Sunday 7 June 2015

धनचेतना की बेचैनी का नमूना 2


गिजियावन तिवारी का व्यक्तित्व निर्माण यानि व्यक्तित्व विनाश परियोजना-
June 7, 2015 at 9:43pm


गिजियावन तिवारी का व्यक्तित्व निर्माण यानि व्यक्तित्व विनाश परियोजना-

क्रांतिकारी जीवन से सन्यास लिए गिजियावन तिवारी आजमगढ़ शहर में “व्यक्तित्व विकास परियोजना” नामक एक “अति क्रांतिकारी परियोजना” चलाते हैं. गिजियावन तिवारी के मुताबिक यह उनके जीवन का आखिरी प्रयोग है. उसके असफल होने के बाद वो या तो जीवन से मुंह मोड़ लेंगे या उजड़ चुके क्रांति मठ के एक फेसबुकिया क्रांतिकारी की शरण में चले जायेंगे. गिजियावन के दावे के मुताबिक इस परियोजना से क्रांतिवीर, महान व्यक्तित्व वाले लोग, समाजसेवी, शेर, जिनकी दहाड़ से जंगल गूँज उठेगा, जो शेर बच्चों को ख़ूनी भेड़ियों के चंगुल से छुड़ा लायेंगे (ये शेर कहीं मोदी वाला तो नहीं?) तैयार किये जाते हैं. इस परियोजना से तैयार लोगों को सिस्टम में घुसाकर सिस्टम के विरूद्ध सामानांतर सिस्टम खड़ा कर देंगे. [यद्यपि महान क्रांतिकारी चिन्तक राहुल सांकृत्यायन के नाम पर इन्होने स्कूली सिस्टम खड़ा किया जहाँ से इनको लखेद कर बाहर कर दिया गया और ऐसे ही एक और स्कूली सिस्टम से. अब उन दोनों सिस्टम से ये तेरह हज़ार रुपये पेंशन पाते हैं. यानी जो खुद अपने ही खड़े किये बहुत छोटे सिस्टम में टिक नहीं सके वो अब पूंजीवादी व्यवस्था के समानांतर सिस्टम खड़ा करेंगे ] यूँ तो पूँजीवादी व्यवस्था में धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलना, अच्छी राइटिंग में लिखने, याद करने का वैज्ञानिक तरीका सिखाने आदि के नाम पर बहुत बड़े-बड़े धंधे चलते हैं. लेकिन दिक्कत यह है कि व्यक्तित्व विकास परियोजना का ये धंधा क्रांतिकारिता, प्रगतिशीलता और मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, माओ, भगतसिंह और राहुल सांकृत्यायन जैसे महान क्रान्तिकारियों के नाम पर चलाया जाता है. इसलिए सच्चे व जेनुइन क्रांतिकारियों के लिए यह जरूरी है कि वह ऐसे घिनौने परियोजना के चरित्र को उजागर करें.

सबसे पहली बात व्यक्तित्व विकास परियोजना के पूरे वर्ग चरित्र या अवधारणा पर है. इतिहास गवाह रहा है कि सही मायने में महान व्यक्तित्व ऐसे किसी परियोजना द्वारा न तो गढ़े गए और न ही भविष्य में गढ़े जायेंगे. मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, माओ, भगतसिंह और राहुल सांकृत्यायन जैसे क्रांतिकारियों और विचारकों का व्यक्तित्व किसी ऐसी परियोजना में विकसित नहीं हुआ था, जिसमें गिजियावन के मुताबिक “- मैं फेसबुक पर केवल उन विचारों का प्रसार करने के लिये काम कर रहा हूँ, जिनके बारे में मुझे लगता है कि वे दुनिया को मजदूरी की गुलामी के असहनीय शोषण, अपमान और उत्पीड़न वाले नरक से हमारे बच्चों के लिए आत्म-सम्मान और गरिमा के साथ रहने के लिये एक असली स्वर्ग में बदलने में मददगार होंगे.

- यह कार्यभार बहुत ही मुश्किल है और इसीलिये हमारे सामने गम्भीर चुनौती है क्योंकि परिवेश इतना प्रतिकूल है कि किसी भी वैयक्तिक प्रयास को हतोत्साहित कर देने में सक्षम है.

- यह जादू आप सब के समवेत प्रयासों की निरन्तरता के द्वारा ही किया जाना है.

- आप सब जिम्मेदार व्यक्ति हैं और सत्य, न्याय और मानव-समानता को प्यार करते हैं.

- मैं आजमगढ़ के युवाओं के लिए कुछ करना चाहता हूँ. यह मेरा जिला है.

- कृपया आजमगढ़ के युवाओं को समर्पित मेरे ब्लॉग पर जायें. उसका लिंक है – http://young-azamgarh.blogspot.in/

- मैं विभिन्न व्यावसायिक संस्थानों के लिये तैयारी करने वाले युवाओं के व्यक्तित्व विकास के लिये एक परियोजना पर काम कर रहा हूँ.

-: व्यक्तित्व विकास परियोजना :-

आज़मगढ़ के तरुणों को विभिन्न व्यावसायिक संस्थानों की प्रवेश परीक्षाओं तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली तैयारी में सहयोग देने के लिये यह परियोजना चलायी जा रही है।

इसमें निम्न नौ बिन्दु हैं :-

1. वैज्ञानिक दृष्टिकोण,

2. सामाजिक जागरूकता

3. अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास

4. शुद्ध एवं धाराप्रवाह अंग्रेज़ी व हिन्दी की वक्तृता एवं लेखन-क्षमता

5. इण्टर की फिजिक्स, केमेस्ट्री, गणित, अंग्रेज़ी और हिन्दी

6. कम्प्यूटर प्रशिक्षण

7. वन डे इक्जामिनेशन की कम्पटीशन की क्लास

8. जिम द्वारा स्वास्थ्य-सुधार और शरीर-सौष्ठव का विकास

9. प्रचण्ड आत्मविश्वास

युवा जागरण का यह प्रकल्प सेवाभाव से चलाया जा रहा है। इसके लिये कोई भी शुल्क नहीं लिया जा रहा है। कक्षा नौ तथा उससे ऊपर की कक्षाओं के छात्र एवं छात्राएँ व्यक्तित्वान्तरण के इस अभियान में भाग लेने के लिये आमन्त्रित हैं। किसी भी समस्या का समाधान खोजने में यदि आपको कठिनाई महसूस हो रही हो, तो समुचित सलाह एवं मार्गदर्शन हेतु किसी भी समय ###### पर सम्पर्क करें।“ इस तरीके का पाखण्ड रचा जाता हो. गिजियावन द्वारा महान व्यक्तित्वान्तरण अभियान के इन नौ बिंदुओं पर महान क्रांतिकारियों के भी दिमाग चकरा जायेंगे और वो पछतायेंगे कि क्यों हम जनता को संगठित करने, क्रांतिकारी साहित्य का अध्ययन करने, दिन रात प्रचार करने, संगठन-यूनियन बनाने, जेल जाने आदि काम करते रहे. बस गिजियावन के व्यक्तित्व विकास परियोजना में चले जाते और आसानी से व्यक्तित्वान्तरित होकर बाहर आ जाते. मूर्ख और कूपमंडूक की एक खूबी यह भी होती है कि वो सबको मूर्ख समझते हैं.



