Monday 7 April 2014

लकड़ी की तलवार और जीवन का संघर्ष : - गिरिजेश

प्रिय मित्र, हम सभी अपने आस-पास की दुनिया से प्रभावित होते हैं. हम सभी इस दुनिया की विसंगतियों से क्षुब्ध होते हैं. हम सभी इन विसंगतियों को सहन नहीं कर सकते. और इसी कारण इनको दूर करना चाहते हैं. इनको दूर करने की हमारी चाहत असली चाहत है. हम अपने किसी भी मित्र की चाहत और उसके प्रयास पर सन्देह नहीं करते हैं. हम सब की सामूहिक ताकत ही इस चाहत को फैसलाकून ऐक्शन में बदलने में सफल हो सकती है.

महान माओ कहते हैं कि "दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और दोस्त का दुश्मन दुश्मन होता है". आचार्य चाणक्य मगध जीतने के लिये काशिराज के साथ संयुक्त मोर्चा बनाते हैं. संयुक्त मोर्चे में केवल इक्का-दुक्का मुद्दों पर सहमति होती है. शेष मुद्दों पर आलोचना की स्वतन्त्रता रहती है. जापान के विरुद्ध माओ ने कुओ-मिन्तांग के साथ संयुक्त मोर्चा भी बनाया और उसकी जनविरोधी नीतियों और अवस्थितियों की आलोचना भी जारी रखी. चाणक्य ने भी अन्ततः काशिराज का वध 'विषकन्या' के हाथों करवा दिया. जबकि उसी रात काशिराज का भेजा वधिक चन्द्रगुप्त की हत्या नहीं कर सका.

हम अपने पुरखों से लड़ाई के दाँव-पेच सीखते हैं. अगर हम सही तरीके से सीख सके हैं, तो उसे अपनी परिस्थितियों में उनका सही तरीके से विश्लेषण करके सफलतापूर्वक लागू भी कर सकेंगे. मगर अगर हम उनकी शिक्षाओं को केवल किताबों के पन्नों के काले अक्षरों के रूप में सीख सके हैं, तो हम असली जीवन में उसके विपरीत ही लागू करने को बाध्य होंगे. कदम-कदम पर अनुभव संगत चूक करते जायेंगे और फिर निश्चय ही हमारे फैसले और हमारे कदम हमको नुकसान ही पहुँचायेंगे और इस तरह केवल जन-शत्रुओं को लाभान्वित करेंगे.

अब यह फैसला हमको ही करना है कि क्या हम आँख बन्द करके दोनों हाथों से तलवार भाँजेंगे, या फिर आँख खोल कर सूझ-बूझ से काम लेंगे. सवाल यह भी है कि क्या हम एक दूसरे पर सन्देह करके अपनी एकजुटता को कमज़ोर कर देंगे या परस्पर के विश्वास को बनाये रखेंगे. सवाल यह भी है कि क्या हम दुश्मन के हथियार से उसके स्तर पर उतर कर लड़ेंगे या फिर उसके खिलाफ़ अपनी लड़ाई को अपनी गरिमा और अपने स्तर के अनुरूप आगे बढायेंगे. सवाल यह भी है कि क्या हम दुश्मन के साथ केवल कीचड़ में लोट-पोट करेंगे या दुश्मन को चकमा देंगे, उसे अपने पाले में उतरने के लिये बाध्य कर देंगे और तब उसे आसानी से परास्त कर देंगे.

और आख़िरी और सबसे महत्वपूर्ण सवाल अभी-अभी एक मित्र ने पूछा कि क्या हम केवल ''लकड़ी की तलवार'' ही भाँजते रहेंगे और हर तरह के दर्शकों से खचाखच भरी रंगशाला के रंगमंच पर घनघोर युद्ध के अभिनय का स्वाँग ही भरते रहेंगे या हम असली तलवार से ही मुमकिन हो सकने वाली जीवन की असली लड़ाई की लम्बी तैयारी के लिये धीरज से काम लेंगे.

उम्मीद है आप मेरे अनुरोध को सम्मान के साथ सकारात्मक रूप में लेंगे. इसे अन्यथा नहीं महसूस करेंगे. मेरा मकसद किसी भी तरह से आपको आहत करना नहीं है. मेरा मकसद केवल आप से धीरज से काम लेने और लम्बे संघर्ष की रचनात्मक कार्य-योजना बनाने की उम्मीद के साथ विनम्रतापूर्वक निवेदन करना ही है.

ढेर सारे प्यार के साथ - आपका गिरिजेश
                                                  29.3.14. (9.25 p.m.)

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