Sunday 24 November 2013

आरोप एक मित्र का - गिरिजेश

प्रिय मित्र,
मैत्री किसी के समर्थकों और विरोधियों की गिनती करके नहीं की जाती.
उसके अपने सद्गुणों के चलते हो जाया करती है.
अपने सभी मित्रों से मुझे आजीवन हर सम्भव सहायता मिलती रही है.
मैं अपनी ज़िन्दगी में आज तक जो कुछ भी कर सका, उसके लिये मैं अपने सभी मित्रों की सकारात्मक भूमिका के लिये उनका आभारी हूँ.
मेरे लिये जितना सम्भव था, मैं जहाँ तक कर सका, मैंने भी मैत्री-निर्वाह में अपनी सीमित शक्ति भर यथा-सम्भव अपने कर्तव्य का निर्वाह किया ही है.
मेरा एक मित्र अपने विरोधियों के षड्यन्त्र के घेरे में फँस गया. मैंने अपने मित्र की विपत्ति में उसका पक्ष लिया.
उसने कभी मेरे साथ सम्मानजनक व्यवहार किया था, मेरी मुहिम में मेरा साथ देने का आश्वासन भी दिया था.
मगर ज़िन्दगी की मार के चलते वह विपत्ति का शिकार हो गया.
किसी का भी मूल्यांकन वस्तुगत तथ्यों के सहारे तर्कपूर्वक किया जाना चाहिए.
तभी सटीक सार-संकलन सम्भव है.
अन्यथा आत्मगत होने और पूर्वाग्रहग्रस्त होकर चूक करने की पूरी सम्भावना बनी रहती है.
अभी कुहासा छंटा भी नहीं कि जिसके चलते उससे परिचय हुआ था, उस मित्र का आज यह सन्देश मिला -

"अफ़सोस है मुझे आप पर समझ में नहीं आ रहा हंसू या रोई अपने आप पर सच कहूँ तो दुनिया में आपसे बड़ा अवसर वादी नहीं देखा मैंने...."

इसके पहले भी मेरे सामने हिम्मत से सच बोलने के बजाय पीठ पीछे आरोप लगाने, आक्षेप करने वाले और उपहास करने वाले अनेक मित्रों ने मुझे ज़िन्दगी में पर्याप्त यन्त्रणा दी है.
बिना स्पष्ट शब्दों में अपने आरोप के बारे में तर्क दिये या बिना तथ्य बताये केवल मुझ पर तड़ाक से तरह-तरह के आरोप लगा देने की आतुरता के चलते बार-बार अनेक मित्रों को मैंने ज़िन्दगी में अपने साथ इस तरह का अन्याय करते और फिर पीछे छूटते पाया है.
ऐसे कुछ मित्रों का आहत मन से पूरी तरह चुप लगा जाना और बिलकुल ही न बोलना तो मेरे लिये भीषण रूप से त्रासद है ही.
मगर संध्या-भाषा में बोलना तो और भी त्रासद है.
क्या इस तरह के आरोप लगाने वालों को खुल कर अपने हिस्से का सच नहीं बोलना चाहिए.
उनके साथ बिताये गये सुखद समय को भी याद करने पर और भी पीड़ा होती है.
ऐसी हालत में मुझे यह गीत याद आ रहा है.
क्या ऐसी वेदना से आपका भी साबका पड़ा है !
ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश
https://www.youtube.com/watch?v=ql_EnCTgjdU

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