व्यक्तित्वान्तरण कमरे में अंग्रेजी रटने और फिजिक्स पढने से नहीं होता बल्कि दुनिया बदलने के कठिन संघर्ष में खुद को बदलने की कठिन प्रक्रिया में संभव होता है. क्रन्तिकारी व्यक्तित्व जनता के लिए लड़ते हुए, दुनिया भर की लड़ाइयों का अध्ययन करते हुए, उनसे सीखते हुये गढ़ जाता है. वह किसी स्कूल में गढ़ा नहीं जाता और कोई भी ऐसा व्यक्तित्व महान बनने के लिए क्रांतिकारी कृत्य में शामिल नहीं होता. बल्कि अपने क्रांतिकारी कृत्य, अपनी कुर्बानी, अपने त्याग, जनता को बेइंतहा प्यार करने व् उसके लिए कुर्बान तक हो जाने की चाहत रखने की वजह से या कुर्बान हो जाने से जनता उसे अपना नायक मानने लगती है और इतिहास में ऐसे व्यक्तित्व महान व्यक्तित्व के रूप में दर्ज हो जाते हैं. यहाँ तक कि पूंजीवादी क्रांतियों के नेता भी व्यक्तित्व विकास परियोजना जैसे पाखण्ड के स्कूल में कभी नहीं गए थे. पूंजीवाद अपने नायक मंडी में गढ़ता है, उसे ऐसे नायकों कि जरूरत होती है जो माल की बिक्री में सहायक हों. पूँजीवाद का नायक पूँजी के दम पर ‘’योग्यता’’ विकसित करता है और उस योग्यता से खुद की और पूँजी की व्यवस्था की सेवा करता है. उसका नायक फ़िल्मी हीरो जैसा होता है ऊपर से सजा धजा बलिष्ट और अन्दर से सडा हुआ और खोखला. वह जनता के सामने परदे पर जनता के शत्रुओं से लड़ता है जबकि वास्तवविक जीवन में वो खुद जनता का शत्रु होता है और जनता को कीड़ा-मकोड़ा समझता है. वह जहर को लाभदायक बताकर प्रचार करता है. इन नायकों के बाद दूसरा संस्तर आता जो इस व्यवस्था के कल पुर्जों के रूप में काम करते हैं और उन पुर्जों को कुछ स्थापित ‘’इतिहासकार, समाजसेवी, प्रगतिशील,’’ मैनेजमेंट गुरु और एन जी ओ के पाखंडी सिस्टम में पहुंचकर जनता की सेवा करने के नाम पर तैयार करते है और जिन लड़कों में क्रान्तिकारी संभावना होती भी है, उनके निजी हित को जनहित में मिलाकर, भ्रष्ट करके दूरगामी तौर पर इसी लूट के व्यवस्था की सेवा करते हैं. ‘‘व्यक्तित्व विकास परियोजना’’ पूंजीवादी व्यवस्था के उन्ही दलाल मैनेजमेंट गुरुओं की अवधारणा हो सकती है जो करियर की अंधी दौड़ में लगे नौजवानों को झूठे सपने दिखाकर अपनी ऐय्याशी का सामान जुटाने में सफल हो जाते हैं. ऐसी बहुत सारी बाजारू किताबें आपको मिल जायेंगी जिसमे सफल कैसे बनें?, अच्छे लीडर कैसे बनें?, नेतृत्व कैसे करें?, जीत आपकी(हालाँकि सबको जीत का मन्त्र देने वाले शिव खेड़ा जब पश्चिमी दिल्ली से चुनाव लड़े, तो जमानत तक नहीं बचा सके) आदि. व्यक्तित्व विकास परियोजना के इकसठ सूत्रीय कार्यक्रम के इकसठों सूत्र इन बाजारू किताबों में आसानी से मिल जायेंगे. यह आम घरों के बच्चों को निजी लाभ के आधार पर जोड़ता है और उनको बहुत अधकचरे तरीके से जनवाद, आलोचना-आत्मालोचना आदि क्रांतिकारी शब्दों को रटवाता है, फिर फेसबुक पर इसे अपना महान व्यक्तित्व निर्माण का परियोजना बताता है और पैसा वसूलने का काम करता है. निजी हित और सामाजिक हित को आपस मिलाने की इसकी मजबूरी यह है कि निजी हित की बात नहीं करेगा तो लड़के नहीं आयेंगे और सामजिक बात नहीं करेंगे तो लोगों से पैसा नहीं वसूल पायेगा. गिजियावन की जब कोई आलोचना करता है तो वह माओ या लेनिन को कोट करते हुए लिखता है कि इन महान व्यक्तित्त्वों को भी ऐसी आलोचनाओं से गुजरना पड़ा था. जबकि माओ ने व्यक्तित्व विकास के जैसी ही परियोजना का पक्ष लेने वाले ल्यु शाओ ची जैसे पाखंडियों का पर्दाफाश किया था. और उसे मजदूर आन्दोलन का गद्दार साबित किया था. ल्यु शाओ ची की किताब थी – अच्छे कम्युनिस्ट कैसे बनें? माओ ने ल्यु शाओ ची का भंडाफोड़ करते हुए कहा था कि निजी हित को जन हित से मिलाने का सिद्धांत लोगों के मन को भ्रष्ट कर देने वाला ज़हर है. माओ ने लिखा, “कभी-कभी ल्यु शाओ ची भी जनता की सेवा करने का ढोंग रचता था. ल्यु शाओ ची जो कि अपने व्यक्तिगत हित के लिए समर्पित था क्यों जनता की सेवा करने की इतनी चर्चा करता था? इसका उत्तर पाखंडी ल्यु शाओ ची ने खुद दिया था कि – ‘एकनिष्ठ होकर जनता की सेवा करने पर प्रतिफल के रूप में व्यक्तिगत हित की पूर्ति हो जाएगी.’ यह दिखलाता है कि जनहित में काम करना एक झूठा चेहरा है. और स्वहित में काम करना उसका असली चेहरा है.” माओ ने दिखाया कि निजी हित को जनहित से मिलाने का सिद्धांत एक नंबर के पूंजीवादी पथगामी ल्यु शाओ ची की सड़ी हुई आत्मा और कम्युनिस्टों को विषाक्त कर देने के दुर्भावनापूर्ण इरादे का सुस्पष्ट चित्रण करता हैं.

