशास्त्र प्रमाणित कर देते हैं। इसी तरह वह आत्मा, पुनर्जन्म, स्वर्ग, मोक्ष और ब्रह्म की धज्जियाँ उड़ाकर रख देते हैं।

खट्टर काका को कोई ‘चार्वाक’ (नास्तिक) कहते हैं, कोई ‘पक्षधर’ (तार्किक), कोई ‘गोनू झा’ (विदूषक) ! कोई उनके विनोद को तर्कपूर्ण मानते हैं, कोई उनके तर्क को विनोदपूर्ण मानते हैं। खट्टर काका वस्तुतः क्या हैं, यह एक पहेली है। पर वह जो भी हों, वह शुद्ध विनोद-भाव से मनोरंजन का प्रसाद वितरण करते हैं, इसलिए लोगों के प्रिय पात्र हैं। उनकी बातों में कुछ ऐसा रस है, जो प्रतिपक्षियों को भी आकृष्ट कर लेता है।

आज से लगभग पचीस वर्ष पहले खट्टर काका मैथिली भाषा में प्रकट हुए। जन्म लेते ही वह प्रसिद्ध हो उठे। मिथिला के घर-घर में उनका नाम खिर गया। जब उनकी कुछ विनोद-वार्त्ताएँ ‘कहानी’, ‘धर्मयुग’ आदि में छपीं तो हिंदी पाठकों को भी एक नया स्वाद मिला। गुजराती पाठकों ने भी उनकी चाशनी चखी। उन्हें कई भाषाओं ने अपनाया। वह इतने बहुचर्चित और लोकप्रिय हुए कि दूर-दूर से चिट्ठियाँ आने लगीं—‘‘यह खट्टर काका कौन हैं, कहाँ रहते हैं, उनकी और-और वार्ताएँ कहाँ मिलेंगी ?’’
http://pustak.org/home.php?bookid=6863

No comments:

Post a Comment