गिजियावन फेसबुक पर प्रचार करता है कि यह कैसे नए इन्सान गढ़ने की परियोजना पर काम कर रहा है. गिजियावन के मुताबिक “- मैं एक पेशेवर क्रान्तिकारी हूँ और यह सब स्वयंसेवी भाव से कर रहा हूँ. - क्योंकि मैं केवल अगली पीढ़ी के लिए उपयोगी होना चाहता हूँ.”

. तरीका-ए-जनवाद के तहत आय-व्यय सार्वजनिक करने का ढिंढोरा पीटता है. अभी इसने जनवाद की बात करते हुए अपने परियोजना के आय-व्यय को सार्वजनिक करने की बात की. उसने यह तो बताया कि आजमगढ़ से यह कितना पैसा जुटा पा रहा है लेकिन इसके दूसरे स्रोत जो आज़मगढ़ से बाहर हैं उनका इसने कहीं जिक्र नहीं किया, और न ही यह बताया कि यह अधिक खर्च आखिर खर्च कहाँ होता है. यह निःशुल्क सेवा करने की बात करता है और एनजीओ से दूर रहने की बात करता है लेकिन अभिप्राय फाउंडेशन नामक एनजीओ से व्यक्तित्व विकास परियोजना को जोड़ने की बात उस जनवाद का हिस्सा नहीं बनी. व्यक्तित्व विकास परियोजना से जुड़े एक व्यक्ति को जब इसकी जानकारी मिली और उसने सवाल उठाये तो वहां फिर वह उसी भंगिमा में सामने आया – ‘ब्रूटस यू टू’ और फिर ‘एक और प्रहार’ का रोना रोते हुए सवालों का जवाब देने से साफ़ नट गया. और फिर उस व्यक्ति को किसी तरह समझा बुझा कर शांत कराया. और एन जी ओ वाली बात पर सबूत माँगा उस व्यक्ति के पास सबूत नहीं था सो वो भी चुप मार गया. जबकि एन जी ओ से व्यक्तित्व विकास परियोजना को जोड़ने की कोशिश ब्यौरा नीचे उपलब्ध है.

********** Hi Guys, Girijesh Tiwari from Azamgarh(https://www.facebook.com/girijeshkmr?fref=ts) will be present in Delhi and wish to have a meeting with all of us. The meeting agenda will be · Azamgarh initiati

Hi Guys,



Girijesh Tiwari from Azamgarh(https://www.facebook.com/girijeshkmr?fref=ts) will be present in Delhi and wish to have a meeting with all of us.



The meeting agenda will be
Azamgarh initiative (Personality cultivation project ) merger with Abhipraay Foundation
New projects which can start through Abhipraay



Meeting Time : 13 May 2015 6:30 PM

Venue :@ Goyal Sir Home, D-7 Vasant Kunj, New Delhi 110070



Request you all to be present on the meeting , Thanks !

यही नहीं, इसकी आय के स्रोतों के बारे में इसकी परियोजना के ही कुछ लड़कों ने बताया कि वह बहुत संदिग्ध है.

मैं गिजियावन के स्कूल में पढाई के दौरान 2007 में गिजियावन से परिचित हुआ. लेकिन स्कूली पढाई के दौरान इसकी घनघोर यांत्रिकता व ऊबा देने वाले नैतिक उपदेशों के चलते ज्यादातर छात्रों की तरह मैं भी इसका मजाक ही उड़ाता था. 2011 में मैं दोबारा गिजियावन के संपर्क में आया. गिजियावन के इस “भले काम” से जुड़ने के बाद मेरा काम मुख्यतः वहाँ गणित पढ़ाना था. उस समय गिजियावन अपने दूसरे स्कूल से बहरियाये जा चुका था और आजमगढ़ शहर के ही एक मोहल्ले में रह रहा था. (मजेदार तो यह है कि गिजियावन मार्क्सवादी शब्दावली की लफ्फाजी करते हुए इसके पीछे टू लाइन स्ट्रगल और तमाम बातों का हवाला देता है जबकि इसका घृणित अवसरवाद तो देखो कि वह उन स्कूलों के मौजूदा प्रबंधन की प्रशंसा में पोस्ट भी लिखता और अभी भी उनका पेंशनधारी बना हुआ है.) जनवाद के ढोल के मधुर संगीत की लय के बीच में मुझे उस परियोजना का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गयी. यद्यपि ऊपर से थोपा गया यह जनवाद बहुत ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाया क्योंकि जनवाद इनके लिए एक खेल था. जनवाद के खेल में सामूहिक मीटिंग बुलाई जाती. और किसी भी आदमी को मीटिंग में बैठा दिया जाता था. चाहे वह उसके लिए उपयुक्त हो या न हो. नतीजा वहां फालतू के झगड़े झंझट होते और फिर लोग मीटिंग में आना बंद करने लगे. वास्तव में जनवाद उन्नत, अनुशासित और एक मकसद के लिए संकल्पबद्ध लोगों के बीच ही संभव है. परन्तु यह यांत्रिक तौर पर जनवाद का खिलवाड़ करता था. इसीलिए मैंने लिखित रूप से इस काम से इंकार कर दिया. लेकिन वहां पढ़ाने का काम उसके बाद भी आजमगढ़ में रहने की पूरी अवधि के दौरान जारी था. एक और चीज़ कि अपने इस तीसरे प्रयोग में भी गिजियावन छात्रों के एक बड़े हिस्से के बीच में अलोकप्रिय ही था. यहाँ तक कि कुछ ऐसे लोग भी जो अभी भी गिजियावन के साथ किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं वह भी पीठ पीछे गिजियावन के बारे में बहुत अच्छी धारणा नहीं रखते. और गिजियावन भी अपने बहुत से अपने ‘शेर बच्चों’ के बारे में, उनके इस रवैये के बारे में खूब परिचित है और खुद भी उनके बारे में बहुत बढ़िया नहीं सोचता. लेकिन गिजियावन के लिए असल सवाल तो अपने बुढ़ापे के लिए ऐय्याशी से जीने की व्यवस्था करना है इसलिए वह भी बुरी चीज़ों के खिलाफ लड़ता नहीं है बल्कि किसी तरह एडजस्ट करने की कोशिश करता है. कुछ की चापलूसी करता है, कुछ को लालच देता है, कुछ जोड़ों को अलग से कमरे में मिलने का मौका देता है. अभी हाल ही में पता चला है कि इन्ही लक्षणों को देखते हुए एक सज्जन ने इस मठ का नाम ‘प्रेमी मिलन केंद्र’ रख दिया था. पहले भी उन शेरों के मठ में आने को लेकर हम लोगों ने गिजियावन से सवाल उठाया था और उन्हें मठ में आने से रोकने को कहा था. तो गिजियावन ने एक पेंच निकाला कि उनके वे शेर एक निश्चित समयांतराल में (छात्र-छात्राओं की उपस्थिति में) नहीं आएंगे. लेकिन उन शेरों को तो उससे कोई फर्क पड़ना नहीं था, और न ही रिंग मास्टर उनको रोकने की नीयत से ही ऐसा कुछ कर रहे थे. हाँ, मेरे सहित कुछ दूसरे लोगों के चले जाने के बाद ये शेर पुनः सारी छूट हासिल कर लिए. लड़कों ने फिर सवाल उठाये तो गिजियावन ने “व्यक्तिगत आज़ादी” का हवाला देकर सवाल को रफा-दफा कर दिया. उन शेरों के बारे में वह लड़कों को अप्रत्यक्ष रूप से धमकाता भी है कि यह मेरे पाले हुए गुंडे है और समय पर काम आएंगे. कुछ समझदार माँ-बापों ने इन चीज़ों को देखने के बाद अपने बेटे-बेटियों को मठ तक आने से रोक दिया. इसमे पढ़े हुए लड़के यांत्रिक तौर पर थोपे गए व्यक्तिगत आज़ादी, जनवाद, कामरेड, मानस-पुत्र, मानस-पुत्री जैसे शब्दों से इतने चिढ़े रहते हैं कि वो आपस में इन्ही शब्दों को लेकर मजाक करते रहते हैं. इन शब्दों की अर्थवत्ता इन लड़कों के लिए कुछ नहीं है. न ही इनको प्रयोग करने में वो कोई जिम्मेदारी महसूस करते हैं.

एक बात और, इनके पिछले दो क्रांतिकारी प्रयोगों में से राहुल सांकृत्यायन के नाम पर जो विरासत इसने छोड़ी है, वहां राहुल सांकृत्यायन की जयंती भले न मनाई जाए लेकिन बोर्ड की परीक्षा शुरू होने से पहले “सुन्दरकाण्ड” का पाठ जरूर करवाया जाता है. बाकी पेंशनधारी तो है ही.

अब व्यक्तित्व विकास परियोजना में गिजियावन की भूमिका की बात – गिजियावन वैसे तो वहाँ अंग्रेजी पढ़ाने का काम करता है. इसके लिए यह लोगों को सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक अपने साथ रहने के लिए कहता है. बहुत सारे छात्र-छात्राएं घंटों गिजियावन के कमरे में बैठे रहते हैं और कुछ तो रात में भी रुकते हैं, लेकिन जितना कुछ एक बुर्जुआ संस्थान में भी सिखाया जाता है, गिजियावन उस स्तर का भी ज्ञान नहीं दे पाता. अभी पिछले दिनों, गिजियावन के मठ की हकीकत को जानने के बाद हाई-स्कूल के एक छात्र के पिताजी ने तो अपने पुत्र को पीटकर गिजियावन के मठ में जाने से रोक दिया, जब कि वह खुद गिजियावन के पास तक एक समय अपने पुत्र को लेकर आये थे. वह दावा करता है कि “आज़मगढ़ के तरुणों को विभिन्न व्यावसायिक संस्थानों की प्रवेश परीक्षाओं तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली तैयारी में सहयोग देने के लिये यह परियोजना चलायी जा रही है।” लेकिन यदि आप इसके यहाँ से निकले कुछ छात्रों से मिले तो वो आपको बता देंगे कि यह पढ़ाने के नाम पर क्या करता है. अगर ये पढ़ाना शुरू करता है तो बीच-बीच में कई बार उठ कर कंप्यूटर पर कुछ करने चला जाता है और फिर कई-कई बार आराम करने लगता है. मतलब ये कि पढ़ाने के नाम पर अंग्रेजी की किताब के दो-तीन आधे-अधूरे पाठ, तो कहीं ट्रांसलेसन में एक-दो आधे-अधूरे टेंस से ज्यादा इसने पढाया ही नहीं. अधिकांश छात्र इसकी इन्ही आदतों की वजह से इससे पढ़ना पसंद नहीं करते थे लेकिन गणित और विज्ञान पढ़ने जरूर आते थे. गिजियावन की क्लास खाली रहती थी तो फिर इसने एक नया पेंच निकाला. उनको जबरन पढ़ाने के लिए गिजियावन ने अपनी कक्षा को विज्ञान और गणित की कक्षा के बीच में लगा दिया. परिणाम यह कि उनमे से अधिकांश ने पढ़ने आना ही बंद कर दिया. गिजियावन अधिकतम घंटे पढ़ने वाले को प्रोत्साहित और सम्मानित करता है. किसी बुर्जुआ संस्था में भी इस अवैज्ञानिक दृष्टिकोण का कोई उदाहरण नहीं मिलेगा. क्योंकि इसके बाद 24 में से 24 घंटे पढ़ने का जो सिलसिला शुरू हो गया. कोई भी समझदार व्यक्ति आसानी से समझ सकता है 22-23 घंटे पढ़ने वाला आदमी पागल हो सकता है लेकिन पढ़ने में तेज़ नहीं हो सकता. हुआ भी यही, जिनको इसने 22-23 घंटे पढ़ने के लिए पुरस्कृत किया था और ‘परीक्षा में टॉप करने-कराने के लिए घनघोर मेहनत करने’ का इनका गुरुमंत्र दिया था, उससे कोई फायदा नहीं हुआ. हाँ, मानसिक तनाव ज़रूर पैदा हुआ. वास्तव में 22-23 घंटा पढ़ने की सलाह कोई पागल और झक्की आदमी ही दे सकता है. और यह भी याद रखने की जरूरत है कि इस प्रक्रिया से वह समाज के काम आने वाले व्यक्तित्व को गढ़ने का दावा करता है. इसके इस पूरी प्रक्रिया से छात्रों-युवाओं के पूरे व्यक्तित्व और मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. इनके गढ़े मौजूदा शेरों से कोई भी मिलकर देख सकता है कि इस आदमी ने उन्हें किस तरह यंत्र-मानव में तब्दील कर दिया है.

अपने कमरे में बैठाकर अपनी पोस्ट और घटिया कविताएँ जबरदस्ती छात्रों को पढ़ाने का काम करने की इसकी प्रवृत्ति ने बहुत सारे लड़कों को सामाजिक सरोकारों से दूर ही भगा देती है. और ज़रा इसकी पोस्टों को देखिये... इनकी एक कविता है- ‘मैं घंटा हूँ’. करियर और क्रांति की ऐसी खिचड़ी पकाई है कि इसके यहाँ तो गज़ब-गज़ब नमूने तैयार हुए हैं, जिनसे मिलने के बाद कोई भी समझ सकता है कि व्यक्तित्व विकास परियोजना का नाम व्यक्तित्व विनाश परियोजना क्यों रख दिया गया है. वे यांत्रिकता और बीमारूपन के दुर्लभ नमूने हैं जो केवल गिजियावन के व्यक्तित्व निर्माण मठ में ही तैयार हो सकते थे. और कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जो अभी भी गिजियावन से इसलिए चिढ़ते हैं कि इसने उन्हें न इस दुनिया का छोड़ा, न उस दुनिया का. इन्ही के मार्गदर्शन में एक लड़का विक्षिप्त भी हो गया था जो इनके सामने ये कहता है कि उसकी विक्षिप्तता का कारण उसकी पारिवारिक समस्याएं थीं, जबकि दूसरे सभी लोगों को बताता है कि मैं गिजियावन की वजह से ही विक्षिप्त हुआ था. बहुत सारे लोग जो गिजियावन पर सवाल उठाते हैं, यह ज़वाब देने की बजाय उनकी खामियों पर ही सवाल उठाने लगता है, और यह खामियां उसके पहले तक इसे नज़र नहीं आती. बात तो ये वैज्ञानिक दृष्टिकोण की करता है और सवाल करने पर यह रोना रोता है कि हाय! मैंने तुम पर भरोसा किया और तुमने उसका ये सिला दिया. लेकिन ये उन बहुत सारे सवालों का जवाब देने की बजाय चुप्पी साधना ही पसंद करता है.

अब सवाल उठता है कि आखिर गिजियावन को इस व्यक्तित्व विकास परियोजना से क्या लाभ है. सबसे पहली बात तो यह कि यह गिजियावन जिस जगह पर रहता है, वहां एक उच्च-मध्यमवर्गीय ज़िंदगी सी भौतिक सुविधाएँ इकठ्ठा करके रखता है. इसके कमरे पर फ्रिज, कूलर, एग्जहौस्ट और तमाम दूसरी चीज़ें मौजूद हैं. खाना तो यह खुद बनाता नहीं, और खाना लेने के लिए भी किसी और को ही भेजता है. और उसमे देरी होने पर यह नाराज़ भी हो जाता है. खाना लाने के सवाल को लेकर ही जब ये अपने मौजूदा शेरों में से एक से नाराज़ हुआ था तो उसने मेरे इनबॉक्स में एक मेसेज भी किया था.



खाने में आइसक्रीम और बीयर का सेवन (ये तथ्य भी हमें इन्ही के एक शेर ने बताया) ये रोजमर्रे का रूटीन है. चिकन जैसी चीज़ें तो अधिक होने पर, पेट ख़राब होने का जोखिम लेकर सरपेट जाता है. परियोजना के लड़कों का ये भी कहना है कि इस मामले में इसने सामूहिकता दिखाने की कभी कोशिश नहीं की. जिस आवास में यह मौजूदा समय में रह रहा है, उसमे अपने कमरे की छत तक को थर्माकोल से ढँक रखा है. शरीर में थोडा भी दर्द होने पर अपने शेरों से पूरे शरीर की मालिश करवाता है. यही नहीं, थूकने के लिए बाहर न जाना पड़े, इसके लिए एक कटोरी की भी व्यवस्था है, जिसे जरूरत पड़ने पर लड़कों से मांग लेता है. महाघुमक्कड़ राहुल के नाम पर धंधा करने वाला यह व्यक्ति 15-20 दिनों तक अपने आवास से बाहर ही नहीं जाता. और जब बाहर निकलता है तो ट्रेन में A.C. टिकट पर यात्रा करता है. मतलब ये कि यह पेशेवर क्रांतिकारी कोई जोखिम उठाये बगैर, कोई ज़िम्मेदारी निभाए बगैर बेहतरीन सुविधाभोगी जीवन व्यतीत कर रहा है.

अब आते हैं कि व्यक्तित्व गढ़ने वाले शिल्पी गिजियावन का व्यक्तित्व क्या है?

अवसरवादी – अपने स्वार्थों के लिए किसी से हाथ मिला सकता है. जैसा कि प्रतिक्रियावादियों के बारे में माओ ने एक बार लिखा था कि उनके झोले में हर तरह का माल मौजूद होता है. जहाँ जिस माल से काम बनता है वहां वही माल भिड़ा देते हैं.

गिजियावन की इन ढेर सारी विशेषताओं में एक विशेषता और भी है. वह यह कि ये किसी की भी चापलूसी कर सकता है. इन्होने अपने ढेर सारे ‘शेरों’ को क्रांतिकारी की उपाधि दे डाली है और उनको अपना ज़वाब भी बताते हैं. इनके अधिकाँश ‘शेरों’ की वाल पर ‘यू आर माइ आंसर’ वाली कविता उनके फोटो के साथ गिजियावन के द्वारा चस्पा की हुई देखी जा सकती है. बहुत सारी तस्वीरों पर इसके चापलूसी भरे कमेंट सुनने को मिलते रहते हैं.

अब आते हैं, इसके व्यक्तित्व के अवसरवादिता, दोहरी जुबान, चापलूसी और आत्म प्रशंसा के सवाल पर- व्यक्तित्व विकास और क्रांति का ढोल पीटने वाला यह गिजियावन एक तरफ बात तो क्रांति की करता है, यह खुद के पेशेवर क्रांतिकारी होने का दावा करता है और दूसरी तरफ यह भी बताता है कि मैंने आज तक किसी को पेशे के रूप में इंक़लाब चुनने के लिए नहीं कहा. बहुत मौकों पर यह भी कहता रहा है कि “I don’t want to make this project a political platform of any shade”. प्रवचन तो यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण का देता है और अपने इंट्रो में लिखता है – “scientific outlook of revolutionary dialectical materialism”, लेकिन एक ज्योतिषाचार्य को यह अपना गुरु भी बतलाता है.





एक तरफ तो यह कहता है कि “मैं फेसबुक पर केवल उन विचारों का प्रसार करने के लिये काम कर रहा हूँ, जिनके बारे में मुझे लगता है कि वे दुनिया को मजदूरी की गुलामी के असहनीय शोषण, अपमान और उत्पीड़न वाले नरक से हमारे बच्चों के लिए आत्म-सम्मान और गरिमा के साथ रहने के लिये एक असली स्वर्ग में बदलने में मददगार होंगे.” दूसरी ओर आम आदमी पार्टी की जीत पर लहालोट भी होता है. दूसरों को तो ये स्पष्ट शब्दों में आत्मालोचना का साहस जुटाने और तर्क पूर्ण प्रतिवाद करने की सीख देता है और खुद छाती पीटते आत्मभर्त्सना करने का ढोंग करता है और सवाल उठाने पर भागने लगता है. हास्यास्पद तो यह भी है कि यह “अपमान, हानि, वेदना या पराजय मिलने पर विलाप न करना” की सीख भी देने लगता है. इसकी एकता बनती है भारत रक्षा दल नाम के एक “राष्ट्रवादी” संगठन के साथ, जिसके नेता कभी अन्ना हजारे का झंडा ढोने का काम करते हैं, तो कभी अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिलाने की बात करते हैं. आजमगढ़ में दैनिक जागरण जैसे समाचार के कर्ताधर्ता के साथ इसकी टोली बनती है. वैसे गिजियावन खुद को आर.एस.एस., भाजपा विरोधी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला मार्क्सवादी बताता है.

सभी भगोड़ों, कुंठित, पतितों से इसकी गहरी एकता बनती है. और जब कोई सही क्रांतिकारी दिशा में काम के लिए उन्मुख होता है तो यह घर बैठे मज़ा मार रहे भगोड़ों, कुंठित और पतितों द्वारा फैलाये फेसबुकिया गन्दगी को लोगों को पढ़वाकर क्रांतिकारी कामों से बिदकाने का काम करता है. यही वजह है कि आजमगढ़ छोड़ने के बाद जब मैं एक दूसरे संगठन से जुड़ा तो इस गिजियावन को कोई दिक्कत नहीं हुई, जब कि गिजियावन भी उस संगठन के असली चरित्र से वाकिफ थे. बाद में मैंने उस संगठन को अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर छोड़ दिया. लेकिन असली दिक्कत तो गिजियावन को तब शुरू हुई जब मैं एक दूसरे संगठन से जुड़ा. जब मैं पूरी राजनीति के सवाल पर गिजियावन से बातचीत करने गया तो खुद के सत्यवादी होने का दावा पेश करने वाले गिजियावन ने बहुत से गलत तथ्य बताकर मुझे समझाने की कोशिश की. लेकिन जब सवाल मार्क्सवाद-लेनिनवाद के मूलभूत सिद्धांतों का आया तो गिजियावन ने वहां भी अपना गिजियावन वाला चरित्र ही दिखाया और मार्क्सवाद-लेनिनवाद के मूलभूत सिद्धांतों पर ही हमला कर बैठा.

आत्ममुग्ध – आत्ममुग्धता इन्सान को केंचुआ बना देती है जो स्वरति का शिकार होता है. इस मामले में यह दोनों तरफ चलता है. मतलब कि किसी दूसरे की प्रशंसा (चापलूसी) इस हद तक कि ऊब पैदा हो जाए. और आत्मप्रशंसा का कोई भी अवसर हाथ से जाने न पाए. सबसे पहले आते हैं दूसरे की चापलूसी पर, जो कि फेसबुक पर इसकी पोस्ट पढ़कर कोई भी आसानी से समझ सकता है. वैसे भी फेसबुक पर इसकी ज्यादातर पोस्ट किसी और जगह से ली गयी होती हैं जबकि फेसबुक ही इसका क्रांतिकारी माध्यम है. फेसबुक पर इसके ढेर सारे मानस-पुत्र हैं और उनकी चापलूसी में यह ‘यू आर माय आंसर’ की पोस्ट उनकी वाल पर चेंपता रहता है. ढेर सारे लोगों की फोटो चापलूसी भरी कविताओं के साथ लगाता रहता है. यहाँ तक कि यह अपने उन मठों के मठाधीशों की चाटुकारिता करने से भी बाज नहीं आता, जहाँ से इसको लखेद कर बाहर कर दिया गया. इसके दो लिंक नीचे भी दिए गए हैं. https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10203693723291413&set=t.1467398103&type=3&theater ,https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10203514676615358&set=t.1467398103&type=3&theater . कोई भी समझदार आदमी समझ सकता है कि किसी कि अतिप्रशंसा कोई ठग ही करता है. और उसके लाभ पर अगर कोई चोट कर देता है तो यह तत्काल उसकी अतिबुराई भी शुरू कर देता है. मुझे भी इसने ‘यू आर माय आंसर’ वाली पोस्ट चेंपी थी. जब मैंने इसकी आलोचना की तब इसने आलोचना का कोई ज़वाब नहीं दिया और तपाक से कामरेड बना दिया ताकि फेसबुक पर मौजूद लोगों को लगे कि गिजियावन कितना विनम्र व्यक्ति है लेकिन वास्तव में इसने बहुत सारे लोगों के इनबॉक्स में मेरी आलोचना वाली पोस्ट डालकर लोगों को दिग्भ्रमित करने की कोशिश किया. और तत्काल मुझे अनफ्रेंड कर दिया. परियोजना से जुड़े बहुत से लोगों को एक तरफा तरीके से इस तरह बताया कि जैसे मैंने इसके साथ कितनी बड़ी ज्यादती कर दी. लेकिन व्यक्तिवादी सांप चाहे जितना विनम्र बने पूंछ पर पाँव पड़ते ही फन काढ़ कर खड़ा हो जाता है. जब बात और आगे बढ़ी तो यह मुझे गद्दार वगैरह बनाने लगा. हाँ जवाब फिर भी किसी बात का नहीं दिया. और एक बार फिर गिजियावन जब ये रोना रो रहा है कि मेरे खिलाफ कुत्सा प्रचार करने का काम किया जा रहा है. “वे ऐसे हर मुलाकाती से ज़ोरदार गालियों से अलंकृत अपने प्रवचन में बताते जा रहे हैं कि मैं यानि गिरिजेश तिवारी कितना यौन-कुण्ठित, लालची, स्वार्थी और गया-गुज़रा इन्सान हूँ.” तो ध्यान रहे कि उसका मकसद बस उसी बात को एक बार फिर से दुहरा देना है कि जो बात वो हर उस आदमी से दुहराता है जिससे वो फेसबुक पर मिलता है. वह बताना चाहता है कि मैं एक नया इन्सान गढ़ने की कोशिश में जी जान से लगा हुआ हूँ और तो और एक पेशेवर क्रांतिकारी के तौर पर यह सब स्वयंसेवी भाव से कर रहा हूँ. लेकिन वह इन बातों का कोई जवाब नहीं देना चाहता. हर पाखंडी की तरह वह भी ये दावा कर रहा है कि वो उस दिन के इंतज़ार में है जब खुदा बाप उन पापियों का सजा देगा जो इस पर इस तरह का ज़ुल्म ढा रहे हैं (यानि सवाल उठा रहे हैं). दरअसल हकीकत तो यह है कि वह तमाम नवयुवकों को सवाल उठाने वालों के प्रति ही पूर्वाग्रह ग्रस्त करने में लगा हुआ है. इन्टरनेट पर उपस्थित बहुत सारी ऐसी चीज़ों की मदद से जो गिजियावन जैसे ही दूसरे ज्वर पीड़ित लोगों ने फैला रखी हैं, की मदद से वह ऐसे बहुत सारे कृत्यों को अंजाम देने में लगा हुआ है. हालाँकि गिजियावन को यह विशेष खबर देने वाले गिजियावन दर्द से पीड़ित व्यक्ति जो इसके साथ एक साल रहा भी था, का इसके बारे में मूल्यांकन था कि वह अपना बुढ़ापा काट रहा है और व्यक्तित्व विकास के नाम पर अपने लिए सुविधा बटोर रहा है. बस उसका कहना था कि हम लोग गिजियावन के बारे में अतिरंजित बात कर रहे हैं और हमारा कहना था कि ये बात गिजियावन के शेरों ने ही बताई है. और गिजियावन के लिए उदारता के लिए परेशान उस व्यक्ति को हमने नहीं बुलाया था, बल्कि वह अपने अवसाद से मुक्त होने के लिए ऊर्जा ग्रहण करने के लिए हम तक आया था. यह पाखंडी गिजियावन आलोचना होने पर अपनी तुलना महान क्रांतिकारियों से करता है या “ब्रूटस यू टू” का अलाप टेरता हुआ विश्वास की हत्या का रोना रोता है या कभी खुद को सुदर्शन की कहानी हार की जीत का बाबा भारती समझाने लगता है, इस पर भी उसे ज़रा भी शर्म नहीं आती. खैर पाखंडियों को क्या लाज शरम?

अब थोड़ी बात इसकी आत्ममुग्धता पर – इसके केंचुए वाली आत्म मुग्धता को दूर देश में बैठी एक अमेरिकी महिला भी समझ गई जो कभी इसको पर्याप्त फण्ड देने के लिए तैयार थी. वह पोस्ट और पोस्ट और पोस्ट पर उस महिला की टिप्पणी की स्नैप शॉट चित्र में है.

गिजियावन के व्यक्तित्व में यौन कुण्ठा का ब्रह्माण्ड. यह इसी से समझा जा सकता है कि इसकी हार्ड-डिस्क में ब्यूटी और समथिंग टू रीड नाम के 150जीबी अश्लील फोटो और पोर्न वीडियो भरी हैं. कालीकट यात्रा के वक़्त यह अपने शेरों को बता कर गया था कि वह अपनी इस एक्सटर्नल हार्ड डिस्क को लेकर जा रहा है. लेकिन वह इसे छुपा कर गया था. जिसे इसकी गन्दगी से परिचित लड़कों ने खोजकर देख लिया. इनके एक शेर जो इन्हें कालीकट यात्रा के दौरान रेलवे स्टेशन तक छोड़ने गए थे, उन्होंने बताया कि एसी कम्पार्टमेंट में बैठकर कैसे ये सामने बैठी एक लड़की पर टकटकी लगाए हुए था.

इस गिजियावन और इसके व्यक्तित्व विनाश परियोजना का भंडाफोड़ करना किसी भी जेनुइन व्यक्ति के लिए अनिवार्य है और तब तो और भी ज्यादा जब यह घृणित व्यक्ति इस तरीके के कृत्य को मार्क्स-एंगेल्स-लेनिन, राहुल सांकृत्यायन, भगतसिंह और समाजसेवा के नाम पर कर रहा है और बहुत सारे युवकों के आदर्शों को खंडित कर रहा है और उन्हें कुंठित बना रहा है. अन्यथा इतनी गन्दगी को जानने में हमारी कोई दिलचस्पी न होती और यह सारे तथ्य इसी की परियोजना के लोगों ने हमको अपनी पहल पर संपर्क करके अवगत कराया है. क्योंकि हमने इनकी कई आलोचनाएँ खुले रूप में की थीं और हमारा इससे जुड़ाव भी लम्बा था.

4 comments:

  1. Prashant Rai मैंने पूरी पोस्ट पढ़ी अमित । मैं तो दो साल पहले ही इसको समझ गया था । बहुत ही गन्दा इंसान है ये ।
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    अमिता नारायण सच आज नही तो कल बाहर आ ही जाता है! Sukhpal Singh
    Like · Reply · 1 · 2 hrs

    Somnath Chakraborti वैसे यह नोट जिस मुंबई में बैठे क्रांतिवीर के द्वारा लिखा गया है उसे मैं अच्छी तरह से जानता हूँ smile emoticon Amit Azamgarh
    Like · Reply · 1 · 2 hrs

    Amit Azamgarh वैसे बहुत ''समझदार'' निकले, पहले इनबॉक्स में आकर पूछे की मै किस संगठन से जुड़ा हूँ फिर आकर ये चेंप दिए कि ये मुंबई में बैठे किसी क्रांतिवीर ने लिखा है . मतलब समझदार लोग बस मुंबई में पाए जाते हैं और सारे समझदारों के सरदार तुम हो . और कितनी गहरी समझ है आपकी कि पोस्ट पर टिप्पणी करने से पहले संगठन की जानकारी लेना जरूरी समझे somnaath chakraborti
    Like · Reply · 1 · 46 mins

    Somnath Chakraborti देखो अमित तुम्हारी भाषा मेरे साथ किस तरह की हो रही है ?? पहले के अच्छे रिश्ते रहे (जो की अभी भी है उम्मीद करता हूँ ) तुम्हारे साथ इसलिए इनबॉक्स किया और मुझे यहाँ टैग किया गया इसलिए कमेन्ट किया । नही तो मुझे क्या लेना देना है ऐसे कीचड़ उछालू प्रतियोगिता से ??

    सालो पहले तुम्हारे अभी के अग्रज लोग इस खेल में मुझसे उलझ कर थक कर किनारे ले चूका है । मैं भी अलग ही रहता हूँ । तुम लोग लगे रहो , मुझे जंगलो में और खदानों में रहने दो । सरकारों से लड़ते हैं हम । इतनी फुरसत नही है भाई की तुमसे इन बातो पर यहाँ टुच्चा बहस करूं । छोटे भाई हो । हमेशा रहोगे
    । इस तरह के फ़ालतू पोस्ट में टैग न करना । हाँ कहीं कुछ ढंग का मजदूरो को संगठित का कार्य हो रहा हो तो उसकी सूचनाएं देना । स्वागत रहेगा ।
    Like · Reply · 35 mins

    Amit Azamgarh तुम जंगलों और खदानों में हो और मै फाइव स्टार होटल में ! क्या आत्ममुग्धता है !! बहस कि जगह टुच्चई करने कि फुर्सत तो निकाल ही लिए wah ......
    Like · Reply · 27 mins

    Somnath Chakraborti हा हा हा हा यही टिप्पणी किसी निसु नाम से आया पहले फिर डिलीट करके तुमने डाल दिया ?? अपने दिमाग का इस्तेमाल करो बच्चे । और जिस भाषा में उलझने की कोशिश कर रहे हो उसका मैं उस्ताद हूँ बस बोला ना बाबू यह सब काम छोड़ चूका हूँ । तुमने टैग किया मैंने कमेन्ट लिखा बात खत्म अब मुझे लेकर कोई टिप्पणी की जरूरत नही है बच्चे ।
    Like · Reply · 17 mins

    Somnath Chakraborti एक काम करो अमित , तुम्हे अगर इस मुद्दे पर मुझसे बात करनी ही है शायद इसीलिए तुमने टैग किया होगा तो एक काम करो मुझे कॉल कर लो । वही नम्बर है पुराना वाला मेरे चीजे रोज रोज बदलते नही । या अपना नम्बर दो । आओ बात करें आमने सामने । यहाँ चेट टाइप की जरूरत क्या है ?? तुम्हारा पहले का नम्बर बंद आ रहा है , कोई नया नम्बर है दो ??

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  2. https://www.facebook.com/notes/amit-azamgarh/%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A3-%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B6-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A4%BE-/857265597688111?pnref=story

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  3. https://www.facebook.com/amit.pathak.106/posts/858765057538165

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  4. अकल मंद - आदरणीय गिरिजेश जी! आपके संत व्यक्तित्व को देखकर मैं भी प्रायः अचम्भे में पड़ जाता हूँ, लेकिन अमित आजमगढ़ की वाल पर आपके बारे में जो पढ़ने को मिला, वह आश्चर्यचकित कर देने वाला है. और इसमे अमित आजमगढ़ ने यह भी दावा किया है कि वह आपके करीबी शिष्यों में से एक रहे हैं.
    https://www.facebook.com/.../%E0%A4%97%E0.../857265597688111

    अराजक मलंग - दिग्भ्रमित शिष्यों में से........
    ऐसे शिष्य जिसे अपने गुरु से ज्यादा कुछ वैचारिक ठेकेदारों पर विश्वास है, जो दुनिया को बदलने की रेडीमेड दुकाने खोले बैठे हैं।
    बाकी सहमति असहमति हर एक के जीवन में होती है......
    अगर गिरिजेश जी के जीवन में अमित हैं तो अराजक भी.....

    Girijesh Tiwari मित्र अकल मंद जी, अभी मैंने आपकी वाल देखी और आपके कथन में निहित उपहास का अर्थ समझ गया. आपकी अक्ल वास्तव में मन्द ही है. आपने अपने मित्रों की तुलना में अभी शालीनता की द्विअर्थी भाषा का इस्तेमाल किया है. धन्य हो गया मैं आप के मन्तव्य को समझ कर. कुछ ही दिनों पहले ऐसे ही एक और सज्जन इलाहाबाद से हुआँ-हुआँ की दोहरी बोली बोल रहे थे. मैं आपके सम्मान से अभिभूत हो रहा हूँ और आभार व्यक्त कर रहा हूँ.

    अमित आज़मगढ़ ने निश्चित रूप से आज़मगढ़ में निःशुल्क शिक्षण-प्रशिक्षण के लिये गत पाँच वर्षों से चल रही Personality Cultivation Project व्यक्तित्व विकास परियोजना के आरम्भिक तीन वर्षों में इसके सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्तम्भ के रूप में अपनी अनन्य भूमिका का निर्वाह किया है. मैं उनके अगणित योगदानों का ऋणी हूँ. आमने-सामने की अन्तिम वार्ता में भी उनके शब्द पूर्ववत् थे. परन्तु जीवन अनवरत परिवर्तन का ही नाम है. आज़मगढ़ से बाहर जाने के बाद से ही अब उनकी अवस्थिति, स्थान, रूप, मुद्रा और भूमिका बदल चुकी है.

    उनके वर्तमान साथियों (वस्तुतः वे आपके भी साथी हैं) और उन्होंने मेरे विषय में और भी काफ़ी कुछ लिखा है. उसमें से जो भी मुझे उपलब्ध हो सका, मेरे ब्लॉग में सुरक्षित है. मैं निम्न 4 लिंक्स यहाँ आपकी सुविधा के लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ. अगर समय निकाल कर पूरा पढ़ने की जिज्ञासा हो, तो इन लिंक्स तक जा कर पढ़ें.

    1. http://young-azamgarh.blogspot.in/2015/06/2.html

    2. http://young-azamgarh.blogspot.in/2015/05/1.html

    3. http://young-azamgarh.blogspot.in/2015/05/blog-post_26.html

    4.http://young-azamgarh.blogspot.com/.../kavita...

    और अतिशय विनम्रता के साथ (छद्म दम्भ नहीं) एक अनुरोध है कि मुझे केवल एक सामान्य सड़क के कंगाल आदमी के तौर पर ही लें. मुझे 'सन्त' शब्द का आशय पूर्णतः ज्ञात है. कृपया ऐसे किसी भी आभामण्डल से दूर रह कर मुझे चुपचाप युवाओं की सेवा करने दें. मेरा आत्मसंघर्ष अभी भी जारी है. फ़र्जी आभामण्डल आत्मसंघर्ष को कमज़ोर करता है. परन्तु उपहास, गालियाँ और अपमान उसे और भी बल देते है. आप सरीखे मित्रों-अमित्रों-कुमित्रों-सुमित्रों से जो भी मिला है, वह सम्बल ही मेरे मनोबल के मूल में है." 29.8.15
    https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10204975311370314&set=a.2043969386669.2098291.1467398103&type=1&comment_id=10204986094359882&ref=notif&notif_t=photo_comment

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